11 और 12 अक्टूबर को पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच दूसरी अनौपचारिक मुलाकात महाबलीपुरम में होगी. इसके पहले दोनों नेताओं के बीच, पिछले साल चीन के शहर वुहान में, अनौपचारिक शिखर वार्ता हुई थी. दोनों नेताओं के बीच दो साल में दूसरी बार अनौपचारिक मुलाकात को लेकर उत्सुकता का माहौल है. लोग जानना चाह रहे हैं कि ये कैसी मुलाकात है, जिसका कोई फिक्स एजेंडा नहीं है. माना यही जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद शायद ही कोई बात निकल कर बाहर आए. लोग ये भी जानना चाह रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच हो रही इस मुलाकात का परिणाम क्या होगा? क्या दोनों देशों के बीच तमाम मुद्दों को लेकर जो विवाद चल रहे हैं उनका कोई हल निकलेगा? क्या पीएम मोदी, भारत को लेकर चीन के रवैये के खिलाफ अपनी बात को मजबूती से रख पाएंगे? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि शी जिनपिंग सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए भारत आ रहे हैं. सवाल ये भी है कि क्या जिनपिंग महाबलीपुरम में मोदी को झांसा देकर या अपनी मतलब की बातें करके चले जाएंगे? आइये इन सारे जटिल सवालों को समझने की एक आसान कोशिश करते हैं.
क्या है अनौपचारिक मुलाकात?
अनौपचारिक मुलाकात का मतलब है कि दोनों देशों के नेता किसी भी मुद्दे पर बात कर सकते हैं. इस दौरान किसी भी तरह की बंदिशें नहीं होंगी. यानी दोनों नेताओं की बातचीत का न तो कोई लिखित ब्यौरा तैयार किया जाएगा, न ही कोई संयुक्त संवाददाता सम्मेलन या घोषणापत्र सामने आएगा. यहां तक कि बातचीत का कोई स्पष्ट एजेंडा भी पहले से तय नहीं है. आमतौर पर यही देखा गया है कि दो नेताओं के बीच अनौपचारिक मुलाकात किसी वैश्विक मंच पर होती है, जहां कई देशों के प्रतिनिधि पहुंचते हैं और एक...
11 और 12 अक्टूबर को पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच दूसरी अनौपचारिक मुलाकात महाबलीपुरम में होगी. इसके पहले दोनों नेताओं के बीच, पिछले साल चीन के शहर वुहान में, अनौपचारिक शिखर वार्ता हुई थी. दोनों नेताओं के बीच दो साल में दूसरी बार अनौपचारिक मुलाकात को लेकर उत्सुकता का माहौल है. लोग जानना चाह रहे हैं कि ये कैसी मुलाकात है, जिसका कोई फिक्स एजेंडा नहीं है. माना यही जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद शायद ही कोई बात निकल कर बाहर आए. लोग ये भी जानना चाह रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच हो रही इस मुलाकात का परिणाम क्या होगा? क्या दोनों देशों के बीच तमाम मुद्दों को लेकर जो विवाद चल रहे हैं उनका कोई हल निकलेगा? क्या पीएम मोदी, भारत को लेकर चीन के रवैये के खिलाफ अपनी बात को मजबूती से रख पाएंगे? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि शी जिनपिंग सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए भारत आ रहे हैं. सवाल ये भी है कि क्या जिनपिंग महाबलीपुरम में मोदी को झांसा देकर या अपनी मतलब की बातें करके चले जाएंगे? आइये इन सारे जटिल सवालों को समझने की एक आसान कोशिश करते हैं.
क्या है अनौपचारिक मुलाकात?
