कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का जादू लोकसभा चुनाव में नहीं चला. चुनाव नतीजों से हताश होने और घर बैठने के बजाय प्रियंका दोगुनी ताकत से दोबारा मैदान में हैं. सोनभद्र हत्याकांड पर धरने ने उनकी राजनीति को एक अलग पहचान और ऊंचाई दी. लोकसभा चुनाव के बाद प्रियंका की पार्टी में भूमिका, कद और सक्रियता पार्टी में बढ़ी है. अब प्रियंका पूर्वी उत्तर प्रदेश की नहीं, बल्कि पूरे यूपी की इंचार्ज है. राजनीति में शामिल होने के छह महीने के अंदर प्रियंका की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ा है. नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस के बीच से अब प्रियंका को अध्यक्ष पद सौंपने की आवाजें, पार्टी में उनके महत्व, स्वीकार्यता और कद बताने के लिये काफी हैं. सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर उतरकर धरना देने वाली ये बदली हुई प्रियंका है.
सोनभद्र कांड से लेकर उन्नाव हादसे तक प्रियंका योगी सरकार पर हमलावर मुद्रा में है. 17 जुलाई यानी सोनभद्र कांड के बाद से प्रियंका के ट्विटर एकाउंट पर नजर डालें तो आपको उनकी बदलती राजनीति का खुद एहसास हो जाएगा. अब बदली हुई प्रियंका अपनी शादी की सालगिरह से जुड़ा फोटो ट्विटर पर शेयर करती हैं, तो वहीं वो देश के कई राज्यों में बाढ़ पीड़ितों का जिक्र करना नहीं भूलती. वो सावन के पहले सोमवार की बधाई भी देती हैं. वहीं चंद्रशेखर आजाद को उनकी जयंती पर याद भी करती हैं. प्रियंका खुद का नेल्सन मंडेला, स्टार एथलीट हिमा दास और पाकिस्तान जेल में बंद कुलभूषण जाधव के साथ सीधे कनेक्ट करती हैं. तो वहीं खुद को चित्रकूट के पर्यावरण प्रेमी भैया लाल के साथ भी बखूबी जोड़ लेती हैं. अमेठी में पूर्व सैनिक की हत्या की खबर का लिंक और छेड़खानी की रिपोर्ट लिखवाने थाने गयी एक लड़की के साथ पुलिस के बुरे बर्ताव का वीडियो सब प्रियंका के ट्वीट का हिस्सा हैं. कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार गिरने पर वो बीजेपी का नसीहत देते हुए ट्वीट करती हैं. तो वहीं बेरोजगारी को लेकर वो ट्वीट द्वारा मोदी सरकार पर तंज करने से चूकती नहीं हैं.
सोनभद्र हत्याकांड पर धरने ने प्रियंका गांधी की राजनीति को एक अलग पहचान और ऊंचाई दी
उन्नाव रेप कांड की पीड़िता और उसकी परिवारीजनों के साथ हुई दुर्घटना पर प्रियंका ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर योगी सरकार पर निशाना साधा. प्रियंका ने योगी सरकार के ‘भय मुक्त उत्तर प्रदेश’ अभियान पर गंभीर सवाल भी उठाये हैं. उन्नाव हादसे को लेकर प्रियंका ने जो ट्वीट किए हैं, उनकी सख्त भाषा और लहजे से बदली हुई प्रियंका साफ तौर पर दिखती है. उन्नाव की घटना पर प्रियंका ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की- ‘भगवान के लिए इस अपराधी (भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर) और उसके भाई को राजनीतिक संरक्षण देना बंद कीजिए. अभी भी देर नहीं हुई है.’ इस मामले की गूंज सदन में भी सुनाई दी. लखनऊ से लेकर दिल्ली तक विपक्ष को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर एक्टिव करने में प्रियंका की भूमिका है.
