प्रशांत किशोर को अपनी राजनीति चमकाने के लिए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सख्त जरूरत है. चुनाव कैंपेन के जरिये शोहरत हासिल करने वाले प्रशांत किशोर को मीडिया की सुर्खियों में बने रहना अच्छी तरह आता है. जो काम अब तक वो अपने क्लाइंट के लिए किया करते थे, वही तरीका फिलहाल अपने लिए आजमा रहे हैं - और बड़े आराम से उनको अपने हिस्से की कामयाबी मिल भी रही है.
ये तो प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की गतिविधियां भी बता रही हैं कि अपनी जमीन की तलाश के साथ साथ किसी और के लिए भी काम कर रहे हैं - और प्रशांत किशोर की हालिया कवायद का हर ऐक्ट बीजेपी के पक्ष में जा रहा है, ये भी हर कोई अच्छी तरह समझ ही रहा है.
बीच बीच में नीतीश कुमार भी रिएक्शन दे देते हैं. कभी कभी तो ये कहते हुए भी प्रतिक्रिया दे देते हैं कि अब रोज रोज एक ही आदमी के बारे में क्या बोलना. फिर कोई ऐसी बात भी बोल देते हैं कि प्रशांत किशोर को भी कुछ कहे बिना चैन न मिल पाये - और फिर प्रशांत किशोर भी वही करते हैं जो नीतीश कुमार चाहते हैं.
नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर दोनों ही, समझा जाये तो, अपने अपने फायदे के लिए अनुभव और बुद्धि का भरपूर इस्तेमाल करते हुए प्रमोट कर रहे हैं - और ये भी लगता है कि दोनों के तकरारपूर्ण रवैये में कॉमन फैक्टर बीजेपी ही है.
अगर प्रशांत किशोर सीधे सीधे बोल देते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री अब भी बीजेपी से जुड़े हुए हैं तो नीतीश कुमार भी अपने हाव-भाव और बातों से एक तरीके का कबूलनामा ही जारी कर देते हैं - और कहने को तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते ही हैं, समझने वाले समझ गये हैं, जो ना समझें वो...
प्रशांत किशोर अभी बिहार में जनसुराज यात्रा पर निकले हैं. वो जगह जगह स्थानीय...
प्रशांत किशोर को अपनी राजनीति चमकाने के लिए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सख्त जरूरत है. चुनाव कैंपेन के जरिये शोहरत हासिल करने वाले प्रशांत किशोर को मीडिया की सुर्खियों में बने रहना अच्छी तरह आता है. जो काम अब तक वो अपने क्लाइंट के लिए किया करते थे, वही तरीका फिलहाल अपने लिए आजमा रहे हैं - और बड़े आराम से उनको अपने हिस्से की कामयाबी मिल भी रही है.
ये तो प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की गतिविधियां भी बता रही हैं कि अपनी जमीन की तलाश के साथ साथ किसी और के लिए भी काम कर रहे हैं - और प्रशांत किशोर की हालिया कवायद का हर ऐक्ट बीजेपी के पक्ष में जा रहा है, ये भी हर कोई अच्छी तरह समझ ही रहा है.
बीच बीच में नीतीश कुमार भी रिएक्शन दे देते हैं. कभी कभी तो ये कहते हुए भी प्रतिक्रिया दे देते हैं कि अब रोज रोज एक ही आदमी के बारे में क्या बोलना. फिर कोई ऐसी बात भी बोल देते हैं कि प्रशांत किशोर को भी कुछ कहे बिना चैन न मिल पाये - और फिर प्रशांत किशोर भी वही करते हैं जो नीतीश कुमार चाहते हैं.
नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर दोनों ही, समझा जाये तो, अपने अपने फायदे के लिए अनुभव और बुद्धि का भरपूर इस्तेमाल करते हुए प्रमोट कर रहे हैं - और ये भी लगता है कि दोनों के तकरारपूर्ण रवैये में कॉमन फैक्टर बीजेपी ही है.
अगर प्रशांत किशोर सीधे सीधे बोल देते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री अब भी बीजेपी से जुड़े हुए हैं तो नीतीश कुमार भी अपने हाव-भाव और बातों से एक तरीके का कबूलनामा ही जारी कर देते हैं - और कहने को तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते ही हैं, समझने वाले समझ गये हैं, जो ना समझें वो...
प्रशांत किशोर अभी बिहार में जनसुराज यात्रा पर निकले हैं. वो जगह जगह स्थानीय मुद्दे उठा रहे हैं. लोगों से बात कर रहे हैं. बिहार में बदलाव का भरोसा दिला रहे हैं. बीच बीच में ये डिस्क्लेमर भी छोड़ देते हैं कि वो विकल्प बनने की कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि बिहार के लोगों को आगे लाकर बेहतर विकल्प देने की कोशिश में जुटे हैं - वो जानते हैं कि लोग उनकी बातों पर भरोसा नहीं कर सकते - और अरविंद केजरीवाल की तरह उनके पास कोई अन्ना हजारे भी नहीं हैं, लिहाजा लोगों को आगे कर खुद पीछे खड़े होने की बात कर रहे हैं.
