संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग को विपक्ष ने बिल्कुल नहीं चलने दिया. पंजाब नेशनल बैंक-नीरव मोदी घोटाला, आंध्र प्रदेश विशेष राज्य दर्जे की मांग, केंद्र सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव, मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग, उच्चतम न्यायालय द्वारा एसटी-एसटी कानून में बदलाव, कावेरी जल विवाद, जैसे मुद्दों से संसद ग्रसित रहा. पूरे सत्र में सरकार के पास विपक्ष को काबू में करने की कोई रणनीति नज़र नहीं आई. विपक्ष ने अपनी इच्छा के अनुसार, मनमर्ज़ी से सदन की करवाही को बाधित किया. विपक्ष द्वारा बिछाई गई बिसात का, लोक सभा में पूर्ण बहुमत वाली सरकार के पास कोई उत्तर नहीं था. इस विफलता का श्रेय संसदीय कार्य मंत्री को मिलना चाहिए.
गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह एक दिन का उपवास करेंगे
संसद नहीं चलने के कारण सरकार विपक्ष द्वारा उछाले जाने वाले सचे-झूठे आरोपों का उत्तर सदन में नहीं दे पाई. विपक्ष की रणनीति थी की सरकार पर दुनिया भर के आरोप लगा दो और सदन में उन आरोपों पर बहस न होने दी जाए. जब सदन में सिर्फ़ शोर-शराबा और हंगामा होगा तो सरकार अपना पक्ष देश के समक्ष रख ही नहीं पाएगी. आरोपों की बौछार में जितने आरोप सरकार पर चिपक जाए, विपक्ष के लिए उतना ही सही. सदन तो चल नहीं रहा था इसलिए सरकार के पास विपक्ष के आरोपों को तथ्यों के आधार पर आधिकारिक जवाब देने का कोई उचित स्थान नहीं था.
राहुल गांधी यदि यह झूठ, कर्नाटक की चुनावी सभा के बजाए, सदन के पटल पर बोलते तो संसद में आधिकारिक तौर पर उनका झूठ दर्ज हो जाता. यही कारण है कि शायद राहुल सदन में बोलने के बजाए ट्विटर पर बोलना पसंद करते है.
विपक्ष अपने आरोपों से मोदी सरकार की छवि दलित और किसान विरोधी के रूप में प्रचारित करना चाहता है. कांग्रेस और अन्य विरोधी दल देश में यह संदेश देना चाहते है कि वर्तमान सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है तथा एक बार फिर 2013 की तरह भारत सरकार पंगु हो गई है.
संसद के बजट सत्र की गतिविधियों ने मोदी सरकार को विपक्ष की रणनीति के सामने कुछ कमजोर होता दिखाया. यह उपवास विपक्ष की उस रणनीति का उत्तर है. यह एक चुनावी वर्ष है इसलिए विपक्ष साम-दाम-दंड-भेद सभी तरीकों से मोदी सरकार पर कीचड़ उछालने का प्रयास करेगा. इस सोच की लड़ाई में जिसने जनता के मन में अपनी बात पहुंचा दी वह 2019 चुनाव जीत जाएगा. इसी सोच को अपनी ओर करने के लिए नरेंद्र मोदी उपवास कर रहे है. नरेंद्र मोदी ने अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा आक्रामक पारी खेली है इसलिए अब भी वह विपक्ष को कोई मौका नहीं देना चाहते है. इस उपवास के मध्यम से मोदी विपक्ष को एक ऐसे खलनायक के रूप में दिखना चाहते है जो देश के विकास में बाधा पैदा कर रहा है.
यह राजनीतिक लड़ाई तो अभी शुरू हुई है. आगामी एक साल में ऐसे कई उपवास देखने को मिल सकते है.
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