भारत में कोविड टीकाकरण (Corona Vaccination) की गति एक बार फिर से सुधार की ओर लौट रही है. 21 जून से नई गाइडलाइंस के साथ शुरू हुए कोविड टीकाकरण के के बाद तीन दिनों 2 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन (Vaccine) की डोज लगाई जा चुकी हैं. भारत सरकार की ओर से टीकाकरण को लेकर जारी रोडमैप के अनुसार, इस साल दिसंबर के अंत तक सभी लोगों का वैक्सीनेशन पूरा कर लिया जाएगा. सरकार की ओर से अपील की जा रही है कि वैक्सीन की उपलब्धता के आधार पर लोग जल्द से जल्द टीका लगवा लें. लेकिन, ऐसा लगता है कि देश में अभी भी कुछ बुद्धिजीवी ऐसे हैं, जिन्होंने वैक्सीन को लेकर भ्रामक खबरें फैलाने का ठेका लिया हुआ है.
जाने माने वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) भी उनमें से एक हैं और एंटी कोविड वैक्सीन को लेकर डराने वाली खबरें शेयर करते रहते हैं. ये सभी खबरें उसी तरह की हैं, जैसी वैक्सीनेशन के बाद ब्लड क्लॉटिंग के मामलों के लेकर रिपोर्ट आई थीं. दरअसल, भारत में मई महीने में हुए कुल टीकाकरण के बाद मात्र 26 लोगों में ब्लड क्लॉटिंग के केस मिले थे. रिपोर्ट के हिसाब से ये मामले वैक्सीनेशन का 0.61 फीसदी थे. प्रशांत भूषण भी ऐसी ही कई पुरानी रिपोर्ट्स का हवाला देकर तकरीबन हर रोज वैक्सीनेशन के खिलाफ कोई नया शिगूफा खोज लाते हैं. उनकी ऐसी कोशिशों को देखकर यही लगता है कि कोई प्रशांत भूषण को समझाए कि वो वकील हैं, वैज्ञानिक नहीं.
प्रशांत भूषण ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और एम्स (AIIMS) के सीरो सर्वे (sero survey) के हवाला देते हुए ट्वीट किया है कि 70 फीसदी से ज्यादा लोगों में कोविड-19 से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज (Antibodies) मौजूद हैं. बच्चों में भी एंटीबॉडीज बड़ी...
भारत में कोविड टीकाकरण (Corona Vaccination) की गति एक बार फिर से सुधार की ओर लौट रही है. 21 जून से नई गाइडलाइंस के साथ शुरू हुए कोविड टीकाकरण के के बाद तीन दिनों 2 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन (Vaccine) की डोज लगाई जा चुकी हैं. भारत सरकार की ओर से टीकाकरण को लेकर जारी रोडमैप के अनुसार, इस साल दिसंबर के अंत तक सभी लोगों का वैक्सीनेशन पूरा कर लिया जाएगा. सरकार की ओर से अपील की जा रही है कि वैक्सीन की उपलब्धता के आधार पर लोग जल्द से जल्द टीका लगवा लें. लेकिन, ऐसा लगता है कि देश में अभी भी कुछ बुद्धिजीवी ऐसे हैं, जिन्होंने वैक्सीन को लेकर भ्रामक खबरें फैलाने का ठेका लिया हुआ है.
जाने माने वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) भी उनमें से एक हैं और एंटी कोविड वैक्सीन को लेकर डराने वाली खबरें शेयर करते रहते हैं. ये सभी खबरें उसी तरह की हैं, जैसी वैक्सीनेशन के बाद ब्लड क्लॉटिंग के मामलों के लेकर रिपोर्ट आई थीं. दरअसल, भारत में मई महीने में हुए कुल टीकाकरण के बाद मात्र 26 लोगों में ब्लड क्लॉटिंग के केस मिले थे. रिपोर्ट के हिसाब से ये मामले वैक्सीनेशन का 0.61 फीसदी थे. प्रशांत भूषण भी ऐसी ही कई पुरानी रिपोर्ट्स का हवाला देकर तकरीबन हर रोज वैक्सीनेशन के खिलाफ कोई नया शिगूफा खोज लाते हैं. उनकी ऐसी कोशिशों को देखकर यही लगता है कि कोई प्रशांत भूषण को समझाए कि वो वकील हैं, वैज्ञानिक नहीं.
