कुशल राजनीतिज्ञ के लिए धैर्य जरूरी है साथ ही उसे तोल मोल के बोलना भी आना चाहिए. कभी कभी वाचाल बनना खतरनाक होता है और आदमी की वैसी ही दुर्गति हो जाती है जैसे कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण (Prithviraj Chavan) की हुई है. कोरोना वायरस (Coronavirus) के इस दौर में अर्थव्यवस्था (Economy) और सोने (Gold) के मद्देनजर जो रायता उन्होंने बनाया था वो उन्हीं के ऊपर गिर गया है जिससे उनकी ज़बरदस्त दुर्गति हुई है. ध्यान रहे कि अभी बीते दिनों ही उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि सरकार को देश के धार्मिक ट्रस्टों में रखी सभी बेकार वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए. चव्हाण ने ट्वीट किया था कि सरकार को देश के सभी धार्मिक ट्रस्टों में रखे सभी सोने का तुरंत इस्तेमाल करना चाहिए, जिसकी कीमत #WorldGoldCLC के अनुसार कम से कम 1 ट्रिलियन डॉलर है. सरकार द्वारा सोने को कम ब्याज दर पर सोने के बॉण्ड के माध्यम से उधार लिया जा सकता है. यह आपातकाल है.
बयान विवादित था तो आलोचना हुइगा भी लाजमी थी. बाद में जब मामला बढ़ा तो ये कहकर पृथ्वीराज ने अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया गया है. वह ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करूंगा. उन्होंने कहा कि मेरा सुझाव नया नहीं है. जब भी राष्ट्रीय आर्थिक संकट आता है, तो प्रधानमंत्री सोना संग्रह करने का सहारा लेते हैं.
चव्हाण ने कहा कि, 'पीएम मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा की थी. लेकिन सवाल पूछा गया है कि सरकार इन संसाधनों...
कुशल राजनीतिज्ञ के लिए धैर्य जरूरी है साथ ही उसे तोल मोल के बोलना भी आना चाहिए. कभी कभी वाचाल बनना खतरनाक होता है और आदमी की वैसी ही दुर्गति हो जाती है जैसे कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण (Prithviraj Chavan) की हुई है. कोरोना वायरस (Coronavirus) के इस दौर में अर्थव्यवस्था (Economy) और सोने (Gold) के मद्देनजर जो रायता उन्होंने बनाया था वो उन्हीं के ऊपर गिर गया है जिससे उनकी ज़बरदस्त दुर्गति हुई है. ध्यान रहे कि अभी बीते दिनों ही उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि सरकार को देश के धार्मिक ट्रस्टों में रखी सभी बेकार वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए. चव्हाण ने ट्वीट किया था कि सरकार को देश के सभी धार्मिक ट्रस्टों में रखे सभी सोने का तुरंत इस्तेमाल करना चाहिए, जिसकी कीमत #WorldGoldCLC के अनुसार कम से कम 1 ट्रिलियन डॉलर है. सरकार द्वारा सोने को कम ब्याज दर पर सोने के बॉण्ड के माध्यम से उधार लिया जा सकता है. यह आपातकाल है.
बयान विवादित था तो आलोचना हुइगा भी लाजमी थी. बाद में जब मामला बढ़ा तो ये कहकर पृथ्वीराज ने अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया गया है. वह ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करूंगा. उन्होंने कहा कि मेरा सुझाव नया नहीं है. जब भी राष्ट्रीय आर्थिक संकट आता है, तो प्रधानमंत्री सोना संग्रह करने का सहारा लेते हैं.
चव्हाण ने कहा कि, 'पीएम मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा की थी. लेकिन सवाल पूछा गया है कि सरकार इन संसाधनों को कैसे जुटाएगी. मैंने सुझाव दिया था कि सरकार विभिन्न व्यक्तियों और धार्मिक ट्रस्ट से उनके पास पड़े बेकार सोने को जमा करने के लिए कहे. बयान के बाद अब पृथ्वीराज जितने भी तर्क दे दें कितना भी अपने को बेगुनाह क्यों न बता लें मगर जैसी उनकी नीयत थी साफ था कि उनके निशाने पर मंदिर थे और मंदिरों पर राजनीति करके वो मीडिया लाइम लाइट लेना चाह रहे थे.
