प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) भी कांग्रेस में राहुल गांधी की भूमिका में आ चुके हैं. दोनों ही के पास कोई पद नहीं है, लेकिन दोनों ही अपना अपना काम पूरी शिफ्ट में कर रहे हैं. जैसे राहुल गांधी के लिए कांग्रेस में अध्यक्ष पद करीब करीब हरदम कंफर्म रहता है, प्रशांत किशोर के लिए भी महासचिव का पद अलॉट हुआ है लेकिन स्टेटस आरएसी है - और दोनों ही चाहें तो खुद को शिफ्ट पूरी होने के बाद पूरी तरफ फ्री भी महसूस करते होंगे क्योंकि दोनों ही मामलों में किसी कागज पर दस्तखत करने जैसी कोई मजबूरी नहीं है.
गांधी परिवार (Gandhi family) के साथ 'रिश्ता पक्का समझें?' जैसे सवाल के जवाब आने से पहले ही कांग्रेस (Congress) की तरफ से प्रशांत किशोर को लेकर सगाई टाइप की या कहें कि छेका डाल देने जैसी आधिकारिक घोषणा हो चुकी है. चुनावी लगन शुरू होने से पहले शॉपिंग को लेकर कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं - और खास बात ये है कि राहुल गांधी विदेश दौरे पर चले जाने से भी बैठकें प्रभावित नहीं हुई हैं. मतलब, दोनों ही अपना अपना काम मनमाफिक कर रहे हैं.
बैठकों के बीच से निकल कर अचानक कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला सामने आते हैं और अपडेट देते हैं कि प्रशांत किशोर के प्रस्तावों का मूल्यांकन किया जा रहा है. कहते हैं, 'कई अन्य लोगों के इनपुट पर भी विचार किया जा रहा है - और अगले 72 घंटों के भीतर कांग्रेस अध्यक्ष को अंतिम रिपोर्ट सौंपी जाएगी.'
सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर के साथ कांग्रेस के रिश्ते को पक्का करने से पहले हर मामलों की तरह एक कमेटी बनायी है, जिसे परंपरानुसार रिपोर्ट के लिए हफ्ता भर का वक्त मिला है. अब कुछ घंटे ही शेष हैं.
टारगेट-2024 के लिए
प्रशांत किशोर खुद के महात्मा गांधी से प्रभावित होने का दावा करते हैं. अपने ट्विटर अकाउंट के कवर पर भी महात्मा गांधी की ही एक बात लिखी है, सबसे अच्छी राजनीति सही एक्शन होता है - और यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं के सामने अपने प्रजेंटेशन की शुरुआत भी वैसे ही करते हैं - 'कांग्रेस को कभी खत्म...
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) भी कांग्रेस में राहुल गांधी की भूमिका में आ चुके हैं. दोनों ही के पास कोई पद नहीं है, लेकिन दोनों ही अपना अपना काम पूरी शिफ्ट में कर रहे हैं. जैसे राहुल गांधी के लिए कांग्रेस में अध्यक्ष पद करीब करीब हरदम कंफर्म रहता है, प्रशांत किशोर के लिए भी महासचिव का पद अलॉट हुआ है लेकिन स्टेटस आरएसी है - और दोनों ही चाहें तो खुद को शिफ्ट पूरी होने के बाद पूरी तरफ फ्री भी महसूस करते होंगे क्योंकि दोनों ही मामलों में किसी कागज पर दस्तखत करने जैसी कोई मजबूरी नहीं है.
गांधी परिवार (Gandhi family) के साथ 'रिश्ता पक्का समझें?' जैसे सवाल के जवाब आने से पहले ही कांग्रेस (Congress) की तरफ से प्रशांत किशोर को लेकर सगाई टाइप की या कहें कि छेका डाल देने जैसी आधिकारिक घोषणा हो चुकी है. चुनावी लगन शुरू होने से पहले शॉपिंग को लेकर कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं - और खास बात ये है कि राहुल गांधी विदेश दौरे पर चले जाने से भी बैठकें प्रभावित नहीं हुई हैं. मतलब, दोनों ही अपना अपना काम मनमाफिक कर रहे हैं.