लेकिन प्रशांत किशोर जो कुछ भी कर रहे हैं, एक सवाल बरबस उठता है - 'पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?' हो सकता है ये सवाल बहुतों के मन में हो, और खुद प्रशांत किशोर भी इसे समझते हों. नीतीश कुमार को लेकर तो लोग मानते हैं कि वो सब समझते हैं. जैसे पब्लिक सब समझती है.
नीतीश कुमार के मन में वास्तव में क्या चल रहा है ये तो वो ही जानें, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि अभी वो पाला बदलने वाले हैं. ये सब करने के लिए वो पूरा वक्त लेते हैं. पूरी तैयारी करते हैं. पूरा बंदोबस्त करते हैं. कहीं कोई लूपहोल नहीं छोड़ते जिसका कोई एक पक्ष बेजा इस्तेमाल कर सके - महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में जाने और फिर वापस लौटने के घटनाक्रम को देखें तो सब कुछ साफ साफ नजर आता है.
नीतीश अब क्यों 'जंगलराज' की याद दिला रहे हैं?
ये भी कितना दिलचस्प है कि प्रशांत किशोर के हमलों के बीच नीतीश कुमार बातों बातों में यूं ही 'जंगलराज' का जोर शोर से जिक्र करने लगते हैं. अब कोई ये भी सोच सकता है कि आखिर नीतीश कुमार को इस बात की परवाह क्यों नहीं रही कि उसी मंच पर बगल में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) बैठे हुए हैं?
अव्वल तो जिस जंगलराज के जरिये नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिल कर लालू-राबड़ी परिवार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं - तेजस्वी यादव कई बार माफी मांग चुके हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान तो ऐसा कदम कदम पर महसूस भी किया गया. तभी तो तेजस्वी यादव ने बैनर पोस्टर से भी पूरे परिवार के चेहरे हटा दिये थे.
नीतीश कुमार जानते हैं कि जिस तरीके से वो जंगलराज का जिक्र कर रहे हैं, तेजस्वी यादव को बुरा लग सकता है, लेकिन वो ये भी जानते हैं कि हर किसी की अपनी मजबूरियां होती हैं. जब नीतीश कुमार की खुद की मजबूरियां होती हैं तो वो भी चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन जैसे ही मौका मिलता है दहाड़ना शुरू कर देते हैं.
ऐसा ही मौका नीतीश कुमार को एक सरकारी कार्यक्रम में मिल गया और वो शुरू हो गये, 'पहले... भूल मत जाइये, क्या हाल था? पटना में भी रहते थे, चलते थे, त कइसा लगता था पटना? कहीं कोई दुकान दिखता था जी? आ शाम होते-होते सब बंद हो जाता था... आज कर देख रहे हैं... त कितना ज्यादा विकसित हुआ है?
महागठबंधन में रह कर नीतीश कुमार के मुंह से ये सब सुनना थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन ये सब नीतीश कुमार की राजनीति का ही हिस्सा है.
1. बीजेपी को जवाब देने की कोशिश है: नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ कर महागठबंधन पहुंचते ही बीजेपी नेता बिहार में फिर से जंगलराज की याद दिलाने लगे थे - ऐसा बयान देकर नीतीश कुमार बीजेपी के प्रोपेगैंडे को न्यूट्रलाइज करने की कोशिश कर रहे हैं.
जब नीतीश कुमार इस तरह जंगलराज का जिक्र करेंगे और आरजेडी की तरफ से भी कोई तगड़ा रिएक्शन नहीं होगा तो बीजेपी नीतीश कुमार को घेरने का कोई और तरीका खोजने में जुट जाएगी - और नीतीश कुमार यही तो चाहते हैं.
तेजस्वी यादव की मौजूदगी में जंगलराज का जिक्र एक तरह से बीजेपी को नीतीश कुमार का जवाब है - बीजेपी नेतृत्व बिहार में पैठ बनाने का कोई और तरीका ढूंढे. जंगलराज के नाम पर बिहार का मुख्यमंत्री बनना और फिर बने रहना, ये सिर्फ नीतीश कुमार के पास पेटेंट अधिकार है.
2. लालू परिवार को आगाह कर रहे हैं: नीतीश कुमार जानते हैं कि महागठबंधन में सरकार चलाना कितना मुश्किल काम होता है. मजबूरी ऐसी है कि जानते समझते हुए भी जहर का घूंट पीने की मजबूरी है - लेकिन जिस तरह से वो अपनी प्रेशर पॉलिटिक्स की बदौलत बीजेपी को उसकी हदें समझाते रहे, ठीक वही मैसेज तेजस्वी यादव और लालू यादव को देने की कोशिश कर रहे हैं.
नीतीश कुमार अपने हिसाब से लालू यादव और तेजस्वी यादव को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे किसी मुगालते में न रहें, सरकार को सपोर्ट करने का मतलब गुलामों जैसा व्यवहार करना नहीं होता. पार्टनरशिप में दोनों की बराबर अहमियत होती है. ये बात बीजेपी तो अभी समझ ही रही होगी, आरजेडी नीतीश कुमार सीधे सीधे समझा रहे हैं.
