लोक सभा चुनाव के नतीजे भी विधानसभा जैसे ही हों, जरूरी नहीं होता. महाराष्ट्र को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व के मन में कहीं न कहीं ये सवाल जरूर होगा - और यही वजह है कि बीजेपी छोटी से छोटी चूक की भी गुंजाइश नहीं छोड़ रही है.
2018 के मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव और उसके छह महीने के भीतर ही 2019 के लोक सभा चुनाव के नतीजों को देखें तो ये फर्क आसानी से समझ में आ जाता है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी जहां तीनों ही राज्यों में सत्ता गंवा चुकी थी, लोक सभा की ज्यादातर सीटें बड़े आराम से हासिल कर ली थी.
महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना को अपनी तरफ से तहस नहस करने में कोई कमी नहीं की है, लेकिन जड़ों तक असर हुआ है या नहीं ये तो आम चुनाव के नतीजों से ही मालूम हो सकता है. आम चुनावों में जनता का क्या मूड होगा ये बीएमसी चुनावों के जरिये आसानी से समझा जा सकता है.
बीजेपी नेतृत्व का पूरा जोर अभी बीएमसी चुनाव पर ही है. जब तक बीएमसी से उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना का दबदबा खत्म नहीं हो जाता, बीजेपी का दिल तेजी से धड़कता रहेगा. अभी ये तो नहीं मालूम कि बीएमसी के चुनाव कब होंगे, लेकिन ये जरूर पक्का है कि 2024 के आम चुनाव से पहले तो हो ही जाएंगे. खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मुंबई दौरे और वहां उनकी बातें सुनने के बात तो ये बात पूरी तरह कंफर्म हो गयी है.
प्रधानमंत्री मोदी के महाराष्ट्र दौरे से जो बातें समझ में आ रही हैं, ऐसा लगता है मिशन 2024 को कामयाब बनाने के लिए बीजेपी छोटे से छोटा चुनाव भी जीतने की कोशिश करना चाहती है. अव्वल तो तैयारियों का सही अंदाजा लगेगा ही, बड़ा फायदा ये होगा कि हर इलाके से सही फीडबैक भी वक्त रहते मिल जाएगा. और जहां कहीं भी कमजोरियों का पता चला, मजबूत...
लोक सभा चुनाव के नतीजे भी विधानसभा जैसे ही हों, जरूरी नहीं होता. महाराष्ट्र को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व के मन में कहीं न कहीं ये सवाल जरूर होगा - और यही वजह है कि बीजेपी छोटी से छोटी चूक की भी गुंजाइश नहीं छोड़ रही है.
2018 के मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव और उसके छह महीने के भीतर ही 2019 के लोक सभा चुनाव के नतीजों को देखें तो ये फर्क आसानी से समझ में आ जाता है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी जहां तीनों ही राज्यों में सत्ता गंवा चुकी थी, लोक सभा की ज्यादातर सीटें बड़े आराम से हासिल कर ली थी.
महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना को अपनी तरफ से तहस नहस करने में कोई कमी नहीं की है, लेकिन जड़ों तक असर हुआ है या नहीं ये तो आम चुनाव के नतीजों से ही मालूम हो सकता है. आम चुनावों में जनता का क्या मूड होगा ये बीएमसी चुनावों के जरिये आसानी से समझा जा सकता है.
बीजेपी नेतृत्व का पूरा जोर अभी बीएमसी चुनाव पर ही है. जब तक बीएमसी से उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना का दबदबा खत्म नहीं हो जाता, बीजेपी का दिल तेजी से धड़कता रहेगा. अभी ये तो नहीं मालूम कि बीएमसी के चुनाव कब होंगे, लेकिन ये जरूर पक्का है कि 2024 के आम चुनाव से पहले तो हो ही जाएंगे. खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मुंबई दौरे और वहां उनकी बातें सुनने के बात तो ये बात पूरी तरह कंफर्म हो गयी है.
