न चाहते हुए भी यह कहने का मन कर रहा है कि अब भारत तेजी से बदल रहा है. अब अपने देश में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' कहने वालों की तादाद भी बढ़ रही है. अभी चंद रोज पहले बैंगलुरु में पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाली 19 साल की अमूल्या लियोना नाम की एक लड़की के समर्थन में भी बहुत से कथित प्रगतिशील सामने आ गए हैं. ये तर्क दे रहे हैं कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहने में बुराई ही क्या है? क्या अमूल्या ने पेरू जिंदाबाद कहा होता तो किसी को कोई एतराज होता? अब इन अमूल्या के हक में खड़े होने वालों से यह भी पूछ लें कि क्या अजमल कसाब को पेरू ने मुंबई में खून-खराबा करने के लिए भेजा था? क्या वे भूल गए कि मुंबई में कसाब और उसके साथियों ने किस तरह से सैकड़ों मासूम हिन्दुस्तानियों को मौत के घाट उतारा था? अगर इससे भी उनका दिल खुश नहीं होता तो याद कर लीजिए कि कारगिल में पाकिस्तान ने क्या किया था. कारगिल में अपने सैनिकों को भेजने के बहाने पाकिस्तान की योजना कारगिल की कुछ चोटियों पर कब्ज़ा करने और फिर श्रीनगर-लेह राजमार्ग को बंद करने की थी. इस सड़क को बंद करना पाकिस्तान की प्रमुख रणनीतियों में शामिल था. क्योंकि, यह एकमात्र रास्ता था जिससे भारत कश्मीर में तैनात सैनिकों को सैन्य हथियार और राशन भेजता था.
पाकिस्तान का मानना था कि हालात बिगड़ेंगे और भारत कश्मीर विवाद पर बातचीत के लिए मजबूर होगा. बहरहाल, उन चोटियों से पाकिस्तानी सैनिकों को मार-गिराने में भारतीय सेना ने अधिक वक्त नहीं लिया पर उस क्रम में लगभग 500 भारतीय रणभूमि के वीर शहीद हुए थे. यही नहीं, पाकिस्तान ने ही भारत पर 1948, 1965 और 1971 में पहले हमला करने का दुस्साहस किया. उसके बाद युद्ध शुरू हुआ और पाकिस्तान को भारी क्षति भी हुई. जिस तरह से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले हमारे यहां पैदा हो रहे हैं, उन्हें कंधार विमान अपहरण कांड को भी याद रखना चाहिए. कंधार विमान अपहरण एक ऐसी घटना थी, जिसने भारत सरकार को आतंकियों की मांग मानने पर मजबूर कर दिया था. वो घटना थी इंडियन एयरलाइंस के...
न चाहते हुए भी यह कहने का मन कर रहा है कि अब भारत तेजी से बदल रहा है. अब अपने देश में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' कहने वालों की तादाद भी बढ़ रही है. अभी चंद रोज पहले बैंगलुरु में पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाली 19 साल की अमूल्या लियोना नाम की एक लड़की के समर्थन में भी बहुत से कथित प्रगतिशील सामने आ गए हैं. ये तर्क दे रहे हैं कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहने में बुराई ही क्या है? क्या अमूल्या ने पेरू जिंदाबाद कहा होता तो किसी को कोई एतराज होता? अब इन अमूल्या के हक में खड़े होने वालों से यह भी पूछ लें कि क्या अजमल कसाब को पेरू ने मुंबई में खून-खराबा करने के लिए भेजा था? क्या वे भूल गए कि मुंबई में कसाब और उसके साथियों ने किस तरह से सैकड़ों मासूम हिन्दुस्तानियों को मौत के घाट उतारा था? अगर इससे भी उनका दिल खुश नहीं होता तो याद कर लीजिए कि कारगिल में पाकिस्तान ने क्या किया था. कारगिल में अपने सैनिकों को भेजने के बहाने पाकिस्तान की योजना कारगिल की कुछ चोटियों पर कब्ज़ा करने और फिर श्रीनगर-लेह राजमार्ग को बंद करने की थी. इस सड़क को बंद करना पाकिस्तान की प्रमुख रणनीतियों में शामिल था. क्योंकि, यह एकमात्र रास्ता था जिससे भारत कश्मीर में तैनात सैनिकों को सैन्य हथियार और राशन भेजता था.
