सोशल मीडिया या फिर फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के इस दौर में राजनीति एक मुश्किल चीज है. नेता को जहां इन प्लेटफॉर्म्स पर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होती है तो वहीं उसे उतनी ही मेहनत ग्राउंड पर करनी होती है. यानी एक नेता के पास यही दो ऑप्शन होते हैं. इसके अलावा और कुछ नहीं होता. एक पर पकड़ भले ही मजबूत हो यदि दूसरे पर हाथ ढीला पड़ गया तो व्यक्ति कुछ कर ले राजनीति नहीं कर सकता. राजनीति तो राहुल गांधी से भी नहीं हो रही लेकिन प्रियंका अपने कौशल से हर बार ये सिद्ध कररही हैं कि वो वाक़ई इंदिरा का खून हैं. राहुल के विपरीत प्रियंका ने जहां एक तरफ ट्विटर और फेसबुक पर गदर मचाया है तो वहीं ग्राउंड पर भी उनका जलवा है. प्रियंका किस हद तक मुद्दों को समझती हैं और कैसे उनकी राजनीति में हर बीतते दिन के साथ निखार आ रहा है गर जो इस बात को समझना हो तो हम बीते दिनों हुए उनके उस मथुरा दौरे का अवलोकन कर सकते हैं जहां न केवल उन्होंने पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से तीखे सवाल किए बल्कि तब मंच से नीचे उतर गयीं जब राजस्थान से आई एक बलात्कार पीड़िता ने अपनी आपबीती सुनाते हुए प्रियंका गांधी से मदद की गुहार लगाई.
ध्यान रहे कि तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस पार्टी देश के किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है. इसी क्रम में प्रियंका गांधी ने भी मथुरा स्थित पालीखेड़ा मैदान में किसान महापंचायत में अपनी बातें रखीं. अपने भाषण में प्रियंका ने भाजपा के लिए अपने तेवर तल्ख किये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला.मौके पर प्रियंका केंद्र सरकार और पीएम मोदी पर आरोप प्रत्यारोप लगा ही रही थी कि एक ऐसी घटना घटी जिसके बारे में शायद ही...
सोशल मीडिया या फिर फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के इस दौर में राजनीति एक मुश्किल चीज है. नेता को जहां इन प्लेटफॉर्म्स पर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होती है तो वहीं उसे उतनी ही मेहनत ग्राउंड पर करनी होती है. यानी एक नेता के पास यही दो ऑप्शन होते हैं. इसके अलावा और कुछ नहीं होता. एक पर पकड़ भले ही मजबूत हो यदि दूसरे पर हाथ ढीला पड़ गया तो व्यक्ति कुछ कर ले राजनीति नहीं कर सकता. राजनीति तो राहुल गांधी से भी नहीं हो रही लेकिन प्रियंका अपने कौशल से हर बार ये सिद्ध कररही हैं कि वो वाक़ई इंदिरा का खून हैं. राहुल के विपरीत प्रियंका ने जहां एक तरफ ट्विटर और फेसबुक पर गदर मचाया है तो वहीं ग्राउंड पर भी उनका जलवा है. प्रियंका किस हद तक मुद्दों को समझती हैं और कैसे उनकी राजनीति में हर बीतते दिन के साथ निखार आ रहा है गर जो इस बात को समझना हो तो हम बीते दिनों हुए उनके उस मथुरा दौरे का अवलोकन कर सकते हैं जहां न केवल उन्होंने पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से तीखे सवाल किए बल्कि तब मंच से नीचे उतर गयीं जब राजस्थान से आई एक बलात्कार पीड़िता ने अपनी आपबीती सुनाते हुए प्रियंका गांधी से मदद की गुहार लगाई.
ध्यान रहे कि तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस पार्टी देश के किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है. इसी क्रम में प्रियंका गांधी ने भी मथुरा स्थित पालीखेड़ा मैदान में किसान महापंचायत में अपनी बातें रखीं. अपने भाषण में प्रियंका ने भाजपा के लिए अपने तेवर तल्ख किये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला.मौके पर प्रियंका केंद्र सरकार और पीएम मोदी पर आरोप प्रत्यारोप लगा ही रही थी कि एक ऐसी घटना घटी जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो.
