35, लोधी एस्टेट, नई दिल्ली - सरकारी नोटिस के इस अड्रेस तक पहुंचने जितनी भी - और जिस वजह से देर हुई हो, लेकिन प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने बकाये रकम के भुगतान में वक्त नहीं गंवाया. सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक, प्रियंका गांधी ने ₹ 3,46,677 का पेमेंट नोटिस मिलने के कुछ ही देर बाद कर दी. ये बकाया 30 जून तक बन रहा था. नोटिस के मुताबिक प्रियंका गांधी वाड्रा को सरकारी बंगला खाली करने के लिए 1 अगस्त, 2020 तक की मोहलत दी गयी है.
दिल्ली का बंगला (Delhi Bungalow) खाली करने के बाद अब प्रियंका गांधी के लघनऊ में डेरा जमाने की चर्चा है. फिर तो मान कर चलना होगा कि प्रियंका गांधी के राजनीतिक हथियार जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पर फोकस रहेंगे. मायावती और अखिलेश यादव को भी उसके साइड इफेक्ट तो झेलने की पड़ेंगे.
प्रियंका के लिए तो बंगला भी राजनीति का ही मौका है
सरकारी सुविधायें ऐसी ही होती हैं. पात्रता खत्म होते ही पहुंच के बाहर हो जाती हैं. मगर, यादों का क्या. यादें तो यादें होती हैं. दिल्ली के लोधी एस्टेट वाले बंगले से प्रियंका गांधी की ढेर सारी यादें भी जुड़ी हुई हैं - भले ही प्रियंका गांधी ने बंगला खाली करने के लिए पहले से ही मन बना लिया हो, लेकिन वो बंगले को शायद ही कभी भुला पायें. 21 फरवरी, 1997 को ये बंगला प्रियंका गांधी के नाम अलॉट हुआ था - और रॉबर्ट वाड्रा से शादी होने के बाद ही वो इस बंगले में शिफ्ट हो गयी थीं. 2019 में जब मोदी सरकार ने SPG सुरक्षा के नियमों की समीक्षा तो गांधी परिवार के सभी लोग उसके लिए अयोग्य हो गये. लिहाजा बंगला भी खाली करना ही था. एजेंसी के अनुसार, प्रियंका गांधी इस बंगले के लिए हर महीने 37 हजार रुपये किराये के तौर पर देती रही हैं. अब खबर है कि प्रियंका गांधी लखनऊ के गोखले मार्ग पर कौल हाउस को अपना नया बसेरा बनाने वाली हैं. नया बंगला भी नेहरू-गांधी परिवार का ही है - शीला कौल का. शीला कौल केंद्रीय मंत्री और हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल भी रह चुकी हैं. 2015 में उनका निधन हो गया था.
35, लोधी एस्टेट, नई दिल्ली - सरकारी नोटिस के इस अड्रेस तक पहुंचने जितनी भी - और जिस वजह से देर हुई हो, लेकिन प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने बकाये रकम के भुगतान में वक्त नहीं गंवाया. सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक, प्रियंका गांधी ने ₹ 3,46,677 का पेमेंट नोटिस मिलने के कुछ ही देर बाद कर दी. ये बकाया 30 जून तक बन रहा था. नोटिस के मुताबिक प्रियंका गांधी वाड्रा को सरकारी बंगला खाली करने के लिए 1 अगस्त, 2020 तक की मोहलत दी गयी है.
दिल्ली का बंगला (Delhi Bungalow) खाली करने के बाद अब प्रियंका गांधी के लघनऊ में डेरा जमाने की चर्चा है. फिर तो मान कर चलना होगा कि प्रियंका गांधी के राजनीतिक हथियार जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पर फोकस रहेंगे. मायावती और अखिलेश यादव को भी उसके साइड इफेक्ट तो झेलने की पड़ेंगे.