प्रधानमंत्री मोदी के महाराष्ट्र दौरे से जो बातें समझ में आ रही हैं, ऐसा लगता है मिशन 2024 को कामयाब बनाने के लिए बीजेपी छोटे से छोटा चुनाव भी जीतने की कोशिश करना चाहती है. अव्वल तो तैयारियों का सही अंदाजा लगेगा ही, बड़ा फायदा ये होगा कि हर इलाके से सही फीडबैक भी वक्त रहते मिल जाएगा. और जहां कहीं भी कमजोरियों का पता चला, मजबूत करने की कोशिश हो सकती है. ऐसा करने के लिए पास में ठीक ठाक वक्त भी होगा.
अब तक तो यही मालूम पड़ा था कि प्रधानमंत्री मोदी 2024 से पहले होने वाले सभी विधानसभा चुनावों में बीजेपी का चेहरा होंगे, बीएमसी को लेकर मोदी की हालिया तत्परता से तो ऐसा लगने लगा है कि वहां भी मोदी ही मोदी करने की तैयारी हो चुकी है. कम से कम बीजेपी की तैयारी तो ऐसी ही है. बाकी विपक्ष कितना काउंटर कर पाता है, ये वो ही जाने.
ट्रिपल इंजन विकास (Triple Engine Sarkar) की बात भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंबई से ही आगे बढ़ा रहे हैं. इससे पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी पंचायत चुनावों को लेकर ट्रिपल इंजन सरकार की बातें करते सुना जा चुका है.
हाल के कम से कम दो चुनाव बीजेपी के लिए तकलीफ भरे जरूर रहे हैं - दिल्ली नगर निगम चुनाव और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव. बीजेपी कार्यकारिणी के दौरान हिमाचल प्रदेश का जिक्र करते हुए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आने वाला हर चुनाव जीतने का संकल्प दोहराया था - और बीएमसी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का अभी से एक्शन मोड में आ जाना भी वही चीज समझा रहा है.
ये भी देखने को मिला है कि मोदी के मुंह से हिमाचल प्रदेश और एमसीडी चुनावों का ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिला है. बस नतीजे वाले दिन ही मोदी ने हिमाचल प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में 0.9 फीसदी फर्क वाली बात की थी - उसके बाद से प्रधानमंत्री मोदी फिर से गुजरात मॉडल की दुहाई देने लगे हैं. अमित शाह के त्रिपुरा में अयोध्या में मंदिर निर्माण की तारीख बताने से पहले पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को गुजरात मॉडल से सबक लेने की ही सलाह दी थी.
बीजेपी के नये गुजरात मॉडल से मतलब बड़ा लक्ष्य तय करके उसे अंजाम तक पहुंचाने का तरीका है. बीजेपी कार्यकर्ताओं को यही समझाया जा रहा है कि कैसे अमित शाह ने गुजरात में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था और बीजेपी ने आगे बढ़ कर 156 सीटें जीत ली.
मोदी भले ही हिमाचल प्रदेश और एमसीडी चुनावों का जिक्र न करें लेकिन बीएमसी के नतीजे किसी भी सूरत में वैसे नहीं होने देना चाहते हैं. हाल की बीजेपी कार्यकारिणी में मोदी ने जो बातें कही थी, अब हर जगह घुमा फिरा कर समझाने लगे हैं. कर्नाटक दौरे में भी और मुंबई दौरे में भी ये देखने को मिला है. बीजेपी कार्यकारिणी से आयी खबरों से मालूम हुआ, मोदी ने कहा था - देश का सबसे अच्छा दौर आने वाला है और उसे कोई भी रोक नहीं सकता. ये भी वैसे ही समझाने की कोशिश हो रही है, जैसे बीजेपी की तरफ से ये समझाने का प्रयास होता है कि कांग्रेस के अड़ंगे डालने के बावजूद अयोध्या में मंदिर बन कर तैयार हो रहा है.
चुनावी साल (Elections 2023) में जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब अमृत काल की बात करने लगे हैं, वो मौजूदा अमृत महोत्वस से बिलकुल अलग है. वो आगे के 25 साल की तैयारी है. 2047 में बीजेपी की सरकार में ही आजादी का शताब्दी महोत्सव मनाने की तैयारी है. ये बात भी प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकारिणी में ही बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को समझा दी थी, अमृत काल को 'कर्तव्य काल' में बदलने की जरूरत है.