अब सवाल है कि अगर अकेले में तेजस्वी यादव ने पूछ लिया कि चाचा ये आप क्या कर रहे हैं, तो नीतीश कुमार क्या जवाब देंगे?
हो सकता है नीतीश कुमार ये समझाने की कोशिश करें कि वो तो तेजस्वी यादव को ही आगे बढ़ाने के लिए ये सब कर रहे हैं. ऐसा करके वो लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तेजस्वी यादव उनके साथ हैं तो नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के तौर पर जो शासन व्यवस्था होगी, तेजस्वी यादव उस पर जंगलराज की छाया नहीं पड़ने देंगे - अब तेजस्वी यादव ऐसे झांसे में पड़ते हैं कि नहीं ये तो उनके रिएक्शन से ही मालूम होगा.
3. सीधे सीधे बिहार के लोगों को संबोधित कर रहे हैं: ये तो नीतीश कुमार ही जानते हैं कि आरजेडी के साथ शासन करना फजीहत है, और बीजेपी के साथ राजनीतिक अस्तित्व पर दांव लगाना पड़ता है - शायद यही वजह है कि वो सीधे लोगों से संवाद करना जरूरी मान कर चल रहे हैं.
नीतीश कुमार अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं. लोगों से कह रहे हैं कि बिहार को जंगलराज से मुक्ति खुद उन्होंने दिलायी है - न कि ये सब बीजेपी की बदौलत हुआ है और ऐसा वो महागठबंधन का नेता होते हुए भी डंके की चोट पर कह सकते हैं.
ज्यादा चालाक बनने के चक्कर में ऐसा ही होता है
प्रशांत किशोर जब तब नीतीश कुमार का नाम लेकर अपनी दुकान चलाते रहना चाहते हैं - और नीतीश कुमार प्रशांत किशोर का इस्तेमाल करने लगे हैं. प्रशांत किशोर ये कैसे भूल जाते हैं कि 'एक ठठेरे से दूसरे की अदला बदली नहीं होती'. ठठेरा बर्तन के कारोबार का स्वर्णकार होता है - और कोई चाहे कि झांसा देकर निकल जाएगा तो ये उसकी समझ को एक्सपोज कर रहा है.
नीतीश कुमार और बीजेपी की नजदीकियां दिखाने के लिए प्रशांत किशोर ट्विटर पर लिखते हैं, ‘नीतीश कुमार जी... अगर आपका बीजेपी और एनडीए से कोई लेना देना नहीं है, तो अपने सांसद को राज्य सभा का उपसभापति का पद छोड़ने के लिए कहें... हर वक्त आपके दोनों हाथों में लड्डू नहीं हो सकते.’
प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को अपने ट्वीट में टैग नहीं किया है, बल्कि उनका नाम हैशटैग के तौर पर इस्तेमाल किया है - और निश्चित तौर पर ऐसा करने की भी कोई खास वजह होगी ही. प्रशांत किशोर का कहना है, 'जो लोग ये सोच रहे हैं कि नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन बना रहे हैं, उनके लिए सरप्राइज है कि वो बीजेपी के साथ एक लाइन खुली रखे हुए हैं... वो अपने राज्य सभा सांसद और उपसभापति हरिवंश के जरिये बीजेपी के संपर्क में हैं.'
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने प्रशांत किशोर के दावों को खारिज किया है, 'हम उनके दावों का खंडन करते हैं... नीतीश कुमार पचास साल से ज्यादा समय से सक्रिय राजनीति में हैं - और प्रशांत किशोर छह महीने से... भ्रम फैलाने के लिए... ये भ्रामक टिप्पणी की है.'
ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार किसी को भी ये मुगालता नहीं पालने देना चाहते कि वो किसी एक के भरोसे बैठे हैं. वो असल में बीजेपी और आरजेडी को बारी बारी आजमा रहे हैं. बेहतर होगा ये कहना कि इस्तेमाल कर रहे हैं. दोनों ही दलों के साथ प्रेशर पॉलिटिक्स का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं - जैसे महागठबंधन में आकर नीतीश कुमार ने बीजेपी को समझाने की कोशिश की है, अब आरजेडी को भी वही सब समझा रहे हैं.
2020 में जेडीयू की सीटें कम आने के बाद मुख्यमंत्री बन कर भी नीतीश कुमार जितना मजबूर नजर आ रहे थे, धीरे धीरे दबाव बना कर उबरने लगे - और लगे हाथ अपनी तैयारी भी करते रहे. जो कुछ हुआ वो कोई एक दिन में नहीं हुआ. सब कुछ फूल प्रूफ किया.
और जो प्रेशर पॉलिटिक्स नीतीश कुमार तब बीजेपी के खिलाफ आजमा रहे थे, अब ठीक वही आरजेडी के खिलाफ शुरू कर चुके हैं - बाकी किसी के लिए चिंता वाली कोई बात नहीं लगती.
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