प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने अभी दिल्ली छोड़ी भी नहीं है और लखनऊ भी नहीं पहुंची हैं - और बनारस से ऑफर आ गया है. लोधी एस्टेट का बंगला खाली करने को लेकर मिले नोटिस के बाद कांग्रेस (Congress Agenda) महासचिव प्रियंका गांधी के लखनऊ के बंगले की चर्चा शुरू हो चुकी है. बताते हैं कि लखनऊ वाले घर के रेनोवेशन का काम काफी पहले ही शुरू हो गया था. वैसे अभी आधिकारिक तौर पर कुछ भी बताया नहीं गया है.
प्रियंका गांधी को, इसी बीच, वाराणसी के एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने अपना दो मंजिला मकान रहने के लिए ऑफर किया है. वाराणसी से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं और 2019 के आम चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने एक चर्चा को खूब हवा दी कि अगर बनारस से चुनाव लड़ें तो कैसा रहेगा.
अमर उजाला अखबार ने कांग्रेस कार्यकर्ता पुनीत मिश्रा के घर की तस्वीर भी प्रकाशित की है. वाराणसी में खोजवां के पास जीवधीपुर में इस मकान के बाहर एक नेम प्लेट भी लगा दिया गया है - हाउस ऑफ प्रियंका गांधी वाड्रा, महासचिव, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी.
प्रियंका गांधी इस बारे में जो भी फैसला लें, लेकिन इसका एक संदेश तो है ही कि प्रियंका गांधी को लेकर यूपी (ttar Pradesh) के कार्यकर्ताओं में उत्साह तो है ही. ये बात अलग है कि अब तक प्रियंका गांधी किसी तरह का वैसा कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी हैं जिसकी उनसे अपेक्षा रही है.
सिर्फ अमेठी या पूरा उत्तर प्रदेश
चर्चाओं की बात अलग है, लेकिन न तो प्रियंका गांधी वाड्रा की ओर से या फिर अब तक कांग्रेस की ही तरफ से ये नहीं बताया गया है कि यूपी को लेकर इरादा क्या है? कहने को तो केंद्र की सत्ता से ही बीजेपी को बेदखल करने का कांग्रेस का इरादा है, लेकिन अभी तक ऐसे कोई लक्षण नजर तो आये नहीं.
अभी तो ये भी साफ नहीं है कि प्रियंका गांधी जो कुछ भी कर रही हैं वो अमेठी की हार का बदला लेने के लिए है या यूपी में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए - या फिर यूपी के जरिये कांग्रेस को प्रधानमंत्री की कुर्सी दिलाने के लिए...
प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने अभी दिल्ली छोड़ी भी नहीं है और लखनऊ भी नहीं पहुंची हैं - और बनारस से ऑफर आ गया है. लोधी एस्टेट का बंगला खाली करने को लेकर मिले नोटिस के बाद कांग्रेस (Congress Agenda) महासचिव प्रियंका गांधी के लखनऊ के बंगले की चर्चा शुरू हो चुकी है. बताते हैं कि लखनऊ वाले घर के रेनोवेशन का काम काफी पहले ही शुरू हो गया था. वैसे अभी आधिकारिक तौर पर कुछ भी बताया नहीं गया है.
प्रियंका गांधी को, इसी बीच, वाराणसी के एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने अपना दो मंजिला मकान रहने के लिए ऑफर किया है. वाराणसी से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं और 2019 के आम चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने एक चर्चा को खूब हवा दी कि अगर बनारस से चुनाव लड़ें तो कैसा रहेगा.
अमर उजाला अखबार ने कांग्रेस कार्यकर्ता पुनीत मिश्रा के घर की तस्वीर भी प्रकाशित की है. वाराणसी में खोजवां के पास जीवधीपुर में इस मकान के बाहर एक नेम प्लेट भी लगा दिया गया है - हाउस ऑफ प्रियंका गांधी वाड्रा, महासचिव, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी.
प्रियंका गांधी इस बारे में जो भी फैसला लें, लेकिन इसका एक संदेश तो है ही कि प्रियंका गांधी को लेकर यूपी (ttar Pradesh) के कार्यकर्ताओं में उत्साह तो है ही. ये बात अलग है कि अब तक प्रियंका गांधी किसी तरह का वैसा कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी हैं जिसकी उनसे अपेक्षा रही है.
