पिछले कई वर्षों से संसद का सत्र शुरु तो बड़ी गर्मजोशी के साथ होता है मगर खत्म जनता के पैसे की बर्बादी के साथ होता है. संसद सत्र के हर मिनट पर करीब 29,000 रुपये का खर्च आता है और हमारी सरकारों ने इस दौरान कई दिन बर्बाद भी किए है. अगर 18 दिन सदन की कार्यवाही स्थगित होती है तो करीब 36 करोड़ रुपये की सीधी बर्बादी जनता की होती है. आज से मानसून सत्र शुरु होने जा रहा है. इस बार का मानसून सत्र 18 जुलाई से लेकर 12 अगस्त तक होगा.
अब तक कितना समय और पैसा बर्बाद हुआ है संसद का?
पिछली बार भी संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई 2015 से 12 अगस्त तक रहा था. मगर इस सेशन में दोनों सदनों के 119 घंटें बर्बाद किये गये. लोकसभा में 10 बिल पास होने थे मगर हंगामें के कारण सिर्फ 6 बिल ही पास हो पाए. राज्यसभा का हाल तो सबसे बुरा रहा सिर्फ 2 बिल ही पास हो पाए. 16 दिनों के इस सेशन में लोकसभा और राज्यसभा में कुल 176 घंटे काम होना था.
मगर नहीं... आप को अंदाज़ा भी नहीं है की 176 घंटों में कितना काम हुआ? सिर्फ और सिर्फ 57 घंटे ही काम कर पाया सदन. लोकसभा में बीजेपी के पास अच्छा खासा बहुमत है लिहाज़ा वहां तो कुल 47 घंटे काम हुआ मगर राज्यसभा का क्या. वहां तो सिर्फ 9 घंटे और 30 मिनट ही काम हो पाया. विपक्ष कभी ललित गेट पर हंगामा बरपाता रहा तो कभी वसुंधरा राजे पर.
ऐसा नहीं है की ये पहली बार हुआ. इसके बाद भी संसद का शीतकालीन सत्र 24 नवंबर 2015 से शुरु हुआ और 23 दिसंबर 2015 को खत्म हुआ. इस सत्र में सरकार को काम करने के लिए 112 घंटे दिए गए थे. मगर सरकार सिर्फ 55 घंटे ही काम कर पाई. इस बार लोकसभा में 14 बिल पास किये गये और काम भी पूरे समय के लिए हुआ मगर एक बार फिर राज्यसभा के 36 घंटे गैर वैधानिक काम यानी की हंगामें में ही निकल गए.
पिछले कई वर्षों से संसद का सत्र शुरु तो बड़ी गर्मजोशी के साथ होता है मगर खत्म जनता के पैसे की बर्बादी के साथ होता है. संसद सत्र के हर मिनट पर करीब 29,000 रुपये का खर्च आता है और हमारी सरकारों ने इस दौरान कई दिन बर्बाद भी किए है. अगर 18 दिन सदन की कार्यवाही स्थगित होती है तो करीब 36 करोड़ रुपये की सीधी बर्बादी जनता की होती है. आज से मानसून सत्र शुरु होने जा रहा है. इस बार का मानसून सत्र 18 जुलाई से लेकर 12 अगस्त तक होगा.
अब तक कितना समय और पैसा बर्बाद हुआ है संसद का?
पिछली बार भी संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई 2015 से 12 अगस्त तक रहा था. मगर इस सेशन में दोनों सदनों के 119 घंटें बर्बाद किये गये. लोकसभा में 10 बिल पास होने थे मगर हंगामें के कारण सिर्फ 6 बिल ही पास हो पाए. राज्यसभा का हाल तो सबसे बुरा रहा सिर्फ 2 बिल ही पास हो पाए. 16 दिनों के इस सेशन में लोकसभा और राज्यसभा में कुल 176 घंटे काम होना था.
मगर नहीं... आप को अंदाज़ा भी नहीं है की 176 घंटों में कितना काम हुआ? सिर्फ और सिर्फ 57 घंटे ही काम कर पाया सदन. लोकसभा में बीजेपी के पास अच्छा खासा बहुमत है लिहाज़ा वहां तो कुल 47 घंटे काम हुआ मगर राज्यसभा का क्या. वहां तो सिर्फ 9 घंटे और 30 मिनट ही काम हो पाया. विपक्ष कभी ललित गेट पर हंगामा बरपाता रहा तो कभी वसुंधरा राजे पर.
ऐसा नहीं है की ये पहली बार हुआ. इसके बाद भी संसद का शीतकालीन सत्र 24 नवंबर 2015 से शुरु हुआ और 23 दिसंबर 2015 को खत्म हुआ. इस सत्र में सरकार को काम करने के लिए 112 घंटे दिए गए थे. मगर सरकार सिर्फ 55 घंटे ही काम कर पाई. इस बार लोकसभा में 14 बिल पास किये गये और काम भी पूरे समय के लिए हुआ मगर एक बार फिर राज्यसभा के 36 घंटे गैर वैधानिक काम यानी की हंगामें में ही निकल गए.