डबल से अब ट्रिपल इंजन की ओर
2014 में बीजेपी का स्लोगन था, 'अबकी बार मोदी सरकार.' बाद में ये 'डबल इंजन सरकार' पर फोकस हो गया, लेकिन अब चुनावी साल 2023 में ये 'ट्रिपल इंजन सरकार' पर शिफ्ट हो चुका है. - मुंबई दौरे में मोदी ने यही स्थापित करने की कोशिश की है.
ऐसा तो नहीं कि ये स्लोगन बीजेपी खेमे में पहली बार सुना गया है, लेकिन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के डबल इंजन सरकार कैंपेन के बाद बीजेपी में भी इसे महत्व दिया जाने लगा है - राष्ट्रीय स्तर पर मोदी ने इसे मुंबई से लांच किया है. जाहिर है महाराष्ट्र में बीजेपी की गठबंधन सरकार बन जाने के बाद नजर बीएमसी के चुनावों पर आ टिकी है. और ये भी मान कर चलना चाहिये कि उद्धव ठाकरे वाली बची खुची शिवसेना को पैकअप के लिए मजबूर करने वाला है.
महाराष्ट्र से पहले कर्नाटक पहुंचे मोदी लोगों को डबल इंजन का फायदा समझा रहे थे, और मुंबई पहुंचते ही ट्रिपल इंजन पर आ गये. कर्नाटक में मोदी ने बताया, 'हर घर जल' अभियान डबल इंजन सरकार के डबल बेनिफिट का उदाहरण है - और मोदी की इसी बात को बीजेपी की तरफ से ट्विटर पर भी शेयर किया गया है, 'डबल इंजन यानि डबल वेलफेयर, डबल तेज़ी से विकास.'
बीएमसी चुनावों को देखते हुए मुंबई में स्थानीय प्रशासन की अहमियत समझाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने चौतरफा विकास का फॉर्मूला भी समझाया. मोदी ने कहा, समग्र विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ साथ स्थानीय प्रशासन की भूमिका बढ़ जाती है, और तभी बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तरफ से अपनी स्टाइल में भरोसा भी दिलाने की कोशिश करते हैं, 'आप 10 कदम मेरे साथ चलेंगे, तो मैं 11 कदम चलूंगा.'
बोले, 'मैं अपने रेहड़ी, ठेले, पटरी वालों से कहना चाहता हूं कि आप मेरे साथ चलिए... सबके प्रयास की भावना से हम मिल कर मुंबई को विकास की नई ऊंचाई पर ले जाएंगे.'
मोदी ने मायानगरी के लिए बीएमसी के रोल का भी खासतौर पर जिक्र किया, 'मुंबई के विकास में स्थानीय निकाय की भूमिका बहुत बड़ी है... बजट की कोई कमी नहीं है बस मुंबई के विकास का पैसा सही जगह पर लगना चाहिये... अगर वो पैसा भ्रष्टाचार में लगेगा, तो मुंबई का भविष्य कैसे उज्जवल होगा? ये शहर विकास के लिए तरसता रहे, 21वीं सदी में ये स्थिति स्वीकार्य नहीं है.'
और फिर, वो पहले की सरकारों पर तोहमत मढ़ डालने का रस्म भी निभा लेते हैं, 'महाराष्ट्र में भी पांच लाख साथियों के ऋण स्वीकृत हो चुके हैं... ये काम बहुत पहले होना चाहिये था लेकिन बीच के कुछ समय में डबल इंजन की सरकार ना होने के कारण हर काम में अड़ंगे डाले गये - और लाभार्थियों को नुकसान उठाना पड़ा.'
मुंबई मेट्रो से बंगाल के मैदान तक
साल भर का एकस्टेंशन मिलने के बाद जेपी नड्डा 2024 के मिशन पर निकल चुके हैं - और वाराणसी में दर्शन पूजन और अड़ी पर चाय की चुस्की के बाद गाजीपुर से अपनी मुहिम की शुरुआत की है. गाजीपुर भी 160 लोक सभा सीटों की उसी सूची में शामिल है जो फिलहाल बीजेपी के पास नहीं है. 2019 में गाजीपुर सीट पर बीजेपी के मनोज सिन्हा को हरा कर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई आफताब अंसारी ने सीट मायावती को तोहफे में दे दी थी. बाद में मोदी सरकार ने मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल बना दिया.