सिर्फ अमेठी या पूरा उत्तर प्रदेश
चर्चाओं की बात अलग है, लेकिन न तो प्रियंका गांधी वाड्रा की ओर से या फिर अब तक कांग्रेस की ही तरफ से ये नहीं बताया गया है कि यूपी को लेकर इरादा क्या है? कहने को तो केंद्र की सत्ता से ही बीजेपी को बेदखल करने का कांग्रेस का इरादा है, लेकिन अभी तक ऐसे कोई लक्षण नजर तो आये नहीं.
अभी तो ये भी साफ नहीं है कि प्रियंका गांधी जो कुछ भी कर रही हैं वो अमेठी की हार का बदला लेने के लिए है या यूपी में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए - या फिर यूपी के जरिये कांग्रेस को प्रधानमंत्री की कुर्सी दिलाने के लिए है?
ये उस थ्योरी का हिस्सा है जिसमें माना जाता है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है - लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इसके लिए कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार यूपी लौटेंगे क्योंकि केरल के वायनाड में तो वो अपना एक कंफर्ट जोन बना ही चुके हैं.
2014 में राहुल गांधी से हार जाने के बाद स्मृति ईरानी पांच साल तक लगातार अमेठी के मैदान में डटी रहीं - और जब 2019 में चुनाव हुए तो जीत भी गयीं. राहुल गांधी तो हारे ही, प्रियंका गांधी के लिए ये बड़ा सदमा रहा. अमेठी और रायबरेली में छोटी उम्र से ही आना जाना और फिर चुनाव प्रचार का जिम्मा भी वो संभाल ही चुकी थीं - लेकिन जब कांग्रेस ने महासचिव बना दिया तो अमेठी हाथ से निकल गयी.
अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है जिससे लगे कि प्रियंका गांधी अमेठी को लेकर कुछ खास सोच रही हैं. कांग्रेस की तरफ से पिछले कई विधानसभा चुनावों में प्रचार न करने पर सफाई देते हुए कहा गया था कि चूंकि वो यूपी पर फोकस कर रही हैं इसलिए बाकी चीजों से दूर रहने की कोशिश कर रही हैं. झारखंड और दिल्ली में तो प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार किया था, लेकिन उससे पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गयीं.
यूपी पर कितना फोकस है
कांग्रेस की तरफ से अब तक जो भी बताया गया है, उसे मान लें तो भी ये समझ में नहीं आता कि प्रियंका गांधी यूपी को लेकर कितनी गंभीर हैं. CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों के घर पहुंच कर सान्त्वना वो जरूर दे रही थीं, लेकिन कोरोना वायरस और लाकडाउन के बाद वो बंद हो गया. हालांकि, तब से लेकर अब तक वो उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ हर मुद्दे पर ट्वीट तो करती ही हैं.
अब कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब प्रियंका गांधी वाड्रा को पहले से ही खोज लेने होंगे - और तभी वो यूपी में कदम आगे बढ़ाये तो उसका कोई मतलब होगा. वरना, जो हाल है वो ऐसे भी नजर आ रहा है और नतीजे तो सबूत हैं ही.
1. यूपी में कांग्रेस का चेहरा कौन है: अब अगर प्रियंका गांधी यूपी के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं तो इतना जरूर साफ कर देना चाहिये कि कांग्रेस का चेहरा कौन होगा. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के जिन नेताओं को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की सलाह दी थी उसमें प्रियंका गांधी का नाम सबसे ऊपर था. तब इस मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व कोई फैसला नहीं कर पाया था और बाद में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच चुनावी समझौता भी हो गया था जो जल्द ही टूट भी गया.
फिलहाल उत्तर प्रदेश में पीसीसी अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू काफी सक्रिय देखे जा रहे हैं. कुछ ही दिन पहले जेल से छूटे भी हैं. एक विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार करके पुलिस ने लल्लू को जेल भेज दिया था.
अजय कुमार लल्लू जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं और उनके अपने इलाके में साइकिल से चलते तस्वीरें गूगल पर पड़ी मिलती हैं. जब वो जेल में थे तो राहुल गांधी ने भी उनकी काफी तारीफ की थी - और कहा था कि उनके संघर्ष को वो नजदीक से देख चुके हैं. अजय कुमार लल्लू को लाये जाने की एक वजह कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को कम करना भी है.
