पंजाब में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने वही किया है, जो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने केरल विधानसभा चुनाव में किया था - फर्क बस ये है कि तब उत्तर प्रदेश में कोई चुनाव नहीं था.
चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के बयान पर प्रियंका गांधी के एनडोर्समेंट से तो साफ है कि वोटिंग से ठीक पहले कांग्रेस ने यूपी के मुकाबले पंजाब को तरजीह दी है - यूपी को लेकर तो पहले से ही प्रियंका गांधी वाड्रा को भी मालूम है कि खाते में कितना ट्रांसफर होने वाला है, लिहाजा जहां ज्यादा संभावना हो वहीं के लिए हाथ पैर मार लेना चाहिये.
ये स्वाभाविक भी है 'सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्ध त्यजति पंडितः' यानी जब पूरा खात्मा होने वाला हो, तो आधे का त्याग करना ही बुद्धिमानी होती है. हालांकि, ये नहीं मालूम कि कांग्रेस नेतृत्व ने इसे समझा कैसे है - कहीं 'शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः' वाली स्टाइल में तो नहीं? अर्थात् - शास्त्र पढ़ कर भी लोग मूर्ख होते हैं. फिर तो हालत दो नावों की सवारी जैसी ही होनी है.
चन्नी के बयान पर प्रियंका गांधी वाड्रा का एक्ट भी बिलकुल वैसा ही है, जैसा केरल विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी का रहा. राहुल गांधी ने तो बयान भी दे डाला था - एक चुनाव सभा में राहुल गांधी बोल पड़े, ‘शुरुआती 15 साल मैं उत्तर भारत से सांसद था... मुझे अलग तरह की राजनीति की आदत हो गई थी लेकिन केरल आना ताजगी भरा अनुभव रहा है.’
एक स्थिति ये होती है कि आपकी मौजूदगी में कोई कुछ बोल रहा हो और आप चुप हों. एक स्थिति ये होती है कि आपकी मौजूदगी में कोई कोई बोल रहा हो और आप उसका प्रतिकार करें - और एक स्थिति ये भी होती है कि अगर कोई कुछ ऐसा वैसा बोल रहा हो जो बवाल मचाने वाला हो और आप बगैर कुछ बोले भी ताली बजाने लगें तो अलग ही संदेश जाता है.
यूपी-बिहार और...
पंजाब में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने वही किया है, जो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने केरल विधानसभा चुनाव में किया था - फर्क बस ये है कि तब उत्तर प्रदेश में कोई चुनाव नहीं था.
चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के बयान पर प्रियंका गांधी के एनडोर्समेंट से तो साफ है कि वोटिंग से ठीक पहले कांग्रेस ने यूपी के मुकाबले पंजाब को तरजीह दी है - यूपी को लेकर तो पहले से ही प्रियंका गांधी वाड्रा को भी मालूम है कि खाते में कितना ट्रांसफर होने वाला है, लिहाजा जहां ज्यादा संभावना हो वहीं के लिए हाथ पैर मार लेना चाहिये.
ये स्वाभाविक भी है 'सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्ध त्यजति पंडितः' यानी जब पूरा खात्मा होने वाला हो, तो आधे का त्याग करना ही बुद्धिमानी होती है. हालांकि, ये नहीं मालूम कि कांग्रेस नेतृत्व ने इसे समझा कैसे है - कहीं 'शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः' वाली स्टाइल में तो नहीं? अर्थात् - शास्त्र पढ़ कर भी लोग मूर्ख होते हैं. फिर तो हालत दो नावों की सवारी जैसी ही होनी है.
चन्नी के बयान पर प्रियंका गांधी वाड्रा का एक्ट भी बिलकुल वैसा ही है, जैसा केरल विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी का रहा. राहुल गांधी ने तो बयान भी दे डाला था - एक चुनाव सभा में राहुल गांधी बोल पड़े, ‘शुरुआती 15 साल मैं उत्तर भारत से सांसद था... मुझे अलग तरह की राजनीति की आदत हो गई थी लेकिन केरल आना ताजगी भरा अनुभव रहा है.’
