प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के कुछ पत्रकारों के साथ क्लब हाउस चैट ऐप पर हुई बातचीत को बीजेपी के आईटी सेल चीफ अमित मालवीय सामने लाये थे. अमित मालवीय के ऑडियो चैट ट्विटर पर शेयर करने का अपना मकसद रहा, लेकिन क्या इसमें प्रशांत किशोर के भी फायदे की बात थी?
अमित किशोर तो बस ये बताने की कोशिश कर रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की लोकप्रियता का लोहा ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मानते हैं - और ये भी कि ममता बनर्जी के खिलाफ पश्चिम बंगाल में सत्ता विरोधी फैक्टर भी काम कर रहा है. अमित मालवीय ने तो अपना काम किया ही, बीजेपी की तरफ से जिन लोगों तक मैसेज पहुंचना था वो पहुंच भी गया.
ट्विटर पर ऑडियो क्लिप शेयर करते हुए अमित मालवीय ने ये भी समझाने की कोशिश की कि प्रशांत किशोर को शायद मालूम नहीं था कि बातचीत पब्लिक प्लेटफॉर्म पर तो हो ही रही है, सार्वजनिक भी है. किसी बंद कमरे जैसी नहीं है कि जिसे एक्सेस होगा वही सुन पाएगा. तभी तो अमित मालवीय के हाथ लगा और वो सबके साथ शेयर भी कर दिये. अमित मालवीय ने प्रशांत किशोर के एक सवाल की तरफ दिलाया था जिसमें वो पूछे थे, 'इज इट पब्लिक' और फिर अमित मालवीय जोर देकर बता रहे थे कि उसके बाद वहां सन्नाटा छा गया.
अमित मालवीय के ऑडियो चैट सार्वजनिक किये जाने के बाद प्रशांत किशोर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर इंटरव्यू के जरिये नये सिरे से उनकी राय जानने का सिलसिला शुरू हो गया - और वो हर पत्रकार के साथ मजे से खुले दिल से बात भी करने लगे. सवाल-जवाब के जरिये कुछ नयी बातें भी सामने आयी हैं.
एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर ऑडियो में की गयी टिप्पणी की पुष्टि की - और बात जब मोदी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की तुलना की हुई तो दोनों नेताओं में जमीन आसमान का फर्क भी बता डाला.
ये सब कुछ क्या यूं ही होता जा रहा है? क्या इसके पीछे महज कोई संयोग हो सकता है?
क्या बात पर बात आई और फिर बढ़ती गयी या फिर ये सब किसी खास...
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के कुछ पत्रकारों के साथ क्लब हाउस चैट ऐप पर हुई बातचीत को बीजेपी के आईटी सेल चीफ अमित मालवीय सामने लाये थे. अमित मालवीय के ऑडियो चैट ट्विटर पर शेयर करने का अपना मकसद रहा, लेकिन क्या इसमें प्रशांत किशोर के भी फायदे की बात थी?
अमित किशोर तो बस ये बताने की कोशिश कर रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की लोकप्रियता का लोहा ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मानते हैं - और ये भी कि ममता बनर्जी के खिलाफ पश्चिम बंगाल में सत्ता विरोधी फैक्टर भी काम कर रहा है. अमित मालवीय ने तो अपना काम किया ही, बीजेपी की तरफ से जिन लोगों तक मैसेज पहुंचना था वो पहुंच भी गया.
ट्विटर पर ऑडियो क्लिप शेयर करते हुए अमित मालवीय ने ये भी समझाने की कोशिश की कि प्रशांत किशोर को शायद मालूम नहीं था कि बातचीत पब्लिक प्लेटफॉर्म पर तो हो ही रही है, सार्वजनिक भी है. किसी बंद कमरे जैसी नहीं है कि जिसे एक्सेस होगा वही सुन पाएगा. तभी तो अमित मालवीय के हाथ लगा और वो सबके साथ शेयर भी कर दिये. अमित मालवीय ने प्रशांत किशोर के एक सवाल की तरफ दिलाया था जिसमें वो पूछे थे, 'इज इट पब्लिक' और फिर अमित मालवीय जोर देकर बता रहे थे कि उसके बाद वहां सन्नाटा छा गया.
अमित मालवीय के ऑडियो चैट सार्वजनिक किये जाने के बाद प्रशांत किशोर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर इंटरव्यू के जरिये नये सिरे से उनकी राय जानने का सिलसिला शुरू हो गया - और वो हर पत्रकार के साथ मजे से खुले दिल से बात भी करने लगे. सवाल-जवाब के जरिये कुछ नयी बातें भी सामने आयी हैं.
एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर ऑडियो में की गयी टिप्पणी की पुष्टि की - और बात जब मोदी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की तुलना की हुई तो दोनों नेताओं में जमीन आसमान का फर्क भी बता डाला.
ये सब कुछ क्या यूं ही होता जा रहा है? क्या इसके पीछे महज कोई संयोग हो सकता है?