पिछले लगभग तीन दशक से यूपी की राजनीति में अंतिम पायदान पर खड़ी कांग्रेस को कोई सीरियसली नहीं लेता. इस लंबी कालावधि में कांग्रेस ने सेहत सुधार के कई प्रयास किये. लेकिन तमाम प्रयोग विफल साबित हुए. समय बीतने के साथ-साथ प्रदेश में पार्टी का संगठन कमजोर से और कमजोर होता चला गया. तमाम नेता पार्टी का साथ छोड़ गये. 2014 के लोकसभा चुनाव में केलव सोनिया और राहुल अपनी-अपनी सीट जीत पाये. दो सीटों के साथ ये यूपी में कांग्रेस का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन माना गया. रही-सही कसर 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरी हो गयी. कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा. यूपी के लड़के फ्लाप साबित हुए. सपा ने सत्ता गंवायी तो वहीं कांग्रेस 28 से 7 सीटों पर सिमट गयी.
दिसंबर 2017 में राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने. युवा राहुल के नेतृत्व संभालने से पार्टी नेताओं में नयी ऊर्जा का संचार हुआ. लेकिन दो साल के कार्यकाल में राहुल को जीत से ज्यादा हार का मुंह देखना पड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को बड़ी उम्मीद थी कि इस बार मोदी सरकार सत्ता से बाहर हो जाएगी. 80 सीटों वाले सूबे यूपी में कांग्रेस अपने दम पर मैदान में उतरी. प्रियंका की सक्रिय राजनीति में एंट्री करवायी गयी. उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी गयी.
प्रियंका गांधी लोकसभा चुनावों में तो सफल नहीं हो सकीं लेकिन उसके बाद से वो लगातार उभर रही हैं
प्रियंका के राजनीतिक अखाड़े में उतरने के फैसले से पार्टी में नीचे से ऊपर तक हाई-वोल्टेज करंट दौड़ गया. कांग्रेस के ट्रम्प कार्ड माने जाने वालीं प्रियंका के राजनीति में प्रवेश से विरोधियों की सांसें एक बार जरूर ऊपर नीचे हुई. प्रियंका ने रोड शो, रैलियां, नाव यात्रा यानी सारे चुनावी हथकंडे व प्रपंच किये. लेकिन उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया. यूपी में पार्टी की ऐतिहासिक हार हुई. केवल सोनिया गांधी अपनी सीट जीत सकीं. राहुल गांधी परिवार की परंपरागत सीट हार गये. यूपी के चारों कोनों से कांग्रेस के लिये निराशाभरी खबरें ही सुनने को मिलीं. चुनाव के बाद मां सोनिया गांधी के साथ रायबरेली पहुंची प्रियंका ने मंच से ही पार्टी का साथ ने देने वाले पार्टी नेताओं का लताड़कर अपने इरादे साफ कर दिये थे. राजनीति में इंट्री से पूर्व प्रियंका मां और भाई के चुनाव क्षेत्र से बाहर कहीं दिखाई नहीं देती थी. उनकी भूमिका सीमित थी. आज चूंकि वो राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हैं, ऐसे में उनका बदला रूप देखने को मिल रहा है. राहुल के उलट प्रियंका में दादी इंदिरा जैसी तेजी, जनसंपर्क की कला और संघर्ष करने का जज्बा दिखाई देता है.
देशभर में पार्टी के लचर प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी मौन मुद्रा धारण कर बैठे. सार्वजनिक तौर पर उनकी हाजिरी भी कम हुई. निराशा में डूबे राहुल ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दे डाला. लेकिन तमाम परेशानियों, संकटों, चिंता और चुनौतियों के बीच प्रियंका ने चुपचाप घर बैठने की बजाय जमीन पर उतरने का फैसला लिया. लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद प्रियंका की यूपी में एकाएक सक्रियता बढ़ी है. सोनभद्र हत्याकांड में धरना देकर उन्होंने यह साबित किया कि वो जमीन से जुड़ी नेता हैं. प्रियंका की पीड़ित परिवारों से मिलने की जिद के सामने सूबे की सरकार को झुकना पड़ा. प्रियंका के इस कदम से उनका राजनीतिक कद कई गुणा बढ़ा हुआ. प्रियंका के धरने के बाद जिस तरह सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विपक्षी दल सोनभद्र पहुंचे, उससे साफ हो गया कि प्रियंका का तीर निशाने पर लगा. उन्नाव हादसे को लेकर प्रियंका पूरी तरह एक्टिव हैं. उन्होंने दिल्ली बैठे-बैठे लखनऊ में पार्टी नेताओं कोएक्टिवेट किया. पार्टी की दो महिला विधायक पीड़िता से मिलने अस्पताल पहुंची तो, वहीं दूसरे कई कांग्रेसी नेता सड़क पर सक्रिय दिखे.
