चीन और चीन टकराव (India-China conflict) का केंद्र बन गया है पैंगॉन्ग त्सो (Pangong Tso) के आसपास का इलाका. गलवान घाटी में दोनों देशों की सेेनाओं का आमना-सामना होने के बाद अब सारा विवाद इस झील के किनारे आ गया है. लेकिन, चीन ने शातिर तरीके से अचानक इसे विवाद का विषय मानने में आनाकानी शुरू कर दी. 14-15 जून को चौथे दौर की जो वार्ता हुई है थी, चीन ने पैंगॉन्ग के आसपास की स्थिति को टकराव का विषय मनना ही बंद कर दिया है. पैंगोंग त्सो फिंगर कॉम्प्लेक्स स्टैंड-ऑफ (Pangong Tso standoff) के टकराव का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि चीनी ने सेना ने अपनी फौजें पीछे हटाने के वादे पर अमल सिर्फ गालवान घाटी (Galwan Valley) के पैट्रोल प्वाइंट 14 और पैट्रोल प्वाइंट 15 और उसके दक्षिण में हॉट स्प्रिंग्स सेक्टर तक ही सीमित रखा है. गोगरा पोस्ट पर गश्ती प्वाइंट 17A पर चीन की सेना ने धीरे से ही सही अपने कदम पीछे खींचने का काम जारी रखा. लेकिन पैंगोंग पर चीन की तैनाती अब भारत के लिए चिंता का मुख्य विषय बन गया है.
आइये, समझें कि Pangong Tso और लद्दाख क्षेत्र में भारत-चीन सेना की ताजा स्थिति क्या है-
1- बातचीत की मेज पर दोनों देशों के बीच पैंगोंग को टकराव का बिंदु मानने से चीन ने हमेशा इनकार किया. वह इस इलाके में अपनी सेना की तैनाती को मई-पूर्व वाली यथास्थिति तक लाने में आनाकानी करता रहा. इसी से चीन बदनीयती झलकने लगी. पिछले सप्ताह के दो घटनाक्रमों ने भारत की आशंका और पुख्ता कर दिया.
2- पहला, चीनी राजदूत का दावा है कि जब तयशुदा डिसएंगेजमेंट पूरा हुआ तो चीन की सेना पंगोंग फिंगर कॉम्प्लेक्स अपनी हद में थी. यह एक उत्तेजक संकेत है कि अब चीन की सेना और पीछे नहीं हटेगी. जैसा कि इंडिया टुडे ने पहले बताया है कि, चीन ने पैंगांग झील के किनारे फिंगर 4 से 8 के बीच बड़ी संख्या में सेना की तैनाती की हुई है. जो मई की शुरुआत में जारी हुई थी. अब तक यहां बहुत ही मामूली बदलाव नजर आया...
चीन और चीन टकराव (India-China conflict) का केंद्र बन गया है पैंगॉन्ग त्सो (Pangong Tso) के आसपास का इलाका. गलवान घाटी में दोनों देशों की सेेनाओं का आमना-सामना होने के बाद अब सारा विवाद इस झील के किनारे आ गया है. लेकिन, चीन ने शातिर तरीके से अचानक इसे विवाद का विषय मानने में आनाकानी शुरू कर दी. 14-15 जून को चौथे दौर की जो वार्ता हुई है थी, चीन ने पैंगॉन्ग के आसपास की स्थिति को टकराव का विषय मनना ही बंद कर दिया है. पैंगोंग त्सो फिंगर कॉम्प्लेक्स स्टैंड-ऑफ (Pangong Tso standoff) के टकराव का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि चीनी ने सेना ने अपनी फौजें पीछे हटाने के वादे पर अमल सिर्फ गालवान घाटी (Galwan Valley) के पैट्रोल प्वाइंट 14 और पैट्रोल प्वाइंट 15 और उसके दक्षिण में हॉट स्प्रिंग्स सेक्टर तक ही सीमित रखा है. गोगरा पोस्ट पर गश्ती प्वाइंट 17A पर चीन की सेना ने धीरे से ही सही अपने कदम पीछे खींचने का काम जारी रखा. लेकिन पैंगोंग पर चीन की तैनाती अब भारत के लिए चिंता का मुख्य विषय बन गया है.
आइये, समझें कि Pangong Tso और लद्दाख क्षेत्र में भारत-चीन सेना की ताजा स्थिति क्या है-
1- बातचीत की मेज पर दोनों देशों के बीच पैंगोंग को टकराव का बिंदु मानने से चीन ने हमेशा इनकार किया. वह इस इलाके में अपनी सेना की तैनाती को मई-पूर्व वाली यथास्थिति तक लाने में आनाकानी करता रहा. इसी से चीन बदनीयती झलकने लगी. पिछले सप्ताह के दो घटनाक्रमों ने भारत की आशंका और पुख्ता कर दिया.
2- पहला, चीनी राजदूत का दावा है कि जब तयशुदा डिसएंगेजमेंट पूरा हुआ तो चीन की सेना पंगोंग फिंगर कॉम्प्लेक्स अपनी हद में थी. यह एक उत्तेजक संकेत है कि अब चीन की सेना और पीछे नहीं हटेगी. जैसा कि इंडिया टुडे ने पहले बताया है कि, चीन ने पैंगांग झील के किनारे फिंगर 4 से 8 के बीच बड़ी संख्या में सेना की तैनाती की हुई है. जो मई की शुरुआत में जारी हुई थी. अब तक यहां बहुत ही मामूली बदलाव नजर आया है.
