काबिल और भरोसेमंद नौकरशाहों को रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन देने की परंपरा रही है, लेकिन गुजरात काडर के IAS अफसर रहे अरविंद कुमार शर्मा (Arvind Sharma) का केस बिलकुल अलग है. कायदे से तो अरविंद शर्मा को 2022 में रिटायर होना था, लेकिन अचानक VRS लेकर उन्होंने सबको चौंका ही दिया था. अरविंद शर्मा को लेकर हैरानी का दौर बहुत लंबा नहीं रहा - और अब तो अरविंद शर्मा ने बीजेपी की सदस्यता भी ले ली है.
वक्त के पाबंद और तय समय से पहले टास्क पूरा करने वाले अफसर के रूप में जाने जाने वाले अरविंद शर्मा के कॅरियर का एक और मजबूत पक्ष भी है - उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ काम करने का 20 साल अनुभव भी है. 2001 से लेकर 2013 तक मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते विभिन्न पदों पर काम कर चुके अरविंद शर्मा उन चुनिंदा अफसरों में से एक हैं जिनको मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात से दिल्ली बुला लिया गया. वो प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव बनाये गये और फिर MSME विभाग में सचिव रहे.
यूपी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में कुछ बड़ा ही होता है. 2014 के आम चुनाव से पहले जब बीजेपी में मोदी का प्रभाव बढ़ा तो अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना कर भेज दिया - और फिर चुनाव होने को हुए तो खुद बनारस पहुंच गये प्रधानमंत्री जो बनना था. अभी पिछले ही साल प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद अफसर रहे नृपेंद्र मिश्र यूपी में स्पेशल मिशन पर पहुंचे - राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में. अब अरविंद शर्मा भी उसी कड़ी में आगे की कहानी गढ़ने जा रहे हैं.
ये तो सहज रूप से समझ आ रहा है कि अरविंद शर्मा भी किसी खास मिशन के तहत नौकरशाही से राजनीति में शिफ्ट हुए हैं - लेकिन ये अभी, अचानक और सब आनन फानन में क्यों हुआ?
अरविंद शर्मा के जल्दी ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के संभावित सहयोगी के तौर पर देखा जा रहा है - असली माजरा क्या है?
योगी के नये सहयोगी नौकरशाह
अरविंद शर्मा को रिटायर...
काबिल और भरोसेमंद नौकरशाहों को रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन देने की परंपरा रही है, लेकिन गुजरात काडर के IAS अफसर रहे अरविंद कुमार शर्मा (Arvind Sharma) का केस बिलकुल अलग है. कायदे से तो अरविंद शर्मा को 2022 में रिटायर होना था, लेकिन अचानक VRS लेकर उन्होंने सबको चौंका ही दिया था. अरविंद शर्मा को लेकर हैरानी का दौर बहुत लंबा नहीं रहा - और अब तो अरविंद शर्मा ने बीजेपी की सदस्यता भी ले ली है.
वक्त के पाबंद और तय समय से पहले टास्क पूरा करने वाले अफसर के रूप में जाने जाने वाले अरविंद शर्मा के कॅरियर का एक और मजबूत पक्ष भी है - उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ काम करने का 20 साल अनुभव भी है. 2001 से लेकर 2013 तक मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते विभिन्न पदों पर काम कर चुके अरविंद शर्मा उन चुनिंदा अफसरों में से एक हैं जिनको मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात से दिल्ली बुला लिया गया. वो प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव बनाये गये और फिर MSME विभाग में सचिव रहे.
यूपी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में कुछ बड़ा ही होता है. 2014 के आम चुनाव से पहले जब बीजेपी में मोदी का प्रभाव बढ़ा तो अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना कर भेज दिया - और फिर चुनाव होने को हुए तो खुद बनारस पहुंच गये प्रधानमंत्री जो बनना था. अभी पिछले ही साल प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद अफसर रहे नृपेंद्र मिश्र यूपी में स्पेशल मिशन पर पहुंचे - राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में. अब अरविंद शर्मा भी उसी कड़ी में आगे की कहानी गढ़ने जा रहे हैं.
ये तो सहज रूप से समझ आ रहा है कि अरविंद शर्मा भी किसी खास मिशन के तहत नौकरशाही से राजनीति में शिफ्ट हुए हैं - लेकिन ये अभी, अचानक और सब आनन फानन में क्यों हुआ?
अरविंद शर्मा के जल्दी ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के संभावित सहयोगी के तौर पर देखा जा रहा है - असली माजरा क्या है?
