पकौड़ा पॉलिटिक्स हाल फिलहाल चर्चा में जरूर है लेकिन समोसा कहीं काफी सीनियर है. एक दौर रहा जब बिहार में नारा लगता था - 'जब तक समोसे में है आलू, बिहार में रहेगा लालू.' ये स्लोगन अभी थोड़ा अप्रासंगिक लगने लगा था क्योंकि चार दशक में पहली बार बिहार में चुनाव लालू के बगैर हो रहा है.
लालू प्रसाद के साथ साथ बिहार चुनाव में एक और नाम लापता लग रहा था - PK यानी प्रशांत किशोर. जिस किसी को भी लालू प्रसाद की कमी खल रही थी या फिर जो कोई भी प्रशांत किशोर की गैरमौजूदगी से हैरान था - उसके लिए खबर ये है कि दोनों लौट तो आये हैं, लेकिन सिर्फ चुनावी चर्चाओं में ही - और इन दोनों को ही चुनावी चर्चा में वापस लाने का क्रेडिट मिलता है बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को.
चुनावी चर्चा में PK और लालू की वापसी
लालू प्रसाद को इस बात का बेहद मलाल रहा कि चुनाव के वक्त वो बिहार से दूर हैं. सुप्रीम कोर्ट से जमानत नहीं मिलने पर लालू की ओर से यही बताया गया था कि चार दशक में ये पहली बार हुआ है कि वो बिहार चुनाव से दूर हैं. लालू प्रसाद चारा घोटाले की सजा काट रहे हैं और रांची जेल में हैं. वैसे बीमारी के चलते लालू प्रसाद को अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
बिहार के लोगों के नाम एक संदेश में लालू प्रसाद ने कहा, '44 वर्षों में पहला चुनाव है, जिसमें आपके बीच नहीं हूं. चुनावी उत्सव में आप सबके दर्शन नहीं होने का अफसोस है. आपकी कमी खल रही है इसलिए जेल से ही आप सबके नाम पत्र लिखा है. आशा है आप इसे पढ़िएगा, लोकतंत्र और संविधान को बचाइएगा जय हिंद, जय भारत.'
कुछ कुछ लालू प्रसाद की ही तरह अफसोस भरा एक ट्वीट प्रशांत किशोर ने भी किया था. प्रशांत किशोर के इस ट्वीट में सीधे सीधे तो जानकारी दी गयी थी, लेकिन साथ विरोधियों पर तंज और सख्त टिप्पणी भी थी.
दरअसल, प्रशांत किशोर के हाल के कुछ बयान उनके...
पकौड़ा पॉलिटिक्स हाल फिलहाल चर्चा में जरूर है लेकिन समोसा कहीं काफी सीनियर है. एक दौर रहा जब बिहार में नारा लगता था - 'जब तक समोसे में है आलू, बिहार में रहेगा लालू.' ये स्लोगन अभी थोड़ा अप्रासंगिक लगने लगा था क्योंकि चार दशक में पहली बार बिहार में चुनाव लालू के बगैर हो रहा है.
लालू प्रसाद के साथ साथ बिहार चुनाव में एक और नाम लापता लग रहा था - PK यानी प्रशांत किशोर. जिस किसी को भी लालू प्रसाद की कमी खल रही थी या फिर जो कोई भी प्रशांत किशोर की गैरमौजूदगी से हैरान था - उसके लिए खबर ये है कि दोनों लौट तो आये हैं, लेकिन सिर्फ चुनावी चर्चाओं में ही - और इन दोनों को ही चुनावी चर्चा में वापस लाने का क्रेडिट मिलता है बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को.
चुनावी चर्चा में PK और लालू की वापसी
लालू प्रसाद को इस बात का बेहद मलाल रहा कि चुनाव के वक्त वो बिहार से दूर हैं. सुप्रीम कोर्ट से जमानत नहीं मिलने पर लालू की ओर से यही बताया गया था कि चार दशक में ये पहली बार हुआ है कि वो बिहार चुनाव से दूर हैं. लालू प्रसाद चारा घोटाले की सजा काट रहे हैं और रांची जेल में हैं. वैसे बीमारी के चलते लालू प्रसाद को अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
बिहार के लोगों के नाम एक संदेश में लालू प्रसाद ने कहा, '44 वर्षों में पहला चुनाव है, जिसमें आपके बीच नहीं हूं. चुनावी उत्सव में आप सबके दर्शन नहीं होने का अफसोस है. आपकी कमी खल रही है इसलिए जेल से ही आप सबके नाम पत्र लिखा है. आशा है आप इसे पढ़िएगा, लोकतंत्र और संविधान को बचाइएगा जय हिंद, जय भारत.'