बैठकों के बीच से निकल कर अचानक कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला सामने आते हैं और अपडेट देते हैं कि प्रशांत किशोर के प्रस्तावों का मूल्यांकन किया जा रहा है. कहते हैं, 'कई अन्य लोगों के इनपुट पर भी विचार किया जा रहा है - और अगले 72 घंटों के भीतर कांग्रेस अध्यक्ष को अंतिम रिपोर्ट सौंपी जाएगी.'
सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर के साथ कांग्रेस के रिश्ते को पक्का करने से पहले हर मामलों की तरह एक कमेटी बनायी है, जिसे परंपरानुसार रिपोर्ट के लिए हफ्ता भर का वक्त मिला है. अब कुछ घंटे ही शेष हैं.
टारगेट-2024 के लिए
प्रशांत किशोर खुद के महात्मा गांधी से प्रभावित होने का दावा करते हैं. अपने ट्विटर अकाउंट के कवर पर भी महात्मा गांधी की ही एक बात लिखी है, सबसे अच्छी राजनीति सही एक्शन होता है - और यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं के सामने अपने प्रजेंटेशन की शुरुआत भी वैसे ही करते हैं - 'कांग्रेस को कभी खत्म नहीं होने दिया जा सकता, ये देश के साथ ही खत्म होगी.'
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को कुछ खास रणनीति अख्तियार करने की सलाह दी है - प्रशांत किशोर की मानें तो ऐसे रणनीतिक कदम उठाने से कांग्रेस को काफी फायदा मिल सकता है.
1. कांग्रेस को सबसे पहले नेतृत्व के मुद्दे को हल करना होगा. यानी राहुल गांधी तैयार न भी हों तो किसी को भी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालनी ही पड़ेगी. ये अंतरिम व्यवस्था ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली है.
2. कांग्रेस को अपने पुराने सिद्धांतों पर लौटना होगा. ऐसा लगता है कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस नेतृत्व की भटकाव भरी रणनीति नुकसानदेह लग रही है. मतलब, सॉफ्ट हिंदुत्व जैसे प्रयोग तो नहीं ही चलने वाले हैं.
3. प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के कम्युनिकेशन सिस्टम में बदलाव करने की जरूरत बतायी है. मतलब, साफ है कांग्रेस को भी अपने बीजेपी की ही तरह मजबूत आई सेल बनाना होगा. फिर तो रणदीप सुरजेवाला और केसी वेणुगोपाल की मीडिया ब्रीफिंग खुश रहने के ख्याल जैसी ही लगती है.
4. ग्राउंड लेवल पर कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को तैयार करना होगा. ये भी बीजेपी के बूथ लेवल के संगठन से मिलता जुलता लगता है. वैसे भी मुकाबला तो तभी हो पाएगा.
5. प्रशांत किशोर का इस बात पर भी जोर है कि विपक्षी खेमे में गठबंधन से जुड़े मुद्दे को सुलझाना ही होगा. मतलब, ये विपक्षी नेताओं के साथ राहुल गांधी के हफ्ता भर के प्रोग्राम से आगे बढ़ना होगा और ऐसा करने के लिए ममता बनर्जी के दौरे का इंतजार करने की जरूरत नहीं है.
पूरा एक्शन प्लान: प्रशांत किशोर ने कांग्रेस की पुरानी स्थिति बहाल करने के लिए धीरे धीरे आगे बढ़ने का सुझाव दिया है - और ऐसे उपायों के जरिये ही अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है.
1. प्रशांत किशोर की राय है कि पहली स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पूरे देश में चुनाव मैदान में उतरे. सिर्फ अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी करे.
2.दूसरी स्थिति ये बनती है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए कांग्रेस सभी पार्टियों के साथ आये - और यूपीए को मजबूत करने की कोशिश हो.
3.एक तीसरी स्थिति भी है - कुछ जगहों पर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़े और कुछ जगह सहयोगी दलों के साथ मिलकर. हर हाल में कांग्रेस अपनी राष्ट्रीय पार्टी की छवि को भी बरकरार रखने की कोशिश निश्चित तौर पर करे.
अब समझने वाली बात ये है कि अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ये सारे सुझाव मान भी लेते हैं तो प्रशांत किशोर बदले में कांग्रेस के हिस्से में कौन सी उपलब्धियां सुनिश्चित कर सकते हैं?
1. विपक्ष का नेता बनाये रख सकते हैं
ममता बनर्जी ने तो यूपीए के अस्तित्व को ही नकार दिया है. पंजाब चुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल के हाव भाव भी वैस ही नजर आ रहे हैं - ऐसा लगता है जैसे वो कांग्रेस की परवाह छोड़ सीधे बीजेपी से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रहे हैं.