योगी के नये सहयोगी नौकरशाह
अरविंद शर्मा को रिटायर तभी होना था जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने निश्चित हैं. अगर यूं ही बीजेपी ज्वाइन करना होता और चुनाव मैदान में उतरना होता तो ये सब तब भी हो जाता, लेकिन अभी अभी और अचानक वीआरएस लेकर बीजेपी ज्वाइन करने की क्या वजह हो सकती है - ध्यान देने वाली बात पते की यही है.
यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और कुछ बीजेपी पदाधिकारियों की मौजूदगी में लखनऊ कार्यालय में बीजेपी की सदस्यता दिलायी.
बीजेपी ज्वाइन करने के बाद अरविंद शर्मा बोले, 'कल रात में ही मुझे पार्टी ज्वाइन करने के लिए कहा गया था... मुझे खुशी है कि मुझे मौका मिला, मैं एक पिछड़े गांव से निकला हूं... आईएएस बना और आज बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के हुए बीजेपी में आना बड़ी बात है...'
अरविंद शर्मा का कहना रहा, 'मेहनत और संघर्ष के बल पर मैंने आईएएस की नौकरी पाई... बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के व्यक्ति को राजनीतिक पार्टी में लाने का काम सिर्फ बीजेपी और नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं.'
अरविंद शर्मा को लेकर पहले से ही बीजेपी ज्वाइन करने और कोई बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की संभावना जतायी जा रही थी और बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की बातों से भी ऐसा ही लगता है. खुद अरविंद शर्मा के हड़बड़ी में बीजेपी में पहुंचने के संकेत से भी बीजेपी अध्यक्ष की बातों को बल मिलता है. यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह कह रहे हैं कि अरविंद शर्मा के पार्टी में आने से दोनों का कद बढ़ेगा. वो आगे कहते हैं, अरविंद शर्मा के बीजेपी में आने से राज्य और केंद्र सरकार को मजबूती मिलेगी.'
सूबे की सत्ताधारी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष किसी के बारे ऐसी बातें यूं ही तो करेगा नहीं. अब अगर अरविंद शर्मा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संभावित साथी माना जा रहा है तो स्वतंत्र देव सिंह का बयान भी यही इशारा कर रहा है.
देखने वाले तो अरविंद शर्मा को यूपी के तीसरे डिप्टी सीएम के तौर पर भी देख रहे हैं - और बीजेपी अध्यक्ष अगर ये कहते हैं कि अरविंद शर्मा के बीजेपी में आने से केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को मजबूती मिलेगी तो भला और क्या समझा जाये?
योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधी उन पर नौकरशाहों की सलाह पर आंख मूंद कर काम करने का आरोप लगाते हैं. ऐसा बोल कर विरोधी ये इल्जाम भी जड़ देते हैं कि यूपी के नौकरशाह योगी आदित्यनाथ के काम के अनुभव की कमी का पूरा फायदा उठाते हैं और एक तरीके से अपने इशारों पर नचाते हैं.
हाथरस जैसे मामलों को देखने के बाद कभी कभी योगी आदित्यनाथ के विरोधियों के आरोप बिलकुल बेबुनियाद भी नहीं लगते. हाथरस केस में योगी आदित्यनाथ के सीनियर अफसर मानने तक को तैयार न थे कि ये रेप का मामला हो सकता है, उसी केस में सीबीआई जांच हुई तो सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी पेश हो गया.
हाल फिलहाह उत्तर प्रदेश में कई जगह कानून व्यवस्था को लेकर योगी आदित्यनाथ के सामने चुनौतियां नजर आयी हैं - और आने वाले चुनाव में यूपी में कानून व्यवस्था को लेकर सवाल तो उठेंगे ही. एक तरफ यूपी की पुलिस एनकाउंटर में बिजी है और दूसरी तरफ अपराधी जगह जगह उत्पात मचाये हुए हैं. बदायूं की घटना ने तो होश ही उड़ा दिये.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करप्शन फ्री सरकारें देने का दावा भी करते हैं और दंभ भी. महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे आने के बाद कहा भी था कि जब देवेंद्र फडणवीस औरक मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया तो लोग दोनों को ही नौसीखिये मानते रहे, लेकिन दोनों ने ही भ्रष्टाचार मुक्त सरकारें दी. यूपी का मामला भी करीब करीब वैसा ही लगता है. योगी आदित्यनाथ भी जब कुर्सी पर बैठे तो उनके पास प्रशासनिक अनुभव के नाम पर मंदिर के महंत के रूप में काम करने का अनुभव रहा. एक ऐसा अनुभव जो लोक तंत्र में कहीं भी काम नहीं आ सकता अगर तानाशाही तरीका अख्तियार न करना हो. क्योंकि महंत से कोई सवाल तो पूछता नहीं उलटे सभी श्रद्धानवत रहते हैं.