अब अगर कांग्रेस अजय कुमार लल्लू को लेकर किसी हद तक सीरियस है तो साफ कर देना चाहिये - ये तो बता ही देना चाहिये कि अजय कुमार लल्लू 2022 के विधानसभा चुनाव में किस भूमिका में रहेंगे?
अभी तो स्थिति ये है कि प्रियंका गांधी के इर्द गिर्द रहने पर भी अजय कुमार लल्लू जैसे खो से जाते हैं - चाहे वो राज बब्बर रहे या ज्योतिरादित्य सिंधिया तब ऐसा नहीं लगता रहा.
प्रियंका गांधी को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है - क्या प्रियंका गांधी 2022 में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार होंगी?
2. कांग्रेस को वोट कौन दिलाएगा: अगर प्रियंका गांधी 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही हैं और उसी के लिए लखनऊ में बसने की भी चर्चा है तो कार्यकर्ता भी तो नजर आने चाहिये. कांग्रेस के कार्यकर्ता कहां हैं - बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से प्रियंका गांधी ने कभी कोई संवाद किया हो ऐसा तो नहीं सुना गया है.
अभी बिहार चुनाव की कहीं कोई चर्चा नहीं रही और अमित शाह ने पहली डिजिटल रैली ही बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं के साथ कर डाली है. कांग्रेस में तो अभी तक ऐसी कोई हरकत देखने को नहीं मिली है.
अगर कांग्रेस बूथ स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं को नहीं तैयार करेगी तो वोट कौन दिलाएगा?
3. कांग्रेस का वोटर कौन है: CAA विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के घर पहुंच कर प्रियंका गांधी उनके साथ खड़े होने की बात करती रही हैं. ये लोग ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के रहे हैं. मान लेते हैं कि कांग्रेस महासचिव मुस्लिम वोट हासिल करने की कोशिश कर रही हैं.
प्रवासी मजदूरों के मामले में भी प्रियंका गांधी को काफी हद तक सक्रिय देखा गया. राजस्थान से यूपी बॉर्डर तक बसें भेजने का मकसद भी यही रहा. ये ठीक है कि जहां जहां यूपी की बीजेपी सरकार पर उंगली उठती है, प्रियंका गांधी जल्द से जल्द पहुंचने की कोशिश कर रही हैं. सोनभद्र में हुआ नरसंहार का मामला रहा हो या उन्नाव में रेप का मामला, प्रियंका गांधी ने मौजूदगी दर्ज जरूर करायी है - लेकिन जितनी जरूरत है उसके मुकाबले ये काफी कम है.
प्रियंका गांधी अगर वास्तव में कांग्रेस को बेहतर स्थिति में लाने की कोशिश कर रही हैं तो पहले सपोर्ट बेस की पहचान करनी होगी और उनके बीच मौजूदगी भी दर्ज करानी होगी.
4. कांग्रेस को कोई वोट क्यों दे: 2022 में बीते बरसों के मुकाबले स्थिति काफी बदली होगी. 2017 तक कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल सिर्फ बीजेपी का भय दिखा कर वोट बटोरने की कोशिश कर रहे थे. सच तो ये है कि बीजेपी का भय किसी एक खास वर्ग को दिखाया जा सकता है, लेकिन योगी आदित्यनाथ के पांच साल मुख्यमंत्री रह जाने के बाद खारिज किये जाने की क्या दलील होगी - जब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के पीछे बीजेपी का पूरा अमला धावा बोल कर यहां तक कि आतंकवादी बता कर भी कुछ नहीं कर पाया तो यूपी में कौन विपक्ष कौन सी पुड़िया बांटेगा.
कांग्रेस के साफ तौर पर समझाना होगा कि लोग बीजेपी को छोड़ कर कांग्रेस को वोट क्यों दें? लोग समाजवादी पार्टी को छोड़ कर कांग्रेस को वोट क्यों दें? लोग बीएसपी को छोड़ कर कांग्रेस को वोट क्यों दें.
कांग्रेस को कोई बेहतर प्लान पेश करना होगा. जिससे लोगों में उम्मीद कायम हो. ऐसा मैनिफेस्टो जिससे लगे कि कांग्रेस वास्तव में कोई बदलाव करने वाली है. प्रियंका गांधी को तभी कामयाबी मिल पाएगी जब वो लोगों को समझा सकें कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर बीजेपी के मुकाबले ज्यादा अच्छे दिन आएंगे!
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