राजस्थान में चुनावी साल (Rajasthan Assembly Election 2023) होने के चलते सियासत गर्म है. भाजपा और कांग्रेस चुनावी मोड में आ रही है, इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर राजस्थान दौरे पर आ रहे हैं. 28 जनवरी को भीलवाड़ा के आसींद के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी दौसा के मीणा हाईकोर्ट आ रहे हैं. आगामी 12 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोसा जिले में सिक्स लेन हाईवे का उद्घाटन करेंगे. साथ ही विशाल जनसभा को भी संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भारी भीड़ जुटाने के लिए राज्यसभा सांसद डॉ.किरोड़ी लाल मीणा को जवाबदारी दी गई हैं.
राजस्थान में विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही भाजपा ने वोटों के लिए सोशल इंजीनियरिंग का काम तेज कर दिया है. विधानसभा चुनाव सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और कमल निशान पर लड़ने का फैसला कर चुकी भाजपा जातिगत समीकरण साधने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का भरपूर इस्तेमाल भी कर रही है. उसी सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी अब 12 फ़रवरी को मीणा बाहुल्य इलाक़े पूर्वी राजस्थान के दौरे पर आ रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी 12 फरवरी को राजस्थान के दौसा में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लोकार्पण के लिए आ रहे हैं. प्रधानमंत्री का ये दौरा वैसे तो सरकारी दौरा है, लेकिन भाजपा इसका पूरा राजनीतिक फायदा लेने की तैयारी में है. प्रधानमंत्री मोदी जिस इलाके में आ रहे हैं, वो मीणा बाहुल्य है. राजस्थान में मीणा जाति को मार्शल कौम माना जाता है और इसके राजनीतिक दबदबे को सीधे तौर पर इस बात से समझा जा सकता है कि राज्य की कुल पच्चीस लोक सभा सीटों में से करीब 10 सीटों पर मीणा वोट निर्णायक साबित होते हैं.
राजस्थान के कद्दावर मीणा नेता और भाजपा के राज्य सभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा खुद जिले-जिले घूमकर अपने समाज के लोगों को प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में पहुंचने का न्यौता दे रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के इस सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को सीधे इसी बात से समझा जा सकता है कि पिछले तीन महीनों में प्रधानमंत्री मोदी का ये चौथा राजस्थान दौरा होगा. इससे पहले प्रधानमंत्री ने राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर के मानगढ़ धाम पहुंचकर आदिवासी समाज और उसके बाद भीलवाड़ा के आसीन्द में गुर्जर समाज के बीच जाकर उनके धार्मिक आयोजन से जुड़कर बड़ा संदेश दिया था. लेकिन, कांग्रेस को प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से कोई राजनीतिक फ़ायदा होता नहीं दिख रहा.
राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के केबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का दावा है कि उनकी सरकार अपनी लोक कल्याणकारी योजनाओं के दम पर सत्ता में वापसी करेगी.कांग्रेस भले ही अपनी सरकार की वापसी का दावा करे, लेकिन सच्चाई यही है कि प्रधानमंत्री मोदी के पूर्वी राजस्थान के दौरे से मीणा वोट बैंक का भाजपा की तरफ़ रुझान होगा. राज्य के दौसा, अलवर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, डूंगरपुर, जालोर, सिरोही समेत कई ज़िलों में मीणा वोट प्रभावी है. खुद मीणा समाज के लोग प्रधानमंत्री के दौसा दौरे को लेकर खासे उत्साही हैं.
गौरतलब है कि दिल्ली से मुबंई के बीच बन रहे एक्सप्रेसवे का सोहना दौसा स्ट्रेच 12 फरवरी 2023 से आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा. बता दें सोहना दौसा स्ट्रेच के बनने से दिल्ली से जयपुर के बीच की दूरी लगभग 2 घंटे में तय हो जाएगी. 12 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका उद्घाटन किया जाएगा. हरियाणा के सोहना से राजस्थान के दौसा तक है ये सड़क नई दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का पहला खंड हरियाणा के सोहना से राजस्थान के दौसा तक है.
