2016 से भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ हाल के दिनों में पिघलती नजर आ रही है. हाल के दिनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा (Qamar Javed Bajwa) सार्वजनिक तौर पर भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की वकालत करते नजर आए हैं. वहीं, बीते महीने ही दोनों देशों की सेनाओं ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए संघर्ष विराम की संयुक्त घोषणा की थी. इन तमाम खबरों के बीच पाकिस्तान के सकारात्मक रुख को देखते हुए भारत ने भी अपनी ओर से पहल कर दी है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को पत्र लिख कर बधाई दी. साथ ही नसीहत देते हुए लिखा कि भारत पाकिस्तान के साथ सद्भावपूर्ण संबंध की इच्छा रखता है, इसके लिए परस्पर विश्वास और आतंक मुक्त माहौल का होना जरूरी है. दोनों देशों की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है, तो जाहिर है कि अच्छी ही बात है. हालांकि इतिहास पर नजर डालेंगे, तो ऐसी संभावना कम ही नजर नहीं आती है कि पीएम मोदी की कोई नसीहत पाकिस्तान को सुधार सके. आइए जानते हैं कि वो कौन से मुद्दे है, जिनकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता संभव नहीं हो पाती है.
1. कश्मीर मामला
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय से चला आ रहा यह विवाद आज भी कायम है. कश्मीर मसले को लेकर पड़ोसी राज्य पाकिस्तान के साथ बातचीत का दौर कई दशकों से चल रहा है. संयुक्त राष्ट्र परिषद से द्विपक्षीय मुद्दे के स्तर पर आने के बाद अब तक सात दशक का लंबा समय बीत जाने के बावजूद कश्मीर मुद्दा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच...
2016 से भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ हाल के दिनों में पिघलती नजर आ रही है. हाल के दिनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा (Qamar Javed Bajwa) सार्वजनिक तौर पर भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की वकालत करते नजर आए हैं. वहीं, बीते महीने ही दोनों देशों की सेनाओं ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए संघर्ष विराम की संयुक्त घोषणा की थी. इन तमाम खबरों के बीच पाकिस्तान के सकारात्मक रुख को देखते हुए भारत ने भी अपनी ओर से पहल कर दी है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को पत्र लिख कर बधाई दी. साथ ही नसीहत देते हुए लिखा कि भारत पाकिस्तान के साथ सद्भावपूर्ण संबंध की इच्छा रखता है, इसके लिए परस्पर विश्वास और आतंक मुक्त माहौल का होना जरूरी है. दोनों देशों की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है, तो जाहिर है कि अच्छी ही बात है. हालांकि इतिहास पर नजर डालेंगे, तो ऐसी संभावना कम ही नजर नहीं आती है कि पीएम मोदी की कोई नसीहत पाकिस्तान को सुधार सके. आइए जानते हैं कि वो कौन से मुद्दे है, जिनकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता संभव नहीं हो पाती है.
1. कश्मीर मामला
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय से चला आ रहा यह विवाद आज भी कायम है. कश्मीर मसले को लेकर पड़ोसी राज्य पाकिस्तान के साथ बातचीत का दौर कई दशकों से चल रहा है. संयुक्त राष्ट्र परिषद से द्विपक्षीय मुद्दे के स्तर पर आने के बाद अब तक सात दशक का लंबा समय बीत जाने के बावजूद कश्मीर मुद्दा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका है. भारत के लिए कश्मीर (इसमें पाक अधिकृत कश्मीर भी आता है) उसका अभिन्न अंग है और वह बातचीत के जरिये इसका हल खोजने की पहल करता रहा है. पाकिस्तान की ओर से कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए सेनाओं की वापसी और जनमत संग्रह की मांग की जाती रही है. इन तमाम वर्षों में कश्मीर में आतंकवाद के चरम से लेकर कश्मीरी पंडितों के पलायन तक काफी बदलाव हुए हैं. भारत इसका दोष पाकिस्तान पर लगाता रहा है. वहीं, पाकिस्तान इसे भारत की कश्मीर को लेकर नीतियों को वजह मानता है.
भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद पाकिस्तान ने दुनियाभर में इसके खिलाफ समर्थन जुटाने की मुहिम चलाई थी. हालांकि, चीन, मलेशिया और तुर्की जैसे देशों के अलावा उसे किसी अन्य देश से सहयोग नहीं मिला था. हाल ही में दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की बात कहने वाले पाकिस्तानी पीएम खान और सेना प्रमुख बाजवा कश्मीर राग अलापना नहीं भूले थे.
2. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद
भारत हमेशा से ही कहता रहा है कि पाकिस्तान अपनी जमीन पर भारत विरोधी आतंकियों को पनाह देता रहा है. खालिस्तान समर्थकों को भी पाकिस्तान में संरक्षण मिलता रहा है. भारत में हुए तमाम आतंकी हमलों में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों का नाम सामने आता रहा है. भारत की ओर से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की जा चुकी है. मुंबई हमले के साजिशकर्ता और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) का मुखौटा कहे जाने वाले प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात-उद-दावा (Jamat-ud Dawah) के प्रमुख हाफिज सईद (Hafiz Saeed) को भी पाकिस्तान लंबे समय से संरक्षण देता आ रहा है. कुछ समय पहले ही पाकिस्तान की एक आतंकवाद निरोधी अदालत ने हाफिज सईद को 15 साल की सजा सुनाई थी. इससे पहले भी सईद को एक मामले में 21 साल की सजा हुई थी. भारत की ओर से कहा जाता रहा है कि पाकिस्तान केवल दिखावे के लिए ये कार्रवाईयां करता है.
3. पाकिस्तानी सेना
पाकिस्तानी सेना कभी भी नहीं चाहती है कि भारत के साथ शांति बहाली हो सके. पाकिस्तान में जम्हूरियत का हाल ये है कि पाकिस्तानी सेना का सभी चीजों पर कब्जा है. पाकिस्तान की हुकूमत भी सेना के ही इशारों पर चलती है. भारत के साथ संबंध सुधारने वाले राजनेताओं की पाकिस्तान में दुर्गति ही होती रही है. जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ तक जिस पाकिस्तानी हुक्मरान ने भारत से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की है, उनका हश्र बहुत ही बुरा हुआ है. पाकिस्तानी सेना ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में रखा है. जमीन से लेकर बड़े उद्योगों पर पाकिस्तानी सेना का ही नियंत्रण है.
FATF की ग्रे लिस्ट से निकलने की छटपटाहट
पाकिस्तान ने भारत के साथ दूरगामी परिणामों के लिहाज से रिश्ते कभी नहीं सुधारे हैं. वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक हालत खस्ताहाल में पहुंच चुकी है. पाकिस्तान सरकार के पास अपनी आवाम को कोरोना महामारी से बचाने के लिए जरूरी टीके को खरीदने तक के पैसे नही हैं. कहा जा सकता है कि चीन समेत अन्य देशों और तमाम वैश्विक बैंकों के कर्ज तले दबा पाकिस्तान अपने हितों के लिए ही थोड़ा सा झुकने को तैयार हुआ है. पाकिस्तान ने कश्मीर राग अलापना नहीं छोड़ा है. फरवरी 2021 में हुई फाइंनेशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) यानी एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया था. साथ ही एफएटीएफ ने जून 2021 से पहले पाकिस्तान को सभी मानदंड पूरे करने को कहा था. पाकिस्तान की ओर से की जा रहीं ये कोशिशें FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने की छटपटाहट ही नजर आती हैं.
अगर पाकिस्तान इन तीन मामलों पर लगाम लगाने में कामयाब हो जाता है, तो भारत के साथ उसके रिश्ते लंबे समय तक के लिए सुधर सकते हैं. वरना संबंधों में बर्फ जमने में समय ही कितना लगता है. भारत हमेशा से ही कहता रहा है कि बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते हैं. इस स्थिति में पाकिस्तान के सामने समस्याओं की लिस्ट लंबी है और इसका हल निकालना उसके लिए किसी चुनौती से कम नही है.
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