बीजेपी के 'सेवा ही संगठन के मुकाबले कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में वैसी ही एक मुहिम चला रही है - 'सेवा सत्याग्रह'. कॉमन बात ये है कि दोनों ही अभियानों का टारगेट ऑडिएंस एक ही है - कोरोना संकट में बेहाल और परेशान रहे लोग जो अगले साल विधानसभा चुनावों में वोट डालने जा रहे हैं.
एक फर्क भी है - बीजेपी नेतृत्व ने अपने सांसदों और नेताओं को लोगों से कनेक्ट होने, उनकी मुश्किलें सुनने और समझने के साथ साथ कोरोना संकट की जरूरतों में मददगार के रूप में मौजूदगी दर्ज कराने को कहा है. कांग्रेस जो अभियान चला रही है उसमें वो लोगों में मेडिकल किट बांट रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyank Gandhi Vadra) की तरफ से बहराइच के लिए 20 हजार मेडिकल किट भेजे गये हैं - और उतने ही अमेठी के लिए राहुल गांधी की तरफ से. कांग्रेस ने 823 ब्लॉक के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किये हैं और 86 डॉक्टरों की टीम को भी अपने अभियान में शामिल कर रखा है जो लोगों की मदद कर रहे हैं.
बीजेपी की कोशिश अपने अभियान के जरिये लोगों की नाराजगी दूर करने की है, तो कांग्रेस का प्रयास बीजेपी को कोरोना की मुश्किल घड़ी में भगवान भरोसे छोड़ देने को लेकर कठघरे में खड़ा करने की है.
अब अगर ये लगता है कि कांग्रेस और बीजेपी के ये अभियान मिलते जुलते क्यों हैं, तो जवाब कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के बयान में मिल जाता है. सलमान खुर्शीद ने मई, 2021 में ही कांग्रेस को बीजेपी से सबक लेने की सलाह दी थी. सलमान खुर्शीद का कहना रहा कि कांग्रेस को भी बीजेपी की ही तरह बड़ा सोचने की आदत डालनी चाहिये - क्योंकि निराशावादी दृष्टिकोण के कारण कांग्रेस काफी कमजोर हो चुकी है और ऐसे खोई हुई जमीन वापस नहीं हासिल की जा सकती.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को कांग्रेस की चुनाव घोषणा पत्र कमेटी का प्रमुख बनाया गया है - और पश्चिम यूपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ मिल कर वो कांग्रेस से मुस्लिमों को जोड़ने की कोशिश में जुट हुए हैं. लगता है सलमान खुर्शीद की बातों पर सबसे ज्यादा भरोसा नसीमुद्दीन सिद्दीकी...
बीजेपी के 'सेवा ही संगठन के मुकाबले कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में वैसी ही एक मुहिम चला रही है - 'सेवा सत्याग्रह'. कॉमन बात ये है कि दोनों ही अभियानों का टारगेट ऑडिएंस एक ही है - कोरोना संकट में बेहाल और परेशान रहे लोग जो अगले साल विधानसभा चुनावों में वोट डालने जा रहे हैं.
एक फर्क भी है - बीजेपी नेतृत्व ने अपने सांसदों और नेताओं को लोगों से कनेक्ट होने, उनकी मुश्किलें सुनने और समझने के साथ साथ कोरोना संकट की जरूरतों में मददगार के रूप में मौजूदगी दर्ज कराने को कहा है. कांग्रेस जो अभियान चला रही है उसमें वो लोगों में मेडिकल किट बांट रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyank Gandhi Vadra) की तरफ से बहराइच के लिए 20 हजार मेडिकल किट भेजे गये हैं - और उतने ही अमेठी के लिए राहुल गांधी की तरफ से. कांग्रेस ने 823 ब्लॉक के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किये हैं और 86 डॉक्टरों की टीम को भी अपने अभियान में शामिल कर रखा है जो लोगों की मदद कर रहे हैं.
बीजेपी की कोशिश अपने अभियान के जरिये लोगों की नाराजगी दूर करने की है, तो कांग्रेस का प्रयास बीजेपी को कोरोना की मुश्किल घड़ी में भगवान भरोसे छोड़ देने को लेकर कठघरे में खड़ा करने की है.