क्या बात पर बात आई और फिर बढ़ती गयी या फिर ये सब किसी खास रणनीति के तहत और किसी प्रयोजन विशेष का हिस्सा भर है?
क्या ऐसा नहीं लगता कि प्रशांत किशोर के मुंह से प्रधानमंत्री मोदी को लेकर अपना नजरिया पेश करना भविष्य की किसी राजनीति की तरफ इशारा करता है?
अचानक पीके मोदी की तारीफ में कसीदे क्यों पढ़ रहे हैं?
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने जिस तरीके से पश्चिम बंगाल की चुनावी रैली में ममता बनर्जी पर हमला बोला है, वैसी टिप्पणी उनके मुंह से तृणमूल कांग्रेस नेता को लेकर पहली बार सुनने को मिली है.
क्या पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी और राहुल गांधी को लेकर प्रशांत किशोर की तीनों को लेकर कही गयी तुलनात्मक बातों का रिएक्शन हो सकता है?
ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री मोदी को लेकर बात चली तो प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल में दोनों की लोकप्रियता बराबर बतायी थी, लेकिन जब राहुल गांधी और मोदी में तुलना को लेकर सवाल हुआ तो प्रशांत किशोर का कहना रहा कि दोनों में जमीन आसमान का अंतर है.
मोदी और राहुल गांधी को लेकर प्रशांत किशोर का कहना रहा, 'दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है... इसका बैठकर विश्लेषण करने की जरूरत है... दोनों की कार्यशैली अलग है. मोदीजी के जो काम करने का तरीका है, वो उनको सूट करता है - उनके लिए वो सफल रहा है.'
जाहिर सी बात है राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व को ये बातें नागवार ही लगेंगी. मोदी और ममता को लोकप्रियता के मामले में बराबर बताना राहुल गांधी के मामले में भारी फर्क बताने का एक मतलब तो ये भी हुआ कि ममता बनर्जी भी राहुल गांधी से ऊपर की हैसियत रखती हैं. कांग्रेस तो ये कभी नहीं स्वीकार करेगी कि विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री मोदी को टक्कर देने वाला राहुल गांधी के अलावा भी कोई नेता है - कांग्रेस के नजरिये से देखें तो राहुल गांधी राष्ट्रीय नेता हैं जबकि ममता बनर्जी क्षेत्रीय नेता हैं जैसे बाकी राज्यों के नेता अपने अपने इलाके में लोकप्रिय हैं.
अपनी बात को विस्तार से रखते हुए प्रशांत किशोर ने बोले, 'मोदीजी की जो ताकत है, वो एक गजब के श्रोता हैं... दूसरों को सुनने में उनका कोई सानी नहीं है... '
हालांकि, प्रशांत किशोर ने ये भी कहा कि ये उनके देखने का अपना नजरिया भी हो सकता है.
प्रशांत किशोर ने कहा, 'लोकतंत्र में एक सबसे बड़ी चीज है कि आप कितना दूसरी आवाजों को सुन सकते हैं,' और मोदी को लेकर बोले, 'वो काफी अच्छे से लोगों की आवाजें सुनते हैं.'
ठीक वैसे ही ममता बनर्जी को लेकर प्रशांत किशोर ने बताया कि उनकी ताकत बुनियादी चीजों को लेकर उनकी समझ है, जो उनकी एनर्जी है जो लोगों से जुड़ने की उनकी क्षमता है...'
प्रशांत किशोर ने ये भी माना कि हर नेता का अपना तरीका होता है और बात जब राहुल गांधी की चली तो बोले, 'मैंने लंबे समय तक उनके साथ काम नहीं किया है.'
ऐसे में एक स्वाभाविक सा सवाल उठता है - क्या प्रशांत किशोर के मुंह से सुनी जा रही मोदी की तारीफ के निहितार्थ भी हो सकते हैं?
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क्या अचानक प्रशांत किशोर की गतिविधियां संदिग्ध नजर आने लगी हैं - ये सवाल इसलिए उठता है क्योंकि कभी कभी लगता है कि प्रशांत किशोर बीजेपी के एजेंट के तौर पर काम करने लगे हैं.
किसी भी प्रोफेशनल के लिए किसी व्यक्ति या संस्था जो उसकी क्लाइंट हो उसकी निजी जानकारियां उसी तक गोपनीय रखना जरूरी होता है - ये तो कहने वाली बात नहीं कि जितने करीब होकर प्रशांत किशोर काम करते हैं, उनके पास भी छोटी छोटी जानकारियां उनके क्लाइंट की वैसे ही रहती होंगी जैसे डॉक्टर के पास मरीज की और किसी भी वकील के पास उसके मुवक्किल की.
ये पेशे की पहली शर्त होती है कि ऐसी चीजें हर हाल में कोई भी पेशेवर पूरी तरह प्राइवेट ही रखे. एक क्लाइंट की निजी जानकारियां उसी पेशेवर के दूसरे क्लाइंट को भनक तक न लगे, ये पेशे की सबसे बड़ी शर्त होती है.
