कहा जाता है कि गंगा मुक्ति का मार्ग है लेकिन राजनीति में ये गंगा चुनाव जीतने की युक्ति बन गई है. गंगा के तट पर प्रियंका गांधी, लेटे हुए हनुमान मंदिर में उनका पूजा अर्चना करना, नाव पर सवार होकर लोगों से मिलना-जुलना. ये सभी नजारे हैं उत्तर प्रदेश के जहां प्रियंका गांधी ने अपनी नई राजनीतिक पारी की शुरुआत हिंदुत्व कार्ड खेलकर कर ली है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को संभालने और सत्ता हासिल करने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी मां गंगा का सहारा लिया है. पहली बार किसी कांग्रेस नेता को गंगा के तीरे देखा गया है. तीन नदियों के संगम प्रयागराज में लेटे हुए हनुमान की पूजा अर्चना करने के बाद प्रियंका गांधी ने अपनी बोट यात्रा का आगाज़ कर दिया है. एक खास तरह से डिजाइन की गई बोट कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का वाहन है और इसपर सवार होकर प्रियंका लोकसभा चुनाव के लिए वोटों का अपील कर रही हैं.
इतिहास दोहराने की कोशिश
चुनावी सरगर्मी में वो इतिहास दोहराया गया है जो 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने रचा था. प्रियंका भी मोदी की ही तरह लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं. 5 साल पहले वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को गंगा का बेटा कहा था. मोदी ने कहा था कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है. लेकिन कांग्रेस कह रही है कि प्रियंका को बुलाने की जरूरत ही क्या है, वो तो खुद ही 'गंगा की बेटी' हैं. प्रयागराज उनके पुरखों की जमीन है, जहां से प्रियंका ने शुरुआत की है.
मोदी ने 5 साल पहले काशी विश्वनाथ मंदिर में अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी. तो आज प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रयागराज के हनुमान मंदिर से शुरुआत की है. लेकिन...
कहा जाता है कि गंगा मुक्ति का मार्ग है लेकिन राजनीति में ये गंगा चुनाव जीतने की युक्ति बन गई है. गंगा के तट पर प्रियंका गांधी, लेटे हुए हनुमान मंदिर में उनका पूजा अर्चना करना, नाव पर सवार होकर लोगों से मिलना-जुलना. ये सभी नजारे हैं उत्तर प्रदेश के जहां प्रियंका गांधी ने अपनी नई राजनीतिक पारी की शुरुआत हिंदुत्व कार्ड खेलकर कर ली है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को संभालने और सत्ता हासिल करने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी मां गंगा का सहारा लिया है. पहली बार किसी कांग्रेस नेता को गंगा के तीरे देखा गया है. तीन नदियों के संगम प्रयागराज में लेटे हुए हनुमान की पूजा अर्चना करने के बाद प्रियंका गांधी ने अपनी बोट यात्रा का आगाज़ कर दिया है. एक खास तरह से डिजाइन की गई बोट कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का वाहन है और इसपर सवार होकर प्रियंका लोकसभा चुनाव के लिए वोटों का अपील कर रही हैं.
इतिहास दोहराने की कोशिश
चुनावी सरगर्मी में वो इतिहास दोहराया गया है जो 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने रचा था. प्रियंका भी मोदी की ही तरह लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं. 5 साल पहले वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को गंगा का बेटा कहा था. मोदी ने कहा था कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है. लेकिन कांग्रेस कह रही है कि प्रियंका को बुलाने की जरूरत ही क्या है, वो तो खुद ही 'गंगा की बेटी' हैं. प्रयागराज उनके पुरखों की जमीन है, जहां से प्रियंका ने शुरुआत की है.
मोदी ने 5 साल पहले काशी विश्वनाथ मंदिर में अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी. तो आज प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रयागराज के हनुमान मंदिर से शुरुआत की है. लेकिन मोदी हों या प्रियंका- दोनों का मकसद सिर्फ एक था- चुनाव में जीत हासिल करना.
लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर में पूजा अर्चना को परंपरा कहा गया है, जिसे प्रियंका निभाती दिख रही हैं. इंदिरा गांधी ने भी 1976 में इस मंदिर में पूजा अर्चना की थी. कांग्रेस का कहना है कि 'परंपराएं और रीति-रिवाज कभी नहीं बदलते.'
जबरदस्त प्लानिंग के साथ शुरुआत
प्रियंका रविवार शाम को ही प्रयागराज पहुंच गईं थीं जहां उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार के पैतृक आवास स्वराज भवन (आनंद भवन) का दौरा किया. और वहीं से एक तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की. उन्होंने लिखा, “स्वराज भवन के आंगन में बैठे हुए वह कमरा दिख रहा है जहां मेरी दादी का जन्म हुआ. रात को सुलाते हुए दादी मुझे जॉन ऑफ आर्क की कहानी सुनाया करती थीं. आज भी उनके शब्द दिल में गूंजते हैं. कहती थीं, निडर बनो और सब अच्छा होगा'
इस ट्वीट के जरिए प्रियंका गांधी ने देश के मौजूदा हालातों की तरफ इशारा करने की कोशिश की और जनता को यह संदेश भी दिया कि इस मौजूदा हालात में डरने की जरूरत नहीं है. यानी प्रियंका ने अपनी जड़ों से एक निडर शुरुआत की है. जनता को अपनी दादी के निडर व्यक्तित्व की याद भी दिलाई. और अगली सुबह गंगा का दामन थाम लिया.