प्रियंका के लिए तो बंगला भी राजनीति का ही मौका है
सरकारी सुविधायें ऐसी ही होती हैं. पात्रता खत्म होते ही पहुंच के बाहर हो जाती हैं. मगर, यादों का क्या. यादें तो यादें होती हैं. दिल्ली के लोधी एस्टेट वाले बंगले से प्रियंका गांधी की ढेर सारी यादें भी जुड़ी हुई हैं - भले ही प्रियंका गांधी ने बंगला खाली करने के लिए पहले से ही मन बना लिया हो, लेकिन वो बंगले को शायद ही कभी भुला पायें. 21 फरवरी, 1997 को ये बंगला प्रियंका गांधी के नाम अलॉट हुआ था - और रॉबर्ट वाड्रा से शादी होने के बाद ही वो इस बंगले में शिफ्ट हो गयी थीं. 2019 में जब मोदी सरकार ने SPG सुरक्षा के नियमों की समीक्षा तो गांधी परिवार के सभी लोग उसके लिए अयोग्य हो गये. लिहाजा बंगला भी खाली करना ही था. एजेंसी के अनुसार, प्रियंका गांधी इस बंगले के लिए हर महीने 37 हजार रुपये किराये के तौर पर देती रही हैं. अब खबर है कि प्रियंका गांधी लखनऊ के गोखले मार्ग पर कौल हाउस को अपना नया बसेरा बनाने वाली हैं. नया बंगला भी नेहरू-गांधी परिवार का ही है - शीला कौल का. शीला कौल केंद्रीय मंत्री और हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल भी रह चुकी हैं. 2015 में उनका निधन हो गया था.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला चाहे कितना भी शोर मचायें, लेकिन ये सब प्रियंका गांधी के मनमाफिक ही हुआ है - और प्रधानमंत्री नरेंद्र की आर्थिक नीतियों को लेकर अक्सर हमला बोलने वाले कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के बेटे कार्ती चिदंबरम ने तो जैसे कांग्रेस नेतृत्व के मन की बात कह डालने का क्रेडिट ही लूट लिया है.
कार्ती चिदंबरम के सुझाव की तरह कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी जब बंगला खाली करने को लेकर प्रियंका गांधी को मिले नोटिस पर जो ट्वीट किया उसे भी सोच समझ कर तैयार किया गया लगता है - ट्वीट में जिन नेताओं को टारगेट किया गया है वो भी गौर करने वाला है. सामान्यतया ऐसा नहीं होता.
कांग्रेस की तरफ से ऐसे मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अगर किसी को निशाना बनाया जाता है तो वो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह होते हैं, लेकिन यहां यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिया गया है. ये मामला केंद्र सरकार से जुड़ा है, ऐसे में योगी आदित्यनाथ के नाम लेने का कोई मतलब नहीं बनता. अगर अमित शाह का नाम नहीं लेते तो संबंधित मंत्री का भी नाम ले सकते थे या फिर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का नाम लिया जा सकता था, लेकिन योगी आदित्यनाथ का नाम जान बूझ कर लिया गया है. चूंकि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश को लेकर लगातार एक्टिव हैं इसलिए.
हाल ही में प्रियंका गांधी ने कानपुर के शेल्टर होम में रहने वाली लड़कियों के कोविड पॉजिटिव होने, एचआईवी संक्रमित और गर्भवती होने को लेकर भी योगी सरकार की कड़ी आलोचना की थी. प्रियंका गांधी ने कानपुर की घटनी की यूपी के देवरिया शेल्टर होम और बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में लड़कियों के यौन शोषण से तुलना की थी. खबर थी कि कानपुर के शेल्टर होम में 57 लड़कियां कोरोना पॉजिटिव और पांच लड़कियां गर्भवती पायी गयीं. एक लड़की एचआईवी संक्रमित भी और एक हिपैटाइटिस की शिकार बतायी गयी.
कानपुर के मामले में प्रियंका गांधी से रिएक्शन में हड़बड़ी के चलते थोड़ी चूक हो गयी. पूरी खबर आयी तो मामला अलग समझ में आया. अधिकारियों ने बताया कि शेल्टर में लाये जाने से पहले से ही लड़कियां गर्भवती थीं - और आरोपियों के खिलाफ मुकदमे भी चल रहे हैं. इसके बाद वहां से प्रियंका गांधी को नोटिस भेज दिया गया.
प्रियंका गांधी को मामले की गंभीरता समझ आ चुकी थी, लिहाजा राजनीतिक रंग देते हुए बोलीं कि वो इंदिरा गांधी की पोती हैं और किसी से डरने वाली नहीं हैं. जो करना है कर लो. प्रियंका गांधी ने ये बोल तो दिया, लेकिन इस मुद्दे को छोड़ आगे बढ़ गयीं. वरना, हाल फिलहाल किसी भी मुद्दे को प्रियंका गांधी इतनी जल्दी ठंडा नहीं होने दे रही हैं.