3- इंडिया टुडे ने बताया है कि चीन ने पिछले तीन सप्ताह पैंगोंग के भीतरी इलाकों और अक्साई चिन में कई सप्लाई बेस को सक्रिय किया है, जहां से अल्प सूचना पर हमला करने के लिए सैनिकों को मदद पहुंचाई जा सकती है.
4- पैंगोंग मामले में चीन की आनाकानी को भारतीय सेना गंभीरता से ले रही है. भारतीय सेना ने यह बता दिया है कि फिंगर कॉम्प्लेक्स में मौजूदा स्थिति पर व्यापक और विस्तृत जानकारियों के आदान-प्रदान के बिना कोई टकराव की स्थिति को हल नहीं किया जा सकता.
5- इस बीच सेना के सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया है कि लिपुलेख और उत्तराखंड की सीमा से सटे इलाकों में चीनी सेना की हरकत की खबरें 'झूठी और असत्य' हैं, हालांकि वहां भी किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए भारतीय सैनिकों की तैनाती कर दी गई है.
भारत के एजेंडे में ऊपर आई डेप्सांग में चीनी सेना की गतिविधि
बता दें कि बीते दिनों पैंगॉन्ग गतिरोध के अलावा, चर्चा का एक बड़ा मुद्दा डेपसांग भी बना. जून के अंत में, इंडिया टुडे ने बताया था कि कैसे उत्तरी लद्दाख के डेपसांग-डीबीओ क्षेत्रों में चीन एक नया मोर्चा खोलना चाहता था. हालांकि, डिप्सांग में टकराव तो वर्षों से चला आ रहा है, और यह पूर्वी लद्दाख में चीन द्वारा 2020 की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों से सीधे जुड़ा भी नहीं है. लेकिन पिछले समय में वहां कुछ घटनाक्रमों ने भारत को इसे अपने एजेंडे में जोड़ने पर मजबूर कर दिया. बता दें कि डेपसांग में भी चीन की घुसपैठ जारी है. वैसे तो यह एक बेहद रेगिस्तानी इलाका है. लेकिन चीन के वाहन उस क्षेत्र में देखे जाते रहे हैं. वे वहां आते हैं, और भारतीय सैनिक उन्हें भगाते हैं. यह सब बरसों से होता चला आया है. बताया जा रहा है कि वर्तमान में ये संख्या पूर्व की अपेक्षा कहीं ज्यादा हुई है जोकि भारत के लिए एक बड़ा खतरा है. चीन भारतीय सेना के गश्ती दल पर नजर रखे हुए है और हर गतिविधि को मॉनिटर कर रहा है. जब भारतीय सेना की टीमें पैदल निकलती हैं, तो चीनी पक्ष तुरंत गश्ती दल को रोकने और उनके रास्तों को अवरुद्ध करने के लिए वाहनों के काफिले को तैनात करता है. कहा जा सकता है कि ऐसा पिछले एक दशक से देखने को मिला है. लेकिन पिछले महीने दोनों सेनाओं के बीच ये टकराव एकदम बढ़ गया है. इस इलाके को लेकर दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर घुसपैठ का आरोप लगाते हैं.
पैंगांग झील के दक्षिण किनारे चुशूल में चीन और भारत के टैंक आमने-सामने
चीन और भारत के बीच पैंगांग इलाके में हुए ताजा टकराव ने फिर से तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है. एक और जहां दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत जारी है. वहीं, काला टॉप पहाड़ी के नीचे चीन ने अपने टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों को भेज दिया है. इधर, काला टॉप पर काबिज भारतीय स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) और आसपास की पहाड़ियों पर मौजूद भारतीय फौज ने अपने पर्याप्त आर्टिलरी सपोर्ट और नजदीक ही खड़ी टैंक रेजिमेंट की मदद से चीन की चाल को नाकाम कर दिया है. उसने 29-30 अगस्त की रात इस इलाके की यथास्थिति को बदलने की कोशिश की थी. अब चीनी सेना यहां एक ही जगह फंस कर रह गई है.
टकराव चुशूल में है, तो तनाव कम करने की उम्मीद भी वहीं
अच्छी बात यह है कि चुशुल-मोल्दो में अभी भी दोनों पक्ष बातचीन कर रहे हैं. भारतीय सेना के लेह कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और उनके चीनी समकक्ष मेजर जनरल लिन लियू इस तनाव को कम करने के प्रयास कर रहे हैं. यह माना जा रहा है कि लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत में जितना अधिक से अधिक हो सकता है, हो रहा है. 1 अगस्त को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) दिवस था. ऐसे में ईस्टर्न कमांड की ओर से चीनी सेना को औपचारिक शुभकामना भेजी गई है. तोहफों का आदान-प्रदान नहीं हुआ, इसकी वजह के रूप में कोरोना प्रोटोकॉल और पिछले 90 दिनों के तनाव को माना गया.
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