हैरानी तब हुई जब प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सभा के उपसभापति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद के नाम को लेकर खिल्ली उड़ायी. मोदी ने जिस लहजे में बीके हरिप्रसाद के नाम को लेकर मजाक उड़ाया और बीके को 'बिके' कहकर संबांधित किया, वह किसी प्रधानमंत्री के मुंह से शोभा नहीं देता. ये सब कितना अशोभनीय रहा इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री की उन बातों को राज्य सभा के रिकॉर्ड से डिलीट कर दिया गया है. कहना मुश्किल है, पूरे वाकये के चलते सबसे ज्यादा ठेस बीके हरिप्रसाद को पहुंची है, या प्रधानमंत्री पद की गरिमा को.
सियासी दुश्मनी की ताजातरीन मिसाल डीएमके नेता मुथुमल करुणानिधि की समाधि को लेकर तमिलनाडु सरकार का अड़ंगा डालना है. दफनाने भर की दो गज जमीन को लेकर भी सूबे की एआईएडीएमके सरकार ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. भला हो न्यायपालिका का, करुणानिधि मौत के बाद भी इंसाफ से महरूम नहीं हुए. तमिलनाडु सरकार के इस कदम से एक गलतफहमी ये भी दूर हो गयी कि जयललिता और करुणानिधि के जाने के बाद भी नफरत की राजनीति तमिलनाडु से खत्म नहीं हो पायी है - और निकट भविष्य में ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं बची नजर आ रही है.
चुनाव प्रचार में नेताओं के एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल भाषा अक्सर सवालों के घेरे में रही है, लेकिन धीरे धीरे ये अहम पदों पर बैठे नेताओं को भी लपेटे में लेती जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अपमानजनक टिप्पणी इस प्रसंग में अक्सर चर्चा का हिस्सा बनती है.
ये 'बिके हरि' क्या होता है?
एनडीए उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह के उपसभापति का चुनाव जीतने पर प्रधानमंत्री मोदी संसद में बधाई दे रहे थे. हरिवंश के अब तक के काम, उनकी काबिलियत और आने वाले दिनों में उनके सामने की चुनौतियों पर मोदी ने विस्तार से प्रकाश डाला. मोदी ने हरिवंश के जेपी से लेकर गांधी से जुड़े होने तक का जिक्र किया. जयप्रकाश नारायण के इलाके में पैदाईश और चंपारण में हरिवंश के ससुराल के चलते मोदी ने उन्हें...
हैरानी तब हुई जब प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सभा के उपसभापति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद के नाम को लेकर खिल्ली उड़ायी. मोदी ने जिस लहजे में बीके हरिप्रसाद के नाम को लेकर मजाक उड़ाया और बीके को 'बिके' कहकर संबांधित किया, वह किसी प्रधानमंत्री के मुंह से शोभा नहीं देता. ये सब कितना अशोभनीय रहा इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री की उन बातों को राज्य सभा के रिकॉर्ड से डिलीट कर दिया गया है. कहना मुश्किल है, पूरे वाकये के चलते सबसे ज्यादा ठेस बीके हरिप्रसाद को पहुंची है, या प्रधानमंत्री पद की गरिमा को.
सियासी दुश्मनी की ताजातरीन मिसाल डीएमके नेता मुथुमल करुणानिधि की समाधि को लेकर तमिलनाडु सरकार का अड़ंगा डालना है. दफनाने भर की दो गज जमीन को लेकर भी सूबे की एआईएडीएमके सरकार ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. भला हो न्यायपालिका का, करुणानिधि मौत के बाद भी इंसाफ से महरूम नहीं हुए. तमिलनाडु सरकार के इस कदम से एक गलतफहमी ये भी दूर हो गयी कि जयललिता और करुणानिधि के जाने के बाद भी नफरत की राजनीति तमिलनाडु से खत्म नहीं हो पायी है - और निकट भविष्य में ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं बची नजर आ रही है.
चुनाव प्रचार में नेताओं के एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल भाषा अक्सर सवालों के घेरे में रही है, लेकिन धीरे धीरे ये अहम पदों पर बैठे नेताओं को भी लपेटे में लेती जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अपमानजनक टिप्पणी इस प्रसंग में अक्सर चर्चा का हिस्सा बनती है.
ये 'बिके हरि' क्या होता है?
एनडीए उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह के उपसभापति का चुनाव जीतने पर प्रधानमंत्री मोदी संसद में बधाई दे रहे थे. हरिवंश के अब तक के काम, उनकी काबिलियत और आने वाले दिनों में उनके सामने की चुनौतियों पर मोदी ने विस्तार से प्रकाश डाला. मोदी ने हरिवंश के जेपी से लेकर गांधी से जुड़े होने तक का जिक्र किया. जयप्रकाश नारायण के इलाके में पैदाईश और चंपारण में हरिवंश के ससुराल के चलते मोदी ने उन्हें जेपी से लेकर गांधी तक जुड़ा बताया.