जिसकी दूरी लगभग 270 किलोमीटर की है. बता दें कि पहले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसका उद्घाटन 4 फरवरी को ही किया जाना था लेकिन बाद में इसकी तारीख को बदल कर 12 फरवरी कर दिया गया. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 12 फरवरी को दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे के सोहना दौसा स्ट्रेच का उद्घाटन किया जाएगा. इससे भी जरुर राजस्थान में भाजपा का समर्थन बढ़ने वाला हैं .
भाजपा के पक्ष में माहौल इस कारण भी बन रहा है कि अब तक गहलोत-पायलट विवाद के बाद कांग्रेस सरकार पर आए संकट के दौरान वसुंधरा पूरी तरह चुप थीं. अब वे इस मामले में एक्टिव दिख रही हैं. इसकी बड़ी वजहें हो सकती हैं.पहली भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोपा के प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने आरोप लगाए थे कि वसुंधरा गहलोत सरकार को बचाने की कोशिश कर रही हैं. कुछ भाजपा नेताओं ने भी इन आरोपों को हवा दी.
वसुंधरा इन आरोपों को लेकर नाराज हैं और इसको लेकर पार्टी नेतृत्व से दो टूक बात करना चाहती हैं. वसुंधरा खेमे में 45 से ज्यादा विधायक बताए जाते हैं. ऐसे में आलाकमान उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता है. वसुंधरा की नाराजगी का असर यह हो सकता है कि भाजपा में उनके विरोधी धड़े को शांत रहने को कहा जा सकता है. आगे की रणनीति की कमान वसुंधरा के हाथ में आ सकती है. जिसके बाद बहुत कुछ उनके रुख पर निर्भर होगा.
दूसरी राजस्थान के इस पूरे सियासी संकट से वसुंधरा इसलिए दूर रहीं, क्योंकि पार्टी आलाकमान ने उन्हें विश्वास में नहीं लिया. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ वसुंधरा के मतभेद जगजाहिर हैं. गहलोत सरकार गिरने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के लिए जिन नामों की चर्चा चल रही थी, उनमें वसुंधरा का नाम नहीं था. पायलट के साथ कम विधायक टूटने और गहलोत की आक्रामक रणनीति के चलते अभी भी यह साफ नहीं कि कांग्रेस सरकार गिर ही जाएगी. जिसके कारण भाजपा आलाकमान ने अपनी रणनीति बदल ली. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि वसुंधरा की सक्रियता की वजह यह भी हो सकती है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें इशारा कर दिया हो कि गहलोत सरकार गिरने पर वे मुख्यमंत्री होंगी.
प्रदेश के सियासी घमासान में क्या होगा, यह बहुत कुछ कोर्ट पर भी निर्भर है. 11 अगस्त को हाईकोर्ट में बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों की सदस्यता को लेकर फैसला आ सकता है. इन 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने पर अगर स्टे लगा तो गहलोत सरकार का संकट और बढ़ सकता है. चर्चा है कि ऐसी स्थिति में गहलोत खेमा कुछ भाजपा विधायक न तोड़ ले. इसको ध्यान में रखते हुए पार्टी ने कुछ विधायकों को गुजरात भेज दिया है. कहा जा रहा है कि भाजपा अपने विधायकों को अलग-अलग जगहों पर रखेगी. इसकी वजह पार्टी की गुटबंदी बताई जा रही है. फिलहाल, राजस्थान को तीन या चार हिस्सों में बांट कर उसी के अनुसार विधायकों के समूह बनाकर उन्हें अलग-अलग स्थान पर रखे जाने की योजना है. ताकि किसी भी गुट के विधायक भी एकजुट न हो सकें.