गाजियाबाद में हाल के श्मशान घाट हादसे ने योगी सरकार की किरकिरी करा दी है. ठेकेदार का दावा है कि अफसरों को वो 30 फीसदी कमीशन देता रहा. मतलब, जब इतना कमीशन जाएगा तो इमारत कितनी मजबूत बन सकती है समझने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है.
काम के अनुभव की कमी के चलते ही योगी आदित्यनाथ को दो डिप्टी सीएम और सरकार की बातें मीडिया में पहुंचाने के लिए दो प्रवक्ता बनाये गये थे, लेकिन लगता है कि योगी आदित्यनाथ का काम इतने भर से नहीं चल पा रहा है - और यही वजह है कि अरविंद शर्मा को खास मिशन पर भेजा गया है.
मनोज सिन्हा
2017 के चुनाव नतीजे आने के बाद और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से पहले बीजेपी के एक नेता कुछ देर तक सुर्खियों में छाये रहे - मनोज सिन्हा. तब हर कोई ये मान बैठा था कि मनोज सिन्हा ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. मनोज सिन्हा फिलहाल जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल हैं.
असल में अरविंद शर्मा भी करीब करीब उसी इलाके से आते हैं जहां के मनोज सिन्हा रहने वाले हैं. मनोज सिन्हा का संसदीय क्षेत्र गाजीपुर रहा है, जबकि मऊ के रहने वाले अरविंद शर्मा का घर घोसी लोक सभा सीट के अंतर्गत आता है - और हां, अरविंद शर्मा भी मनोज सिन्हा के ही भूमिहार समुदाय से आते हैं. मनोज सिन्हा पिछली मोदी सरकार में मंत्री रहे और अपने इलाके में विकास के काम कराने वाले सांसद के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन 2019 में वो अफजाल अंसारी से हार गये. तभी से यूपी की भूमिहार बिरादरी में बीजेपी के प्रति एक निराशा का भाव देखने को मिल रहा था. मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का एलजी बनाये जाने के बाद वो भाव थोड़ा कम तो हुआ, लेकिन ये भी माना जाने लगा कि उनको मुख्यधारा की राजनीति से हटा दिया गया है.
इस बीच उस इलाके में एक नये तरह की राजनीति हो रही है. मनोज सिन्हा के इलाके की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक हुआ करते थे कृष्णानंद राय. कृष्णानंद राय की हत्या के बाद वहां से उनकी पत्नी अलका राय बीजेपी की विधायक हैं. कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्य आरोपी के तौर पर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का नाम है. मऊ से ही विधायक मुख्तार अंसारी को फिलहाल पंजाब की रोपड़ जेल में रखा गया है. यूपी पुलिस ने मुख्तार को अदालत में पेश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि मेडिकल ग्राउंड पर पंजाब सरकार कस्टडी देने को तैयार नहीं है.
इस मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का नाम भी उछला है और अलका राय ने पत्र लिख कर पूछा भी है कि वो एक अपराधी और उनके पति के हत्या के आरोप को बचा क्यों रही हैं?
इलाके में अंसारी बंधुओं के दबदबे के बीच कृष्णानंद राय की मौजूदगी बैलेंस बनाये रखती थी. मनोज सिन्हा के जम्मू-कश्मीर भेज दिये जाने के बाद बीजेपी अरविंद शर्मा को नयी उम्मीद के साथ पेश करती देखी जा सकती है. ये इलाके की आबादी के लिए संदेश भी हो सकता है.
अरविंद शर्मा को अहमियत दिये जाने को वैसे ही देखा जा सकता है जैसे गोरखपुर के शिव प्रताप शुक्ला को राज्य सभा भेज कर इलाके के ब्राह्मणों को संदेश देने की कोशिश हुई थी. शिव प्रताप शुक्ला पिछली मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री भी रहे.
भले ही अरविंद शर्मा की कोई राजनीति पृष्ठभूमि न रही हो और न ही राजनीति का कोई अनुभव, लेकिन ये याद रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद ही वो आइएएस बने थे - और अब वही प्रशासनिक अनुभव उनको राजनीति में ले जा रहा है.
जिस शख्स पर देश के प्रधानमंत्री को भरोसा हो क्या उसे किसी और पृष्ठभूमि की जरूरत हो सकती है - आखिर नरेंद्र मोदी का भरोसा अरविंद शर्मा ने यूं ही तो जीता नही होंगा.
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