पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की दुर्दशा की बात किसी से छिपी नहीं है. लेकिन हाल ही में आए पाकिस्तान रेंजर्स के एक विज्ञापन ने हमारे पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों के प्रति होने वाले अमानवीय व्यवहार का क्रूर चेहरा उजागर किया है. पाकिस्तान रेंजर्स उसी तरह से है जिस तरह से हमारे यहां बीएसएफ है. पाकिस्तानी रेंजर्स में खाली पदों को भरने के लिए पाकिस्तान के सभी अख़बारों में एक विज्ञापन छपा है. जिसमें कुछ पद ऐसे थे जो केवल गैर-मुस्लिमों के लिए आरक्षित थे. पहली नजर में आपको लग रहा होगा की ये तो अच्छी बात है, लेकिन जरा ठहरिये. उन पदों के बारे में भी जान लीजिये जिसका पिटारा पाकिस्तान की सेना ने वहां के गैर मुस्लिमों के लिए खोला है.
इनमें टेलर, नाई, बढ़ई, पेंटर, वाटर करियर, मोची और सफाईकर्मी जैसेे पद शामिल हैं. दिक्कत इन नौकरियों के साथ नहीं है, लेकिन इन पदों को केवल गैर-मुस्लिमों के लिए आरक्षित करना पाकिस्तानी सेना की गंदी मानसिकता का विभत्स रूप प्रदर्शित कर रहा है. आपको ज्ञात होना चाहिए की पाकिस्तान रेंजर्स ही वो पलटन है जो आये दिन बॉर्डर पर सीजफायर के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाता है. पाकिस्तान की सेना इनका इस्तेमाल भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के लिए करती है.
पंजाब प्रान्त का दबदबा
पंजाब आबादी के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है. देश की आधी आबादी इसी राज्य में रहती है. रेंजर्स की बहालियों में भी पंजाबियों का दबदबा साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. कूल खाली पदों का 50% पंजाब के लोगों के लिए आरक्षित हैं. दरअसल पाकिस्तानी सेना में पंजाबियों का दबदबा हमेशा से रहा है जिसने सेना में नस्लवाद की भावना को मजबूत किया है. पंजाबियों के ऊपर तानाशाही के...
पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की दुर्दशा की बात किसी से छिपी नहीं है. लेकिन हाल ही में आए पाकिस्तान रेंजर्स के एक विज्ञापन ने हमारे पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों के प्रति होने वाले अमानवीय व्यवहार का क्रूर चेहरा उजागर किया है. पाकिस्तान रेंजर्स उसी तरह से है जिस तरह से हमारे यहां बीएसएफ है. पाकिस्तानी रेंजर्स में खाली पदों को भरने के लिए पाकिस्तान के सभी अख़बारों में एक विज्ञापन छपा है. जिसमें कुछ पद ऐसे थे जो केवल गैर-मुस्लिमों के लिए आरक्षित थे. पहली नजर में आपको लग रहा होगा की ये तो अच्छी बात है, लेकिन जरा ठहरिये. उन पदों के बारे में भी जान लीजिये जिसका पिटारा पाकिस्तान की सेना ने वहां के गैर मुस्लिमों के लिए खोला है.
इनमें टेलर, नाई, बढ़ई, पेंटर, वाटर करियर, मोची और सफाईकर्मी जैसेे पद शामिल हैं. दिक्कत इन नौकरियों के साथ नहीं है, लेकिन इन पदों को केवल गैर-मुस्लिमों के लिए आरक्षित करना पाकिस्तानी सेना की गंदी मानसिकता का विभत्स रूप प्रदर्शित कर रहा है. आपको ज्ञात होना चाहिए की पाकिस्तान रेंजर्स ही वो पलटन है जो आये दिन बॉर्डर पर सीजफायर के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाता है. पाकिस्तान की सेना इनका इस्तेमाल भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के लिए करती है.
पंजाब प्रान्त का दबदबा
पंजाब आबादी के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है. देश की आधी आबादी इसी राज्य में रहती है. रेंजर्स की बहालियों में भी पंजाबियों का दबदबा साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. कूल खाली पदों का 50% पंजाब के लोगों के लिए आरक्षित हैं. दरअसल पाकिस्तानी सेना में पंजाबियों का दबदबा हमेशा से रहा है जिसने सेना में नस्लवाद की भावना को मजबूत किया है. पंजाबियों के ऊपर तानाशाही के आरोप भी सामने आते रहे हैं. क्षेत्रफल की दृष्टि से बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह से वहां के लोगों में पाकिस्तानी सेना की दमनकारी नीतियों के प्रति नफरत की भावना बढ़ी है उसके बाद सेना में उनकी हिस्सेदारी को बहुत हद तक कम कर दिया गया है. क्षेत्र में बढ़ती चीन की दखलंदाजी ने भी लोगों के गुस्से को बढ़ाने का काम किया है.
अल्पसंख्यकों की दुर्दशा
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान पूरी दुनिया में अल्पसंख्यकों के लिए सबसे असुरक्षित देशों में से एक है. पाकिस्तान में प्रतिदिन बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों का अपहरण किया जाता है और उनसे फिरौती, रंगदारी और जबरदस्ती निकाह पढ़वाया जाता है. अकेले 2017 में 231 गैर-मुस्लिमों को मौत के घाट उतार दिया गया. पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में जहां हिन्दुओं की खासी आबादी मौजूद थी लेकिन हाल के वर्षों में इस्लामिक कट्टरपंथियों के कारण क्षेत्र में हिन्दू आबादी में गिरावट दर्ज की गई है, जिसका कारण धर्म परिवर्तन और एक मिशन के तहत हिन्दुओं का सफाया बताया जा रहा है.
ऐसा बोला जाता है कि 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद से ही पाकिस्तानी सेना का अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार और खराब हो गया. बांग्लादेश का निर्माण पाकिस्तानी सेना के लिए एक ऐसा जख्म था जो आजतक उन्हें उनकी विफलताओं का आईना दिखाता है. मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख अल्पसंख्यकों को मौत के घाट उतारा और 3 लाख से ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार किया. इतिहास के ये आंकड़े मौजूदा वक़्त के हालात की कहानी बयां कर रहे हैं. सामान्य नफरत समय के साथ मिट जाती है लेकिन वैचारिक नफरत की बुनियाद अगर मजबूत हो उसे मिटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के प्रति ये नफरत शाश्वत सत्य है जिसका अंजाम वहां के गैर मुसलमानों को हर पल भुगतना पड़ता है. और न जाने कब तक भुगतना पड़ेगा.
कंटेंट- विकास कुमार(इंटर्न- आईचौक)
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