प्रधानमंत्री मोदी ने हरिवंश के उपसभापति बन जाने पर बड़े ही लाइट मूड में 'हरि कृपा' और 'हरि इच्छा' जैसी बातें भी कीं. ये तो सच है कि उपसभापति चुनाव में हरिवंश बनाम हरिप्रसाद की लड़ाई में हुई राजनीति बड़ी दिलचस्प रही, लेकिन इस सिलसिले में मोदी की एक टिप्पणी संसद के अंदर भाषा के स्तर को लेकर चिंतित करने वाली है.
एनडीए उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह और कांग्रेस उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को लेकर सोशल मीडिया पर भी खूब 'हरि-हरि' हुआ. ये भी एक वजह रही होगी कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी दोनों हरि की अपने तरीके से तुलना की. हैरान करने वाली बात ये थी कि मोदी ने कांग्रेस उम्मीदवार के नाम को लेकर न सिर्फ निजी तंज कसा, बल्कि ऐसा मजाक उड़ाया जो उनकी टीम के अलावा शायद ही किसी को पसंद भी आये.
भरी संसद में प्रधानमंत्री मोदी बोल रहे थे, "ये चुनाव ऐसा था जिसमें दोनों तरफ हरि थे लेकिन एक के आगे बीके था, बिके हरि, कोई न बिके और इधर थे कि कोई बिका..."
फर्ज कीजिए बीके हरिप्रसाद बीजेपी में होते, तब भी क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'बिके हरि' कह कर मजाक उड़ाते?
मोदी पर टिप्पणी के लिए कांग्रेस ने तो अय्यर से माफी मंगवाई थी
गुजरात चुनाव का वो वाकया तो सबको याद ही होगा. कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपमान जनक टिप्पणी करते हुए 'नीच' शब्द का इस्तेमाल किया था. खूब विवाद हुआ. खुद मोदी ने भी कई चुनावी रैलियों में इस पर अपने तरीके से रिएक्ट किया - पीड़ित के रूप में स्वयं को प्रोजेक्ट किया.
राहुल गांधी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए अय्यर से न सिर्फ माफी मंगवाई बल्कि उनके खिलाफ एक्शन भी लिया. बवाल तो तब भी हुआ था जब अपने दफ्तर में सीबीआई के पहुंचने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के लिए 'कायर' और 'मनोरोगी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था. इस मामले को अदालत में भी चुनौती देने की कोशिश हुई लेकिन मामला खारिज हो गया था.
गुजरात से पहले निम्न स्तर वाली नोक-झोंक का जो हाल यूपी चुनाव में नजर आया उससे बुरा नजारा बिहार चुनाव में भी देखा गया था. तब लालू प्रसाद ने प्रधानमंत्री मोदी पर इल्जाम लगाया था कि उन्हें 'शैतान' बोला गया. असल बात तो ये थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने लालू की ही एक बात का उल्लेख करते हुए शैतान नाम लिया था. सीधे सीधे लालू को कुछ नहीं कहा था. जब मोदी ने एक चुनावी रैली में बेटे बेटियों को सेट करने जैसी बात कह दी फिर तो हंगामा ही खड़ा हो गया. लालू की बेटी मीसा भारती ने तो प्रधानमंत्री मोदी को 'गली के गुंडे' जैसी भाषा बोलने वाला बता डाला था.
वैसे बिहार चुनाव में बीजेपी को प्रधानमंत्री मोदी की जो टिप्पणी सबसे नुकसानदेह साबित हुई वो रही - नीतीश कुमार के 'डीएनए में खोट' वाली. उसके बाद तो कितना बवाल मचा जिक्र की जरूरत नहीं है.
ज्यादा दिन नहीं हुए. कर्नाटक चुनाव से पहले संसद में ही प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के पाप और पुण्य का बखान करते नहीं थक रहे थे. ऐसी बातें चाहे मोदी के बारे में कोई कहे या फिर खुद मोदी ही किसी के बारे में कहें अपमानजनक ही माना जाएगा. कोई किसी के नाम के चलते किसी को 'बिका हुआ' कैसे कह सकता है?
राज्य सभा सभापति ने बातों को कार्यवाही से हटा कर मोदी की 'भूल' को 'सुधार' देने की कोशिश जरूर की है - लेकिन प्रधानमंत्री पद की गरिमा को जो क्षति पहुंची है उसकी भरपायी भला कैसे हो सकती है?
इन्हें भी पढ़ें :
मोदी की हत्या की साजिश पर संजय निरूपम का बयान मणिशंकर अय्यर से ज्यादा घटिया है!
हरिवंश की जीत सिर्फ विपक्ष की हार नहीं - 2019 के लिए बड़ा संदेश भी है
राज्यसभा उपसभापति चुनाव: 2019 के 'राजतिलक' का ट्रेलर साबित हो सकता है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.