सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के फैसले के बाद अंततः महाराष्ट्र (Maharashtra) की दवेंद्र फडणनवीस (Devendra Fadnavis) सरकार की दूसरी पारी महज 80 घंटों में खत्म हो गयी. सरकार को 24 घंटे में सदन में बहुमत सि़द्ध करना था लेकिन इस सारे खेल के तमाशाई करिश्मा और सिपाहसालार उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Ajit Pawar) के त्यागपत्र देने के बाद उनके पास इस्तीफा देने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा. राजनैतिक रूप से भाजपा (BJP) की यह नैतिक पराजय है. भाजपा को सरकार बनाने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी. उसे देखो और इंतजार करो की नीति पर आगे बढ़ना था. महाराष्ट्र में सरकार बनाने में केंद्रीय नेतृत्व को संयम बरतना चाहिए था. लेकिन भाजपा ने अजित पवार पर भरोसा कर सियासत में चैंकाने वाला फैसला लिया. जिसकी सजा उसे भुगतनी पड़ी. अमित शाह (Amit Shah) की चाणक्य नीति को पवार ने जो पटखनी दी, उसे भाजपा शायद कभी भूल नहीं सकती. शरद पवार (Sharad Pawar) ने भाजपा के खिलाफ असंभव एकजुटता को संभव कर दिखाया.
मराठा राजनीति की साख बचाने में पवार पूरी तरह कामयाब हुए. जबकि सत्ता चाहत में भाजपा खुद के बुने जाल में उलझ गई. गोवा, मणिपुर की तरह उसकी चाल सफल नहीं हो पायी. भाजपा को यह पूरा भरोसा था कि अजित पवार एनसीपी को फाड़ कराने में कामयाब हो सकते हैं, लेकिन उसकी यह सोच उसी पर भारी पड़ी. भाजपा को अपनी सियासी महत्वाकांक्षा किनारे कर चुप बैठ जाना था. लेकिन सरकार बनाने के लिए केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर फडणवीस ने जो कदम उठाया वह खुद आत्मघाती साबित हुआ. भाजपा जब इस दौड़ से बाहर हो गयी थी तो उसे तटस्थ रहना चाहिए था और मौके का इंतजार करना चाहिए था. लेकिन भाजपा की यह सबसे बड़ी राजनीतिक भूल कही जाएगी. भाजपा निश्चित रुप से इस घटनाक्रम सबक लेगी.
सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के फैसले के बाद अंततः महाराष्ट्र (Maharashtra) की दवेंद्र फडणनवीस (Devendra Fadnavis) सरकार की दूसरी पारी महज 80 घंटों में खत्म हो गयी. सरकार को 24 घंटे में सदन में बहुमत सि़द्ध करना था लेकिन इस सारे खेल के तमाशाई करिश्मा और सिपाहसालार उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Ajit Pawar) के त्यागपत्र देने के बाद उनके पास इस्तीफा देने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा. राजनैतिक रूप से भाजपा (BJP) की यह नैतिक पराजय है. भाजपा को सरकार बनाने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी. उसे देखो और इंतजार करो की नीति पर आगे बढ़ना था. महाराष्ट्र में सरकार बनाने में केंद्रीय नेतृत्व को संयम बरतना चाहिए था. लेकिन भाजपा ने अजित पवार पर भरोसा कर सियासत में चैंकाने वाला फैसला लिया. जिसकी सजा उसे भुगतनी पड़ी. अमित शाह (Amit Shah) की चाणक्य नीति को पवार ने जो पटखनी दी, उसे भाजपा शायद कभी भूल नहीं सकती. शरद पवार (Sharad Pawar) ने भाजपा के खिलाफ असंभव एकजुटता को संभव कर दिखाया.
मराठा राजनीति की साख बचाने में पवार पूरी तरह कामयाब हुए. जबकि सत्ता चाहत में भाजपा खुद के बुने जाल में उलझ गई. गोवा, मणिपुर की तरह उसकी चाल सफल नहीं हो पायी. भाजपा को यह पूरा भरोसा था कि अजित पवार एनसीपी को फाड़ कराने में कामयाब हो सकते हैं, लेकिन उसकी यह सोच उसी पर भारी पड़ी. भाजपा को अपनी सियासी महत्वाकांक्षा किनारे कर चुप बैठ जाना था. लेकिन सरकार बनाने के लिए केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर फडणवीस ने जो कदम उठाया वह खुद आत्मघाती साबित हुआ. भाजपा जब इस दौड़ से बाहर हो गयी थी तो उसे तटस्थ रहना चाहिए था और मौके का इंतजार करना चाहिए था. लेकिन भाजपा की यह सबसे बड़ी राजनीतिक भूल कही जाएगी. भाजपा निश्चित रुप से इस घटनाक्रम सबक लेगी.