वैसे लोक सभा चुनाव में बीएसपी के लिए 10 सीटें जीतने वाली मायावती को बीजेपी ने 2022 आते आते विधानसभा की एक सीट पर पहुंचा दिया है - आगे की राह तो और भी अंधेरे से ढकी हुई लगती है.
गाजीपुर पहुंच कर जेपी नड्डा ये मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसी सीटें बीजेपी के लिए क्या मायने रखती हैं. पहले ऐसी 144 सीटों की लिस्ट बनायी गयी थी, लेकिन बाद में सुधार ये संख्या 160 कर दी गयी है.
ये जानना भी महत्वपूर्ण है कि गाजीपुर से ठीक पहले पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे. पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव की तैयारियां जोरों पर है. तृणमूल कांग्रेस अपने किले की दीवारें मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जबकि बीजेपी 2021 से आगे बढ़ने की तैयारी कर रही है.
पश्चिम बंगाल पहुंच कर जेपी नड्डा ने तरह तरह से ममता बनर्जी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. जेपी नड्डा ने कहा कि बंगाल में हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है. ममता बनर्जी को संबोधित करते हुए कहते हैं, 'अगर आपके भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होती है, तो आप मोदी की आलोचना शुरू कर देती हैं.'
बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने कहा कि मोदी सरकार सूबे के लोगों के लिए पैसे भेजती है, और 'दीदी आपके नेता उससे पाकेट भरने लगते हैं.' और फिर पूछते हैं, दीदी आपने पश्चिम बंगाल के लिए किया ही क्या है?
और फिर एक टेक में ही नड्डा, मोदी के मन की बात बंगाल के लोगों के बहाने सबको समझाने लगे, बंगाल के लोगों के पास अब एक ही रास्ता बचा है कि वे बीजेपी को सत्ता में लायें - भले ही वो लोक सभा चुनाव हो या फिर पंचायत चुनाव ही क्यों न हो.
पंचायत चुनाव को लेकर बीजेपी की यही तत्परता उसके मिशन 2024 को लेकर बेचैनी भी दिखाती है, और गंभीरता की तरफ भी इशारा करती है. असल में तो ये देश के उन सभी राज्यों में पैर जमाने का बीजेपी का तरीका है - और ट्रिपल इंजन विकास की बात भी तो इसीलिए समझायी जा रही है.
पहला इंजन तो दिल्ली में फिट हो ही चुका है, दूसरा इंजन राज्य में न भी लग सके तो छोटे छोटे शहरों में पंचायत और निकाय चुनावों के जरिये तो इंतजाम हो. चाहे जैसे भी संभव हो सके, मतलब तो भगवा फहराने से ही है.
ये भी अमित शाह के उसी मिशन का हिस्सा है जिसे वो बीजेपी के लिए गोल्डन पीरियड बताते हैं - पंचायत से पार्लियामेंट तक. सीधे न सही, उलटा ही सही. पार्लियामेंट से पंचायत तक भी तो हो सकता है.
अगर तमाम कोशिशों के बावजूद बंगाल और केरल जैसे राज्यों में बीजेपी सत्ता पर काबिज न हो सकी, तो कोई बात नहीं निकाय और पंचायतों के जरिये जमीनी स्तर पर पैठ तो बनायी ही जा सकती है - और एक बार ऐसा हो गया फिर तो आगे की जंग वैसे भी आसान हो जाएगी.
बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग में प्रधानमंत्री ने ये भी तो कहा था, मोदी आएंगे और चुनाव जितवा देंगे, ऐसी सोच रखना घातक है... और प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं को जमकर पसीना बहाने की सलाह दे डाली थी - लेकिन ट्रिपल इंजन सरकार मुहिम की अग्नि परीक्षा भी चुनावी साल में ही हो जानी है.
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