बीती 11 फरवरी को लखनऊ में करीब पांच घंटे तक चले रोड शो के बाद कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘यूपी में कांग्रेस कमजोर नहीं रह सकती. कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़ेगी और 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में सरकार बनाएगी.’' शायद इसलिये प्रियंका लोकसभा चुनाव नतीजें से निराश नहीं हैं, और वो 2022 की तैयारियों में जुटी हैं. गौरतलब है कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की सलाह तब के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दी थी. तब बात सिरे नहीं चढ़ पायी थी.
प्रियंका की सक्रियता ने पार्टी में बल्कि विपक्षी दलों में नयी जान फूंकने का काम किया है
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से राहुल हताश और निराश हैं. कांग्रेस में नेतृत्व का संकट मुंह बाये खड़ा है. देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले सूबे यूपी में पार्टी के हिस्से में मात्र एक सीट है. 403 विधायकों वाली विधानसभा और 100 विधायकों वाली विधान परिषद में पार्टी का क्रमशः सात और मात्र एक विधायक हैं. प्रदेश के अधिकतर जिलों में पार्टी संगठन, नेताओं और कार्यकर्ताओं का कोई अता-पता नहीं है. इन तमाम विपरीत हालातों के प्रियंका गांधी सूबे की सरकार को अकेले दम पर घेरने में कामयाब होती दिख रही है. प्रियंका की सक्रियता ने योगी सरकार के कान खड़े किये हैं. वहीं विपक्षी दलों खासकर बसपा और सपा में बैचेनी का माहौल है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, प्रदेश में कांग्रेस की बुरी हालत के लिए वहां के सारे नेता जिम्मेदार हैं. खराब हालत के बावजूद पार्टी संगठन में गुटबाजी चरम पर है. वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ल कहते हैं, किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसका संगठन और कार्यकर्ता होते हैं. कमजोर संगठन और कार्यकर्ताओं का गिरता मनोबल, जमीन से ना जुड़े नेताओं का ऊपर उठना कांग्रेस की बुरी स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं.
तमाम कमजोरियों, चुनौतियों और चिंताओं के बीच प्रियंका की सक्रियता ने न केवल पार्टी में बल्कि विपक्षी दलों में नयी जान फूंकने का काम किया है. प्रियंका ने बूथ स्तर पर पार्टी का मजबूत करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है. बड़ी तेजी से वो यूपी में नये सिरे से पार्टी के गठन पर काम कर रही हैं. फिलवक्त जमीन और सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर प्रियंका की सक्रियता ने योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. पत्रकार सुशील शुक्ल कहते हैं, लोकसभा चुनाव में मिले सबक और नतीजों से प्रियंका को एक बात समझ आ गयी है कि यूपी में मजबूत हुए बिना देशभर में मजबूत नहीं हुआ जा सकता. शायद, प्रियंका ने इसी दिशा में कदम बढ़ा दिये हैं.
ये भी पढ़ें-
महाराष्ट्र चुनाव से पहले कांग्रेस-एनसीपी का जहाज डूबने के कगार पर क्यों?
रेहान वाड्रा कांग्रेस के अगले राजकुमार!
सोनभद्र हत्याकांड: खाली स्पेस और खूब स्कोप वाली सड़क पर दौड़ रही प्रियंका गांधी
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.