प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार में चुनाव प्रचार (Narendra Modi Bihar campaign) को लेकर सबसे ज्यादा शिद्दत से नीतीश कुमार (Nitish Kumar 15 Years) को ही इंतजार रहा होगा - और कुछ कम या करीब करीब उतना ही चिराग पासवान (Chirag Paswan) को भी. अमित शाह के बयान के बाद हर किसी की इसी बात में ज्यादा दिलचस्पी रही कि चिराग पासवान को लेकर प्रधानमंत्री मोदी बिहार के लोगों से क्या कहते हैं. चिराग पासवान को तो अमित शाह ने मैसेज दे ही दिया था, लिहाजा वो बीजेपी से करीबी की दावेदारी को लेकर पहले ही पीछे हट चुके थे, लेकिन शाह के उसी बयान ने नीतीश कुमार की अपेक्षा बढ़ा दी होगी.
खास बात ये है कि जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने की कोशिश की है, वो काफी दिलचस्प है - और बड़ी बात ये है कि वही एकमात्र फॉर्मूला बीजेपी को नीतीश के साथ के साइड इफेक्ट से बचाने वाला है, बशर्ते बाकी बातों की तरह बिहार के लोग इस बार प्रधानमंत्री मोदी की ये बातें भी मान लें!
मोदी ने सत्ता विरोधी लहर की काट ऐसे खोजी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरीके से चुनाव की घोषणा होने से पहले से ही नीतीश कुमार का बचाव कर रहे थे, साफ हो चुका था कि ये सब सत्ता विरोधी लहर से बचाने की कोशिश है. सत्ता विरोधी लहर को लेकर बीजेपी के अंदरूनी सर्वे में तो फीडबैक मिला ही था, हाल के ओपिनियन पोल में भी मालूम हुआ कि बिहार के 44 फीसदी लोग मौजूदा विधायकों से बहुत ज्यादा नाराज हैं. जिन विधायकों से लोगों की गहरी नाराजगी है उनमें ज्यादातर एनडीए यानी बीजेपी और जेडीयू के ही हैं, बनिस्बत आरजेडी के.
स्थानीय जनप्रतिनिधियों के प्रति लोगों की गहरी नाराजगी 2019 के आम चुनाव में भी महसूस की गयी थी - और तब मोदी ने आगे बढ़ कर अपने लिए वोट मांग...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार में चुनाव प्रचार (Narendra Modi Bihar campaign) को लेकर सबसे ज्यादा शिद्दत से नीतीश कुमार (Nitish Kumar 15 Years) को ही इंतजार रहा होगा - और कुछ कम या करीब करीब उतना ही चिराग पासवान (Chirag Paswan) को भी. अमित शाह के बयान के बाद हर किसी की इसी बात में ज्यादा दिलचस्पी रही कि चिराग पासवान को लेकर प्रधानमंत्री मोदी बिहार के लोगों से क्या कहते हैं. चिराग पासवान को तो अमित शाह ने मैसेज दे ही दिया था, लिहाजा वो बीजेपी से करीबी की दावेदारी को लेकर पहले ही पीछे हट चुके थे, लेकिन शाह के उसी बयान ने नीतीश कुमार की अपेक्षा बढ़ा दी होगी.
खास बात ये है कि जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने की कोशिश की है, वो काफी दिलचस्प है - और बड़ी बात ये है कि वही एकमात्र फॉर्मूला बीजेपी को नीतीश के साथ के साइड इफेक्ट से बचाने वाला है, बशर्ते बाकी बातों की तरह बिहार के लोग इस बार प्रधानमंत्री मोदी की ये बातें भी मान लें!
मोदी ने सत्ता विरोधी लहर की काट ऐसे खोजी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरीके से चुनाव की घोषणा होने से पहले से ही नीतीश कुमार का बचाव कर रहे थे, साफ हो चुका था कि ये सब सत्ता विरोधी लहर से बचाने की कोशिश है. सत्ता विरोधी लहर को लेकर बीजेपी के अंदरूनी सर्वे में तो फीडबैक मिला ही था, हाल के ओपिनियन पोल में भी मालूम हुआ कि बिहार के 44 फीसदी लोग मौजूदा विधायकों से बहुत ज्यादा नाराज हैं. जिन विधायकों से लोगों की गहरी नाराजगी है उनमें ज्यादातर एनडीए यानी बीजेपी और जेडीयू के ही हैं, बनिस्बत आरजेडी के.
