प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मुख्यमंत्रियों (Chief Ministers) के बीच पांचवी वीडियो बैठक काफी अलग नजर आयी. ऐसा लगा जैसे इस बात का पूरा ख्याल रखा गया हो कि मीटिंग के बाद किसी भी मुख्यमंत्री के पास शिकायत की कोई बड़ी वजह न बच सके. मोदी सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर भी हाल-फिलहाल सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल से उठ रहे हैं - और दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व भी थोड़ा ज्यादा आक्रामक हुआ लगता है. ममता बनर्जी ने तो मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी पश्चिम बंगाल के साथ भेदभाव का मुद्दा ये कहते हुए उठाया कि केंद्र सरकार को इस वक्त राजनीति से बाज आना चाहिये.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने ये शिकायत भरी सलाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी जब मीटिंग में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे और वही ममता बनर्जी के निशाने पर भी थे. मीटिंग में एक खास बात और भी दिखी - कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की मांगें तकरीबन मिलती जुलती ही रहीं. याद कीजिये इससे पहले जब मुख्यमंत्रियों की मीटिंग हुई थी तो कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने ट्विटर के जरिये पार्टी के मुख्यमंत्रियों को खास संदेश भी दिये थे.
भले ही ममता बनर्जी और कांग्रेस नेतृत्व मोदी सरकार के प्रति हमलावर हो लेकिन हाल फिलहाल एक खास बात ये भी देखने को मिली है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों के माध्यम से ही सही सभी दलों के साथ एक आम सहमति बनाने की कोशिश करते हुए लगते हैं - इस बदलाव के कुछ खास वजहें भी हैं क्या?
क्या ये किसी बदलाव के संकेत हैं?
6 मई को सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये मीटिंग बुलायी थी. मीटिंग में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद रहे.
सोनिया गांधी का मोदी सरकार से सीधा सवाल रहा - 17 मई के बाद क्या? दरअसल, 17 मई को ही लॉकडाउन 3.0 खत्म हो रहा है. कांग्रेस नेताओं का आरोप रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बगैर तैयारी के ही देश में...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मुख्यमंत्रियों (Chief Ministers) के बीच पांचवी वीडियो बैठक काफी अलग नजर आयी. ऐसा लगा जैसे इस बात का पूरा ख्याल रखा गया हो कि मीटिंग के बाद किसी भी मुख्यमंत्री के पास शिकायत की कोई बड़ी वजह न बच सके. मोदी सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर भी हाल-फिलहाल सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल से उठ रहे हैं - और दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व भी थोड़ा ज्यादा आक्रामक हुआ लगता है. ममता बनर्जी ने तो मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी पश्चिम बंगाल के साथ भेदभाव का मुद्दा ये कहते हुए उठाया कि केंद्र सरकार को इस वक्त राजनीति से बाज आना चाहिये.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने ये शिकायत भरी सलाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी जब मीटिंग में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे और वही ममता बनर्जी के निशाने पर भी थे. मीटिंग में एक खास बात और भी दिखी - कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की मांगें तकरीबन मिलती जुलती ही रहीं. याद कीजिये इससे पहले जब मुख्यमंत्रियों की मीटिंग हुई थी तो कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने ट्विटर के जरिये पार्टी के मुख्यमंत्रियों को खास संदेश भी दिये थे.
भले ही ममता बनर्जी और कांग्रेस नेतृत्व मोदी सरकार के प्रति हमलावर हो लेकिन हाल फिलहाल एक खास बात ये भी देखने को मिली है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों के माध्यम से ही सही सभी दलों के साथ एक आम सहमति बनाने की कोशिश करते हुए लगते हैं - इस बदलाव के कुछ खास वजहें भी हैं क्या?
क्या ये किसी बदलाव के संकेत हैं?
6 मई को सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये मीटिंग बुलायी थी. मीटिंग में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद रहे.
सोनिया गांधी का मोदी सरकार से सीधा सवाल रहा - 17 मई के बाद क्या? दरअसल, 17 मई को ही लॉकडाउन 3.0 खत्म हो रहा है. कांग्रेस नेताओं का आरोप रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बगैर तैयारी के ही देश में लॉकडाउन लागू कर दिया. नतीजा ये हुआ की लाखों मजदूर सड़क पर आ गये और सिर्फ रोजी संकट की कौन कहे खाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं. मजदूरों के रेल टिकट के किराये को लेकर भी सोनिया गांधी ने मजदूरों की तरफ से पेमेंट का ऐलान कर सत्ताधारी बीजेपी को तो बैकफुट पर ला ही दिया. बार बार रेल मंत्रालय की ओर से सफाई दी जाने लगी. वैसे देखने में ये भी आया कि पंजाब में कांग्रेस के एक विधायक ने स्टेशन पर पहुंच कर श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार होने जा रहे मजदूरों को बताया कि उनके किराये का भुगतान सोनिया गांधी ने किया है.
मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग में प्रधानमंत्री बोले, 'हमने जोर देकर कहा कि लोगों को वहीं रहना चाहिए जहां वे हैं... लेकिन ये मानवीय स्वभाव है कि लोग घर जाना चाहते हैं और इसलिए हमें अपने निर्णयों को बदलना होगा - कुछ निर्णय को हमें बदलने भी पड़े हैं.'
ये बात तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिहाड़ी मजदूरों के जैसे भी संभव हो सका घर लौटने की आतुरता को देखते हुए कही है. मुख्यमंत्रियों को ये समझाने और जताने की कोशिश है कि कभी कभी जनता के दबाव में ऐसा करना पड़ता है - और करना भी चाहिये.
लेकिन क्या मोदी सरकार विपक्ष की तरफ से भी ऐसा दबाव महसूस करने लगी है?
प्रधानमंत्री मोदी ने एक और भी महत्वपूर्ण बात कही है - कुछ भी निष्कर्ष निकालने से पहले हमने सभी मुख्यमंत्रियों को बोलने का आमंत्रण दिया है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ साथ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी शामिल हुईं - यहां समझने वाली बात ये है कि दोनों ही मंत्रियों की लॉकडाउन के एग्जिट प्लान में महत्वपूर्ण भूमिका है. अमित शाह का गृह मंत्रालय लॉकडाउन के दौरान गाइडलाइन तैयार कर रहा है और निर्मला सीतारमण आर्थिक चुनौतियों से निबटने के रास्ते तलाश रही हैं.
क्या इसे सोनिया गांधी के '17 के बाद क्या' वाले सवाल के जवाब के तौर पर भी देखा जा सकता है?
दबाव के चलते मिला सभी CM को बोलने का मौका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुख्यमंत्रियों की मीटिंग की सबसे अहम बात तो ये रही कि इस बार सभी मुख्यमंत्रियों को बोलने का मौका दिया गया था, सिर्फ केंद्र शासित राज्यों को छोड़ कर. उनसे अपनी बाद वैसे ही लिखित तौर पर रखने को बोल दिया गया था जैसे पहले कई मुख्यमंत्रियों के साथ हुआ.
पिछली मीटिंग में दो मुख्यमंत्रियों ने अपनी नाराजगी साफ तौर पर दर्ज करायी थी - पी. विजयन और ममता बनर्जी. केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन तो अपनी जगह मीटिंग में अपने अफसर को ही भेज दिये थे, ये कहते हुए कि जब बोलने की अनुमति ही नहीं है तो मीटिंग में शामिल होने का क्या फायदा. ममता बनर्जी शामिल तो हुईं थी लेकिन बोलने का मौका न मिलने से खासी खफा रहीं. यही वजह रही कि प्रधानमंत्री मोदी ने सभी मुख्यमंत्रियों को बोलने के लिए बुलाया था.
1. राजनीति नहीं चलेगी: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी शिकायत जोरदार तरीके से दर्ज करायी कि राज्य सरकार अपने स्तर पर कोरोना वायरस से मुकाबले की पूरी कोशिश कर रही है और ऐसे में केंद्र सरकार को राजनीति नहीं करनी चाहिये. ममता बनर्जी ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं और बड़े राज्यों से घिरे होने के कारण पश्चिम बंगाल के सामने तमाम चुनौतियां पेश आ रही हैं. ममता बनर्जी ने कहा कि सभी राज्यों को बराबर अहमियत दी जानी चाहिये और हमें टीम इंडिया के रूप में मिल कर काम करना चाहिये.
ममता बनर्जी, दरअसल, पश्चिम बंगाल में केंद्रीय टीम भेजे जाने और अमित शाह की चिट्ठी से बहुत नाराज हैं - और काफी दिनों से दोनों सरकारों के बीच तनातनी चल रही है. वैसे लॉकडाउन के दौरान देखने को यही मिला है कि ममता बनर्जी को छोड़ कर बाकी मुख्यमंत्रियों ने अपनी डिमांड तो रखी है, लेकिन किसी और कोने से विरोध का ऐसा तीखा स्वर नहीं दिखा है.
