कश्मीर में बड़ा करने से पहले घाटी के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री द्वारा बैठक करना एक प्रयोग मात्र था, फिलहाल हाई प्रोफाइल इस बैठक से दो बातें स्पष्ट हुईं. अव्वल, बैठक के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घाटी के विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं का मन टटोला और ये जाना कि 370 के बाद जम्मू-कश्मीर के विकास और आवाम की खुशहाली के लिए वह कितने संजीदा हैं. या फिर अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षीओं के लिए वैसे ही तड़प रहे हैं जैसे नजरबंदी के पूर्व थे.
दूसरा, बैठक में प्रधानमंत्री और उनके मंत्री ज्यादा कुछ नहीं बोले, बोलने का मौका कश्मीरी नेताओं को ही दिया. गुपकारों ने जो पांच मांगे बैठक में रखीं, कमोबेश वह वही थी जिस पर कभी सहमति बननी ही नहीं थी. गुपकार अलाएंस नेता इस भ्रम में रहे कि शायद केंद्र सरकार अब उनके दबाव में आ गई है. तभी कोरोना संकट के बीच उनको दिल्ली तलब किया गया. पर, शायद उन्हें पता नहीं था उनके भीतर का भेद मुलाकात के माध्यम से जानना था. उनका मन भी टटोलना था कि कश्मीरी नेताओं की सियासी महात्वाकांक्षाएं कम हुई या नहीं?
प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की करीब चार घंटे चली बैठक फिलहाल बिना किसी नतीजे के खत्म हुई. पहले राउंड की वार्ता थी, इसलिए ज्यादा उम्मीद तो पहले से ही नहीं थी? पर, कश्मीरी नेताओं में कन्फ्यूजन जबरदस्त दिखा. बैठक में उनको जो एकजुटता दिखानी चाहिए थी, वह नहीं दिखी. राजनीतिक रूप से एकता की डोरी से कोई बंधा नहीं दिखा. सब अपना अलग-अलग रंग और ढपली बजाते दिखे. सामूहिक मांग पर कोई भी टिकता नहीं दिखा.
बैठक में आठ दलों के कुल 14 नेता दिल्ली बुलाए गए थे जिनमें से कुछ तो इसलिए खुश थे, उनको प्रधानमंत्री के साथ बैठक करने का मौका मिल रहा था. बाकी...
कश्मीर में बड़ा करने से पहले घाटी के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री द्वारा बैठक करना एक प्रयोग मात्र था, फिलहाल हाई प्रोफाइल इस बैठक से दो बातें स्पष्ट हुईं. अव्वल, बैठक के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घाटी के विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं का मन टटोला और ये जाना कि 370 के बाद जम्मू-कश्मीर के विकास और आवाम की खुशहाली के लिए वह कितने संजीदा हैं. या फिर अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षीओं के लिए वैसे ही तड़प रहे हैं जैसे नजरबंदी के पूर्व थे.
दूसरा, बैठक में प्रधानमंत्री और उनके मंत्री ज्यादा कुछ नहीं बोले, बोलने का मौका कश्मीरी नेताओं को ही दिया. गुपकारों ने जो पांच मांगे बैठक में रखीं, कमोबेश वह वही थी जिस पर कभी सहमति बननी ही नहीं थी. गुपकार अलाएंस नेता इस भ्रम में रहे कि शायद केंद्र सरकार अब उनके दबाव में आ गई है. तभी कोरोना संकट के बीच उनको दिल्ली तलब किया गया. पर, शायद उन्हें पता नहीं था उनके भीतर का भेद मुलाकात के माध्यम से जानना था. उनका मन भी टटोलना था कि कश्मीरी नेताओं की सियासी महात्वाकांक्षाएं कम हुई या नहीं?
प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की करीब चार घंटे चली बैठक फिलहाल बिना किसी नतीजे के खत्म हुई. पहले राउंड की वार्ता थी, इसलिए ज्यादा उम्मीद तो पहले से ही नहीं थी? पर, कश्मीरी नेताओं में कन्फ्यूजन जबरदस्त दिखा. बैठक में उनको जो एकजुटता दिखानी चाहिए थी, वह नहीं दिखी. राजनीतिक रूप से एकता की डोरी से कोई बंधा नहीं दिखा. सब अपना अलग-अलग रंग और ढपली बजाते दिखे. सामूहिक मांग पर कोई भी टिकता नहीं दिखा.
बैठक में आठ दलों के कुल 14 नेता दिल्ली बुलाए गए थे जिनमें से कुछ तो इसलिए खुश थे, उनको प्रधानमंत्री के साथ बैठक करने का मौका मिल रहा था. बाकी एकाध टूटकर कुछ समय बाद मोदी के पक्ष में आ जाएंगे, चुनाव से पहले, इसकी संभावनाएं दिखाई पड़ती हैं. सूत्र बताते भी हैं, चुनाव में घाटी के एक-दो दल भाजपा के साथ आएंगे. इसके लिए भाजपा घेराबंदी में लगी भी है.