कुछ कुछ लालू प्रसाद की ही तरह अफसोस भरा एक ट्वीट प्रशांत किशोर ने भी किया था. प्रशांत किशोर के इस ट्वीट में सीधे सीधे तो जानकारी दी गयी थी, लेकिन साथ विरोधियों पर तंज और सख्त टिप्पणी भी थी.
दरअसल, प्रशांत किशोर के हाल के कुछ बयान उनके खिलाफ माहौल बनाने में मददगार साबित हुए. प्रशांत किशोर ने युवाओं से बातचीत में कह दिया था कि जब वो किसी नेता को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बना सकते हैं तो बिहार के नौजवानों को मुखिया, विधायक और सांसद क्यों नहीं बना सकते. अलावा इसके प्रशांत किशोर का ये कहना कि नीतीश कुमार का महागठबंधन छोड़ने का फैसला गलत था - ये सब उनके खिलाफ नीतीश कुमार को भड़काने में विरोधियों के लिए गोला-बारूद बन गये.
प्रशांत किशोर के बारे में पता चला है कि वो इन दिनों बिहार से बाहर जगह जगह लेक्चर दे रहे हैं - और युवाओं को मोटिवेट कर रहे हैं.
जैसे भी हो राबड़ी देवी के बयान के बाद बिहार की चुनावी चर्चा में लालू प्रसाद के साथ साथ प्रशांत किशोर भी लौट आये हैं - लेकिन नीतीश कुमार के नाम पर लालू परिवार के आरोपों पर प्रशांत किशोर ने जोरदार पलटवार किया है.
लालू परिवार को PK की चेतावनी - 'खामोश'
लालू प्रसाद ने आत्मकथा लिखी है - 'गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा'. किताब में लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार को लेकर दावा किया है कि वो दोबारा एनडीए में जाने के छह महीने के भीतर ही महागठबंधन में लौटना चाहते थे. लालू का दावा है कि इसके लिए नीतीश कुमार का दूत बन कर जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने कई बार उनसे मुलाकात की लेकिन उन्होंने साफ तौर पर मना कर दिया क्योंकि नीतीश कुमार ने उनका विश्वास तोड़ दिया था.
लालू प्रसाद के बाद राबड़ी देवी ने भी वही बातें दोहरा दीं. राबड़ी देवी का कहना है कि नीतीश कुमार न सिर्फ आरजेडी और जेडीयू का विलय करने को तैयार थे, बल्कि वो 2019 में खुद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और 2020 में तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश किये थे.
प्रशांत किशोर ये तो मानते हैं कि जेडीयू ज्वाइन करने से पहले उनकी कई मुलाकातें हुईं, लेकिन लालू परिवार के बाकी दावों को झूठा बता रहे हैं. साथ ही, प्रशांत किशोर ने लालू प्रसाद को आगाह भी कि कर दिया है कि मुलाकातों को लेकर अगर उन्होंने मुंह खोला तो उन लोगों के लिए मुश्किल हो सकती है.
लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के बाद लोक सभा चुनाव में आरजेडी की अगुवाई कर रहे तेजस्वी यादव भी आक्रामक होने लगे थे. तेजस्वी यादव ने कहा कि लालू प्रसाद की किताब में लिखी हर बात सच है और सवाल उठाया कि नीतीश कुमार क्यों चुप्पी साधे हैं?
प्रशांत किशोर ने अपने तरीके से तेजस्वी को भी अपनी हद में बने रहने और बढ़ चढ़ कर न बोलने की सलाह दी है. तेजस्वी के बारे में प्रशांत किशोर का कहना है कि अब भी लोग उन्हें लालू प्रसाद के बेटे के तौर पर ही जानते हैं - और डिप्टी सीएम भी वो इसी वजह से बन पाये थे.
जब राबड़ी देवी ने दोबारा प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार पर हमला बोला तो प्रशांत किशोर ने सख्ती दिखाने का फैसला किया. राबड़ी देवी का कहना रहा कि अगर लालू प्रसाद से मुलाकात से प्रशांत किशोर इंकार कर रहे हैं तो वो झूठ बोल रहे हैं.
प्रशांत किशोर को ये बात न सिर्फ नागवार गुजरी बल्कि ट्विटर पर उनका गुस्सा ही फूट पड़ा - 'सरकारी ओहदे का बेजा इस्तेमाल करने वाले और घोटालों के लिए सजायाफ्ता लोग सच के प्रहरी बन रहे हैं.'
लालू परिवार को प्रशांत किशोर की ये चेतावनी तो ऐसी ही लग रही है जैसे कह रहे हों - 'इशारों को अगर समझो राज को राज रहने दो!'
इन्हें भी पढ़ें :
प्रशांत किशोर की सबसे बड़ी पॉलिटिक्स ‘पेन ड्राइव’ है!
प्रशांत किशोर के चुनावी राजनीति से मुख्यधारा में आने के मायने
जानिए, प्रशांत किशोर ने कैसे कांग्रेस की खटिया खड़ी कर दी
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.