महाराष्ट्र में अब एनसीपी- शिवसेना और कांग्रेस गठबंधन की सरकार होगी. उद्धव बालासाहब ठाकरे महाविकास अघाड़ी सरकार के मुखिया होंगे. तीनों दलों के विधायक दल की मीटिंग में उन्हें इस गठबंधन का नेता चुना गया है. सरकार बनाने के लिए संबंधित दल राजभवन भी पहुंच गए. महाराष्ट्र में एक बार फिर हिंदुत्व का परचम लहराएगा. यह दीगर बात है इस बार सरकार भाजपा-शिवसेना के बजाय महाविकास अघाड़ी की होगी. उद्धव के नेता चुने जाने पर यह सवाल उठाए जा रहे हैं कि शिवसेना के प्रखर हिंदुत्व का क्या होगा. आमतौर पर मुसलमानों पर शिवसेना काफी उग्र रहती है, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के साथ कैसे निभेगी. कई तरह के सवाल हैं जिसका प्रतिउत्तर फिलहाल भविष्य के गर्भ में हैं. लेकिन उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में एक उदारवादी नेता हैं. उनपर प्रखर हिंदुत्व का आरोप भले लगता हो, लेकिन उनकी तरफ से कभी ऐसी बातें सामने नहीं आईं जिसकी वजह से किसी को गहरा घाव लगे. भाजपा सरकार में रहते हुए भी उन्होंने अपनी एक अलग छवि बनाई. शिवसेना के मुखपत्र सामना में ठाकरे ने भाजपा की नीतियों का खुलकर विरोध किया. शिवसेना ने सत्ता में रहते हुए भी एक प्रतिपक्ष की भूमिका निभायी और सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ मुखर रही. महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार की अपनी एक अलग मिसाल है. हालांकि ठाकरे परिवार से उद्धव पहले ऐसे व्यक्ति होंगे जो मुख्यमंत्री की कमान संभलेंगे.
महाराष्ट्र के होने वाले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने साफ कर दिया है कि उनकी पहली प्राथमिकता किसानों की समस्या होगी. क्योंकि बारिश की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. किसानों के आंसू नहीं छलकने देंगे. हिंदुत्व को लेकर उन्होंने साफ कर दिया है कि मेरा हिंदुत्व कभी गलत कार्यों का समर्थन नहीं करता है. उद्धव ने यह भी कहा कि भाजपा की घृणित राजनीति की वजह से दोस्ती टूटी. शरद पवार के साथ उन्होंने सोनिया गांधी को भी धन्यवाद दिया. जबकि गांधी परिवार से कभी शिवसेना का आंकड़ा छत्तीस का था.
शिवसेना की इस पूरी राजनीति में संजय राउत बड़ी भूमिका में उभरे हैं. राउत की रणनीति की वजह से कांग्रेस और एनसीपी एक मंच पर आने में कामयाब हुई हैं. कांग्रेस और एनसीपी की विचारधारा शिवसेना के एकदम उलट थी, लेकिन तीनों दलों को एक साथ लाने में संजय राउत ने खास भूमिका निभाई भाजपा-शिवसेना के सियासी झगड़े में संजय राउत पूरी तरह अड़िग रहे और बार-बार कहते रहे कि मुख्यमंत्री शिवसेना ही होगा. हिंदू ह्दय सम्राट बालासाहब ठाकरे के बाद मातोश्री एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति का पावर सेंटर होगा. आने वाले दिनों में शिवसेना और उसके कार्यकर्ताओं पर सरकार चालाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी.
महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी मुखिया शरद पवार मराठा छत्रप के रुप में उभरे हैं. महाराष्ट्र की राजनीति का पावर पालटिक्स रिमोट शरद पवार के पास होगा. यह बात दीगर है कि सरकार की उम्र क्या होगी. भाजपा ने जिस तरह मणिपुर, गोवा और हरियाणा में सरकार बनायी उसी राजनीति को वह महाराष्ट्र में भी कामयाब करती दिख रही थी. जिसे लेकर कांग्रेस और दूसरे दलों की चिंता बढ़ती जा रही थी. अंततः विचारधारा को खूंटी में टांग सभी को एकमंच पर आना पड़ा. अगर भाजपा कश्मीर में पीडीपी और बिहार में नीतिश के साथ सरकार बना सकती है तो महाराष्ट्र में अलग-अलग विचारधारा के बाद भी एक जुटता क्यों नहीं हो सकती. इस पूरे सियासी घटनाक्रम में शरद पवार ने बेहद अहम भूमिका निभाई. इसे केवल महाराष्ट्र की राजनीति तक सीमित रखकर नहीं देखना चाहिए. इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी दूरगामी होगा.
शरद पवार खुद को मराठा छत्रप साबित करने में कामयाब हुए हैं. उन्होंने बेहद चालाकी से भतीजे अजित पवार के पंख काटने का काम किया. जिसकी वजह से अजित पवार को पुनः घर लौटना पड़ा. अगर पवार अपना पावर नहीं दिखाते तो उनका सियासी अस्तित्व सिमट जाता. क्योंकि राजनीति में उनका विश्वास खत्म हो जाता. लिहाजा उन्होंने भतीजे अजीत को उनकी लक्ष्मण रेखा का ख़्याल कराया.
भाजपा ने जिस चालाकी से अजित पवार को अपने पाले में लेकर पवार परिवार में फूट डालने की साजिश रची उसे मराठा छत्रप ने ध्वस्त कर दिया. अजित पवार के भाजपा खेमे में जाने के बाद शरद पवार पर यह आरोप भी लगे कि इसमें पवार की साजिश हो सकती है. लेकिन अततः उद्धव को गठबंधन का नेता चुन अपना स्टैंड साफ कर दिया. भाजपा को साफ-साफ संदेश देने में भी कामयाब हुए कि पवार से पंगा लेना आसान काम नहीं है. पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में भाजपा बेहद कमजोर साबित हुई है. दूसरी पारी में कूदने की वजह से उसकी सियासी किरकिरी हुई है. राजभवन ने संविधान को ताक पर रखकर जिस तरह की जल्दबाजी दिखाई उससे भी राज्यपाल की छवि को नुकसान पहुंचा है. सत्ता के लिए राजनीतिक दलों को ऐसी राजनीति से बचाना होगा. हमें हर हाल में लोकतांत्रिक और संविधानिक मान्यताओं को अक्षुण्य रखना होगा.
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