अनौपचारिक मुलाकात का मतलब है कि दोनों देशों के नेता किसी भी मुद्दे पर बात कर सकते हैं. इस दौरान किसी भी तरह की बंदिशें नहीं होंगी. यानी दोनों नेताओं की बातचीत का न तो कोई लिखित ब्यौरा तैयार किया जाएगा, न ही कोई संयुक्त संवाददाता सम्मेलन या घोषणापत्र सामने आएगा. यहां तक कि बातचीत का कोई स्पष्ट एजेंडा भी पहले से तय नहीं है. आमतौर पर यही देखा गया है कि दो नेताओं के बीच अनौपचारिक मुलाकात किसी वैश्विक मंच पर होती है, जहां कई देशों के प्रतिनिधि पहुंचते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं, पर किसी देश के प्रमुख, औपचारिक दौरा कर अनौपचारिक वार्ता करें ऐसा शायद ही कभी देखने को मिला है.
अनौपचारिक वार्ता की शुरुआत पीएम मोदी ने ही की थी, जब वो अप्रैल 2018 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के लिए चीन के दौरे पर गए थे. दोनों देशों के प्रमुखों की ये मुलाकात चीन के वुहान शहर में हुई थी. ये पहला मौका था जब चीन के राष्ट्रपति किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से देश की राजधानी के बाहर किसी शहर में प्रोटोकॉल तोड़कर मिले. आमतौर पर किसी देश का प्रधानमंत्री जब चीन के दौरे पर जाता है, तो पहले वहां के प्रधानमंत्री से मिलता है. फिर राष्ट्रपति से, लेकिन पीएम मोदी सीधे राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले, वो भी राजधानी बीजिंग के बजाय दूसरे शहर में.
उस दौरे के दौरान दो दिन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच 6 मुलाकातें हुई थीं. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच क्या-क्या बात हुई इसे सार्वजनिक नहीं किया गया. माना गया कि 2017 में जब डोकलाम में दोनों देशों की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने थी, दोनों देशों के बीच युद्ध के बादल मंडराने लगे थे, इससे जो गतिरोध उत्पन्न हुआ उसे खत्म करने के लिए ये मुलाकात हुई थी.
क्या होता है अनौपचारिक मुलाकात में?
इस तरह की बैठकें दोनों देशों के संबंधों को नई उर्जा देने के लिए की जाती हैं. खासकर दोनों देशों के बीच कोई गहरा विवाद हो, दोनों देशों के बीच अविश्वास की गहरी खाई हो, तब इसे पाटने के लिए दोनों देशों के प्रमुख हल्के-फुल्के मिजाज में बात करते हैं ताकि दोनों के बीच एक दोस्ताना माहौल में गंभीर मुद्दों पर बात हो सके. इसके लिए मुलाकात की जगह भी काफी मायने रखती है. जैसे वुहान दौरे के दौरान दोनों नेताओं की बातचीत कभी म्यूजियम में, कभी पार्क में चाय पीते हुए तो कभी झील में नाव पर सवारी करते हुए हुई थी. इसी तरह भारत में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाकात के लिए एक ऐसे शहर को चुना गया है जिससे कई ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. महाबलीपुरम शहर के साथ भारत और चीन के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, जो दोनों देशों के करीब होने का एहसास कराएगा.
औपचारिक मुलाकात और अनौपचारिक मुलाकात में अंतर
आमतौर पर औपचारिक मुलाकातें किसी देश की राजधानी में होती है, जहां दोनों देशों के डेलिगेशन के बीच भी कई दौर की वार्ताएं होती है. इन वार्ताओं के एजेंडे पहले से तय होते हैं. दोनों देशों के बीच क्या समझौते होंगे इसके समीकरण सेट किए जाते हैं. दोनों देशों के प्रमुख अपने-अपने डेलिगेशन के साथ शिखर वार्ता करते हैं. शिखर वार्ता में जो बातचीत होती है या समझौते होते हैं उससे मीडिया के जरिए दुनिया को रूबरू कराया जाता है. वहीं अनौपचारिक वार्ता में ये सब नहीं होता है, बल्कि अनौपचारिक वार्ताएं, औपचारिक मुलाकातों और संधियों की तैयारियों के लिए की जाती हैं.
