पीएम नरेंद्र मोदी बेहद कायर हैं, वे चौकीदार हैं फिर भी सुरक्षित नहीं, उनका 56 इंच का सीना काम नहीं आया, कांग्रेस के राहुल व प्रियंका गांधी तो अपने स्वजनों को खोने के बाद भी सुरक्षा घेरा तोड़कर लोगों से मिल लेते हैं, मोदी ने हिम्मत नहीं दिखायी, मोदी डर के निकल गये, एनएसजी कमांडोज के साथ भी नरेंद्र मोदी को डर लगा, पंजाब छोड़कर भाग गये मोदी... ये सारी बातें जो सोशल मीडिया पर कही जा रही हैं उसे एक मिनट के लिये किनारे कर दें और इस द्रवित कर देने वाले सच को समझें कि भारतवर्ष के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगी है. वह प्रधानमंत्री आपके विचारों से अलग विचार रखता है. कई बार ऐसे निर्णय लेता है जो जनहित में नहीं होते, यात्राओं पर करोड़ों बहाता है, प्रचारक ज़्यादा प्रधानमंत्री कम है. इन सभी बातों से सहमत हुआ भी जाए तो भी यह देश की सुरक्षा व कानून व्यवस्था पर उतना ही बड़ा प्रश्न चिह्न रहेगा. वह प्रधानमंत्री कोई भी हो सकता था, आपकी पसंद का भी नापसंद का भी. इस पद की एक गरिमा है, नियम हैं, व्यवस्थाएं हैं.
इस देश ने सुरक्षा व्यवस्था के कारण दो प्रधानमंत्री खोये हैं. इंदिरा गांधी सरीखी आयरन लेडी भी इसका शिकार हुईं, राजीव गांधी जैसे मिलनसार नेता भी. ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री वापस ही नहीं लौटे, उज़्बेकिस्तान में ही मृत्यु को प्राप्त हुए. उनकी मृत्यु के ठीक-ठीक कारण पर आज भी संदेह बना हुआ है. स्वजनों ने नहीं माना कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.
सुरक्षा में सेंध के ऐसे द्रवित करने वाले परिणाम देखकर भी हम आज के कृत्य को इसलिए चुटकुले का पात्र कैसे बना सकते हैं कि ऐसा मोदी के साथ हुआ. जब तक वे पदासीन हैं, देश के प्रधानमंत्री...
पीएम नरेंद्र मोदी बेहद कायर हैं, वे चौकीदार हैं फिर भी सुरक्षित नहीं, उनका 56 इंच का सीना काम नहीं आया, कांग्रेस के राहुल व प्रियंका गांधी तो अपने स्वजनों को खोने के बाद भी सुरक्षा घेरा तोड़कर लोगों से मिल लेते हैं, मोदी ने हिम्मत नहीं दिखायी, मोदी डर के निकल गये, एनएसजी कमांडोज के साथ भी नरेंद्र मोदी को डर लगा, पंजाब छोड़कर भाग गये मोदी... ये सारी बातें जो सोशल मीडिया पर कही जा रही हैं उसे एक मिनट के लिये किनारे कर दें और इस द्रवित कर देने वाले सच को समझें कि भारतवर्ष के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगी है. वह प्रधानमंत्री आपके विचारों से अलग विचार रखता है. कई बार ऐसे निर्णय लेता है जो जनहित में नहीं होते, यात्राओं पर करोड़ों बहाता है, प्रचारक ज़्यादा प्रधानमंत्री कम है. इन सभी बातों से सहमत हुआ भी जाए तो भी यह देश की सुरक्षा व कानून व्यवस्था पर उतना ही बड़ा प्रश्न चिह्न रहेगा. वह प्रधानमंत्री कोई भी हो सकता था, आपकी पसंद का भी नापसंद का भी. इस पद की एक गरिमा है, नियम हैं, व्यवस्थाएं हैं.
इस देश ने सुरक्षा व्यवस्था के कारण दो प्रधानमंत्री खोये हैं. इंदिरा गांधी सरीखी आयरन लेडी भी इसका शिकार हुईं, राजीव गांधी जैसे मिलनसार नेता भी. ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री वापस ही नहीं लौटे, उज़्बेकिस्तान में ही मृत्यु को प्राप्त हुए. उनकी मृत्यु के ठीक-ठीक कारण पर आज भी संदेह बना हुआ है. स्वजनों ने नहीं माना कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.
सुरक्षा में सेंध के ऐसे द्रवित करने वाले परिणाम देखकर भी हम आज के कृत्य को इसलिए चुटकुले का पात्र कैसे बना सकते हैं कि ऐसा मोदी के साथ हुआ. जब तक वे पदासीन हैं, देश के प्रधानमंत्री हैं और तमाम प्रोटोकॉल्स उनकी रुटीन का हिस्सा हैं. पंजाब सरकार उन प्रोटोकॉल्स को भलिभांति समझती है.
प्रधानमंत्री के विज़िट से पहले ही एसपीजी व राज्य के पास उनका पूरा रुटीन होता है, उनकी दर्जनों ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, ग्रीन सिग्नल मिलने पर ही कार्यक्रम पूरा होता है. पंजाब के चीफ़ सेक्रेटरी व डीजीपी ने एसपीजी को सूचना दी कि पीएम का रूट सुरक्षित है फिर ठीक 10 मिनट पहले ही उनके रूट पर प्रदर्शनकारी कैसे आ गये? और अवरोध उत्पन्न करने के लिये यदि वे आ भी गये तो पीएम को फ़्लाईओवर से पहले क्यों नहीं रोका गया?
क्या यह पंजाब सरकार की सुरक्षा व्यवस्था की नाकामी नहीं है? प्रोटोकॉल की अनदेखी नहीं है? एसपीजी को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? मोदी ने भटिंडा एयरपोर्ट पर पहुँचकर अधिकारियों से कहा कि अपने सीएम को धन्यवाद कहना, मैं भटिंडा हवाई अड्डे तक ज़िंदा लौट पाया.
मोदी के इस कथन में कितना भय था और कितना तंज ये वही जानें लेकिन फ़र्ज़ करें आज आप जिस बात पर हंस रहे हैं वैसा कोई हादसा हो जाता तो? यह कितनी बड़ी चूक है और प्रोटोकॉल तोड़ना कितना ग़लत है इसे नज़रंदाज़ कर हम हल्के में सिर्फ़ इसलिए ले लें क्योंकि वह प्रधानमंत्री कोई और नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी के कथन कि मतभेद ठीक है, मनभेद नहीं होना चाहिए सुनकर वाह-वाह करते हैं. लोकतंत्र और खुले विचारों की दुहाई देते हैं, विमर्श का कोना बचा रहे इसकी कवायद करते हैं और यह मामूली बात नहीं घोंट पा रहे कि आपसे अलग विचारों का व्यक्ति अगर प्रधानमंत्री है तो उसकी सुरक्षा भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि बाकी सभी प्रधानमंत्रियों की थी और रहेगी.
प्रोटोकॉल का पालन हर हाल में किया जाना चाहिए, इसका उल्लंघन कानूनन अपराध है, नैतिकता के पैमाने पर भी ग़लत है. राजनीतिक लाभ के लिये अथवा किसी भी कारणवश किया गया हो, यह लापरवाही पंजाब सरकार को कटघरे में खड़ा करती है. प्रधानमंत्री कोई भी होता, राज्य कोई भी होता, सरकार किसी की भी होती... ये बातें हर स्थिति में वैसी ही रहती हैं, चुनाव चिह्न देखकर कानून के नियम नहीं बदलते.
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