उत्तर प्रदेश (P) मे पिछले एक हफ्ते से जो हो रहा है वो सिर्फ मजदूरों (Workers) के लिये बस के इंतजाम का मुद्दा नही है. इस बस की खींचतान के पीछे की वजह बेबस मजदूर है तो सामने राजनीतिक पार्टियों मे दिख रही सियासी भूख है. वो भूख जिसमें इन्हें गरीब, परेशान और लाचार श्रमिकों की भूख नही दिख रही. उनके लिये शायद ये महज एक वोटबैंक है जिसे वो किसी भी हाल मे अपने पाले से फिसलने नही देना चाहते. ये मुद्दा तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश की सडकों पर हजारों की संख्या मे मजदूर सडकों पर निकले और यूपी आनेवाले रास्ते के हर बॉर्डर पर प्रवासी श्रमिकों (Migrant Workers) का हुजूम दिखा. ट्रकों और प्राईवेट कॉमर्शियल वाहनों पर लदे हुये मजबूर महिलायें और बच्चे दिखे. सपा-बसपा (SP-BSP) और कांग्रेस(Congress) समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सरकार को इस मुद्दे पर घेरना शुरू किया. यूपी मे सरकार ने दावा किया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश परिवहन की हजारों बसें मजदूरों को उनके शहरों तक पहुंचाने के लिये लगा दी है. लेकिन हकीकत कुछ और ही थी. सरकार के दावों से अलग मजदूर सड़कों पर था और बाहर के राज्यों से हजारों रूपये किराया देकर जान जोखिम मे डाल कर यूपी मे अपने जिलों मे जाने के लिये मजबूर था.
हालात की हकीकत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी पता थी लिहाजा उन्होंने बक़ायदा मजदूरों से अपील की किसी भी हालत में सडकों पर पैदल सफर ना करें, सरकार इंतजाम कर रही है. लेकिन मजबूर श्रमिकों को ना तो प्रशासन ने इस बात की ताकीद की और ना अपने स्तर पर बॉर्डर्स पर कोई व्यवस्था की कि हजारों मजदूर सैकडों मील पैदल घरों की तरफ ना बढ़ें. ये मुद्दा अभी सुलग ही रहा था कि यूपी के औरैया जिले मे कानपुर हाईवे पर एक ट्रक और डीसीएम की टक्कर मे 26 मजदूर मौके पर काल के गाल मे समा गये और करीब दो दर्जन मजदूर घायल हो गये.
इस हृदयविदारक घटना के बाद हाहाकार मच गया. विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया. सरकार ने आनन-फ़ानन मे लाशें हटाने और इलाज का इंतजाम तो किया ही, योगी आदित्यनाथ ने जिले के अफसरों को सख्त...
उत्तर प्रदेश (P) मे पिछले एक हफ्ते से जो हो रहा है वो सिर्फ मजदूरों (Workers) के लिये बस के इंतजाम का मुद्दा नही है. इस बस की खींचतान के पीछे की वजह बेबस मजदूर है तो सामने राजनीतिक पार्टियों मे दिख रही सियासी भूख है. वो भूख जिसमें इन्हें गरीब, परेशान और लाचार श्रमिकों की भूख नही दिख रही. उनके लिये शायद ये महज एक वोटबैंक है जिसे वो किसी भी हाल मे अपने पाले से फिसलने नही देना चाहते. ये मुद्दा तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश की सडकों पर हजारों की संख्या मे मजदूर सडकों पर निकले और यूपी आनेवाले रास्ते के हर बॉर्डर पर प्रवासी श्रमिकों (Migrant Workers) का हुजूम दिखा. ट्रकों और प्राईवेट कॉमर्शियल वाहनों पर लदे हुये मजबूर महिलायें और बच्चे दिखे. सपा-बसपा (SP-BSP) और कांग्रेस(Congress) समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सरकार को इस मुद्दे पर घेरना शुरू किया. यूपी मे सरकार ने दावा किया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश परिवहन की हजारों बसें मजदूरों को उनके शहरों तक पहुंचाने के लिये लगा दी है. लेकिन हकीकत कुछ और ही थी. सरकार के दावों से अलग मजदूर सड़कों पर था और बाहर के राज्यों से हजारों रूपये किराया देकर जान जोखिम मे डाल कर यूपी मे अपने जिलों मे जाने के लिये मजबूर था.
हालात की हकीकत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी पता थी लिहाजा उन्होंने बक़ायदा मजदूरों से अपील की किसी भी हालत में सडकों पर पैदल सफर ना करें, सरकार इंतजाम कर रही है. लेकिन मजबूर श्रमिकों को ना तो प्रशासन ने इस बात की ताकीद की और ना अपने स्तर पर बॉर्डर्स पर कोई व्यवस्था की कि हजारों मजदूर सैकडों मील पैदल घरों की तरफ ना बढ़ें. ये मुद्दा अभी सुलग ही रहा था कि यूपी के औरैया जिले मे कानपुर हाईवे पर एक ट्रक और डीसीएम की टक्कर मे 26 मजदूर मौके पर काल के गाल मे समा गये और करीब दो दर्जन मजदूर घायल हो गये.