स्थानीय जनप्रतिनिधियों के प्रति लोगों की गहरी नाराजगी 2019 के आम चुनाव में भी महसूस की गयी थी - और तब मोदी ने आगे बढ़ कर अपने लिए वोट मांग डाले, ताकि लोग ये भूल जायें कि वो अपने इलाके के सांसद नहीं चुन रहे हैं बल्कि मोदी को मजबूत सरकार बनाने के लिए अपने इलाके के जनप्रतिनिधि को भेज रहे हैं. ये फॉर्मूला काम भी किया और बीजेपी अपने बूते ही भारी बहुमत हासिल करने में कामयाब हुई, एनडीए के साथ तो सरप्लस हो गये. अगर ऐसा न हुआ तो शायद चुनाव बाद भी शिवसेना और शिरोमणि अकाली एनडीए छोड़े नहीं होते और चिराग पासवान पेंडुलम की तरह बिहार चुनाव में झूल नहीं रहे होते. बिहार में तो चुनावों से पहले ही लालू-राबड़ी के 15 बनाम नीतीश कुमार के 15 साल की बहस शुरू हो ही चुकी थी. अगर ऐसा न हो तो भला तेजस्वी यादव क्यों जंगलराज के लिए कई बार माफी मांगे होते और आरजेडी के पोस्टर पर सिर्फ तेजस्वी की ही तस्वीर क्यों होती.
अब अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मानें तो बिहार में नीतीश कुमार को लोगों के लिए कुछ करने का मौका तीन-चार साल से ज्यादा मिला ही नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे गूढ़ राजनीति शास्त्र के आधार पर नहीं, बल्कि पांचवीं के गणित के हिसाब से समझाने की कोशिश की है. प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक, नीतीश कुमार शासन के स्वर्णिम 10 साल तो केंद्र में काबिज यूपीए सरकार ने मटियामेट कर दिया.
समझने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी बात समझाने के लिए उसी दौर का जिक्र किया है जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. ध्यान रहे ठीक पांच साल पहले उसी दौर का जिक्र कर मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाया था - और फिर पूरी बाजी पटल गयी थी. चूंकि 2015 में बिहार के लोगों ने बता और जता दिया था कि नीतीश कुमार के डीएनए में कोई खोट नहीं है, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी भी लोगों की जबान में ही बात कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नीतीश कुमार के संघर्ष के गवाह हैं. समझाने के अपने स्वाभाविक अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी बताते हैं, हम भारत सरकार की मीटिंग में जाया करते रहे. नीतीश जी बार बार केंद्र की सत्ता में बैठे लोगों से कहते कि आप बिहार के काम में रोड़े मत अटकाइये. बिहार का राजनीतिक अखाड़ा दिल्ली को मत बनाइये. मगर, 10 साल तक यूपीए की सरकार में बैठे लोगों ने हार के गुस्से में नीतीश कुमार को एक भी काम नहीं करने देते - नीतीश जी का दस साल बर्बाद कर दिया.
प्रधानमंत्री मोदी ने यूपीए सरकार में बैठे लोगों के ऐसा करने की वजह भी समझायी. प्रधानमंत्री मोदी यूपीए सरकार के जिन लोगों की बात कर रहे हैं वही लोग महागठबंधन के बैनर तले एनडीए को बिहार में टक्कर दे रहा है - आरजेडी और कांग्रेस. 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार रही और पहले कार्यकाल में लालू यादव भी केंद्र में मंत्री रहे. बाद में चारा घोटाले में सजा हो जाने के चलते संसद की सदस्यता चली गयी और फिर मंत्री पद कहां रह पाता.
10 साल तो ऐसे चले गये, बचे हाल के पांच साल. इस पांच साल में भी 18 महीने तक नीतीश कुमार ने उन लोगों के साथ ही सरकार चलायी. प्रधानमंत्री मोदी के नजरिये से देखें तो वे 18 महीने भी उसके पहले के 10 साल की तरह ही रहे होंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये भी समझाने की कोशिश की कि क्यों 18 महीने बाद ही नीतीश कुमार को महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में लौटने का फैसला करना पड़ा. बोले, '18 महीने में क्या-क्या हुआ, ये मुझे कहने की जरूरत नहीं है... अठारह महीनों में परिवार ने क्या-क्या किया और कैसे-कैसे खेल किये? कौन सी बातें अखबारों छाई रहती थी और कौन सी बातें टीवी वालों को भाती थीं - ये बातें किसी से छिपी नहीं है. नीतीश जी जब इस खेल को भांप गये... समझ गये कि ऐसे लोगों के साथ रहते हुए बिहार का भला तो छोड़िये, बिहार और 15 साल पीछे चला जाएगा तो उनको सत्ता छोड़ने का फैसला लेना पड़ा.'
अब अगर प्रधानमंत्री मोदी की नजर से देखें तो बिहार में नीतीश कुमार को कुल जमा साढ़े तीन साल ही काम करने का मौका मिला है - और यही वो अवधि है जिस शासन में बीजेपी भी साझीदार रही है. फिर तो बिहार के लोगों को नीतीश के साथ साथ बीजेपी को लेकर भी साढ़े तीन साल के कामों का ही आकलन करना चाहिये, न कि 15 साल में से 18 महीने कम करके.