एक स्थिति ये होती है कि आपकी मौजूदगी में कोई कुछ बोल रहा हो और आप चुप हों. एक स्थिति ये होती है कि आपकी मौजूदगी में कोई कोई बोल रहा हो और आप उसका प्रतिकार करें - और एक स्थिति ये भी होती है कि अगर कोई कुछ ऐसा वैसा बोल रहा हो जो बवाल मचाने वाला हो और आप बगैर कुछ बोले भी ताली बजाने लगें तो अलग ही संदेश जाता है.
यूपी-बिहार और दिल्ली के लोगों को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बयान का सपोर्ट कर प्रियंका गांधी वाड्रा ने ऐसा ही किया है - हो सकता है ये पंजाब कांग्रेस के फायदे की सोच कर किया गया हो, लेकिन ऐसे एक्ट के दूरगामी खतरनाक नतीजे भी हो सकते हैं.
राहुल गांधी ने तो केरल वाले बयान पर अमेठी में यू-टर्न ले लिया, लेकिन प्रियंका गांधी के लिए ये उतना आसान नहीं होगा - 'कहीं बहू, कहीं बेटी' बन कर वोट मांगना बुराई नहीं है, लेकिन वोट के लिए कभी मायके तो कभी ससुराल को, एक के मुकाबले दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश बैकफायर कर सकती है, कभी भी ये नहीं भूलना चाहिये.
वोट के लिए कभी बेटी, कभी बहू!
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पंजाबी बहू का तमगा कोई अपनी तरफ से नहीं दिया है. अपना ये परिचय तो खुद प्रियंका गांधी ने ही पंजाब की एक रैली में दिया था.
13 फरवरी को प्रियंका गांधी वाड्रा संगरूर जिले के धुरी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट मांगने गयी थीं. हालांकि, उस दिन पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की एक नयी हरकत ने प्रियंका गांधी के बयान को कवर कर दिया. हुआ ये था कि रैली में जब भाषण देने के लिए सिद्धू का नाम पुकारा गया तो वो अपनी जगह हाथ जोड़ कर खड़े हो गये और प्रियंका गांधी की तरफ देखते हुए चन्नी की ओर इशारा करते हुए कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया था. रैली के हफ्ते भर पहले राहुल गांधी ने चन्नी को पंजाब में कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया था, तभी से सिद्धू सिर्फ अपने विधानसभा क्षेत्र अमृतसर ईस्ट तक सीमित हो कर रह गये हैं.
रैली में प्रियंका गांधी पंजाब के लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश में कहा था, 'मेरी शादी पंजाबी परिवार में हुई है... मुझे पंजाबियत की समझ है... मैं पंजाब के बारे में बात करना चाहती हूं... मैंने किसानों के विरोध में इसे देखा... कई लोगों की जानें गईं, लेकिन आपने कभी अपनी जमीन नहीं छोड़ी - ये पंजाबियत है.'
जाहिर है प्रियंका गांधी की इसी बात से चन्नी का जोश बढ़ गया होगा - और दो दिन बाद वो भी सिद्धू की तरह चौके की जगह छक्का जड़ दिये.
चन्नी ने तो बस तर्जुमा भर किया है:
15 फरवरी को प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस के चुनाव कैंपेन के तहत रूपनगर पहुंची तो कहने लगीं, 'समझदारी का इस्तेमाल करो... चुनाव का समय है... लंबी-लंबी बातें नहीं कहना चाहती, लेकिन पंजाब के लोगों... बहनों-भाइयों जो आपके सामने है... उसे ठीक से पहचानो.'
भला अपने बड़े नेता के मुंह से ये सब सुनने के बाद कोई भी छोटा नेता कहां रुकने वाला. प्रियंका की बातें सुनने के बाद चन्नी का भी जोश बढ़ गया. फिर क्या था चन्नी ने आव न देखा ताव और मौके पर ही अपने हिसाब से दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. हो सकता है मन में भड़ास हो या फिर जो आदत पड़ी है.
चन्नी माइक लेकर शुरू हो गये, "यूपी दे... बिहार दे... दिल्ली दे भइये आके इत्ते राज नई करदे..."