दोनों नेताओं की मुलाकात पर दुनिया की नजर
पीएम मोदी और शी जिनपिंग के इस मुलाकात पर भारत, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका समेत पूरी दुनिया की नजर है. एक तरफ भारत में इस बात को लेकर चर्चाएं हो रही है कि कश्मीर को लेकर चीन के स्टैंड में कोई बदलाव आएगा या नहीं. क्या NSG में चीन भारत के राह में रोड़े अटकाना बंद करेगा? क्या पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादियों के प्रति उसके रवैये में कोई बदलाव आएगा? क्या अरुणाचल, लद्दाख समेत सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कुछ पहल हो पाएगी?
वहीं चीन ने भी भारत से कई इच्छाएं पाल रखी हैं. खासकर अमेरिका द्वारा व्यापार युद्ध के बाद चीन भारत के साथ अपने व्यापार को तेजी से बढ़ाना चाह रहा है. अभी दोनों देशों के बीच 95 अरब डॉलर का व्यापार होता है जिसे वो अगले कुछ सालों में बढ़ाकर 200 अरब डॉलर करना चाहता है, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार में भारी असंतुलन है. भारत इस असंतुलन को कम करना चाहता है. चीन का भारत में निवेश भी बहुत कम है जिसे भारत बढ़ाने के लिए कह रहा है. संभव है कि दोनों देशों के नेताओं के बीच बातचीत में ये सबसे अहम मुद्दा रहे.
इधर पाकिस्तान भी शी जिनपिंग के इस दौरे पर टकटकी लगाए हुए हैं. पाकिस्तान को उम्मीद है कि चीनी राष्ट्रपति, मोदी के सामने कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे और पाकिस्तान से बातचीत के लिए दबाव डालेंगे. यही वजह है कि शी जिनपिंग के इस दौरे से ठीक पहले पाक पीएम इमरान के चीन के दौरे पर गए और उन्होंने जिनपिंग से कश्मीर को लेकर भारत पर दबाव बनाने का अनुरोध किया. हालांकि भारत ने पहले ही साफ कर रखा है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे देश का दखल स्वीकार नहीं है.
इधर चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर अमेरिका ने चीन के कई अधिकारियों पर बैन लगा दिया है, इसके बाद ये मामला अब इंटरनेशनलाइज हो गया है. वहीं हांगकांग में भी चीन के खिलाफ प्रदर्शन जारी है, ऐसे में चीन अगर कश्मीर में धारा-370 हटाने का मुद्दा उठाता है या कश्मीर में मानवाधिकार की बात करता है तो उसे पता है कि पीएम मोदी उइगर मुसलमानों और हांगकांग का आइना दिखा देंगे. इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि वो कश्मीर मसले को उठाएगा.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस दौरे पर अमेरिका की भी पैनी निगाह है. अमेरिका इस बात को समझता है कि अगर भारत और चीन एक प्लेटफॉर्म पर आ गए तो फिर तो दुनिया में उसकी दादागिरी खतरे में पड़ सकती है. वो भारत और चीन को व्यापारिक ब्लैकमेल करने की स्थिति में नहीं रह जाएगा. उसने चीन के खिलाफ जो व्यापार युद्ध छेड़ रखा है और भारत पर भी व्यापारिक सख्ती बरत रहा है वो बेअसर हो जाएगी. उल्टा इसका बुरा असर अमेरिका पर ही हो सकता है. इसलिए वो नहीं चाहेगा कि शी जिनपिंग का ये दौरा किसी भी रूप में सफल हो.
शी जिनपिंग के इस दौरे पर पाकिस्तान, अमेरिका के अलावे कई देशों की नजर होगी. खासकर मिडिल ईस्ट में ईरान और सऊदी अरब के बीच बढ़ते टेंशन, यमन वॉर, सीरिया से अमेरिका की वापसी के बाद उत्पन्न हालात और अफगानिस्तान मसले पर दोनों देशों का क्या रुख रहेगा इसपर तमाम देशों की नजर रहेगी.
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