इस हृदयविदारक घटना के बाद हाहाकार मच गया. विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया. सरकार ने आनन-फ़ानन मे लाशें हटाने और इलाज का इंतजाम तो किया ही, योगी आदित्यनाथ ने जिले के अफसरों को सख्त निर्देश दिये कि अफसर किसी भी हालत मे मजदूरों को ट्र्कों पर सवार होकर जाने ना दें.
योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को सख्त निर्देश दिए कि किसी भी सूरत में कोई भी प्रवासी मजदूर ट्रकों पर सवार होकर के नहीं जाएगा और ना ही पैदल जाने दिया जाए अगर किसी जिले के बॉर्डर पर ऐसा पाया जाता है तो जिले का प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार होगा. सरकार की सख्ती के बाद प्रशासन ने सख्ती शुरू की और तमाम बॉर्डर्स पर मजदूरों को ट्रकों से उतारकर बसों में बिठाकर भेजने का काम शुरू किया, लेकिन यह भी ज्यादा नहीं चला.
मजदूर सड़कों पर चलते रहे और ट्रकों पर असुरक्षित तरीके से सफर करते रहे. नतीजा यह रहा कि विपक्षी पार्टियों ने सरकार को और घेरना शुरू कर दिया. अखिलेश यादव, मायावती समेत प्रियंका गांधी ने भी योगी सरकार को मजदूरों की अनदेखी के लिये जमकर कोसा. इसी बीच कांग्रेस ने अपनी बसें मुहैया करने की बात फिर से दोहराई. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की तरफ से बकायदा एक चिट्ठी लिखकर गुजारिश की गई कि उन्हे 1000 बसें लेकर नोएडा और गाजियाबाद में फंसे प्रदेश के हजारों मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने दिया जाए.
दरअसल यह ऐसा मौका है जब विपक्षी पार्टियां हजारों मजदूरों में अपने भविष्य के वोटर्स देख रही हैं. साल 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए यह वोटर्स बड़े अहम साबित होने वाले हैं.जानकारी के मुताबिक यूपी में प्रवासी श्रमिकों और बाहर रहकर काम करने वाले वोटरों की संख्या एक करोड़ के आसपास है, और यह वोट आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बेहद अहम साबित हो सकते हैं. लिहाजा कांग्रेस इस मौके को भी नहीं छोड़ना चाहती.
लेकिन सरकार भी किसी भी कीमत पर यह नहीं दिखाना चाहती कि वह कोरोना संक्रमण काल में लड़ाई में कमजोर पड़ गई है. लिहाजा प्रियंका के चिट्ठी को पहले तो दरकिनार किया गया बाद में उसमें कई खामियां निकालकर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कांग्रेस की तरफ से भेजी गई बसों की लिस्ट फर्जी है.
उसमें तमाम गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन स्कूटर और ई रिक्शा के नाम पर हैं. कई गाड़ियों के फिटनेस गड़बड़ हैं और असल में 1000 गाड़ियां है कि नहीं यह भी नहीं पता है. लिहाजा सरकार कोरोना की इस लड़ाई में केवल कांग्रेस के दिए हुए झूठे बयान पर जांच के नाम पर नहीं बैठ सकती. उनके लिए मजदूरों को बचाना बेहद जरूरी है.
यानी सरकार ने साफ कर दिया कि कुछ भी हो कांग्रेस की इस पेशकश को मानकर वह कांग्रेस को मजदूरों के रूप में संजीवनी नहीं देना चाहती. और ना ही यह दिखाना चाहती है कि सरकार के हाथ से मामला निकल रहा है. अब इसी दांवपेच में बस के खेल में पूरा मामला फंसा हुआ है. सैकड़ों गाड़ियां आगरा राजस्थान के हाईवे पर और रास्ते में रुकी हुई है कि कब उन्हें परमिशन मिले और वह नोएडा गाजियाबाद के लिए रवाना हो सके. और इधर सरकार किसी भी सूरत में यह होने नहीं देना चाहती.
इसके चलते कांग्रेस और भाजपा के बीच चिट्ठी का भी खेल चल रहा है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पीए संदीप सिंह की तरफ से कई चिट्ठियों का आदान-प्रदान उत्तर प्रदेश के गृह सचिव अवनीश अवस्थी के साथ किया गया, जिसमें आरोप-प्रत्यारोप के बीच में यह कहा गया कि कांग्रेस बसों के साथ पूरी तरह से तैयार हैं.
उन्हें मदद के लिए परमिशन और परमिट दिया जाए, लेकिन हर चिट्टी के साथ सरकार के तरफ से कोई ना कोई ऐसा जवाब दिया जा रहा है जिससे कि यह बसें आगे ना बढ़ सके यानी कि साफ है इस भीषण संकट के दौर में भी सियासत जोरों पर है. इसमें मजदूर सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए एक मोहरा मात्र है. हर कोई चाहता है कि किसी तरीके से उनका वोट बैंक हाथों से ना फिसलने पाए. असलियत में हालात देखकर के लगता है की मजदूर की चिंता किसी को नहीं है.
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