इसे भी पढ़ें: संसद में इस बार हंगामा कम, काम ज्यादा
जानिए कितना खर्च आता है संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर
आपको अंदाज़ा भी नहीं होगा की संसद सत्र के हर मिनट पर करीब 29,000 रुपये का खर्च आता है. जिस तरह सदन को चलने में रुकावटें आती हैं . उसके हिसाब लगाया जा सकता हैं कि कितना पैसा आपकी जेब से जा रहा है. यूं तो सरकार ने हर चीज़ पर अच्छा खासा टैक्स लगाया है. अगर सत्र के सभी 18 कामकाजी दिन हंगामें की भेंट चढ़ जाते हैं तो टैक्स भरने वाली आम जनता का करीब 35 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. विपक्ष हो या फिर सरकार किसी को भी चिंता नहीं है कि देश की जनता का पैसा किस तरह बर्बाद किए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है की ये पैसा सिर्फ मोदी सरकार के आने के बाद से ही बर्बाद होना शुरु हुआ है. ये तो हमारे देश के राजनीतिक दलों की परंपरा बन गई है.
इसे भी पढ़ें: समय आ गया है राज्य सभा की शक्तियां कम करने का
जब यूपीए की सरकार थी तब बीजेपी ने संसद की कार्यवाही चलने नहीं दी और अब वहीं काम कांग्रेस कर रही है. सवाल यही है कि देश की जनता का इतना फिक्र करने वाली राजनीतिक पार्टियां इतनी आसानी से जनता का पैसा कैसे बर्बाद कर देती हैं? हो सकता है की जीएसटी बिल इस सत्र में पास हो जाए, मगर पहले आपको समझना होगा की सरकार और विपक्ष में जीएसटी को लेकर क्या टकराव है?
जीएसटी बिल जोकि राज्ससभा मे अटका पड़ा है |
विपक्ष की क्या चाहत है जीएसटी पर
कांग्रेस चाहती है कि सरकार जीएसटी की दर की अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत तय कर दें और इस दर को संविधान संशोधन में शामिल हों, जबकि सरकार का कहना है कि ऐसा करने पर दरों में बदलाव करने के लिए हर बार संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. लेकिन अब कांग्रेस ने कर की दर को जीएसटी से संबंधित सहायक दस्तावेज़ों में दर्ज करवाने पर सहमत होने के संकेत दिए हैं.
इसे भी पढ़ें: जीएसटी का यह पहलू बदल देगा यूपी बिहार का चेहरा
कांग्रेस इसके अलावा सरकार द्वारा प्रस्तावित एक फीसदी अतिरिक्त कर को भी हटवाना चाहती है जो वस्तुओं को राज्यों की सीमा से आयात-निर्यात पर देना होगा. इस प्रस्ताव का उद्देश्य था कि उन राज्यों को भी मुआवज़ा मिल सके जो उत्पादन पर ज़्यादा ध्यान देते हैं.
कांग्रेस की तीसरी बड़ी मांग है कि वित्तमंत्री उस परिषद के अधिकारों को बढ़ा दें, जो राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे के विवादों को सुलझाने के लिए बनाई जाएगी.
सरकार पहले ही कांग्रेस द्वारा सुझाए गए इन बदलावों पर सहमत हो जाने के बारे में बता चुकी है.
जीएसटी के फायदें
- टैक्स ढांचा बदल देगा जीएसटी
- जीएसटी के लागू होते ही केंद्र को मिलने वाली एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स सब खत्म हो जाएंगे.
- राज्यों को मिलने वाला वैट, मनोरंजन टैक्स, लक्जरी टैक्स, लॉटरी टैक्स, एंट्री टैक्स, चुंगी वगैरह भी खत्म हो जाएगी. हालांकि पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, रसोई गैस पर अलग-अलग राज्य में जो टैक्स लगते हैं, वो अभी कुछ साल तक जारी रहेंगे.
इसे भी पढ़ें: बहस और हंगामे भूल जाइए, अब तो सिर्फ इमोशनल अत्याचार होगा
आम आदमी को जीएसटी से फायदा
1. जीएसटी लागू होने पर सबसे ज्यादा फायदा आम आदमी को है क्योंकि तब चीजें पूरे देश में एक ही रेट पर मिलेंगी, चाहे किसी भी राज्य से खरीदी जायें.
2. अब दिल्ली से सटे नोएडा, गुड़गांव वाले…जो कभी गाड़ी यूपी से लेते हैं, कभी हरियाणा या कभी दिल्ली से, जहां भी सस्ती मिल जाए वो सब चक्कर ही खत्म हो जाएगा.
जीएसटी से टैक्स में भी राहत
1. हमलोग अभी सामान खरीदते वक्त उस पर 30-35% टैक्स के रूप में चुकाते हैं. जीएसटी लागू होने के बाद ये टैक्स घटकर 20-25% रहने की उम्मीद है.
2. कारोबारियों-कंपनियों को फायदा- जीएसटी लागू होने पर कंपनियों का झंझट और खर्च भी कम होगा. व्यापारियों को सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी.
3. अलग-अलग टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा तो सामान बनाने की लागत घटेंगी, इससे सामान सस्ता होने की उम्मीद भी है.
4. अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद- जीएसटी के लागू होने के बाद टैक्स चोरी रुक जायेगी. इसका सीधा असर देश की जीडीपी पर पड़ेगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने देश के सभी राज्यों की मुख्यमंत्रियों से मुलाकात भी की है और इस बार सरकार की पूरी कोशिश होगी कि जीएसटी बिल किसी भी तरह पास हो जाए. हांलाकि जीएसटी मई 2015 में लोकसभा में पास हो चुंका है अब ये सिर्फ राज्यसभा में अटका है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.