2. लॉकडाउन की जरूरत: हर बार की तरह इस बार भी कई मुख्यमंत्रियों ने लॉकडाउन बढ़ाने की मांग की है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि अहमदाबाद में स्थिति काफी खराब होने के बावजूद राज्य सरकार ने इसका विरोध किया है. कोरोना पीड़तों की संख्या के मामले में गुजरात महाराष्ट्र के बाद देश में दूसरे नंबर पर है.
महाराष्ट्र, तेलंगाना, पंजाब और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों की लॉकडाउन बढ़ाने की मांग के बीच नीतीश कुमार का अंदाज तो कुछ ऐसा रहा कि अगर लॉकडाउन खोला गया तो लोग बिहार लौट आएंगे और कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा.
3. ट्रेन अभी नहीं चलायी जाये: ट्रेन चलाने का विरोध ममता बनर्जी ने भी किया, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने कहा कि ऐसा करने से कोरोना संक्रमण फैल सकता है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी ने भी ट्रेन चेन्नई न भेजे जाने की अपील की - साथ ही हवाई सेवा भी बंद रखने की गुजारिश की.
4. राज्यों को अधिकार मिले: कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की मांगे एक जैसी दिखीं. कैप्टन अमरिंदर सिंह, भूपेश बघेल और अशोक गहलोत की बातों का लब्बोलुआब यही रहा कि जोन तय करने का अधिकार राज्यों को ही मिलना चाहिये. भूपेश बघेल ने कहा कि आर्थिक गतिविधियों के संचालन का अथिकार राज्यों को ही दिया जाना चाहिये. पहले भी बीबीसी से बातचीत में अमरिंदर सिंह ने कहा था, 'दिल्ली में बैठे एक संयुक्त सचिव, जो शायद कभी पंजाब नहीं आए, हमें आदेश दे रहे हैं. हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है. हमें जो वे कह रहे हैं वह हम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए पटियाला अब एक रेड जोन है - लेकिन क्या दिल्ली के अधिकारियों को पता है कि यह शहर नहीं है, यह एक जिला है?'
उद्धव ठाकरे की बात क्यों मानी गयी?
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने पूरे हो रहे हैं और राज्य के किसी भी सदन का सदस्य न होने की वजह से उनकी कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा था. महाराष्ट्र कैबिनेट ने दो बार राज्यपाल को प्रस्ताव पास कर उद्धव ठाकरे को एमएलसी मनोनीत करने की सिफारिश की थी, लेकिन वो लटकाये रहे.
जब कोई बात नहीं बनती नजर आयी तो उद्धव ठाकरे ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया और वस्तुस्थिति से पूरी तरह अवगत कराया. प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया - देखते हैं.
फिर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर महाराष्ट्र विधान परिषद की खाली पड़ी 9 सीटों पर चुनाव कराने के लिए पत्र लिखा - और अब 21 मई को चुनाव होने जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी चाहते तो चुप रह जाते और बीजेपी थोड़ी सी राजनीति में ही सरकार गिरा सकती थी - लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोई खास वजह तो होगी ही. वरना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में तो बीजेपी नेृतृत्व ने ऐसी दिलदारी तो कभी नहीं दिखायी.
ऐसे ही मुख्यमंत्रियों की एक मीटिंग में उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री को सलाह दी कि देश भर के धर्मगुरुओं की लॉकडाउन को लागू कराने में मदद ली जाये - प्रधानमंत्री ने तुरंत बात मान ली और बाकी मुख्यमंत्रियों को भी ऐसा ही करने की सलाह दी.
ऐसे ही नीतीश कुमार ने कहा था कि प्रवासी मजदूरों और दूसरे राज्यों में फंसे हुए लोगों को वापस लाये जाने के लिए कोई एक राष्ट्रीय नीति बने और सभी राज्य उस पर अमल करें. तब नीतीश कुमार योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान के बसें भेज कर अपने लोगों को बुलाने के कारण बहुत दबाव महसूस कर रहे थे - नीतीश कुमार की ये राय फौरन ही मान ली गयी. ठीक वैसे ही जब लोगों की वापसी की गाइडलाइन जारी हुई तो अशोक गहलोत ने कहा कि लोग इतने ज्यादा है कि बसों से पहुंचाना मुश्किल होगा इसलिए ट्रेन चलवायी जाये - फिर क्या था देश भर में श्रमिक स्पेशल ट्रेने चलायी जाने लगीं - और अब तो और भी स्पेशल ट्रेनें चलने वाली हैं.
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