रॉबर्ट वाड्रा को 6 फरवरी को प्रवर्तन निदेशालय के सामने पेश होना ही था. रॉबर्ट वाड्रा को शाम चार बजे का टाइम मिला था. ED के नोटिस पर रॉबर्ट वाड्रा कोर्ट की शरण में गये थे, जहां उनकी गिरफ्तारी पर 16 फरवरी तक रोक लगा दी गयी है.
रॉबर्ट वाड्रा को ED दफ्तर तक छोड़ने उनकी पत्नी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी साथ गयी थीं. प्रियंका गांधी के रॉबर्ट वाड्रा को ईडी दफ्तर छोड़ने जाने के भी खास मायने हैं. कांग्रेस के कार्यभार के साथ प्रियंका गांधी को अपने पति रॉबर्ट वॉड्रा के सपोर्ट और बचाव में मोर्चा संभालना पड़ा है.
पति के साथ खड़ी हैं प्रियंका गांधी...
2014 में बीजेपी नेता ताल ठोक कर कहते फिरते थे कि सत्ता मिली तो कइयों को जेल भेजेंगे. सबसे ऊपर वाले नामों एक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा का भी हुआ करता रहा. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक से लेकर 2018 की आखिरी चुनावी रैलियों तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में एक बात अक्सर होती थी - 'ये चौकीदार ही चोरों को उनकी सही जगह जेल भेजेगा.'
ये पहला मौका है जब रॉबर्ट वाड्रा आर्थिक अपराध के आरोपों के सिलसिले में किसी जांच एजेंसी के सामने पेश हुए हैं. रॉबर्ट वाड्रा के एक सहयोगी कहे जा रहे सुनील अरोड़ा के खिलाफ लंदन की एक प्रॉपर्टी को लेकर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है. ये करीब 17 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग का केस है. उसी जांच की आंच धीरे धीरे रॉबर्ट वाड्रा तक पहुंच गयी है.
रॉबर्ट वाड्रा को ED दफ्तर तक छोड़ने प्रियंका गांधी भी उसी गाड़ी में गयी थीं - और वहीं से एसपीजी सुरक्षा के साथ उनका काफिला लौट गया. फिर प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस दफ्तर पहुंचीं और कामकाज में मशगूल हो गयीं.
मीडिया के पूछने पर प्रियंका गांधी ने प्रतिक्रिया तो छोटी सी दी, लेकिन बयान बड़ा रहा, 'मैं अपने पति के साथ हूं.'
रॉबर्ट वाड्रा जब प्रवर्तन निदेशालय के सामने पेश होने जा रहे थे तो प्रियंका गांधी दफ्तर तक छोड़ने गयी थीं. फिर कांग्रेस दफ्तर गयीं और काम में जुट गयीं.
प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर तक पति रॉबर्ट वाड्रा को छोड़ने जाने का मजबूत मैसेज भी है. रॉबर्ट वाड्रा खुद भी कहते रहे हैं कि उनके खिलाफ ये सारे आरोप सिर्फ राजनीतिक वजहों से लगाये जाते रहे हैं. अब ये लड़ाई भी राजनीतिक तरीके से ही लड़ी जानी है.
कांग्रेस मुख्यालय में प्रियंका के दफ्तर पर नेम प्लेट लगाने के बाद आस पास के इलाकों में कुछ पोस्टर लगाये गये थे जिन पर लिखा था - 'कट्टर सोच नहीं, युवा जोश'. बाद में ये पोस्टर हटा दिये गये. कांग्रेस नेता जगदीश शर्मा ने आरोप लगाया है कि बीजेपी के आदेश पर NDMC ने पोस्टर हटा दिये.
वाड्रा की पेशी से पहले ये पोस्टर कांग्रेस दफ्तर के आस पास लगे थे, लेकिन बाद में हटा लिये गये.
खास बात ये रही कि इस पोस्टर में प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी के साथ साथ रॉबर्ट वाड्रा की भी तस्वीर रही. केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए ये भी एक संदेश ही था - रॉबर्ट वाड्रा के साथ पूरी पार्टी है.
अब आर-पार की लड़ाई है
प्रियंका गांधी को कांग्रेस में औपचारिक एंट्री देने के बाद राहुल गांधी के सामने फैसले में जल्दबाजी को लेकर सवाल उठे थे. राहुल गांधी ने ऐसे कयासों पर अपने जवाब से विराम लगाने की कोशिश की.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बोले, 'ये कहना सही नहीं है कि ये फैसला जल्दबाजी में दस दिन में पहले हुआ. मेरी बहन के राजनीति में आने का फैसला काफी साल पहले ही हो गया था.'
फिर राहुल गांधी ने प्रियंका के राजनीति में आने की वजह भी बतायी, 'वो अपने बच्चों की वजह से देर में आईं. मैं बहुत पहले से ही उनसे राजनीति में आने की बात कर रहा था. तब प्रियंका ने कहा था कि बच्चे छोटे हैं और वो उनकी देखभाल पर ध्यान देना चाहती हैं.'
राहुल गांधी ने आगे बताया कि अब चूंकि बच्चे बड़े हो गये हैं इसलिए बरसों पहले हुए फैसले पर अमल हुआ है. उन्होंने बताया कि प्रियंका का एक बच्चा यूनिवर्सिटी में है और दूसरा भी जल्द ही यूनिवर्सिटी जाने वाला है.
ये तो वो बातें हैं जो राहुल गांधी ने सबको बताया. प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस महासचिव बनने के बाद द प्रिंट वेबसाइट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. रिपोर्ट में प्रियंका गांधी वाड्रा के राजनीतिक पारी शुरू करने की हिचकिचाहट की वजह तलाशी गयी है. रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस में प्रियंका को पद देने को लेकर 2017 में विचार विमर्श गंभीरता के साथ हुआ था - लेकिन प्रियंका को डर रहा कि मोदी सरकार कहीं रॉबर्ट वाड्रा को जेल में न डाल दे.
रिपोर्ट में इस चर्चा से वाकिफ एक व्यक्ति के हवाले से बताया गया है कि पहले हर वक्त ये डर रहता था कि सीबीआई या ईडी कहीं रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तार न कर ले - लेकिन बाद में प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा दोनों ही ने सीधे सीधे मुकाबले का फैसला किया.
वैसे भी चुनाव के ऐन पहले अगर कुछ ऐसा वैसा होता है तो कांग्रेस कह सकेगी कि ये राजनीतिक बदले की कार्रवाई है - और इसे लेकर कांग्रेस को लोगों की सहानुभूति भी मिल सकती है.
2018 के विधानसभा चुनावों में चोर और चौकीदार खासा चर्चित रहा. राहुल गांधी चुनावी रैलियों में नारे लगवाया करते थे - चौकीदार चोर है. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते रहे कि चौकीदार ही चोरों को उनकी सही जगह जेल भेजेगा.
सवाल तो खड़ा होगा ही चोर और चौकीदार की ये लड़ाई चुनावों के बीच ही क्यों लड़ी जाती है? कौन किसे क्या बता रहा है ये राजनीति तो चलती रहेगी - लेकिन रॉबर्ट वाड्रा को पूछताछ के लिए बुलाने में प्रवर्तन निदेशालय को इतना ज्यादा वक्त क्यों लग गया? सवाल तो ये भी है. है कि नहीं?
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