ये शरद पवार ही हैं जो ममता बनर्जी पर नकेल कसे हुए हैं. लेकिन शरद पवार भला कब तक कहते रहेंगे कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकजुटता संभव नहीं है. अगर ममता बनर्जी के लिए मुमकिन नहीं भी हुआ तो अरविंद केजरीवाल वो जगह हथियाने के लिए शिद्दत से प्रयासरत हैं.
ज्यादा कुछ नहीं भी संभव हो पाये तो, प्रशांत किशोर के पास इतनी हुनर तो है ही कि वो कांग्रेस को विपक्ष की नेतृत्व वाली स्थिति को बरकरार रखने में मददगार साबित हो सकें.
2. मुमकिन है 50-100 सीटें तक दिला दें
जिस तरह से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद और अरविंद केजरीवाल पंजाब चुनाव के बाद एक्टिव हुए हैं, कांग्रेस के लिए अगले चुनाव के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बने रहने पर भी खतरा मंडराने लगा है.
2014 के आम चुनाव में तो कांग्रेस सत्ता गंवाने के साथ साथ 50 सीटें भी नहीं हासिल कर सकी थी, लेकिन 2019 में वो बाधा पार कर पाने में सफल रही - अब आगे भी ये बना रहे कांग्रेस की सेहत के लिए ज्यादा जरूरी है.
लेकिन जिस तरीके से यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आये हैं, कांग्रेस के लिए अगली बार 50 सीटें भी मुश्किल लगने लगी हैं. यूपी चुनाव में 2017 के मुकाबले ज्यादा सीटों की कौन कहे, कांग्रेस तो 7 की जगह दो सीटों पर ही सिमट गयी.
100 सांसदों की संख्या तो बहुत बड़ी होगी, लेकिन 2024 में 50 तक बने रहने में प्रशांत किशोर का हुनर काम जरूर आ सकता है.
3. कांग्रेस का विपक्षी दलों से गठबंधन करा दें
विपक्षी खेमे में अब भी सोनिया गांधी का काफी सम्मान है. हालांकि, ममता बनर्जी की तरफ से लगता है ये थोड़ा कम होने लगा है. अरविंद केजरीवाल की तरफ से तो सवाल ही पैदा नहीं होता, जब कांग्रेस ही आम आदमी पार्टी के साथ अछूत जैसा व्यवहार करती आयी हो तो कोई करे भी तो क्या करे.
यूपीए और एनडीए से अलग होकर भी नवीन पटनायक, जगनमोहन रेड्डी और बादल परिवार जैसे राजनीतिक घरानों से गांधी परिवार की दूरी बनी हुई है - प्रशांत किशोर तो कला के उस पक्ष में भी माहिर हैं जिसमें गठबंधन की डील पक्की की जाती है.
प्रशांत किशोर की मदद से कांग्रेस चाहे और थोड़ा समझौते के लिए तैयार हो तो यूपीए को मजबूत किया जा सकता है.
4. प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस की दावेदारी मजबूत कर दें
सब कुछ लुटा देने के बावजूद कांग्रेस प्रधानमंत्री की कुर्सी पर राहुल गांधी की दावेदारी अपनी तरफ से कायम रखे हुए है - लेकिन ये दावेदारी एक जिद से ज्यादा कुछ नहीं लगती है.
2024 के चुनाव में कांग्रेस अगर प्रशांत किशोर की मदद से थोड़ा भी संभल जाये तो ये दावेदारी काफी मजबूत हो सकती है.
5. राहुल गांधी को थोड़ा संयम सिखा दें
ये देखा गया है कि प्रशांत किशोर की सलाह पर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही चुनावों के दौरान काफी संयम बरतते रहे हैं - राहुल गांधी के लिए तो ऐसे संयम की बारहों महीने जरूरत है.
अगर राहुल गांधी तैयार हो जायें तो प्रशांत किशोर के लिए ऐसी टिप्स देना बायें हाथ के खेल जैसा ही है - सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि अगर जोश में आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले मिलने जैसा एक्शन दोबारा राहुल गांधी दिखा देते हैं, तो प्रशांत किशोर फटाक से व्हाट्सऐप पर मैसेज देकर आंख मारने से रोक सकते हैं.
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