कायदे से तो ये प्रियंका गांधी के हिंदी भाषण का ही पंजाबी तर्जुमा था - 'एकजुट हो जाओ पंजाबियों... यूपी, बिहार और दिल्ली के भइयों को पंजाब में घुसने नहीं देना है... जो यहां राज करना चाहते हैं.'
ये तो ऐसा भी नहीं कि वी. नारायणसामी की तरह कुछ ऐसा वैसा किया, जो राहुल गांधी के साथ हुआ था. केरल के साथ ही पुद्दुचेरी में भी विधानसभा चुनाव हो रहे थे और एक रैली में तत्कालीन मुख्यमंत्री राहुल गांधी के साथ थे. जब एक महिला ने शिकायत की तो नारायणसामी ने गलत अनुवाद करते हुए तारीफ बता डाली थी. चन्नी तो अपने हिसाब से 'जस की तस धर दीनी चदारिया' से मिलता जुलता रुख अख्तियार करने की कोशिश की थी.
दरअसल, पंजाब में भी महाराष्ट्र की तर्ज पर ही स्थानीय लोग पूर्वांचल के लोगों को 'भइया' बुलाते हैं. ये एक तरीके से बाहरी लोगों के साथ भेदभावपूर्ण हिकारत भरे नजरिये वाला घटिया ट्रीटमेंट होता है. पहली की शिवसेना और बाद में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के हिंसक प्रदर्शनों में यही भाव निहित होता है.
निशाने पर केजरीवाल, लेकिन कदम आत्मघाती है:
जाहिर है प्रियंका गांधी के निशाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही होंगे - और कांग्रेस महासचिव को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि दिल्ली की सत्ता में केजरीवाल की वापसी में पूर्वांचल के ही लोगों का बड़ा योगदान रहा है.
पंजाब चुनाव 2017 में अरविंद केजरीवाल की आप सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और काफी सारे विधायकों को गंवा देने के बाद भी, ऐसा कोई नहीं कह सकता कि आम आदमी पार्टी पंजाब में बर्बाद हो गयी है.
बल्कि, चुनाव पूर्व सर्वे में आप के बड़े उभार के संकेत मिले हैं. यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल को बीजेपी के साथ साथ राहुल गांधी भी उसी अंदाज में टारगेट कर रहे हैं - और आप नेता को खालिस्तान समर्थक साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल ने चन्नी के बयान को शर्मनाक तो बताया ही है, प्रियंका गांधी को भी भइया वाली कैटेगरी का ही बताया है. केजरीवाल ने कहा है, 'हम इस तरह से किसी भी व्यक्ति या समुदाय को लेकर बयानों की कड़ी निंदा करते हैं... प्रियंका गांधी खुद यूपी से आती हैं इसलिए वो भी भैया हुईं.'
पंजाब पहुंच कर खुद को पंजाबी बहू साबित करने का प्रयास कर रही प्रियंका गांधी जब दिल्ली चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हमलावर रहीं तो खुद को दिल्ली की लड़की बताती थीं - और यूपी चुनाव में तो नारा ही दिया है - 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं.'
ऐसा करके प्रियंका गांधी खुद यूपी की बेटी के तौर पर ही तो पेश करती हैं, लेकिन पंजाब पहुंच कर पंजाबी बताने लगती हैं - मौका देख कर बेटी और मौका देख कर बहू बन जाने में भी कोई ज्यादा दिक्कत वाली बात नहीं है, लेकिन बहू बन कर मायके का अपमान लोग कहां तक बर्दाश्त करेंगे?
चन्नी के बयान के संभावित मायने
चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर गांधी परिवार ने पंजाब में जो कुछ भी हासिल करने का प्लान किया था सिद्धू लगातार उस पर पानी ही नहीं फेरते रहे हैं, बल्कि मौका मिलते ही ही मिट्टी भी डाल देने से नहीं चुकते.