अब अगर ये लगता है कि कांग्रेस और बीजेपी के ये अभियान मिलते जुलते क्यों हैं, तो जवाब कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के बयान में मिल जाता है. सलमान खुर्शीद ने मई, 2021 में ही कांग्रेस को बीजेपी से सबक लेने की सलाह दी थी. सलमान खुर्शीद का कहना रहा कि कांग्रेस को भी बीजेपी की ही तरह बड़ा सोचने की आदत डालनी चाहिये - क्योंकि निराशावादी दृष्टिकोण के कारण कांग्रेस काफी कमजोर हो चुकी है और ऐसे खोई हुई जमीन वापस नहीं हासिल की जा सकती.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को कांग्रेस की चुनाव घोषणा पत्र कमेटी का प्रमुख बनाया गया है - और पश्चिम यूपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ मिल कर वो कांग्रेस से मुस्लिमों को जोड़ने की कोशिश में जुट हुए हैं. लगता है सलमान खुर्शीद की बातों पर सबसे ज्यादा भरोसा नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर ही हुआ है, तभी तो यूपी चुनावों को लेकर उनकी बड़ी सोच सामने आयी है - कहते हैं, मुसलमान अगर कांग्रेस के साथ आ जायें तो बीजेपी दो सीटों पर सिमट जाएगी.
ये तो काफी समय से लग रहा है कि यूपी की प्रभारी कांग्रेस महासचिव का सबसे ज्यादा जोर सूबे के मुस्लिम वोट बैंक पर है, लेकिन इसका मकसद सिर्फ मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करना भर है या मुस्लिम वोट बैंक के प्रमुख हिस्सेदार अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और बीएसपी नेता मायावती पर किसी तरह का दबाव बनाने की कोशिश है - 2019 के आम चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और मायावती (Mayawati) ने हाथ मिला कर सपा-बसपा गठबंधन बनाया था और कांग्रेस को उससे दूर रखा था, लेकिन बाद में आपस में हुआ गठबंधन भी तोड़ लिया.
अभी तक तो यही संकेत मिला है कि अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही बगैर किसी चुनावी गठबंधन के मैदान में उतरने जा रहे हैं. कांग्रेस तो ऐसी घोषणा सबसे पहले करती है, लेकिन जैसे बिहार चुनाव में राहुल गांधी ने सम्मानजनक सीटें मिलने पर आरजेडी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था, मौका मिलता है तो यूपी में भी उसके लिए तैयार होंगे ही.
अब प्रियंका गांधी वाड्रा के मन में सपा और बसपा के साथ गठबंधन का कोई इरादा नहीं है तो मुस्लिम वोट बैंक पर खुल्लम खुल्ला हालिया मेहरबानी थोड़ी अजीब भी लगती है. जिस बात से सोनिया गांधी परेशान रहती थीं कि बीजेपी ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी के तौर पर प्रचारित कर दिया और राहुल गांधी को जनेऊधारी शिवभक्त हिंदू के तौर पर पेश किया गया - आखिर प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस को आगे किस रास्ते पर ले जा रही हैं?
राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेरने की कोशिश क्यों
उत्तर प्रदेश के हर जिले में कांग्रेस नेताओं की मुस्लिम उलेमाओं के साथ हफ्ते में दो बार मीटिंग होने लगी है. शुरुआत बस्ती-संतकबीर नगर से हो चुकी है. ये बैठकें पूर्वांचल से शुरू हुई हैं लेकिन ज्यादा जोर पश्चिम यूपी पर रहने वाला है.
बिजनौर में कांग्रेस 1600 उलेमाओं का सम्मेलन कराने जा रही है. बस्ती में उलेमाओं के साथ एक वर्चुअल बैठक में बीएसपी से कांग्रेस में आये नसीमुद्दीन सिद्दीकी कुछ ज्यादा ही जोश में दिखे. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोग अगर कांग्रेस के साथ आ जायें तो बीजेपी यूपी में दो सीटों पर सिमट कर रह जाएगी.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बयान पर फौरन ही बीजेपी की तरफ से योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री मोहसिन रजा का रिएक्शन आ गया है. मोहसिन रजा कह रहे हैं, 'ये चाहते हैं समाजवादी पार्टी जिताओ-शरीया कानून लाओ - इनकी बोली और ISIS की बोली एक ही है.'
