जम्मू और कश्मीर एकदम परफेक्ट है. राजनीति में, हालांकि, जम्मू और कश्मीर एक जटिल मुद्दा है. जम्मू और कश्मीर का मुद्दा या कश्मीर का मुद्दा, जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है, 1947 में भारत के विभाजन के ब्रिटिश डिजाइन का परिणाम है. यह विभाजन के दो महीने बाद कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण से जटिल हुआ, जिसके कारण जम्मू और कश्मीर (जिसमें केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख भी शामिल था) का भारत संघ के साथ विलय हो गया, और पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ. युद्ध दोनों सेनाओं को अलग करने वाली युद्धविराम रेखा के साथ समाप्त हुआ. यह रेखा नियंत्रण रेखा (एलओसी) बन गई जिसने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में ले लिया.
हालांकि, नियंत्रण रेखा सात दशकों से अधिक समय से स्थिर नहीं रही. 1950 और 1960 के दशक के दौरान चीन ने स्थिति का फायदा उठाया और अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया. लगातार सरकारों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और गिलगित-बल्टिस्तान पर भारत के दावे को दोहराते हुए यथास्थिति बनाए रखने की कोशिश की.1990 के दशक में, संसद ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लेने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए, एक प्रस्ताव भी पारित किया.
यह यथास्थिति नरेंद्र मोदी सरकार के तहत बदल गई
सत्ता में ढाई महीने, मोदी सरकार ने आधिकारिक वार्ता से पहले दिल्ली में अपने उच्चायुक्त के जरिये कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की और पाकिस्तान को चौंका दिया. पूर्व में जैसे प्रयास हुए, इसे मामले की गंभीरता के मद्देनजर मोदी सरकार का एक बड़ा फैसला माना गया. मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर भारत के आंतरिक मामलों में...
जम्मू और कश्मीर एकदम परफेक्ट है. राजनीति में, हालांकि, जम्मू और कश्मीर एक जटिल मुद्दा है. जम्मू और कश्मीर का मुद्दा या कश्मीर का मुद्दा, जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है, 1947 में भारत के विभाजन के ब्रिटिश डिजाइन का परिणाम है. यह विभाजन के दो महीने बाद कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण से जटिल हुआ, जिसके कारण जम्मू और कश्मीर (जिसमें केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख भी शामिल था) का भारत संघ के साथ विलय हो गया, और पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ. युद्ध दोनों सेनाओं को अलग करने वाली युद्धविराम रेखा के साथ समाप्त हुआ. यह रेखा नियंत्रण रेखा (एलओसी) बन गई जिसने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में ले लिया.
हालांकि, नियंत्रण रेखा सात दशकों से अधिक समय से स्थिर नहीं रही. 1950 और 1960 के दशक के दौरान चीन ने स्थिति का फायदा उठाया और अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया. लगातार सरकारों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और गिलगित-बल्टिस्तान पर भारत के दावे को दोहराते हुए यथास्थिति बनाए रखने की कोशिश की.1990 के दशक में, संसद ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लेने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए, एक प्रस्ताव भी पारित किया.
यह यथास्थिति नरेंद्र मोदी सरकार के तहत बदल गई
सत्ता में ढाई महीने, मोदी सरकार ने आधिकारिक वार्ता से पहले दिल्ली में अपने उच्चायुक्त के जरिये कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की और पाकिस्तान को चौंका दिया. पूर्व में जैसे प्रयास हुए, इसे मामले की गंभीरता के मद्देनजर मोदी सरकार का एक बड़ा फैसला माना गया. मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाया.
जम्मू-कश्मीर सरकार: 2015-2016
2014 में हुए चुनाव के नतीजे त्रिशंकु विधानसभा के रूप में आए.
वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरकार बनाने के लिए हाथ मिलाया.
मुफ्ती मुहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने. जनवरी 2016 में उनका निधन हो गया.
उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती अप्रैल 2016 में मुख्यमंत्री बनीं.
जुलाई 2016
सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का टॉप कमांडर बुरहान वानी मारा गया. कश्मीर घाटी में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिससे सुरक्षा बलों के साथ हिंसक झड़पें हुईं और कर्फ्यू लगा दिया गया. कई लोगों की मौत हो गई. 50 दिनों से अधिक समय के बाद कर्फ्यू हटा लिया गया था.
