उदास, वीरान और बिना जोश के जय श्री राम के नारे, कुछ यही हाल था प्रवीण तोगड़िया के उस मंच का जहां वो बैठे थे अनिश्चितकालीन उपवास पर. भूतकाल में इसीलिए बता रहा हूं क्योंकि प्रवीण तोगड़िया ने अपने अनिश्चितकालीन उपवास को बहुत ही निश्चित समय में समाप्त कर लिया है. पेशे से डॉक्टर (सर्जन ) प्रवीण तोगड़िया को ये एहसास होने लगा था कि उनका स्वास्थ्य 3 दिन के उपवास के बाद जवाब दे रहा है. इसलिए उनके चाहने वालों ने उन्हें उनकी जान की कीमत का एहसास कराया और लगे हाथ हिंदुत्व के महायज्ञ को आगे बढ़ाने का संकल्प भी कराया. कारण कोई भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि ये उपवास सुपर फ्लॉप साबित हुआ और मीडिया ने भी अपनी प्राथमिकता की डायरी में इसे अपने अंतिम पन्ने पर ही रखा. तो क्या ये समझ लिया जाये की संगठन के इतर तोगड़िया की लोकप्रियता आज अपना स्थान खो चुकी है. संगठन और राजनीति के हिन्दू हृदय सम्राटों के बीच के इस घमासान में आखिर राजनीति ही भारी पड़ा, क्योंकि संगठन भी दरअसल राजनीतिक दाव-पेंच के सामने असहाय ही नज़र आता है.
अब आगे क्या?
प्रवीण तोगड़िया ने अपने उपवास को भारत भ्रमण के नारे के साथ ख़त्म किया. अब वो पूरे देश में प्रवास करेंगे और हिंदुत्व का अलख जगायेंगे. लोगों को चीख-चीख कर बताएंगे कि नरेंद्र मोदी ने इस देश के 100 करोड़ हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ किया है, लेकिन सवाल ये है की सुनेगा कौन? दरअसल धर्म के नाम पर भीड़ जुटाने वाले लोगों की लोकप्रियता भी क्षणभंगुर होती है. तभी तो लाखों लोगों के बीच गरजने वाले तोगड़िया आज चंद लोगों के बीच अपनी व्यथा सुना रहे थे.
फिर अलापा किसान और युवा राग
दरअसल, आज ये सबको मालूम चल गया कि अब इस देश की राजनीति में किसान और युवा वर्ग ही हावी होंगे. तमाम टोना-टोटका काम न आने के बाद अब राजनेता भी मुद्दा आधारित...
उदास, वीरान और बिना जोश के जय श्री राम के नारे, कुछ यही हाल था प्रवीण तोगड़िया के उस मंच का जहां वो बैठे थे अनिश्चितकालीन उपवास पर. भूतकाल में इसीलिए बता रहा हूं क्योंकि प्रवीण तोगड़िया ने अपने अनिश्चितकालीन उपवास को बहुत ही निश्चित समय में समाप्त कर लिया है. पेशे से डॉक्टर (सर्जन ) प्रवीण तोगड़िया को ये एहसास होने लगा था कि उनका स्वास्थ्य 3 दिन के उपवास के बाद जवाब दे रहा है. इसलिए उनके चाहने वालों ने उन्हें उनकी जान की कीमत का एहसास कराया और लगे हाथ हिंदुत्व के महायज्ञ को आगे बढ़ाने का संकल्प भी कराया. कारण कोई भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि ये उपवास सुपर फ्लॉप साबित हुआ और मीडिया ने भी अपनी प्राथमिकता की डायरी में इसे अपने अंतिम पन्ने पर ही रखा. तो क्या ये समझ लिया जाये की संगठन के इतर तोगड़िया की लोकप्रियता आज अपना स्थान खो चुकी है. संगठन और राजनीति के हिन्दू हृदय सम्राटों के बीच के इस घमासान में आखिर राजनीति ही भारी पड़ा, क्योंकि संगठन भी दरअसल राजनीतिक दाव-पेंच के सामने असहाय ही नज़र आता है.
अब आगे क्या?
प्रवीण तोगड़िया ने अपने उपवास को भारत भ्रमण के नारे के साथ ख़त्म किया. अब वो पूरे देश में प्रवास करेंगे और हिंदुत्व का अलख जगायेंगे. लोगों को चीख-चीख कर बताएंगे कि नरेंद्र मोदी ने इस देश के 100 करोड़ हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ किया है, लेकिन सवाल ये है की सुनेगा कौन? दरअसल धर्म के नाम पर भीड़ जुटाने वाले लोगों की लोकप्रियता भी क्षणभंगुर होती है. तभी तो लाखों लोगों के बीच गरजने वाले तोगड़िया आज चंद लोगों के बीच अपनी व्यथा सुना रहे थे.
फिर अलापा किसान और युवा राग
दरअसल, आज ये सबको मालूम चल गया कि अब इस देश की राजनीति में किसान और युवा वर्ग ही हावी होंगे. तमाम टोना-टोटका काम न आने के बाद अब राजनेता भी मुद्दा आधारित राजनीति के ऊपर वापस लौटना चाह रहे हैं. तोगड़िया ने भी अपने किसान और युवा प्रेम को जगजाहिर किया. लोगों को बताया कि मोदी ने राम भक्तों के साथ-साथ किसानों और युवाओं को भी छला है. 15 लाख के जुमले की तरह राम मंदिर भी एक जुमला था. ऐसा बोलकर दरअसल तोगड़िया जान बूझकर मोदी सरकार की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश कर रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी और कार्यकर्ताओं से उन्हें कोई गिला-शिकवा नहीं है. ऐसा तोगड़िया ने अपने उपवास की समाप्ति के बाद मीडिया से कहा. वहीं तोगड़िया ने ये भी इशारा दिया कि अगर कांग्रेस या कोई अन्य विपक्षी दल उनकी इन मांगों को पूरा करने का वादा करता है तो उसे तोगड़िया का समर्थन प्राप्त होगा. तोगड़िया ने ये दावा किया कि विश्व हिन्दू परिषद् के 50% कार्यकर्ता और बजरंग दल के 90% कार्यकर्ता आज उनके साथ हैं. विहिप में तोगड़िया काल की समाप्ति के बाद उनके इस दावे पर लोगों को घनघोर शंका है.
भले ही प्रवीण तोगड़िया आज नरेंद्र मोदी का उतना नुकसान नहीं कर पाए, लेकिन जब वो पूरे देश के चक्कर लगाएंगे और अगर सरकार से नाराज़ चल रहे संत समाज के कुछ लोगों का साथ उन्हें मिल गया तो सरकार की किरकिरी होना तय है. जमीन पर काम कर रहे बीजेपी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ना तय है. भाजपा नेतृत्व को एक बार तोगड़िया से बात तो करना ही होगा नहीं तो उस कहावत की पुनरावृत्ति हो सकती है 'घर का भेदी लंका ढाये'.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न, इंडिया टुडे)
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