मिर्जा असदुल्ला बेग खान, जिन्हें लोग ग़ालिब के नाम से भी जानते हैं, वह अपनी मौत के 150 सालों बाद भी सबसे मशहूर उर्दू शायर हैं. उर्दू के शेर और शायरी में सबसे अधिक ग़ालिब का ही जिक्र होता है. बल्कि वो तो इतने अधिक मशहूर हैं कि लोग उनका नाम ऐसी भी उर्दू शेर और शायरी से जोड़ देते हैं, जो उन्होंने कभी लिखी ही नहीं. सुनने में भले ही ये बात अजीब लग रही हो, लेकिन ऐसा खूब होता है. यहां तक कि बुधवार को संसद में भी ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला. इस बार खुद पीएम मोदी भी ऐसा करने वालों की कतार में शामिल हो गए हैं.
संसद में पीएम मोदी ने कुछ उर्दू लाइनें बोलीं, जिन्हें उन्होंने ग़ालिब का लिखा हुआ बता दिया. बड़ी बात तो ये है कि 19वीं सदी के शायर ग़ालिब ने कभी ये शेर लिखा ही नहीं. गाहे-बगाहे ऐसे कई मौके होते हैं, जब इस तरह लोग ग़ालिब का रेफेरेंस देते हुए शेर और शायरी बोल तो देते हैं, लेकिन उन्हें भी नहीं पता होता कि वह किसने लिखी हैं. बस वह इस बार पीएम मोदी के साथ हुआ. उन्होंने भी वही गलती की है, जो उनके पहले भी बहुत से लोग कर चुके हैं.
क्या बोले पीएम मोदी?
पीएम मोदी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को जवाब दे रहे थे. उन्होंने कहा कि सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास में भरोसा करती है, लेकिन आजाद को यहां भी कुछ धुंधला नजर आ रहा है. जब तक राजनीतिक चश्मों से चीजें देखेंगे तो सब धुंधला ही दिखेगा. इसे उतारने की जरूरत है. और शायद ऐसे लोगों के लिए ही ग़ालिब साहब ने बड़ी अच्छी बात कही है और आजाद साहब को ऐसी चीजें जल्दी अच्छी लगती हैं. 'ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ़ करता...
मिर्जा असदुल्ला बेग खान, जिन्हें लोग ग़ालिब के नाम से भी जानते हैं, वह अपनी मौत के 150 सालों बाद भी सबसे मशहूर उर्दू शायर हैं. उर्दू के शेर और शायरी में सबसे अधिक ग़ालिब का ही जिक्र होता है. बल्कि वो तो इतने अधिक मशहूर हैं कि लोग उनका नाम ऐसी भी उर्दू शेर और शायरी से जोड़ देते हैं, जो उन्होंने कभी लिखी ही नहीं. सुनने में भले ही ये बात अजीब लग रही हो, लेकिन ऐसा खूब होता है. यहां तक कि बुधवार को संसद में भी ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला. इस बार खुद पीएम मोदी भी ऐसा करने वालों की कतार में शामिल हो गए हैं.
संसद में पीएम मोदी ने कुछ उर्दू लाइनें बोलीं, जिन्हें उन्होंने ग़ालिब का लिखा हुआ बता दिया. बड़ी बात तो ये है कि 19वीं सदी के शायर ग़ालिब ने कभी ये शेर लिखा ही नहीं. गाहे-बगाहे ऐसे कई मौके होते हैं, जब इस तरह लोग ग़ालिब का रेफेरेंस देते हुए शेर और शायरी बोल तो देते हैं, लेकिन उन्हें भी नहीं पता होता कि वह किसने लिखी हैं. बस वह इस बार पीएम मोदी के साथ हुआ. उन्होंने भी वही गलती की है, जो उनके पहले भी बहुत से लोग कर चुके हैं.
क्या बोले पीएम मोदी?
पीएम मोदी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को जवाब दे रहे थे. उन्होंने कहा कि सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास में भरोसा करती है, लेकिन आजाद को यहां भी कुछ धुंधला नजर आ रहा है. जब तक राजनीतिक चश्मों से चीजें देखेंगे तो सब धुंधला ही दिखेगा. इसे उतारने की जरूरत है. और शायद ऐसे लोगों के लिए ही ग़ालिब साहब ने बड़ी अच्छी बात कही है और आजाद साहब को ऐसी चीजें जल्दी अच्छी लगती हैं. 'ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ़ करता रहा.'
मोदी से पहले भी कुछ लोगों ने की है ये गलती
ऐसा नहीं है कि पीएम मोदी पहले शख्स हैं, जिन्होंने ग़ालिब के नाम को इस शेर के साथ जोड़ने की गलती की है, जो उन्होंने लिखा ही नहीं. मोदी से पहले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी यही शेर 2012 में विधानसभा में बजट पेश करते हुए बोला था. उन्होंने भी इसे ग़ालिब का शेर बताया था. उसी साल नवंबर में फिल्म निर्माता महेश भट्ट ने यही शेर ट्वीट किया था और उसे ग़ालिब का बता दिया था.
अक्सर ही कोई न कोई इन लाइनों को ग़ालिब का बता देता है, लेकिन हकीकत तो ये है कि ये लाइनें ग़ालिब की हैं ही नहीं. मिर्जा ग़ालिब के शेर और शायरी के संग्रह दीवाए-ए-ग़ालिब में ये शेर है ही नहीं. सोशल मीडिया से लेकर कई उर्दू कविताओं की वेबसाइट तक पर भी आपको इस बात को लेकर बहस छिड़ी हुई मिल जाएगी. सोशल मीडिया पर खूब शेयर होने वाले इस शेर के बारे में विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे किसने लिखा है, उसका पता नहीं. उनका कहना है कि ग़ालिब के शेर और शायरी का एक स्केल होता है, जो इस शेर में मौजूद नहीं है. खैर, ये भले ही साफ हो गया हो कि ये शेर ग़ालिब का नहीं है, लेकिन इस राज से अभी भी पर्दा नहीं उठा कि इसे किसने लिखा.
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