सेना, एयरफोर्स और नेवी में महिलाओं को शामिल करने की दुनियाभर में कोशिश की जा रही है. कॉरपोरेट और सरकारी संस्थानों में भी ये कवायद चल रही है. ऐसा होना भी चाहिए. प्लैटफॉर्म कोई भी हो महिलाओं को सिर्फ महिला होने के कारण नकारा नहीं जा सकता.
इस कदम से महिला और पुरुष में बराबरी के खिलाफ प्रचलित मिथक तो टूट ही रहे हैं. अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या बराबरी के किसी प्लैटफॉर्म पर नैतिकता अलग-अलग रह सकती है? क्या कुछ मामलों में महिला और पुरुष का आंकलन अलग-अलग किया जा सकता है? देश की मिलिट्री कोर्ट का कहना है कि ऐसा करना गलत होगा क्योंकि पितृतंत्र को ही आगे बढ़ाने का काम है. लेकिन हमारा नागरिक कानून इसके विपरीत खड़ा है.
क्या है मामला
इंडियन एयरफोर्स में महिला अफसरों की भर्ती अभी कुछ समय पहले शुरू हुई. हाल ही में मिलिट्री कोर्ट के सामने एक मामला आया जहां महिला और पुरुष अफसरों में अवैध संबंध की बात कही गई. महिला की शादी एक अन्य एयरफोर्स अफसर से हुई थी. उसके पति को पत्नी का साथी अफसर के साथ अवैध संबंधों का पता चला. महिला अफसर ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया. और अवैध संबंध रखने वाले अफसर को सस्पेंड करते हुए उसके खिलाफ कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. कोर्ट मार्शल में उसे मित्र की पत्नी के साथ अवैध संबंध बनाने का आरोपी पाया गया लिहाजा उसे डीकमीशन (नौकरी से बाहर निकालना) करने का आदेश दे दिया गया.
इसे भी पढ़ें: यौन हमले की शिकार महिला ने किया मोबाइल का सही इस्तेमाल
सेना की... सेना, एयरफोर्स और नेवी में महिलाओं को शामिल करने की दुनियाभर में कोशिश की जा रही है. कॉरपोरेट और सरकारी संस्थानों में भी ये कवायद चल रही है. ऐसा होना भी चाहिए. प्लैटफॉर्म कोई भी हो महिलाओं को सिर्फ महिला होने के कारण नकारा नहीं जा सकता. इस कदम से महिला और पुरुष में बराबरी के खिलाफ प्रचलित मिथक तो टूट ही रहे हैं. अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या बराबरी के किसी प्लैटफॉर्म पर नैतिकता अलग-अलग रह सकती है? क्या कुछ मामलों में महिला और पुरुष का आंकलन अलग-अलग किया जा सकता है? देश की मिलिट्री कोर्ट का कहना है कि ऐसा करना गलत होगा क्योंकि पितृतंत्र को ही आगे बढ़ाने का काम है. लेकिन हमारा नागरिक कानून इसके विपरीत खड़ा है. क्या है मामला इंडियन एयरफोर्स में महिला अफसरों की भर्ती अभी कुछ समय पहले शुरू हुई. हाल ही में मिलिट्री कोर्ट के सामने एक मामला आया जहां महिला और पुरुष अफसरों में अवैध संबंध की बात कही गई. महिला की शादी एक अन्य एयरफोर्स अफसर से हुई थी. उसके पति को पत्नी का साथी अफसर के साथ अवैध संबंधों का पता चला. महिला अफसर ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया. और अवैध संबंध रखने वाले अफसर को सस्पेंड करते हुए उसके खिलाफ कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. कोर्ट मार्शल में उसे मित्र की पत्नी के साथ अवैध संबंध बनाने का आरोपी पाया गया लिहाजा उसे डीकमीशन (नौकरी से बाहर निकालना) करने का आदेश दे दिया गया. इसे भी पढ़ें: यौन हमले की शिकार महिला ने किया मोबाइल का सही इस्तेमाल
क्या है हमारा कानून ऐसा स्थिति में एडल्ट्री का सीधा मामला बनता है. किसी शादी-शुदा महिला के साथ अवैध संबंध बनाना जुर्म है और इसके लिए सजा का प्रावधान है. सजा मिलते ही आरोपी पुरुष गुनहगार हो जाएगा और उसकी नौकरी सस्पेंशन से टर्मिनेशन में बदल जाएगी. वहीं यदि आरोपी भी शादी-शुदा हुआ तो जाहिर है सामाजिक दबाव के चलते उसकी पत्नी तलाक ले लेगी और मुआवजा उसे देने पड़ेगा. ट्रिब्यूनल का फैसला कोर्ट मार्शल में सजा पा चुके अफसर की सुनवाई बड़े मिलिट्री कोर्ट (ट्रिब्यूनल) पहुंचा. वहां फैसला उसके पक्ष में आया. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को बराबरी के प्लैटफॉर्म पर लाने के बाद यह उम्मीद करना कि कामकाज के दौरान महिला और पुरुष में संबंध अथवा अवैध संबंध नहीं बनेंगे पूरी तरह से अकारण है. इस स्थिति में तलाक, व्यभिचार और स्वेच्छा से बनाए गए अवैध संबंधों जैसे मामलों को ज्यादा सीरियसली लेने की जरूरत नहीं है. लिहाजा ऐसे मामलों मे किसी अफसर को गुनहगार ठहराकर उसे सेना से निकाला नहीं जाना चाहिए. इसे भी पढ़ें: सेना में दाढ़ी रखने या न रखने पर छिड़ी बहस ट्रिब्यूनल की सलाह आरोपी अफसर को बरी करते हुए ट्रिब्यूनल ने सेना को सलाह भी दी कि भविष्य में उसे ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने से बचने की जरूरत है. कोर्ट के मुताबिक किसी मित्र अफसर की पत्नी के साथ अनैतिक संबंध बनाने को सेना का गंभीरता से लेना भी उसी पितृतंत्र की देन है. इसके लिए सेना पुरुषों को आरोपी करार देती है जबकि महिला भी उतनी ही पढ़ी-लिखी और सोच-समझकर फैसला लेने में सक्षम होती है. लेकिन पितृतंत्र है कि महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति मानते हुए किसी पराए मर्द के साथ संबंध होने पर उस मर्द को सजा दे दी जाती है. लिहाजा, सेना को ऐसी मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है. तभी वह मौजूदा दौर में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की कवायद कर सकती है. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |