भले ही देश और दुनिया में लोगों को यह नामुमकिन लगे, लेकिन पाकिस्तान में अब बहुत जल्द लश्कर-ए-तैयबा की सरकार बनने वाली है. चौंकिए नहीं क्योंकि पाकिस्तान की राजनीति में कुछ ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं. दरअसल पाकिस्तान की राजनीति में बड़ी उठापटक देखी जा रही है.
कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान के उच्च न्यायालय के आदेश पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अमान्य घोषित करके उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटाया गया. मुस्लिम लीग नवाज ने कार्यकारी प्रधानमंत्री के तौर पर पाकिस्तान में प्रधानमंत्री तो बना लिया लेकिन पाकिस्तान में सबसे बड़े दल के तौर पर अभी भी बना हुआ मुस्लिम लीग नवाज में अगला प्रधानमंत्री कौन होगा उस पर अटकलें अभी भी बनी हुई हैं.
दूसरी तरफ जिस अंदाज से पाकिस्तान में विपक्ष के राजनीतिक दल सक्रिय हो रहे हैं उस बीच इस तरह का माहौल पाकिस्तान में होना लाजमी है, जब तक कि वहां पर अगले नेशनल असेंबली के चुनाव नहीं होते. अगले साल मार्च में पाकिस्तान में राष्ट्रीय चुनाव होने हैं इमरान खान की 'तहरीक-ए-इंसाफ' पार्टी सबसे बड़े विपक्षी दल के तौर पर उभर रही है. वहीं पाकिस्तान के सबसे बड़े दूसरे विपक्षी दल आसिफ जरदारी की 'पाकिस्तान पीपल्स पार्टी' का भी बुरा हाल है.
पाकिस्तान में एक नया गठबंधन 'दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' के नाम से जोर शोर से उभर रहा है. पाकिस्तान की राजनीति में हाशिये पर आए करीब 30 धार्मिक और जेहादी संगठन एक हो गए हैं और दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल का हिस्सा बन गए हैं. दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से लेकर कराची तक सक्रिय हो रहा है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और उसके संरक्षण संगठन 'जमात उद...
भले ही देश और दुनिया में लोगों को यह नामुमकिन लगे, लेकिन पाकिस्तान में अब बहुत जल्द लश्कर-ए-तैयबा की सरकार बनने वाली है. चौंकिए नहीं क्योंकि पाकिस्तान की राजनीति में कुछ ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं. दरअसल पाकिस्तान की राजनीति में बड़ी उठापटक देखी जा रही है.
कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान के उच्च न्यायालय के आदेश पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अमान्य घोषित करके उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटाया गया. मुस्लिम लीग नवाज ने कार्यकारी प्रधानमंत्री के तौर पर पाकिस्तान में प्रधानमंत्री तो बना लिया लेकिन पाकिस्तान में सबसे बड़े दल के तौर पर अभी भी बना हुआ मुस्लिम लीग नवाज में अगला प्रधानमंत्री कौन होगा उस पर अटकलें अभी भी बनी हुई हैं.
दूसरी तरफ जिस अंदाज से पाकिस्तान में विपक्ष के राजनीतिक दल सक्रिय हो रहे हैं उस बीच इस तरह का माहौल पाकिस्तान में होना लाजमी है, जब तक कि वहां पर अगले नेशनल असेंबली के चुनाव नहीं होते. अगले साल मार्च में पाकिस्तान में राष्ट्रीय चुनाव होने हैं इमरान खान की 'तहरीक-ए-इंसाफ' पार्टी सबसे बड़े विपक्षी दल के तौर पर उभर रही है. वहीं पाकिस्तान के सबसे बड़े दूसरे विपक्षी दल आसिफ जरदारी की 'पाकिस्तान पीपल्स पार्टी' का भी बुरा हाल है.
पाकिस्तान में एक नया गठबंधन 'दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' के नाम से जोर शोर से उभर रहा है. पाकिस्तान की राजनीति में हाशिये पर आए करीब 30 धार्मिक और जेहादी संगठन एक हो गए हैं और दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल का हिस्सा बन गए हैं. दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से लेकर कराची तक सक्रिय हो रहा है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और उसके संरक्षण संगठन 'जमात उद दावा' और 'फलाही बहबूदी इंसानियत' इस गठबंधन को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. और अब यह बात भी साफ हो गई है कि आने वाले पाकिस्तानी चुनाव में जमीयत उल दावा भाग लेगी.
जमात-उद-दावा के एक जिम्मेदार अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि जमात-उद-दावा पाकिस्तान की राजनीति में आ रहा है और वह मुस्लिम लीग के साये में आने वाले चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगा. तो जाहिर है कि लश्कर-ए-तैयबा के उम्मीदवार पाकिस्तानी चुनाव में नजर आएंगे और मुमकिन यह भी है कि वह कुछ सीटें जीत भी पाएंगे. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में विशेष तौर पर जमीयत-उल-दावा की पकड़ है और यदि आने वाले चुनावों में पाकिस्तान में गठबंधन की सरकार बनती है तो मान लीजिए कि उसमें लश्कर-ए-तैयबा का भी कोई न कोई नेता होगा ही. यह दुनिया और हिंदुस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख हाफिज सईद भी हो सकता है.
पाकिस्तान में जमीयत-उल-दावा और फलाही बहबूदी इंसानियत, ऐसे दो संगठन हैं जो पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों में न सिर्फ मदरसे चलाते हैं बल्कि सामाजिक कार्यों को अंजाम भी देते हैं. पाकिस्तान की आबादी का एक बड़ा तबका उनके साथ जुड़ा भी है. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में बने नए गठबंधन दिफा-ए-पाकिस्तान काउंसिल की रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ और काम-धाम ज्यादातर लश्कर-ए-तैयबा और जमीयत दावा के लोगों की तरफ से ही हो रहा है.
दूसरी तरफ जिस अंदाज से दुनिया में कट्टरपंथियों का बोलबाला अलग-अलग देशों में नजर आ रहा है उस बीच इस बात से भी हैरानी नहीं होनी चाहिए कि हमेशा पाकिस्तानी राजनीति में हाशिये पर रहे कट्टरपंथियों की अब बारी आ सकती है और वह पाकिस्तान की नयी सरकार बनाने में सफल हो सकते हैं.
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