बिहार में बाढ़ का आना कोई नई बात नहीं है. बागमती, बूढ़ी गंडक या कोसी नदी के किनारे रहने वालों से बाढ़ का दर्द पूछिये, साल दर साल जल प्रलय आना नियति है और भाग्य को उजड़ते देखना उनकी मजबूरी. फिर इस बार इतनी हाय तौबा क्यों? ये हाय तौबा सिर्फ इसलिए क्योंकि इस बार बाढ़ ने बिहार की राजधानी पटना में दस्तक दी है, जहां पूरे बिहार के भाग्य विधाता राजनीतिज्ञ मंत्री संतरी बसते हैं.
बिहार में बहार है या नहीं पता नहीं लेकिन पटना की हालत देखकर जरूर लगता है. नकली विकास या दिखावटी व्यवस्था आखिर कब तक टिकेगी. गंगा किनारे 4 बड़ी बोट या पानी का जहाज़ लगाकर उसमें कैफे खोल देने से मॉरिशस बन जायेगा ये मानसिकता है. कुछ गगनचुंबी इमारतें, माल खड़े कर देंगे क्या ये विकास है. स्वच्छ भारत अभियान की पोल खुल गई और नालियों से शराब की बोतलें ऐसे तैरते हुए आईं जैसे मृत प्रशासन की सड़ी हुई लाश कहीं छुपा दी गई हो और पानी में फूलकर ऊपर आ गई.
किसी राज्य की राजधानी का अगर ये हाल है तो राज्य की हालत समझी जा सकती है. पटना इतना अव्यवस्थित और घनत्व वाला क्षेत्र है कि आपको मुंबई की धारावी भी इससे बेहतर लगेगी. इसके कुछ वीआईपी इलाके और विधानसभा भवन वाला इलाका छोड़ दें तो बाकी जगह अवैध अतिक्रमण की बहार है. ऐसा तब है जब सुशासन बाबू नीतीश कुमार की सरकार है. साफ सफाई का आलम तो ये है क्या लिखा जाए क्या छोड़ा जाए समझ नहीं आता. निकम्मे विभागों के कामचोर अधिकारियों और अधिकारियों को जितनी लानत मलानत भेजी जाए कम है. सब हमेशा राजनीतिक मोड में खैनी चबाते मिलेंगे. मुंह में पान की पीक लिए हंसी ठठाहों के अड्डे हैं सरकारी कार्यालय.
बिहार में राजनीतिक व्यवस्था ही नहीं उस पूरे सरकारी तंत्र और अमले को बदलने की जरूरत है जो सड़ गल चुका है. सालों से गटर और नालियों के रख रखाव या साफ सफाई पर शायद ईमानदारी से काम नहीं हुआ. पटना की किस्मत अच्छी है कि बगल...
बिहार में बाढ़ का आना कोई नई बात नहीं है. बागमती, बूढ़ी गंडक या कोसी नदी के किनारे रहने वालों से बाढ़ का दर्द पूछिये, साल दर साल जल प्रलय आना नियति है और भाग्य को उजड़ते देखना उनकी मजबूरी. फिर इस बार इतनी हाय तौबा क्यों? ये हाय तौबा सिर्फ इसलिए क्योंकि इस बार बाढ़ ने बिहार की राजधानी पटना में दस्तक दी है, जहां पूरे बिहार के भाग्य विधाता राजनीतिज्ञ मंत्री संतरी बसते हैं.
बिहार में बहार है या नहीं पता नहीं लेकिन पटना की हालत देखकर जरूर लगता है. नकली विकास या दिखावटी व्यवस्था आखिर कब तक टिकेगी. गंगा किनारे 4 बड़ी बोट या पानी का जहाज़ लगाकर उसमें कैफे खोल देने से मॉरिशस बन जायेगा ये मानसिकता है. कुछ गगनचुंबी इमारतें, माल खड़े कर देंगे क्या ये विकास है. स्वच्छ भारत अभियान की पोल खुल गई और नालियों से शराब की बोतलें ऐसे तैरते हुए आईं जैसे मृत प्रशासन की सड़ी हुई लाश कहीं छुपा दी गई हो और पानी में फूलकर ऊपर आ गई.