जैसा काम नसीमुद्दीन सिद्दीकी अभी कांग्रेस के लिए कर रहे हैं, 2017 से पहले ऐसी ही मुहिम वो बेटे अफजल सिद्दीकी के साथ मिल कर बीएसपी के सपोर्ट में चला रहे थे. जैसे अभी कांग्रेस के लिए उलेमाओं के साथ बैठकें हो रही हैं, तब बीएसपी की तरफ से भाईचारा मीटिंग हुआ करती थी. मीटिंग के पहले कुरान की आयतें जरूर पढ़ी जायें ऐसा सुनिश्चित किया जाता रहा - और मुस्लिम समुदाय के लोगों को समझाया जाता रहा कि क्यों उनके लिए एक 'कायद' की जरूरत है. आगे ये भी समझाया जाता कि मंजिल को हासिल करने के लिए एक कायद यानी नेता बहुत क्यों जरूरी होता है. मुस्लिम समुदाय के बीच तब नसीमुद्दीन सिद्दीकी को कायद के तौर पर ही पेश किया जाता रहा और मिसाल दी जाती कि कैसे मायावती सरकार में उनके पास 18 विभाग हुआ करते रहे.
नसीमुद्दीन सिद्धीकी ये सब करके भी मायावती की सरकार तो नहीं बनवा पाये थे और बाद में बीएसपी से बेदखल भी कर दिये गये, लेकिन कांग्रेस में मौका मिलने के बाद एक बार फिर वैसे ही बड़े बड़े दावे कर रहे हैं - बहरहाल, बताया जा रहा है कि उलेमाओं की बैठकों में मिले सुझावों पर रिपोर्ट तैयार कर प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने पेश की जाएगी - और फिर उलेमाओं के नुमाइंदों की सलमान खुर्शीद के साथ मीटिंग करायी जाएगी ताकि उसी हिसाब से कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र तैयार किया जा सके.
2017 के गुजरात चुनाव से राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व का चोला पहन कर बीजेपी से मुकाबले की तैयारी की. मंदिर मंदिर घूमते रहे और कर्नाटक चुनाव में मठों में जा जाकर समर्थन जुटाते रहे. मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव से पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद शिवभक्त के तौर पर खुद को नये सिरे से प्रकट कराये - पूरी मशक्कत का मकसद तो एक ही था कांग्रेस पर लगे मुस्लिम पार्टी के ठप्पे से पार्टी को छुटकारा दिलाना.
सवाल ये है कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा के स्टैंड को सोनिया गांधी की भी मंजूरी मिल चुकी है?
क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा का ये ताजा स्टैंड तो कांग्रेस के यू-टर्न लेने जैसा लगता है - क्या कांग्रेस को अब मुस्लिम पार्टी के तमगे से कोई दिक्कत नहीं रही?
क्या ये राहुल गांधी की अब तक की सॉफ्ट हिंदुत्व प्रोजेक्ट पर की गयी मेहनत पर पानी फेरने जैसा नहीं है - या कांग्रेस ने अब ये मान लिया है संभल कर खड़े होने के लिए सारे संसाधनों और स्टैंड को रिसेट करने का वक्त आ गया है?
क्या ये गठबंधन के लिए दबाव बनाने की कोशिश है
मिशन यूपी 22 में तो प्रियंका गांधी वाड्रा काफी पहले से ही जुटी हैं, लेकिन चुनावी तैयारी 'तिरंगा यात्रा' के साथ ही शुरू हो गयी थी - और ये भी बीजेपी से मिलता जुलता कैंपेन ही लगा क्योंकि बीजेपी पहले से तिरंगा यात्रा टाइप मुहिम चलाती रही है.
तिरंगा यात्रा के तहत गांवों में घुस कर लोगों के बीच कांग्रेस की पैठ बनाने का मकसद रहा - और पंचायत चुनाव में कांग्रेस को फील्ड उतर कर आजमाने का एक तरीका भी समझा गया.
ये तभी की बात है जब 2020 के आखिर में कांग्रेस के स्थापना दिवस कार्यक्रम की तैयारी चल रही थी और राहुल गांधी उसी दौरान अपने विदेश दौरे पर चले गये. तब देश में किसान आंदोलन भी जोर पकड़ चुका था और कांग्रेस के भी कुछ सांसद जंतर मंतर पर किसानों के समर्थन में धरने पर बैठे थे - और राहुल गांधी की गैरहाजिरी में ज्यादातर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी से ही पूछ पूछ कर कोई भी काम करते रहे.
तिरंगा यात्रा की ही तरह प्रियंका गांधी की तरफ से जगह जगह कैलेंडर भी बांटे गये थे. जैसे अभी कांग्रेस की मेडिकल किट बंटवायी जा रही है. पंचायत चुनावों में कांग्रेस को समाजवादी पार्टी जैसी कामयाबी तो नहीं मिली है, लेकिन जो कुछ भी हासिल हुआ है उससे पार्टी में काफी संतोष लग रहा है. कांग्रेस की तरफ से दावा किया गया है कि यूपी की 270 जिला पंचायत सीटों पर पार्टी को जीत मिली है - और 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा वोट मिले हैं. कांग्रेस नेताओं की मानें तो ये नंबर पार्टी के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि ये वोट 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव में मिले वोटों का डबल है.