प्रशांत भूषण ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और एम्स (AIIMS) के सीरो सर्वे (sero survey) के हवाला देते हुए ट्वीट किया है कि 70 फीसदी से ज्यादा लोगों में कोविड-19 से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज (Antibodies) मौजूद हैं. बच्चों में भी एंटीबॉडीज बड़ी मात्रा में पाई गई हैं. प्रशांत भूषण के हिसाब से सीरो सर्वे में सामने आ चुकी इन सब बातों के बाद भी वैक्सीनेशन को बढ़ाने के लिए डर फैलाया जा रहा है. वैसे, प्रशांत भूषण का ये ट्वीट जानकारी के लिहाज से सही कहा जा सकता था, अगर वो इस ट्वीट में बाकायदा ब्रेकेट लगाकर gives better immunity than vaccines न लिखते तो. माना जा सकता है कि वैक्सीन की जीवन रक्षक क्षमता को लेकर प्रशांत भूषण अभी तक संशय में हैं. लेकिन, क्या उऩसे ऐसी भ्रामक खबरों को लेकर सवाल नहीं किए जाने चाहिए? सीरो सर्वे के हिसाब से 70 फीसदी से ज्यादा लोगों में एंटीबॉडीज मौजूद हैं, तो वो बच जाएंगे. लेकिन, बाकी बचे 30 फीसदी लोग कोरोना संक्रमित होते हैं, तो उनका क्या होगा? वो किस आधार पर कह रहे हैं कि ये लोग कोरोना की तीसरी लहर में संक्रमित नहीं हो सकते हैं?
एंटीबॉडीज पर वैज्ञानिक भी एकमत नहीं
एंटीबॉडीज को लेकर अभी वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं. कुछ का मानना है कि एंटीबॉडीज एक साल तक शरीर में रह सकती हैं, तो कई का कहना है कि कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद यह धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं. एंटीबॉडीज पर शोध करने वाले किसी भी वैज्ञानिक ने वैक्सीन न लगवाने की वकालत नहीं की है. हां, इन वैज्ञानिकों का ये जरूर कहना है कि शरीर में एंटीबॉडीज होने का मतलब ये नहीं है कि एक बार कोरोना संक्रमित होने के बाद कोई दोबारा संक्रमित नहीं होगा. तमाम शोधों में कहा गया है कि ये बिल्कुल नए तरह का वायरस है और इसके अलग-अलग वेरिएंट सामने आ रहे हैं. जिनसे बचने का एक ही उपाय है वैक्सीन. अब हर शख्स प्रशांत भूषण की तरह दिनभर एसी रूम में तो गुजारता नहीं है. ना ही इस देश के हर आदमी के पास इतना पैसा है कि वह कोरोना संक्रमित होने के बाद अस्पतालों में होने वाला लाखों का खर्चा उठा सके.
फिर तो आनी ही नही थी कोरोना की दूसरी लहर
देश के तमाम हेल्थ एक्सपर्ट्स लगातार कह रहे हैं कि सीरो सर्वे की रिपोर्ट का मतलब ये नहीं है कि कोरोना का खतरा खत्म हो गया है. लोगों को अभी भी कोविड-एप्रोपिएट बिहेवियर अपनाना होगा और कोरोना के मामले में लापरवाही की गुंजाइश रत्ती भर भी नहीं है. प्रशांत भूषण जिस सीरो सर्वे की बात कर रहे हैं, उसके लिए एम्स ने मार्च में सैंपल लिए थे. सीरो सर्वे की रिपोर्ट में अर्बन एरिया के तौर पर साउथ दिल्ली से सैंपल लिए गए थे. जिनमें करीब 74 फीसदी लोगों में एंटीबॉडीज पाई गई थीं. लेकिन, इसके बावजूद कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में दिल्ली भी आया था. प्रशांत भूषण के कहे को माना जाए, तो दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर आनी ही नहीं चाहिए थी. फिर भी दिल्ली कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले राज्यों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर आ गया था. इस दौरान कोरोना संक्रमण से सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी. क्या प्रशांत भूषण ये बताएंगे कि दिल्ली के लोगों में एंटीबॉडीज होने के बाद भी राज्य कोरोना की चपेट में क्यों आ गया?
वैक्सीन ही बचाव है
इस बात में कोई शक नहीं है कि सीरो सर्वे कोरोना से लड़ने में मददगार साबित होते हैं. लेकिन किसी भी सर्वे में कुछ लोगों के सैंपल लेकर उसकी जांच की जाती है. क्या कुछ हजार लोगों के सैंपल के आधार पर 140 करोड़ लोगों के सुरक्षित होने का दावा किया जा सकता है. कोरोना की दूसरी लहर ने देशभर में जो तबाही मचाई थी, उसके बाद शायद ही कोई ये कहेगा कि वैक्सीनेशन की जरूरत नही है. आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीनेशन के बाद अस्पताल में भर्ती होने के संभावना 80 फीसदी तक घट जाती है. केंद्र सरकार के अनुसार, देश में 18+ के करीब 96 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन किया जाएगा. बच्चों के लिए भी वैक्सीन ट्रायल मोड में है. सभी लोगों से गुजारिश है कि इस दौरान लोग सीरो सर्वे के भरोसे बैठकर लापरवाही न करें. मास्क, हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहें. साथ ही कोशिश करें कि प्रशांत भूषण की ओर से दी जारी भ्रामक जानकारियों के जाल में न फंसें. वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, वही बता सकते हैं. लेकिन इतना तय है कि प्रशांत भूषण वकील हैं, वैज्ञानिक नहीं.
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