राजस्थान स्थित भरतपुर की एक बालात्कार पीड़िता सुरक्षा घेरे को तोड़कर उस जगह आ गई जहां प्रियंका गांधी भाषण दे रही थीं. लड़की अकेली नहीं थी उसके परिजन भी उसके साथ थे. भाषण के बीच में आए लोगों को देखकर प्रियंका ने अपना भाषण रोक दिया और मंच से नीचे आ गईं और बालात्कार पीड़िता को अपने साथ ले गईं. बताया जा रहा है कि प्रियंका गांधी ने वहीं मौके से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बलात्कार पीड़िता महिला के साथ न्याय करने के लिए निर्देशित किया.
ध्यान रहे कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और क्योंकि राज्य के अपराध में इजाफा हुआ हैउ इसलिए राजस्थान का लॉ एंड आर्डर लगातार सुर्खियों में बना है. अब बड़ा सवाल ये भी है कि क्या राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बालात्कार पीड़िता इस महिला के साथ इंसाफ करते हैं या फिर मौके पर जो हुआ वो उस राजनीति का हिस्सा है जिसे करते हुए वो आम जनमानस के बीच उस विश्वास का संचार करना चाहती हैं जो 2014 के बाद से पार्टी के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी की बदौलत कब का टूट चुका है.
बात सीधी और साफ है देश 2014 में कांग्रेस पार्टी, उसकी नीतियों और राहुल गांधी को नकार चुका है. वहीं बात अगर 2019 की हो तो 19 में जिस तरह पीएम मोदी की आंधी चली वो उम्मीद भी टूट गई जिसमें ये सवाल किया गया था कि क्या किसी तरह पार्टी को दोबारा पुनर्जीवित किया जा सकता है. ऐसे में प्रियंका गांधी का सामने आना और ऐसे एक के बाद एक बेहतरीन पारी खेलना इस बात की तसदीख कर देता है कि अगर कोई पार्टी के अच्छे दिन वापस ला सकता है तो वो कोई और नहीं बल्कि प्रियंका गांधी वाड्रा हैं.
हम प्रियंका की शान में किसी तरह के कोई कसीदे नहीं पड़ रहे बस उनके उस अंदाज की चर्चा कर रहे जो उन्हें भाई राहुल गांधी से अलग करता है. राहुल गांधी जहां केवल ट्विटर पर ही मोदी सरकार और भाजपा की नीतियों पर हमलावर हैं तो वहीं प्रियंका ट्विटर से कहीं ज्यादा तरजीह ग्राउंड को दे रही हैं. एक ऐसे समय में जब राहुल गांधी ट्विटर ट्विटर खेल रहे हों. चाहे वो रैलियां हों या फिर भाषण प्रियंका एक पार्टी के रूप में कांग्रेस को रिवाइव करने की हर संभव कोशिश कर रही है. प्रियंका लोगों से मिल रही हैं उनकी परेशानियों का न केवल संज्ञान ले रही हैं बल्कि उसका त्वरित निवारण भी कर रही है.
भविष्य में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं और जिस तरह यूपी में सपा बसपा जैसी पार्टियां बैक फुट पर आई हैं और कांग्रेस लीड लेती नजर आ रही है इसकी भी एक अहम वजह प्रियंका गांधी ही हैं. अब जबकि हम एक फायर ब्रांड कांग्रेसी नेता के रूप में प्रियंका गांधी को देख रहे हैं ये कहना हमारे लिए अतिशयोक्ति नहीं है कि प्रियंका गांधी ने फिर एक बार सिद्ध किया कि वो राजनीति में 19 नहीं 21 हैं और अगर उन्हें पार्टी में राहुल गांधी वाली पोजिशन दे दी जाए तो कांग्रेस की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी.
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