किसी राज्य की राजधानी का अगर ये हाल है तो राज्य की हालत समझी जा सकती है. पटना इतना अव्यवस्थित और घनत्व वाला क्षेत्र है कि आपको मुंबई की धारावी भी इससे बेहतर लगेगी. इसके कुछ वीआईपी इलाके और विधानसभा भवन वाला इलाका छोड़ दें तो बाकी जगह अवैध अतिक्रमण की बहार है. ऐसा तब है जब सुशासन बाबू नीतीश कुमार की सरकार है. साफ सफाई का आलम तो ये है क्या लिखा जाए क्या छोड़ा जाए समझ नहीं आता. निकम्मे विभागों के कामचोर अधिकारियों और अधिकारियों को जितनी लानत मलानत भेजी जाए कम है. सब हमेशा राजनीतिक मोड में खैनी चबाते मिलेंगे. मुंह में पान की पीक लिए हंसी ठठाहों के अड्डे हैं सरकारी कार्यालय.
बिहार में राजनीतिक व्यवस्था ही नहीं उस पूरे सरकारी तंत्र और अमले को बदलने की जरूरत है जो सड़ गल चुका है. सालों से गटर और नालियों के रख रखाव या साफ सफाई पर शायद ईमानदारी से काम नहीं हुआ. पटना की किस्मत अच्छी है कि बगल में गंगा बहती है जिसने इस बारिश में राहत दी है, जहां बहुत सारा पानी समा गया होगा. वरना बद से बदतर हालात होते. तालाब पोखर जो पटना का हिस्सा हुआ करते थे, आज ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे. उनपर अवैध कब्जों की मल्टी स्टोरी इमारतें बन चुकी हैं.
बिहार के साथ दिक्कत ये भी है कि अपने गौरवशाली परम्परा और अतीत पर इठलाता तो है लेकिन वर्तमान और भविष्य को लेकर बहुत उदासीन है. क्योंकि ज्यादातर लोग अपने बच्चों को बिहार से बाहर भेजकर भविष्य संवारने की चाहत रखते हैं. यानी परिजीवी की भूमिका में हैं. जानते हैं बिहार में भविष्य नहीं है. सवाल शिक्षा का हो, इलाज का हो या नौकरी का, उनकी वरीयता के क्रम में बिहार कहीं नहीं आता. इस बीच बात पटना के नागरिकों की भी करनी होगी जो साफ सफाई को लेकर बहुत उदासीन हैं. घर चकाचक रखना है लेकिन घर के बाहर ज्यादातर लोग ज़िम्मेदार नागरिक की भूमिका नहीं निभाते. देश के बहुत से हिस्सों से ये सुनने को मिलता है कि यूपी बिहार के लोग साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखते. कमोबेश बिहार में भी यही हालत हैं. सार्वजनिक क्षेत्रों में कहीं भी थूकना, कूड़ा फेंकना आदत बन गई है. हालांकि नई पीढ़ी में बदलाव के लक्षण हैं. त्योहारों का मौसम है दुर्गा पूजा से लेकर छठ पूजा तक सब लोग पूरी श्रद्धा भक्ति से रहेंगे. खूब पूजा पाठ घर की साफ-सफाई करेंगे, पंडाल चकाचक रहेंगे लेकिन समारोह आयोजन के बाद की स्तिथि देखकर बहुत अफसोस होगा.
बरहाल नीतीश कुमार को बदहाल बिहार को इस संकट से निकलना होगा अगर वो असफल भी रहते हैं तो भी प्रकृति उनकी जिम्मेदारी निभा देगी, जैसा कि हर बार बिहार में होता है. प्रशासन बिस्किट पानी बांटकर अपने कर्तव्य की खानापूर्ति कर सकता है. लेकिन ये चेतावनी हम सब के लिए है जो ये सोचते हैं कि यहां बाढ़ भला कैसे आ सकती है, वो लोग थोड़ा राजस्थान को भी देख लें. एक बात और, अभी देश में बाढ़ है चार महीने बाद सुखाड़ होगा. इन सब हालातों के लिए जितने हमारे हुक्मरान जिम्मेदार हैं उतने ही हम भी, जो कहीं कहीं जिम्मेदार नागरिक के कर्तव्य से चूक चुके हैं.
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