अयोध्या राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई जनवरी, 2019 तक टाल दिए जाने के बाद अब इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने के सुर फिर से तेज हो गए हैं. इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने अयोध्या मुद्दे को जनवरी तक के लिए टाल दिया. इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने जरूर आग्रह किया कि मामला जरूरी है और इसकी सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के बाद हो. लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यह कहते इस मुद्दे की सुनवाई टाल दी कि अदालत की अपनी प्राथमिकताएं हैं, उचित पीठ ही जनवरी में तय करेगी कि इसकी सुनवाई जनवरी, फरवरी में हो या मार्च में. उच्त्तम न्यायालय के इस फैसले के बाद अब लोकसभा चुनावों के पहले अयोध्या मसले का सुलझना मुश्किल प्रतीत होता है.
हालांकि अब अदालत के इस फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राममंदिर के हिमायती सरकार से इस मुद्दे पर अध्यादेश ला जमीन विवाद का हल चाहते हैं. इससे पहले भी कई संघठनों ने सरकार से इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की वकालत की थी, इसी साल विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी इस मुद्दे पर सरकार से कानून लाने की मांग की थी. और अब फिर से भारतीय जनता पार्टी के नेता संजीव बाल्यान और विनय कटियार इस मुद्दे पर अध्यादेश चाहते हैं.
क्या है अध्यादेश
अध्यादेश सरकार का एक विशेषाधिकार है और अगर सरकार किसी विशेष परिस्थिति में कानून बनाने के लिए बिल लाना चाहे, मगर संसद के दोनों सदनों या कोई एक सदन का सत्र न चल रहा हो. या फिर सरकार का कोई बिल राज्यसभा में किसी वजह से लटका हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है. अनुच्छेद 123 ऐसे किसी भी समय...
अयोध्या राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई जनवरी, 2019 तक टाल दिए जाने के बाद अब इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने के सुर फिर से तेज हो गए हैं. इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने अयोध्या मुद्दे को जनवरी तक के लिए टाल दिया. इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने जरूर आग्रह किया कि मामला जरूरी है और इसकी सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के बाद हो. लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यह कहते इस मुद्दे की सुनवाई टाल दी कि अदालत की अपनी प्राथमिकताएं हैं, उचित पीठ ही जनवरी में तय करेगी कि इसकी सुनवाई जनवरी, फरवरी में हो या मार्च में. उच्त्तम न्यायालय के इस फैसले के बाद अब लोकसभा चुनावों के पहले अयोध्या मसले का सुलझना मुश्किल प्रतीत होता है.
हालांकि अब अदालत के इस फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राममंदिर के हिमायती सरकार से इस मुद्दे पर अध्यादेश ला जमीन विवाद का हल चाहते हैं. इससे पहले भी कई संघठनों ने सरकार से इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की वकालत की थी, इसी साल विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी इस मुद्दे पर सरकार से कानून लाने की मांग की थी. और अब फिर से भारतीय जनता पार्टी के नेता संजीव बाल्यान और विनय कटियार इस मुद्दे पर अध्यादेश चाहते हैं.
क्या है अध्यादेश
अध्यादेश सरकार का एक विशेषाधिकार है और अगर सरकार किसी विशेष परिस्थिति में कानून बनाने के लिए बिल लाना चाहे, मगर संसद के दोनों सदनों या कोई एक सदन का सत्र न चल रहा हो. या फिर सरकार का कोई बिल राज्यसभा में किसी वजह से लटका हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है. अनुच्छेद 123 ऐसे किसी भी समय में जब संसद के दोनों सदन नहीं चल रहे हों, राष्ट्रपति को अध्यादेश लागू करने की शक्ति देता है, बशर्ते राष्ट्रपति को लगे कि परिस्थिति विशेष में ऐसा करना जरूरी है. अनुच्छेद 123(2) के अनुसार अध्यादेश में भी अनिवार्य रूप से वही शक्ति और प्रभाव होता है जो कि संसद द्वारा पारित किए गए किसी कानून का होता है. हालांकि किसी भी अध्यादेश को संसद की कार्यवाही पुन: शुरू होने पर दोनों सदनों द्वारा छह सप्ताह की समयसीमा में पारित करना आवश्यक होता है. यदि दोनों ही सदन इसे खारिज कर देते हैं अथवा राष्ट्रपति द्वारा इसे वापस ले लिया जाता है तो अध्यादेश खत्म हो जाता है.
क्या सरकार अयोध्या मुद्दे पर अध्यादेश ला सकती है?
हालांकि भारत का संविधान सरकार को अध्यादेश लाने की शक्ति देता है मगर चूंकि वर्तमान में अयोध्या मामला सर्वोच्च न्यायालय में है, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश लाए. वैसे अगर सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश ला भी दे तो बहुत संभव है कि सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती मिल जाये जो सरकार की किरकिरी कराने के लिए काफी है. क्योंकि भले ही अध्यादेश लाना सरकार का विशेषाधिकार हो मगर इसे विशेष परिस्थितियों में ही लाने की बात कही गयी है.
इन सब के अलावा अगर सरकार अध्यादेश ले भी आये तो सरकार को फिर से इसे राज्यसभा में पारित कराने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि भले ही सरकार लोकसभा में बहुमत में है मगर राज्यसभा में अभी भी सरकार के पास जरुरी नंबर्स नहीं हैं.
हालांकि इन सभी अगर मगर का जवाब सरकार के पास ही है और यह तभी पता चल पायेगा जब सरकार इस मुद्दे को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी करे.
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