जैसे-जैसे 23 मई नजदीक आ रही है, हर किसी के दिल की धड़कनें बढ़ रही हैं. कौन जीतेगा और कौन प्रधानमंत्री होगा ये सबसे बड़ा सवाल है. एक तरफ 'आएगा तो मोदी ही' कहा जा रहा है तो दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों ने वैकल्पिक सरकार की भूमिका तैयार करनी शुरू कर दी है. लेकिन सबसे दिलचस्प है विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री के रूप में किसी एक नेता का सामने आना. इसमें बाकी नेताओं की दावेदारी अपनी जगह है लेकिन मायावती के नाम का सबसे ताकतवर अनुमोदन तो खुद अखिलेश यादव कर चुके हैं. लेकिन क्या ये इतना ही आसान है. आइए समझते हैं.
मायावती आजकल सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और चुनावी रैलियों में तीखे बाण छोड़ रही हैं. और सोमवार को तो वे सारी सीमाएं लांघकर मोदी पर बरस पड़ीं. उन्होंने कहा- 'मुझे तो यह भी मालूम चला है कि भाजपा में खासकर विवाहित महिलाएं अपने आदमियों को श्री मोदी के नजदीक जाते देखकर, यह सोच कर भी काफी ज्यादा घबराती रहती हैं कि कहीं ये मोदी अपनी औरत की तरह हमें भी अपने पति से अलग ना करवा दे.' और आज कह रही हैं कि RSS ने भी प्रधानमंत्री का साथ छोड़ दिया है.
यानी प्रधानमंत्री पद के सपने देख रहीं मायावती कोई मौका नहीं छोड़ रहीं वर्तमान प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने का. किसी की लालसा पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इस बात पर चर्चा जरूर की जा सकती है कि मायावती के प्रधानमंत्री बनने की कितनी संभावना लगती है.
उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी तो पहले ही ये नारा लाग चुकी है कि- ‘बुआ का देश, भतीजे का प्रदेश.’ हाल ही में इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बातचीत की और ये सुध लेने की कोशिश की कि मायावती को लेकर वो क्या सोचते हैं. तो अखिलेश का जवाब था कि मायावती को राजनीति का बहुत अनुभव है, और प्रधानमंत्री यूपी से ही बनना चाहिए....
जैसे-जैसे 23 मई नजदीक आ रही है, हर किसी के दिल की धड़कनें बढ़ रही हैं. कौन जीतेगा और कौन प्रधानमंत्री होगा ये सबसे बड़ा सवाल है. एक तरफ 'आएगा तो मोदी ही' कहा जा रहा है तो दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों ने वैकल्पिक सरकार की भूमिका तैयार करनी शुरू कर दी है. लेकिन सबसे दिलचस्प है विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री के रूप में किसी एक नेता का सामने आना. इसमें बाकी नेताओं की दावेदारी अपनी जगह है लेकिन मायावती के नाम का सबसे ताकतवर अनुमोदन तो खुद अखिलेश यादव कर चुके हैं. लेकिन क्या ये इतना ही आसान है. आइए समझते हैं.
मायावती आजकल सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और चुनावी रैलियों में तीखे बाण छोड़ रही हैं. और सोमवार को तो वे सारी सीमाएं लांघकर मोदी पर बरस पड़ीं. उन्होंने कहा- 'मुझे तो यह भी मालूम चला है कि भाजपा में खासकर विवाहित महिलाएं अपने आदमियों को श्री मोदी के नजदीक जाते देखकर, यह सोच कर भी काफी ज्यादा घबराती रहती हैं कि कहीं ये मोदी अपनी औरत की तरह हमें भी अपने पति से अलग ना करवा दे.' और आज कह रही हैं कि RSS ने भी प्रधानमंत्री का साथ छोड़ दिया है.
यानी प्रधानमंत्री पद के सपने देख रहीं मायावती कोई मौका नहीं छोड़ रहीं वर्तमान प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने का. किसी की लालसा पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इस बात पर चर्चा जरूर की जा सकती है कि मायावती के प्रधानमंत्री बनने की कितनी संभावना लगती है.
उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी तो पहले ही ये नारा लाग चुकी है कि- ‘बुआ का देश, भतीजे का प्रदेश.’ हाल ही में इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बातचीत की और ये सुध लेने की कोशिश की कि मायावती को लेकर वो क्या सोचते हैं. तो अखिलेश का जवाब था कि मायावती को राजनीति का बहुत अनुभव है, और प्रधानमंत्री यूपी से ही बनना चाहिए. हालांकि उन्होंने साफ-साफ शब्दों में ये नहीं कहा कि मायावती को प्रधानमंत्री नहीं होना चाहिए, लेकिन इस बात को खारिज भी नहीं किया. यानी उनकी 'न' में 'हां' ही है.
इसमें कोई शक नहीं कि मायावती के लिए समर्थन बढ़ रहा है. उत्तर प्रदेश में तो सपा-बसपा गठबंधन है ही, कर्नाटक और हरियाणा से भी मायावती को समर्थन मिलने की उम्मीद है. विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर के साथ गठबंधन किया था और वहां बसपा एक सीट पाने में सफल भी हुई. तब कर्नाटक का सीएम बनते ही कुमारस्वामी ने कहा कि वह पीएम पद के लिए मायावती का समर्थन करेंगे. इसके बाद हरियाणा के आईएनएलडी के वरिष्ठ नेता और विधायक अभय चौटाला ने भी मायावती के समर्थन की बात कही.
मायावती पीएम बन सकती हैं अगर...