प्रधानमंत्री ने गुपकार नेताओं और देश के लोगों पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने के लिए एक बेहतरीन प्रयोग किया. दरअसल, बैठक से पूर्व जारी की गई एक ग्रुप तस्वीर जिसको सोशल मीडिया पर सभी देशवासियों ने देखी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सभी गुपकार अलाएंस के नेता खड़े दिखाई दिए, वह भी बिना मास्क के, फोटो खिचवाने के वक्त मास्क हटाने के पीछे भी कई राज छिपे थे.
खैर, फोटों में अधिकांश नेताओं के चेहरों पर हक्की मुस्कान थी, बस एकाध के चेहरे मुरझाए हुए थे. इसी तस्वीर को प्रधानमंत्री ने तुरंत अपने अधिकृत ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है. इस थ्योरी को समझने की जरूरत है. तस्वीर के जरिए ये बताना चाहा, कि दोनों पक्षों में मीटिंग सौहार्दपूर्ण माहौल में हो रही है. गुपकार पक्ष प्रधानमंत्री से खुश है.
बहरहाल, तस्वीर खुशनुमा वातावरण जरूर बयां कर रही थी. लेकिन कहानी उसके कहीं विपरीत थी. जब मीटिंग आरंभ हुई तो सबसे पहले प्रधानमंत्री ने सभी नेताओं से अपने चिरपरिचित अंदाज में हालचाल पूछा, घर-परिवार की खैरियत जानी. उसके बाद उन्होंने कहा जी बताएं, कश्मीर के लिए क्या कुछ करना चाहिए. बस फिर क्या था, कश्मीरी नेताओं ने लगा दी मांगों की बौछारें, मांगों में ज्यादातर उनकी सियासी महात्वाकांक्षाएं जुड़ी थी.
कश्मीरियों के लिए अपने निजी स्वार्थ की बातें ज्यादा शामिल थीं. फिलहाल उनकी मांगों को केंद्रीय नेतृत्व चुपकार सुनता रहा. दरअसल, प्रधानमंत्री ने माहौल कुछ ऐसा बना दिया था, ताकि वह खुलकर अपनी इच्छा जाहिर कर सकें. मांगों का पिटारा जब घाटी के नेताओं ने खोला तो सबने अलग-अलग इच्छाएं रखीं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे ने खुलकर धारा-370, आर्टिकल 35ए की बहाली की मांग रखी. वह दोनों पहले भी इसी मांग पर जोर देते आए थे.
साथ ही उन्होंने धमकीनुमा ये भी कहा, कि कोर्ट में इस मसले को लेकर उनकी लड़ाई जारी रहेगी. फारूक अब्दुल्ला की धारा-370 की बहाली की मांग के बाद बैठक में सन्नाटा छा गया. सन्नाटा छाना स्वाभाविक भी था. क्योंकि बैठक में कश्मीर के भविष्य का ताना बाना बुनना था, न कि अतीत के पन्नों को कुरेदना था.
वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी फिर से पाकिस्तान के साथ बातचीत करने पर प्रधानमंत्री पर जोर डाला. इससे बैठक में कुछ तल्खी का माहौल बना. कुल मिलाकर बैठक के जरिए प्रधानमंत्री कश्मीरी नेताओं को टोहना चाह रहे थे. वह ये जानना चाहते थे कि बीते दो वर्षों से रुकी बातचीत और नजरबंदी के बाद घाटी के नेताओं के हृदय में कुछ परिवर्तन हुआ या नहीं?
या फिर पुरानी जहरीली सोच से ग्रसित हैं, जिसका उन्हें ठीक से आभास हो गया. मीटिंग से पता चल गया कि उनकी सोच वैसी की वैसी ही है. सच ये है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री की रणनीति और ब्लू प्रिंट पहले से तैयार है. प्रधानमंत्री का मानना था कि अगर उनकी रणनीति में कश्मीरी नेताओं के विचार मेल खाते हैं, तो उनका स्वागत है. लेकिन बैठक के जरिए इतना स्पष्ट हो गया कि उनकी सोच से कश्मीरी नेता फिट नहीं बैठते?
इसी बात की नब्ज टटोलने के लिए पीएम ने सभी को दिल्ली बुलाया था. बहरहाल, अब जम्मू-कश्मीर के लिए जो भी करना होगा, प्रधानमंत्री आजाद होकर फैसला करेंगे, भविष्य में किसी भी फैसले में वह उनकी राय नहीं जानेंगे. क्योंकि राय जानने में सिर्फ समय बर्बाद करना होगा. बैठक से इतना पता चल गया है कि कश्मीरी नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से बाहर नहीं निकल पाएंगे.
दूसरे बात ये, जब दिल्ली में बैठक चल रही थी. तभी पाकिस्तान में इमरान खान बैठक कर रहे थे, उनकी नजर भी प्रधानमंत्री के फैसले पर टिकी थी. हो सकता है पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती बाद में इमरान खान को बैठक के संबंध में बताया भी हो. बैठक में उन्होंने प्रधानमंत्री से दोनों देशों के बीच जम्मू से पाकिस्तान के लिए रेलगाड़ी चलाने का भी आग्रह किया.
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