सितंबर 2016
यथास्थिति नीति प्रभावित करने में इस समय का भी अहम योगदान है.
उरी आर्मी बेस पर आतंकियों ने हमला किया, हमले में 18 जवानों की मौत हुई.
जवाब में भारत ने एलओसी के पार सर्जिकल स्ट्राइक की.
सरकार दंडात्मक कार्रवाई के साथ सार्वजनिक हुई - आधिकारिक रिकॉर्ड में ये पहली बार हुआ
महबूबा सरकार का पतन
जून 2018 में, भाजपा ने महबूबा मुफ्ती सरकार से गठबंधन समाप्त कर लिया.
महबूबा पर कश्मीर में उपद्रवियों के प्रति नरमी बरतने का आरोप लगाया गया.
महबूबा मुफ्ती ने बदले में, मोदी सरकार पर पिछली सरकारों द्वारा अपनाई गई यथास्थितिवादी 'समाधान नीति' के खिलाफ कश्मीर में 'पेशेवर नीति' अपनाने का आरोप लगाया.
अलगाववादियों पर शिकंजा- 2016-2019
मोदी सरकार ने कश्मीर में अलगाववादी नेताओं के प्रति नीति में सूक्ष्म परिवर्तन किया. भले ही कश्मीर के नेताओं ने खुले तौर पर भारत विरोधी विचारों का प्रचार किया लेकिन उन्हें सरकार से मिलने वाले लाभ और विशेषाधिकार प्राप्त थे. इस पर सवाल उठाया गया. 2019 तक, उनका सुरक्षा कवर और वित्तीय सहायता धीरे-धीरे वापस ले ली गई. आतंकी फंडिंग से उनके संबंधों की जांच शुरू हुई.
फरवरी 2019: पुलवामा हमला और बालाकोट हमला
14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले को निशाना बनाया गया था, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे. मोदी सरकार ने जवाब दिया - 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक की तरह - पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में एक आतंकी शिविर पर हवाई हमला किया गया.
अगस्त 2019: कश्मीर का फैसला
मोदी सरकार ने एक कार्यकारी निर्णय के माध्यम से धारा 370 को निष्क्रिय कर दिया. अनुच्छेद 370 का एक इतिहास था और जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया गया था. इस फैसले ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीन लिया.
मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक लेकर आई, जिसने लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया.
दोनों इकाइयों को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. यह पहला अवसर था जब भारत में एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया था.
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होनी थी.
विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी गई, जिसमें पीओके की 24 सीटें भी शामिल थीं.
पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती सहित अधिकांश मुख्यधारा के नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था. अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
डीडीसी चुनाव: 2020
सरकार ने जम्मू और कश्मीर के 20 जिलों में से प्रत्येक के लिए जिला विकास परिषद नामक एक नया निर्वाचित निकाय बनाया. जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा छीन लिए जाने के बाद यह पहला चुनाव था.
परिसीमन
2019 में विधानसभा सीटों में वृद्धि के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की आवश्यकता थी. यह विभिन्न निकायों के चुनाव के लिए मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों की क्षेत्रीय सीमाओं को पुनर्गठित करने की एक प्रक्रिया है.
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना देसाई के तहत एक परिसीमन आयोग की घोषणा 2020 की शुरुआत में की गई थी. प्रक्रिया चल रही है और आयोग को इस साल मार्च में एक साल का विस्तार दिया गया है.
अब क्या हो रहा है?
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र शासित प्रदेश में राजनीतिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए नई दिल्ली में जम्मू और कश्मीर के नेताओं की एक बैठक बुलाई.
ये ज्यादातर वो नेता हैं जिन्होंने पीपुल्स अलायंस फॉर गुप्कर डिक्लेरेशन (PAGD) का गठन किया, जो जम्मू और कश्मीर की अगस्त 2019 की स्थिति को बहाल करने का आह्वान करता है.
मोदी सरकार ने कहा है कि स्थिति अनुकूल होते ही उसका लक्ष्य जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराना है. कश्मीरी नेताओं के साथ पीएम मोदी की बातचीत एक टेकऑफ़ पॉइंट हो सकती है.
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