पंजाब को दलित मुख्यमंत्री देने का जो क्रेडिट कांग्रेस ने लिया है, उसे बरकरार रखने की कोशिश में ही राहुल गांधी ने मौजूदा चुनाव में चन्नी को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी घोषित किया है - और नतीजा ये हुआ है कि मुंह फुलाये सिद्धू को कंट्रोल करना कांग्रेस नेतृत्व के लिए काफी मुश्किल हो रहा है.
1. सिद्धू को घेरने की कोशिश: हो सकता है भइया लोगों के नाम पर नया शिगूफा छोड़ कर प्रियंका गांधी ने सिद्धू की तरफ से लगातार हो रहे डैमेज कंट्रोल की भी एक तरीके से कोशिश की हो.
प्रियंका गांधी के साथ संगरूर रैली में मंच पर मौजूद सिद्धू ने भाषण देने से तो इंकार कर दिया था, लेकिन अपने इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान घूम घूम कर सरेआम कहते फिर रहे हैं - 'दो-तीन सीएम को निपटा चुका हूं.'
और फिर अपने हिसाब से ये भी समझाने की कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ते कि अगला नंबर चन्नी का भी है. सिद्धू अपने विधानसभा क्षेत्र की सीमा से बाहर नहीं जा रहे हैं. सिद्धू की हदबंदी को लेकर उनकी पत्नी नवजोत कौर ने ये समझाने की कोशिश की थी कि कहीं चन्नी और सिद्धू के बयानों के टकराव से नया विवाद न खड़ा हो, इसलिए सिद्धू परहेज कर रहे हैं.
बहरहाल, नया अपडेट आया है कि कांग्रेस नेता की नाराजगी कम करने के लिए चन्नी अमृतसर पूर्व जाकर सिद्धू के लिए वोट मांगेंगे - मुश्किल तो ये है कि सिद्धू इसे मुआवजा समझें तब तो.
2. नेताओं के कांग्रेस छोड़ने से ध्यान हटाने के लिए: पूर्व केंद्रीय मंत्री और अश्विनी कुमार ने जिस तरीके से वोटिंग से ठीक पहले कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए पार्टी छोड़ी है, गांधी परिवार के लिए तकलीफदेह तो है ही.
भले ही राहुल गांधी की ही तरह अब प्रियंका गांधी भी ऐसे नेताओं को डरपोक मानने लगी हों, लेकिन लोग भी ऐसा ही मानें जरूरी तो नहीं. यूपी में कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को रोके न जाने के सवाल पर प्रियंका गांधी ने ये समझाने की कोशिश की थी कि लड़ाई बड़ी मुश्किल है - और टिके रहना सबके वश की बात नहीं है.
प्रियंका गांधी लाख कोशिश कर लें, लेकिन पंजाब से आने वाले कांग्रेस नेता बाज नहीं आ रहे हैं. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी का कहना है कि स्टार प्रचारकों में ऐसे नेता शामिल किये गये हैं, जिनकी पत्नियां भी शायद उनको अपना वोट न दें.
मुमकिन है ऐसी बातों से ध्यान हटाने के लिए ही वाया चन्नी प्रियंका गांधी वाड्रा नयी नयी तरकीबें अपनाने की कोशिश कर रही हों.
3. यूपी से तो आस नहीं, पंजाब से जो मिल जाये: ऐसा भी लगता है कि यूपी से आस खत्म होने के बाद पंजाब को बचा लेने की आखिरी कोशिश हो.
वैसे भी यूपी के मुकाबले पंजाब में कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है. पंजाब में अब तक जो कुछ हुआ भी है, जिम्मेदारी सीधे सीधी भाई-बहन लीडरशिप की ही मानी जा रही है.
ऐसे में अगर यूपी को भला बुरा कह कर पंजाब में कुछ हासिल हो जाये, ऐसी ही कोशिश लगती है. फिर क्या होगा - फिर से दोनों भाई-बहन अमेठी की तरह रायबरेली जाकर बयान से पलट जाएंगे या कांग्रेस और गांधी परिवार का गढ़ बचाने के लिए माफी भी मांग लेंगे - वैसे अमेठी के बाद बीजेपी का अगला टारगेट रायबरेली ही है.
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