वर्तमान में 200 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 19 और तीन निर्दलीय विधायक बागी चल रहे हैं. गहलोत सरकार का दावा है कि उनके पास 102 विधायकों का समर्थन है. 6 सदस्यों के दल-बदल को स्टे मिलने की स्थिति में विधानसभा में 194 सदस्य रह जाएंगे. विधानसभा अध्यक्ष को अलग कर दें तो यह 193 सदस्य रहेंगे. फ्लोर टेस्ट की स्थिति में बहुमत के लिए 97 सदस्यों की जरूरी होगी. बसपा से कांग्रेस में आए 6 सदस्यों को कम करने पर कांग्रेस के पास 96 सदस्य ही रह जाएंगे. वहीं, भाजपा के 72 और उसके सहयोगी रालोपा के 3 के अलावा कांग्रेस के 19 बागी और 3 निर्दलीय विधायक मिलकर 97 हो जाएंगे. ऐसी स्थिति में गहलोत सरकार बच पाना मुश्किल हो जाएगा.
इसी बीच हालतों के बदलाव के बीच पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट दिल्ली पहुंच गए हैं. दरअसल शुक्रवार को सचिन पायलट अलवर के भिवाड़ी में एक निजी कार्यक्रम में पहुंचे. जहां वैवाहिक कार्यक्रम में पायलट ने वर और वधू को आर्शीवाद दिया. इसके बाद पायलट दिल्ली रवाना हो गए. हालांकि पायलट तकरीबन हर सप्ताह के अंत में दिल्ली परिवार से मिलने आते हैं. पर कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय है कि सचिन पायलट का रुख क्या रहेगा?यह देखना होगा, क्योंकि जो स्थिति उनकी कांग्रेस में बनी हुई है, यह भी माना जा रहा है कि चुनाव से पहले संभवतः वह कोई अलग रास्ता पकड़ सकते हैं.
कुछ समय पूर्व कांग्रेस संगठन और सरकार में जो दरार थी, वह अब खाई बन चुकी है. सचिन पायलट खुलकर सरकार के खिलाफ सभाओं में बोल रहे हैं. मुख्यमंत्री का नाम तो नहीं ले रहे हैं, लेकिन उनका पूरा हमला अशोक गहलोत के ऊपर है. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी और तब चुनाव सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लड़ा गया था. 21 सीटों से पार्टी बढ़कर 100 सीटों पर पहुंची थी और साधारण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. तब कुछ निर्दलीयों ने सरकार को समर्थन दिया, लेकिन कुर्सी के असली दावेदार सचिन पायलट के बजाय अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया.
तभी से पार्टी दो गुटों में बंटी हुई है.अब धीरे-धीरे सचिन पायलट का समर्थन भी बढ़ रहा है और अशोक गहलोत से नाराज नेता उनके साथ आ रहे हैं. इनमें नया नाम हरीश चौधरी का है, जो अशोक गहलोत सरकार में मंत्री रहे हैं और उनके पास पंजाब का प्रभार है, लेकिन इन सबसे अशोक गहलोत बिल्कुल बेफिक्र नजर आ रहे हैं. वह बजट की तैयारियों में लगे हैं. हालांकि, दबी जुबान में कांग्रेसी नेता यह कह रहे हैं कि दोनों गुटों की तनातनी में नुकसान पार्टी को ही होगा.
सरकार को इस विग्रह का नुकसान उठाना पड़ेगा. एक बात और है कांग्रेस में अंदरखाने यह चर्चा जोरों पर है कि पायलट कांग्रेस से अलग राह चुन सकते हैं. कांग्रेस के ऐसे लोग जो किसी भी गुट से जुड़े नहीं है, वे यह भी संभावना जताते हैं कि पायलट नई पार्टी बनाकर चुनाव में उतर सकते हैं.तर्क दिया जा रहा है कि हाल के दौरों और सभाओं के जरिए पायलट इसी बात की थाह ले रहे हैं कि नई पार्टी बनाते हैं तो वे कितना सफल हो पाएंगे. हालांकि, पायलट के नजदीकी लोग इस बारे में कुछ भी खुलकर नहीं बोलते. अब यह तो समय बताएगा कि उंट किस करवट बैठता है क्योंकी अभी कई छोटे – छोटे दल है खेल बनाने वाले व खेल बिगाड़ने वाले.
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