लेकिन ये सब तो बाकी प्रोफेशन के लिए मान्य शर्तें हैं या हो सकती हैं - सवाल ये उठता है कि क्या राजनीति में भी ये सब वैसे ही लागू होता है?
राजनीति में तो प्यार और जंग की तरह सब कुछ जायज माना जाता है. राजनीति तो साम, दाम और दंड के साथ ही शुरू भी होती है और खत्म भी हो जाती है.
क्या प्रशांत किशोर भी राजनीति में इतने डूब चुके हैं कि पेशे से ऊपर उठ गये हैं?
वैसे भी अभी अभी ही तो प्रशांत किशोर ने एक इंटरव्यू में कहा है कि वो हमेशा चुनाव रणनीति का काम नहीं करना चाहते - उनकी राजनीतिक ख्वाहिशें हैं और ये भी निश्चित है कि वे बिहार के इर्द गिर्द ही मंडराने वाली होंगी.
लेकिन राजनीतिक फोरम क्या होगा - प्रशांत किशोर ने ये नहीं बताया है.
प्रशांत किशोर के भविष्य का राजनीतिक प्लेटफॉर्म कोई मौजूदा पार्टी होगी या कोई नया फोरम खड़ा करेंगे - तस्वीर साफ नहीं है.
याद रहे 2020 में लॉकडाउन से पहले प्रशांत किशोर ने बात बिहार की कैंपेन शुरू किया था - 'बात बिहार की' और उसे लेकर थोड़े ही दिनों में युवाओं में भारी जोश भी देखने को मिला था, लेकिन लॉकडाउन के चलते सब बंद हो गया.
प्रशांत किशोर तो ये भी कह रहे हैं कि वो तो सोचे तक न थे कि वो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए चुनाव प्रचार करेंगे. कड़ियां जोड़ने पर कहानी पूरी होती भी लगती है. 2016 में भी ममता बनर्जी की तरफ से प्रशांत किशोर को अप्रोच किया गया था, लेकिन वो तैयार नहीं हुए. ताजा अनुबंध के बारे में कहा जाता है कि ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने प्रशांत किशोर को कैंपेन के लिए मना लिया.
सवाल है कि ऐसा क्या हुआ होता तो प्रशांत किशोर बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी के कैंपेन के लिए तैयार नहीं होते?
क्या बिहार में उनका कैंपेन हिट हो गया होता और चुनावों में जीत न सही किंग मेकर की भूमिका में भी होते तो छोटे से ब्रेक के बाद फिर से मुख्यधारा की फुल टाइम पॉलिक्स में व्यस्त हो चुके होते. बिहार चुनाव से पहले ही तो नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू से बाहर कर दिया था.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वो बात तो आपको याद होगी ही - 'मैंने अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन कराया.' प्रशांत किशोर को उपाध्यक्ष बनाने के साथ ही नीतीश कुमार ने उनको जेडीयू का भविष्य तक बताया था.
नीतीश कुमार का ये बयान पूरी तरह राजनीतिक रहा और लगा भी, लेकिन ये नहीं समझ में आया कि अमित शाह ने प्रशांत किशोर को बीजेपी की जगह जेडीयू क्यों ज्वाइन कराया? 2014 में बीजेपी की केंद्र में सरकार बन जाने के बाद खबर तो ये भी आयी थी कि प्रशांत किशोर बीजेपी में कोई बड़ा पद चाहते थे, लेकिन अमित शाह ही उसमें अड़ंगा डाल दिये. सही भी है, अमित शाह अपने आस पास कोई कुल्हाड़ी क्यों रहने दें कि कभी गलती से भी पैर चला जाये तो नुकसान उठाना पड़े.
नीतीश कुमार की ही तरह प्रशांत किशोर ने जेडीयू से निकाले जाने पर यही समझाया था कि वो नीतीश कुमार का व्यक्तिगत फैसला नहीं रहा, बल्कि बीजेपी के दबाव में लिया गया निर्णय था.
क्या प्रशांत किशोर की बातों को मोदी को लेकर उनके नये नजरिये के साथ पिरो कर कोई नया इशारा समझा जा सकता है?
क्या प्रशांत किशोर स्थायी ठिकाने की तलाश में बीजेपी के करीब जाने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ पर तारीफ की भी असली वजह यही हो सकती है?
अगर प्रशांत किशोर के भविष्य की राजनीति बिहार के इर्द गिर्द घूमने वाली है तो क्या बीजेपी अब सैयद शाहनवाज हुसैन के बाद प्रशांत किशोर के जरिये नीतीश कुमार को ठिकाने लगाने का उपाय खोज चुकी है - और लगे हाथ तेजस्वी यादव के साथ साथ लालू परिवार की राजनीति को भी? प्रशांत किशोर की दिलचस्पी इसलिए हो सकती है कि इससे उनका बदला भी पूरा हो जाएगा.
जो काम अब तक बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय और दूसरे नेताओं की मदद से करते रहे, उसे अंजाम तक प्रशांत किशोर ही पहुंचाने वाले हैं?
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