* यूपी में बसपा 38 और सपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं. मायावती को यदि देश का प्रधानमंत्री बनना है तो सबसे पहले उन्हें कम से कम बीएसपी को सबसे ज्यादा कामयाबी दिलाना होगी. इतना तो हो ही कि बीएसपी का स्ट्राइक रेट समाजवादी पार्टी से ज्यादा हो. यानी जितनी सीटों पर चुनाव लड़ें, उसमें से अधिकतर पर जीत हो.
* मायावती यदि अपनी 38 सीटों में से 30 सीटों पर चुनाव जीत लेती हैं तो राहुल गांधी (कांग्रेस) के बाद वे संभवतः सबसे ताकतवर नेता होंगी. ममता बनर्जी से भी ज्यादा. जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे बंगाल की अपनी जमीन खोती जा रही हैं. यदि मायावती यूपी में कामयाब होती हैं तो वे प्रधानमंत्री पद पर राहुल गांधी के परंपरागत दावे को पीछे छोड़ सकती हैं. और इससे राहुल गांधी को भी गुरेज नहीं होगा.
चुनाव नतीजों से उभरने वाले समीकरण मदद कर सकते हैं मायावती की
* एनडीए अगर 240 के आसपास सिमट जाए और यूपी में सपा-बसपा गठबंधन को 50 सीटें मिलें तो हो सकता है यूपीए और अन्य दल मिलकर मायावती की अगुवाई में नई सरकार बना लें. लेकिन ये तभी संभव है अगर यूपीए को 100 और अन्य के पास 150 सीटें हों.
* मायावती निश्चित तौर पर पीएम बन सकती हैं अगर कांग्रेस और बाकी यूपीए दल उन्हें समर्थन दे दें. इस बात की संभावनाएं प्रबल हैं कि अगर एनडीए- यूपीए को बहुमत नहीं मिलता है तो कांग्रेस अन्य दलों को साथ लेकर पीएम पद के लिए मायावती को समर्थन दे सकती है.
* एक संभावना ये भी है कि एनडीए की सरकार न बनने की सूरत में जेडीयू जैसे दल मोदी का खेमा छोड़कर किसी तीसरे मोर्चे की सरकार के समर्थन में मायावती के नेतृत्व को स्वीकार कर सकते हैं.
मायावती के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता
लेकिन क्या मायावती पीएम बनने लायक हैं
किसी ने कहा भी है कि कामयाबी के पीछे मत भागो, काबिल बनो...कामयाबी तुम्हारे पीछे झक मारकर आएगी. बात अगर परिस्थितियों और समर्थन की हो तो प्रधानमंत्री पद पर आसीन होना मायावती की सबसे बड़ी कामयाबी हो सकती है. लेकिन तब एक सवाल और उठता है कि क्या मायावती प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत रखती हैं.
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के अलावा मायावती ही हैं जो गाहे-बगाहे खुले तौर पर प्रधानमंत्री बनने की लालसा जाहिर करती रही हैं. देश में अब तक दलित प्रधानमंत्री हुआ भी तो नहीं है. उनकी इस दावेदारी के समर्थक कहते रहे हैं कि मायावती एक कुशल प्रशासक हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार चलाते हुए उन्होंने इस बात का उदाहरण पेश किया है. खासतौर पर लॉ एंड ऑर्डर जैसे मामलों में उनकी पकड़ बेमिसाल है.
और कमजोरी क्या हैं जो मायावती को पीएम बनने से रोकती हैं
भारतीय राजनीति में मायावती ने खुद को जिस तरह सबसे बड़े दलित नेता के रूप में उभारा है, उतनी ही तेजी से उनकी 'भ्रष्ट' छवि भी सामने आई है. गरीबों और दलितों की राजनीति करने वाली मायावती की लाइफस्टाइल हमेशा ही चर्चा में रही है.
गठबंधन निभा पाने में अक्षम
बसपा सुप्रीमो मायावती की राजनीति में किसी दल के साथ तालमेल का बहुत लंबा सुखमय इतिहास नहीं है. बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों के साथ वे पूर्व में गठबंधन कर चुकी हैं लेकिन कुछ ही समय में ये गठजोड़ टूटे. और विभत्स घटनाओं के साथ. गेस्ट हाउस कांड.
सुप्रीमो रहने की आदत
लंबे अरसे से मायावती वन मैन शो की तरह बसपा को चला रही हैं. जहां वे सिर्फ आदेश देती हैं और बाकी उसका पालन करते हैं. उनका ये मिजाज एक गठबंधन सरकार का मुखिया बनने में सबसे बड़ा रोड़ा है. यूपी की सभाओं में ही वे सपा कार्यकर्ताओं को सबक सिखाने से नहीं चूकतीं. चुनाव नतीजे आने तक किसी नेता के ये नखरे गठबंधन के दल सिर-आखों पर रख लेते हैं लेकिन जब सारी तस्वीर सामने आ जाएगी तो क्या ऐसा हो सकेगा? और मायावती के पास ही ये सब बर्दाश्त करने की कितनी क्षमता है?
दागदार अतीत
लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव प्रचार में मोदी लगभग हर सभा में अपनी ईमानदार छवि और ईमानदार सरकार का बखान कर रहे हैं. ऐसे में यदि एनडीए की सरकार नहीं बन पाती है तो विपक्ष पर दबाव होगा कि वे मोदी के विकल्प के तौर पर एक ऐसा प्रधानमंत्री देश के सामने रखें जिसकी छवि ईमानदार हो. मायावती का केस यहीं कमजोर पड़ जाता है. ताज कॉरिडोर, आय से अधिक संपत्ति जैसे भ्रष्टाचार के कई मामले उनका बायोडेटा दागदार बनाते हैं.
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