प्रवासी मजदूरों को प्रियंका गांधी की भेजी हुई बसें भले ही न मिल पायी हों, लेकिन जो राजनीतिक फायदा मिलना था वो मिला ही. यूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की गिरफ्तारी को लेकर भी प्रियंका गांधी ने मामला लंबा खींचा - और अब तो योगी आदित्यनाथ के साथ साथ बीएसपी नेता मायावती को भी लपेटना शुरू कर चुकी हैं. एक अरसे से राहुल गांधी और उनकी ही मर्जी से प्रियंका गांधी भी मायावती के बयानों पर रिएक्ट करने से भी बचते देखे गये.
दिल्ली दूर नहीं होगी, लेकिन किसके लिए
कार्ती चिदंबरम तो समझा ही रहे हैं कि कांग्रेस के लिए अब दिल्ली दूर नहीं रहने वाली. ये ठीक है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है और दूर भले न हो लेकिन दिल्ली पहुंचने में अभी बहुत देर है. अभी ऐसा भी कोई संकेत नहीं है कि ये देर भी कितना वक्त लेगी. ये जरूर हो सकता है कि प्रियंका गांधी के समर्थकों के लिए लखनऊ नजदीक हो जाएगा, फिर दिल्ली भले ही दूर हो.
कम से कम रायबरेली और अमेठी के लोगों के लिए तो दिल्ली के मुकाबले लखनऊ पहुंचना आसान ही होगा. पहले प्रियंका गांधी रायबरेली के लोगों को मिलने के लिए दिल्ली बुला लिया करती रहीं. इलाके के लोग अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते जब प्रियंका गांधी का दरबार लगता रहा है. अमेठी तो फिलहाल हाथ से निकल ही चुका है. राहुल गांधी तो अब अमेठी शायद ही लौटने की सोचें भी क्योंकि वो वायनाड से ज्यादा ही कनेक्ट महसूस कर रहे हैं.
प्रियंका गांधी वैसे तो यूपी में 2022 के विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही हैं, लेकिन अगर खास कामयाबी नहीं मिली तो 2024 में अमेठी में भी वापस पैठ बनाने की कोशिश कर सकती हैं. एक बात तो तय है राहुल के मुकाबले प्रियंका से भिड़ना स्मृति ईरानी के लिए मुश्किल हो सकता है.
भले ही प्रियंका गांधी यूपी की राजनीति पर फोकस हों और कांग्रेसी की वापसी के लिए संघर्ष कर रही हों, लेकिन अब भी वो सैलानी की तरह ही दिल्ली से लखनऊ जाती हैं और फिर कुछ देर या दिन गुजारने के बाद दिल्ली लौट जाती हैं. मौके पर मौजद रहने का मतलब ही अलग होता है - और वो भी प्रियंका गांधी खुद लखनऊ में रहें तो कांग्रेस की गतिविधियां भी बढ़ेंगी ही, कार्यकर्ताओं के जोश में इजाफा होगा वो अलग से बोनस ही होगा.
कांग्रेस के हिसाब से देखें तो प्रियंका गांधी के लखनऊ में डेरा डालने के फायदे ही फायदे हैं - क्योंकि कांग्रेस के पास गंवाने के लिए बचा ही क्या है? ले देकर यूपी से लोक सभा में भी एक ही सीट है - सोनिया गांधी वाली. रायबरेली. विधानसभा में भी कांग्रेस तीसरे स्थान के बाहर है.
प्रियंका गांधी के लखनऊ पहुंचने का सबसे ज्यादा नुकसान किसे होगा ये तो कहना अभी मुश्किल होगा. किसी का नुकसान होगा भी या नहीं ये भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि अभी तक तो प्रियंका गांधी की मौजूदगी का कोई करिश्मा देखने को तो मिला नहीं है. यूपी में सत्ताधारी बीजेपी से मुकाबले के लिए पहले तो प्रियंका गांधी के सामने कांग्रेस को बीएसपी और समाजवादी पार्टी से ऊपर पहुंचने की चुनौती होगी.
और कुछ हो न हो, लखनऊ पहुंच कर प्रियंका गांधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए मुश्किलें तो खड़ी कर ही सकती हैं. जब एक दिन के लिए सोनभद्र पहुंच कर अधिकारियों को अपने मन की करने को मजबूर कर सकती हैं. जब एक दिन के लिए लखनऊ पहुंच कर पुलिस विभाग को सवालों के घेरे में खड़ा कर सकती हैं. जब एक दिन के लिए दिल्ली से उन्नाव पहुंच कर योगी आदित्यनाथ के साथ साथ अखिलेश यादव को धरना देने के लिए और मायावती को राजभवन जाकर ज्ञापन देने के लिए मजबूर कर सकती हैं, तो लखनऊ में डेरा डाल देने के बाद क्या होगा?
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