खबर ये भी आयी है कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपनी टीम को कांग्रेस के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश भी शुरू करने को बोल दिया है. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के जिला अध्यक्षों से चुनाव लड़ने की ख्वाहिश रखने वाले नेताओं और विधानसभा चुनाव जीतने के दमखम रखने वाले कार्यकर्ताओं के नाम भेजने के लिए कहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, एक सीनियर कांग्रेस नेता का कहना था कि जिन लोगों को कांग्रेस ने पंचायत चुनावों में समर्थन दिया था और जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है उनके टिकट पाने की काफी संभावना है.
ये तैयारियां तो यही बता रही हैं कि प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में लोगों के बीच कांग्रेस की पैठ बढ़ा कर मजबूत करने की कोशिश तो कर ही रही हैं, लेकिन मुस्लिम वोट को लेकर वो एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश कर रही हैं.
CAA के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान प्रियंका गांधी को मुस्लिम समुदाय के बीच लगातार देखा गया - लखनऊ से लेकर आजमगढ़ तक और वाराणसी से लेकर मेरठ तक. पुलिस एक्शन के शिकार लोगों से मिल कर प्रियंका गांधी ने यकीन दिलाने की पूरी कोशिश की कि कांग्रेस मुश्किल वक्त में मुस्लिम समुदाय के साथ हमेशा खड़ा रहेगी.
सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप और NSA में बुक करके जेल भेजे गये गोरखपुर अस्पताल के डॉक्टर कफील खान को तो प्रियंका गांधी वाड्रा का संरक्षण पहले से ही मिल रहा है - मुख्तार अंसारी के मामले में भी बीजेपी विधायक अलका राय ने बार बार पत्र लिख कर लोगों में यही मैसेज देने की कोशिश की थी कि कैसे प्रियंका गांधी वाड्रा मुस्लिम वोटों के लिए एक अपराधी को बचाने की कोशिश कर रही हैं.
वैसे भी मुख्तार अंसारी की कस्टडी तो यूपी पुलिस को तभी मिल पायी जब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को हिदायत दी क्योंकि उससे पहले तो यही देखने को मिला कि पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार मुख्तार अंसारी को यूपी भेजने को तैयार न थी.
जैसे मोहसिन खान अभी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के भाषण को ISIS जैसा बता रहे हैं, चुनावों में बीजेपी प्रियंका गांधी वाड्रा के मुस्लिम प्रेम अपराध से जोड़ने की पूरी कोशिश करेगी ही - और वैसी परिस्थिति में लड़ाई बीजेपी बनाम सपा-बसपा-कांग्रेस हो जाएगी.
ये तो साफ है कि प्रियंका गांधी वाड्रा अब सलमान खुर्शीद और नसीमुद्दीन सिद्धीकी के जरिये मुस्लिम वोट में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी हासिल करने की कोशिश में निकल पड़ी हैं. ये तो प्रियंका गांधी वाड्रा को भी मालूम है कि कोरोना संकट में योगी आदित्यनाथ सरकार से लोगों की नाराजगी का चुनावों में फायदा उठाने का बेहतरीन मौका है, लेकिन ये काम न तो अकेले अखिलेश यादव कर सकते हैं, न मायावती और न ही प्रियंका गांधी वाड्रा की कांग्रेस. ऐसे में एक संभावना तो बनती ही है कि घोषित तौर पर मुमकिन न हो तो अघोषित तौर पर ही सही, विपक्षी दलों के बीच के अंडरस्टैंडिग बन जाये ताकि वोटों का बंटवारा होने से बच सके. जाहिर है ये डर तो अखिलेश यादव और मायावती को भी अंदर से होगा ही, लेकिन वे खुल कर चुनावी गठबंधन से परहेज करते नजर आ रहे हैं - डर को काउंटर करने का तरीका एक दूसरे के मददगार बनने में ही है.
प्रियंका गांधी कांग्रेस के साथ चुनावी समझौते के लिए अब सपा-बसपा पर तभी दबाव बना सकती हैं जब कांग्रेस अखिलेश यादव और मायावती के सामने खुद को बड़ा वोटकटवा के तौर पर प्रोजेक्ट करे - ऐसा हो पाया तो मान कर चलिये डर के आगे जीत न सही गठबंधन तो हो ही सकता है.
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