पाकिस्तान का मानना था कि हालात बिगड़ेंगे और भारत कश्मीर विवाद पर बातचीत के लिए मजबूर होगा. बहरहाल, उन चोटियों से पाकिस्तानी सैनिकों को मार-गिराने में भारतीय सेना ने अधिक वक्त नहीं लिया पर उस क्रम में लगभग 500 भारतीय रणभूमि के वीर शहीद हुए थे. यही नहीं, पाकिस्तान ने ही भारत पर 1948, 1965 और 1971 में पहले हमला करने का दुस्साहस किया. उसके बाद युद्ध शुरू हुआ और पाकिस्तान को भारी क्षति भी हुई. जिस तरह से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले हमारे यहां पैदा हो रहे हैं, उन्हें कंधार विमान अपहरण कांड को भी याद रखना चाहिए. कंधार विमान अपहरण एक ऐसी घटना थी, जिसने भारत सरकार को आतंकियों की मांग मानने पर मजबूर कर दिया था. वो घटना थी इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 के अपहरण की. तब भारत सरकार ने अपने यात्रियों से भरे विमान को सकुशल मुक्त कराने के लिए तीन कुख्यात पाकिस्तानी आतंकियों को रिहा कराया था.
अपहरणकर्ताओं ने शुरू में भारतीय जेलों में बंद 35 उग्रवादियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर नगद देने की मांग की थी. अंत में भारत सरकार को मौलाना मसूद अजहर और उसके दो साथियों को रिहा करना पड़ा था. याद रखिए कि मसूद अजहर ने साल 2000 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया था. जिसने सन 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले की भूमिका भी तैयार की थी. अजहर मसूद रिहाई के बाद से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में उग्रवादियों को प्रशिक्षण देने में सक्रिय हो गया था. क्या पाकिस्तान के चाहने वालों को पता नहीं है कि मसूद पाकिस्तान में रहता है? उसे पाकिस्तानी सेना का भरपूर आशीर्वाद हासिल है. इन सब तथ्यों की रोशनी में क्या किसी भारतीय नागरिक को पाकिस्तान जिंदाबाद बोलना चाहिए? जो अब अमूल्या के हक में खड़े हो रहे हैं, वे एक दौर में हुर्रियत के नेताओं के नई दिल्ली में पाकिस्तान हाई कमिश्नर से मुलाकात करने को भी सामान्य घटना ही बताते थे.
बहरहाल, अच्छी बात है कि अमूल्या को हिरासत में भेज दिया गया है. उसके खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज हुआ है. गौर करें कि जिस तरह के पिलपिले और कमजोर तर्क अमूल्या के हक में दिए जा रहे हैं, उसी तरह के तर्क तब दिए गए थे जब हाल ही में असम को भारत से अलग करने का आहवान करने वाले जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के छात्र शरजील इमाम पर देश द्रोह का केस दर्ज हुआ था. यानी देश के भीतर कई आस्तीन के सांप सक्रिय हैं. इनकी तुरंत पहचान करनी होगी. शरजील इमाम ख़ुद को शाहीन बाग़ में चल रहे विरोध प्रदर्शन का आयोजक बता रहा था. शरजील कहता है कि 'अगर हमें असम के लोगों की मदद करनी है तो उसे भारत से कट करना होगा.' कम से कम अब प्रगतिशील और पुरस्कार वापसी गैंग के नेता यह नहीं कहेंगे कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है. उन्होंने अमूल्या तथा शरजील इमाम को सुन लिया है. इमाम खुल्लम खुल्ला कहता है, 'असम में जो मुसलमानों का हाल है आपको पता है. CAA (नागरिकता संशोधन कानून) लागू हो गया वहां. डिटेंशन कैंप में लोग डाले जा रहे हैं. वहां क़त्ल-ए-आम चल रहा है. छह-आठ महीने में पता चला सारे बंगालियों को मार दिया, हिंदू हो या मुसलमान." वह मुसलमानों को भड़का रहा है. पूर्वोत्तर को भारत से जोड़ने वाले पतले से भूभाग जिसे 'चिकन्स नेक' कहा जाता है, शरजील उसका भी ज़िक्र करते हुए कहता है, ''यहां मुसलमान अधिक संख्या में हैं और वे ऐसा कर सकते हैं.''
यकीन मानिए कि अब आप अमूल्या या इमाम जैसे देश के दुश्मनों की हरकतों को परास्त करना होगा. अब और विलंब देश हित में नहीं होगा.
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)
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