प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, 'साथियों 2014 में प्रधानसेवक बनने के बाद मुझे नीतीश जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए सिर्फ तीन-चार साल का ही मौका मिला है... बाकी तो यूपीए के साथ संघर्ष करने में बिहार का टाइम गया है... लेकिन इन तीन-चार साल में ही हमने बहुत काम किया है.'
मोदी आगे बताते हैं कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बिहार और दिल्ली की केंद्र सरकार ने तीन साल तक मिलकर काम किया है - और 'अब हमारी सरकार आत्मनिर्भर बिहार के निर्माण में जुटी है.'
प्रधानमंत्री मोदी ने आगे जोड़ा, 'आज एनडीए के सभी दल मिलकर आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बिहार के निर्माण में जुटे हैं. बिहार को अभी भी विकास के सफर में मीलों आगे जाना है - नई बुलंदी की तरफ उड़ान भरनी है.'
मोदी ने पासवान को याद किया चिराग को इग्नोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुख को लेकर नीतीश कुमार के मुकाबले लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान का अंदाजा ज्यादा सटीक लगता है. हुआ भी करीब करीब वैसा ही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिराग के पिता राम विलास पासवान को तो पूरे सम्मान के साथ याद किया, लेकिन चिराग पासवान के एनडीए या बिहार के चुनाव मैदान में होने या न होने का कोई जिक्र नहीं किया - और इसे भी प्रधानमंत्री मोदी का खास संदेश ही समझा जाना चाहिये. नीतीश कुमार के लिए भी और चिराग पासवान के संदर्भ में भी.
लोग जनशक्ति पार्टी के संस्थापक राम विलास पासवान के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालू यादव के साथी रहे रघुवंश प्रसाद सिंह को भी याद किया और श्रद्धांजलि दी. रघुवंश प्रसाद सिंह ने आखिरी वक्त में लालू यादव के पास अपना इस्तीफा भेज दिया था, जिसे मंजूर नहीं किया गया - और अब उनके बेटे सत्य प्रकाश सिंह जेडीयू का दामन थाम चुके हैं.
बिहार की धरती पर कदम रखते ही प्रधानमंत्री मोदी बोले, 'बिहार ने अपने दो सपूतों को खोया है... एक उन्हें जिन्होंने यहां के लोगों की दशकों तक सेवा की, रामविलास पासवान... वो आखिरी सांस तक मेरे साथ रहे... रघुवंश प्रसाद सिंह ने गरीबों के उत्थान के लिए निरंतर काम किया - उन्हें भी श्रद्धांजलि देता हूं.' चिराग पासवान के ट्वीट से ही साफ है कि उनको एहसास था कि अमित शाह के बयान आ जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी का उनके प्रति क्या रुख होगा. चूंकि चिराग पासवान खुद को मोदी का हनुमान बताते हैं, लिहाजा धर्म निभाते हुए बिहार में स्वागत भी किया - और शुक्रिया भी कहा.
ध्यान देने वाली बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने चिराग पासवान का नाम भले न लिया हो, लेकिन बिहार बीजेपी के नेताओं की तरह ये भी नहीं कहा है कि एनडीए में कौन कौन है और कौन नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है कि लोग चिराग पासवान को लेकर किसी तरह के बहकावे में न आयें. होता ये भी है कि सारी बातें एक ही साथ नहीं कह दी जातीं और प्रधानमंत्री मोदी की अभी और भी रैलियां होनी हैं. आखिर रैली तक नीतीश कुमार और चिराग पासवान दोनों को इंतजार करना होगा.
रही बात चिराग पासवान की तो वो प्रधानमंत्री के दौरे के पूर्व संध्या पर ही बिहार के लोगों से कह चुके हैं कि नीतीश कुमार भरोसे के काबिल नहीं हैं - जरूरी नहीं कि चुनाव नतीजे आने के बाद भी वो एनडीए में बने रहें.
बिहार के लोगों को वोट के बदले फ्री कोरोना वैक्सीन के बीजेपी के वादे पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, एक बड़ा सवाल प्रवासी मजदूरों की हालत पर बिहार पर बन भोजपुरी रैप में भी आया है और प्रधानमंत्री मोदी ने उस पर भी अपनी राय उसी लहजे में जाहिर की है - "भारत के सम्मान बा... बिहार, भारत के स्वाभिमान बा, भारत के संस्कार बा बिहार, संपूर्ण क्रांति के शंखनाद बा बिहार - आत्मनिर्भर भारत के परचम बा बिहार!"
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