'मन की बात' पर प्रियंका की 'सांची बात'
इस बोट यात्रा को बड़ी ही बारीकी से डिजाइन किया गया है, जिससे ज्यादा से ज्यादा जन संपर्क हो सके. इस पूरे इलाके में इस तरह की यात्रा अभी तक किसी ने नहीं की थी. 140 किलोमीटर की यात्रा को तीन दिन में अलग-अलग पड़ावों में पूरा किया जाना है. इसमें नाव से भी यात्रा होगी, गाड़ी से भी और तट के किनारे बसे गांव में पैदल भी. इस यात्रा में मंदिरों और मजारों के दर्शन भी होंगे, ब्राह्मणों-सवर्णों और दलितों से मुलाकात भी हो इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है. प्रियंका जानती हैं कि जमीनी तौर पर लोगों से जुड़ना है तो जमीन पर चलना सबसे ज्यादा कारगर होगा.
इलाहाबाद छात्र राजनीति का सबसे बड़ा गढ़ रहा है. और इसलिए मनैया घाट से यात्रा शुरू करने से पहले प्रियंका गांधी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के 15 छात्रों के एक ग्रुप के साथ नाव पर ही बातचीत की यानी 'बोट पे चर्चा'. बातचीत का मकसद इलाके की बीरीकी समझना था, लोगों की समस्याओं से रूबरू होना था.
इस यात्रा में एक पड़ाव पुलवामा हमले में शहीद महेश कुमार के परिवार से मुलाकात करना भी है. गांव-गांव जाकर लोगों से मिलना भी है. स्थानीय लोगों से बातचीत के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी है. 3 दिन के दौरे पर प्रियंका प्रयागराज से मिर्जापुर, जौनपुर होते हुए 20 मार्च को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचेंगी. और वहां गंगा की बदहाली पर पीएम मोदी को घेरना भी शामिल है.
प्रियंका जनता को संबोधित करने से ज्यादा लोगों से मिलकर बात करने में ज्यादा यकीन रख रही हैं. आंख से आंख मिलाकर लोगों के मन का बात जानना और फिर अपनी कहना, शायद यही प्रियंका को लोगों से जोड़ सके. प्रियंका की इस बोट यात्रा को 'सांची बात' का नाम दिया गया है. जिसे कहीं न कहीं प्रधानमंत्री मोदी के 'मन की बात' का जवाब कहा जा सकता है.
इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस ने यूपी में प्रियंका पर एक बड़ा दाव चला है. भले ही प्रियंका के सिर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी हो लेकिन उनकी मौजूदगी का असर पूरे उत्तर प्रदेश पर दिखाई दे रहा है. गंगा किनारे का ये नजारा इस बात का सबूत है कि यूपी में मोदी के खिलाफ माहौल सिर्फ प्रियंका के जरिए ही बनाया जा सकता है. प्रियंका सिर्फ राहुल का ट्रंप कार्ड ही नहीं हैं बल्कि वो अपने आप में उस विरासत को समेटे हैं जो यूपी में कांग्रेस की किस्मत बदल सकती है. ऐसे में खानदानी विरासत, हिंदुत्व और जनसंपर्क के ताने बाने से गुंथी हुई ये बोट यात्रा निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए बड़ा कदम भी है और जीत की उम्मीद भी.
राजनीति में हमेशा नदियों का इस्तेमाल किया गया
चुनाव प्रचार के लिए पहले नेता पद यात्रा किया करते थे, फिर वो रोड शो में बदलीं, और अब नदियों पर यात्रा नया ट्रेंड है. राजनीति में देश की नदियों ने नेताओं का खूब साथ निभाया है. क्योंकि इससे लोगों की आस्था भी जुड़ी है और यहीं से लोगों के साथ सीधे तौर पर जुड़ा जा सकता है.
दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने दोबारा सक्रीय राजनीतिक की शुरुआत करने से पहले नर्मदा परिक्रमा की थी. 3,300 किमी. लंबी ये नर्मदा परिक्रमा करने में दिग्विजय को करीब छह महीने लगे. अप्रेल 2018 में ये यात्रा संपन्न हुई. यात्रा के दौरान दिग्विजय नो राज्य के कुल 230 विधानसभा क्षेत्रों में से 110 में लोगों से सीधे तौर पर संपर्क किया था. हालांकि दिग्विजय सिंह ने इस नर्मदा यात्रा को अपनी 'व्यक्तिगत आस्था' का नाम दिया था. लेकिन जानकारों की मानें तो इस कठिन तीर्थयात्रा ने उन पर चस्पां 'हिंदू विरोधी' धब्बे को धो डाला था. जो विपक्ष के लिए चुनौती तो था ही.
इतिहास में पहली बार जब प्रधानमंत्री मोदी ने नदी के रास्ते किया था चुनाव प्रचार
2017, गुजरात में विधानसभा चुनाव प्रचार का मौका था और स्थानीय पुलिस ने सुरक्षा कारणों से नरेंद्र मोदी को रोड शो की इजाजत नहीं दी थी. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने तब नदी के रास्ते से चुनाव प्रचार किया था. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मोदी साबरमती रिवरफ्रंट पर पहुंचे और साबरमती नदी से मेहसाणा जिले के धरोई बांध तक सी-प्लेन में सफर किया. धरोई बांध से लेकर अंबाजी मंदिर तक पीएम मोदी सड़क के रास्ते गए, इस दौरान कई जगह बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया. फिर मोदी ने अंबाजी मंदिर जाकर पूजा अर्चना की.
पिछले लोकसभा चुनाव में गंगा के बेटे यानी नरेंद्र मोदी पर गंगा जी का आशीर्वाद रहा, लेकिन इस बार गंगा जी के आशीर्वाद पर कांग्रेस की महासचिव भी अपना दावा ठोक रही हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में प्रियंका भी 'गंगा की बेटी' हैं. देखना दिलचस्प होगा कि उत्तरप्रदेश में गंगा का आशीर्वाद बेटी को मिलता है या बेटे को.
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