भारतीय राजनीति की मजबूरी कहें या फिर सत्ता हतियाने का जरिया कहें. जब आप विपक्ष में होते हैं तो सत्ता पक्ष की कमियां ही दिखाई देती हैं, पर जब आप सत्ता में होते हैं तो आप को सरकार चलाने की मजबूरियों का अनुमान हो जाता है. मैं बात कर रहा हूं चुनाव 2014 के पहले बेजीपी के कुछ बयानों की जो अभी के समय में सटीक लग रहे हैं.
सुषमा स्वराज (06-08-2013) - '5 जवानों की हत्या-देश और सेना को इस अपमान का सामना करना पड़ता है क्योंकि हमारे पास एक कमजोर और दुविधा भरी सरकार है.'
(हाल ही में नियंत्रण रेखा पर 2 भारतीय जवानों के शव मिले जो काफी बुरी हालत में थे और हमेशा की तरह पकिस्तान ने इनकार किया)
अमित शाह (23-04-2014) - 'यदि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने तो पकिस्तान के घुसपैठियों की सीमा पार करने की हिम्मत नहीं होगी.'
(पिछले 3 सालो में न जाने कितने घुसपैठिए भारतीय सीमा में आए और सरकार मौन है)
रवि शंकर प्रसाद (06-08-2013) - 'केंद्र सरकार बताए कि अभी और कितने बहादुर भारतीय सैनिकों के बलिदान की जरूरत पड़ेगी.'
(हाल ही में भारतीय सेना के मुख्यालय पर हमला होता है और 18 भारतीय सैनिक मारे जाते हैं, 19 के करीब घायल होते हैं और हमेशा की तरह सरकार कड़े शब्दों में निंदा करती है)
गिरिराज सिंह (08-08-2013) - 'अगर आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी होते तो हम लाहौर तक पहुंच गए होते.'
(आज भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं और देश की जनता गिरिराज सिंह की कही बातों का इंतज़ार कर रही है कि कब भारतीय सेना लाहौर पहुंचती है)
शहनाज हुसैन (06-08-2013) - 'यह सरकार की बहुत बड़ी विफलता है, पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए.'
(शहनाज हुसैन जी देश की 125 करोड़ की जनता तीन सालो से इंतजार कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कब पकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देते हैं)
पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सैनिकों के शवों के साथ किया अमानवीय व्यवहार
हाल ही में पाकिस्तान ने भारतीय सेना के दो जवानों की हत्त्या कर दी और जिस दरिंदगी की परिभाषा का उदाहरण पाकिस्तान ने दिया उसे मानवीय कतई नहीं कहा जा सकता. पर भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी तब इनका दावा था कि हम सत्ता में होते तो पाकिस्तान को करारा जवाब देते पर क्या करें, लग रहा है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री उर्दू सीख रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान को करारा जवाब उनकी भाषा में जो देना है.
आखिर क्या राजनीतिक मजबूरियां होती हैं कि विपक्ष में रहते आपको सत्ता पक्ष में खामियां नजर आती हैं और सत्ता में आते ही आपकी मजबूरी बन जाती हैं. सत्ता में आने पर क्यों विपक्ष में रहते दिए गए बयानों पर अडिग नहीं रह पाती सरकार.
महंगाई के मुद्दे पर कुछ यही हाल स्मृति इरानी और हेमा मालिनी का भी था और आज सारा देश महंगाई से परेशान हैं. तरस आता है इन नेताओं के निर्वाचन क्षेत्र के लोगों पर. जब आज ये सत्ता में हैं तो क्यों इनसे जनता जवाब नहीं मांगती.
आखिर अपनी ही बातों से क्यों पलट रहे हैं मोदी
09-04-2014 - "Aadhaar project is a political gimmick with no vision "
और
12.03-2016 नरेन्द्र मोदी - Aadhar bill to help govt. save Rs. 70 Cr. every year
आखिर आधार कार्ड को लेकर नरेन्द्र मोदी में ये बदलाव क्यों ? क्या नरेन्द्र मोदी 2014 में सही थे या फिर 2016 में नरेन्द्र मोदी झूठ बोल रहे हैं और देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं.
आखिर क्यों नहीं विपक्ष में रहकर भी सत्ता पक्ष के अच्छे कामों की सराहन की जाती.
देश में सरकार चाहे कांग्रेस की बो या फिर बीजीपी की, देश का भला तभी होगा जब देश के नेताओं की मानसिकता बदलेगी और फिर मुद्दा चाहे पकिस्तान हो या फिर महंगाई का, सही मायने में जनता को तभी जवाब मिल पायेगा.
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