बात बिल्कुल सीधी और एकदम साफ है. देश में न तो मस्जिदों के पास सोना है. न ही गुरुद्वारों और गिरिजाघरों के पास. हां वेटिकन में सोना ज़रूर है मगर उसका यहां से कोई लेना देना नहीं है तो साफ था कि सोने और धार्मिक संस्थानों से उनकी मुराद मंदिर थे.
यानी अब वो दलील कुछ भी दे दें मगर वो सीधे तौर पर राजनीति मंदिरों को लेकर कर रहे थे. मंदिर के सोने पर पृथ्वीराज वही कहना चाहते थे जिससे अब वो इनकार कर रहे हैं.
जान लें पृथ्वीराज उस सोने पर टैक्स दिया जा चुका है
शुरुआत में पृथ्वीराज यही कहना चाह रहे थे कि जो सोना धार्मिक संस्थाओं या ये कहें कि मंदिरों में है वो हमारा है और कभी भी सरकार इसे ले सकती है. तो हम पृथ्वीराज चव्हाण को याद दिलाना चाहेंगे कि मंदिरों की जो आय है या वहां जो भी है वो टैक्सेड है. उसपर पहले ही सरकार अपने हिस्से का कर ले चुकी है तो अब सरकार के पास ये हक़ नहीं रहता है कि वो उसे जब्त कर ले.
सोने और देश के मद्देनहर पृथ्वीराज चव्हाण की नीयत में खोट तो नहीं?
अगर पृथ्वीराज सरकार से गुजारिश कर रहे हैं कि वो उसे लोन के रूप में ले ले तो कहीं न कहीं इससे सरकार और मंदिर आमने सामने आ रहे हैं. जज्बात में बहकर पृथ्वीराज ये भी भूल गए कि ये बातें बड़ी संवेदनशील बातें हैं. और ऐसी बातें पहले मीडिया फिर पब्लिक में आती हैं और बात विवाद का रूप ले लेती है. ध्यान रहे क्यों कि पृथ्वीराज के साथ ऐसा हो चुका है और अब मंदिर प्रशासन और साधु संत खुल कर उनके विरोध में आ गए हैं तो उन्हें इस बात का एहसास हो गया होगा कि जो उन्होंने कहा है वो विवादास्पद है.
लिखनी चाहिए थी सरकार को चिट्ठी
अगर वाक़ई पृथ्वीराज देश के प्रति ईमानदार थे तो सवाल ये है कि अपने सुझावों को चिट्ठी के जरिये उन्होंने क्यों नहीं सरकार तक पहुंचाया. यदि ऐसा होता तो सरकार को भी लगता कि वो एक सही बात कह रहे हैं मगर जिस तरह इस पूरे मुद्दे का श्री गणेश उन्होंने ट्विटर पर किया वो ये चाहते थे कि सरकार और मंदिर आपस में भिड़ जाएं जिसका सीधा फायदा उनकी राजनीति को मिले.
लेकिन अब जबकि उल्टा हो गया है तो कल शायद ये भी सुनने को आ जाए ये उनका नहीं बल्कि कांग्रेस का बायन था और एकमाध्यम बन उन्होंने इसे देश और देश की जनता के सामने पेश किया है.
बहरहाल अभी ये मामला और कितना तूल पकड़ता है? इसका फैसला वक़्त करेगा. मगर जैसा हाल है और जिस तरह से मेन स्टीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक आलोचना हो रही है अर्थव्यवस्था को लेकर पृथ्वीराज अपने ही ट्रैप में फंस गए हैं और जिस तरह के बयान अब देश और जनता के सामने आ रहे हैं उनमें उनकी छटपटाहट साफ़ दिखाई देती है.
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