पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी मामले में मोदी सरकार को अरब देशों की ओर से काफी किरकिरी झेलनी पड़ रही है. अरब देशों के साथ ही तालिबान और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन भी अब भारत को आंखें दिखा रहे हैं. भारत में भी कई राज्यों में धीरे-धीरे पैगंबर मोहम्मद पर की गई कथित टिप्पणी को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. जिसे देखते हुए भाजपा ने पार्टी से निलंबित की गईं नूपुर शर्मा के बयान से पूरी तरह किनारा कर लिया है. लेकिन, क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि अगर समय रहते शिवलिंग को लेकर की जा रही बेहूदगी भरी टिप्पणियों और उड़ाए जा रहे भद्दे मजाक पर मोदी सरकार और कोर्ट अपनी 'चुप्पी' तोड़ देते, तो नूपुर शर्मा का पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई कथित टिप्पणी का मामला होता ही नहीं. हालांकि, करीब 20 दिन बीतने के बाद अब जाकर कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. लेकिन, सवाल उठना लाजिमी है कि शिवलिंग का मजाक उड़ते देख सरकार और कोर्ट क्यों चुप रहे?
शिवलिंग का मजाक उड़ाते समय क्यों नहीं रोका?
ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के साथ ही मुस्लिम पक्ष की ओर से उसे फव्वारा बता दिया गया. मुस्लिम पक्ष का इतना कहना ही था कि भारत के स्वघोषित लिबरलों और बुद्धिजीवियों की ओर से फव्वारों की अलग-अलग तस्वीरों से लेकर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की फोटो को भी शिवलिंग बताकर खुदाई करने की बात कही जाने लगी. इस दावे के कुछ ही देर बाद सोशल मीडिया पर कथित बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग, जिसमें मुस्लिम नेताओं से लेकर इस्लाम के कई आलिम भी शामिल रहे, ने शिवलिंग को लेकर बेहूदा सवाल खड़े करने शुरू कर दिये. यहां तक कि इकोनॉमिक टाइम्स ने इसे लेकर एक मीम तक छाप दिया. सोशल मीडिया ऐसे पोस्ट से पटा हुआ नजर आने लगा था.
पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी मामले में मोदी सरकार को अरब देशों की ओर से काफी किरकिरी झेलनी पड़ रही है. अरब देशों के साथ ही तालिबान और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन भी अब भारत को आंखें दिखा रहे हैं. भारत में भी कई राज्यों में धीरे-धीरे पैगंबर मोहम्मद पर की गई कथित टिप्पणी को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. जिसे देखते हुए भाजपा ने पार्टी से निलंबित की गईं नूपुर शर्मा के बयान से पूरी तरह किनारा कर लिया है. लेकिन, क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि अगर समय रहते शिवलिंग को लेकर की जा रही बेहूदगी भरी टिप्पणियों और उड़ाए जा रहे भद्दे मजाक पर मोदी सरकार और कोर्ट अपनी 'चुप्पी' तोड़ देते, तो नूपुर शर्मा का पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई कथित टिप्पणी का मामला होता ही नहीं. हालांकि, करीब 20 दिन बीतने के बाद अब जाकर कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. लेकिन, सवाल उठना लाजिमी है कि शिवलिंग का मजाक उड़ते देख सरकार और कोर्ट क्यों चुप रहे?
शिवलिंग का मजाक उड़ाते समय क्यों नहीं रोका?
ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के साथ ही मुस्लिम पक्ष की ओर से उसे फव्वारा बता दिया गया. मुस्लिम पक्ष का इतना कहना ही था कि भारत के स्वघोषित लिबरलों और बुद्धिजीवियों की ओर से फव्वारों की अलग-अलग तस्वीरों से लेकर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की फोटो को भी शिवलिंग बताकर खुदाई करने की बात कही जाने लगी. इस दावे के कुछ ही देर बाद सोशल मीडिया पर कथित बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग, जिसमें मुस्लिम नेताओं से लेकर इस्लाम के कई आलिम भी शामिल रहे, ने शिवलिंग को लेकर बेहूदा सवाल खड़े करने शुरू कर दिये. यहां तक कि इकोनॉमिक टाइम्स ने इसे लेकर एक मीम तक छाप दिया. सोशल मीडिया ऐसे पोस्ट से पटा हुआ नजर आने लगा था.
वरिष्ठ पत्रकार सबा नकवी भी मुस्लिम होने के बावजूद शिवलिंग को फव्वारा बताने का आनंद लेने से चूकना नहीं चाहती थीं. हालांकि, मामले की गंभीरता को समझते हुए सबा नकवी ने जल्द ही ट्वीट हटा दिया था. इस मामले को राजनीतिक रंग देने और अपनी पार्टी के लिए मुस्लिम वोटबैंक को बनाए रखने के लिए महुआ मोइत्रा जैसे कुछ नेताओं ने भी शिवलिंग को लेकर आपत्तिजनक दावे कर दिये. खुद को वामपंथी कहने वाले दलित चिंतक प्रोफेसर रतन लाल ने भी शिवलिंग को लेकर अपशब्द कहने में परहेज नहीं किया. खुद को मुस्लिमों का राजनीतिक दल कहने वाली पीस पार्टी के प्रवक्ता शादाब चौधरी ने भी शिवलिंग के साथ ही न्यायपालिका का भी मजाक उड़ा डाला. ऐसी हजारों तस्वीरों पर मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा 'हाहा' रिएक्शन दिया गया.
शिवलिंग को लेकर की जा रही इन टिप्पणियों और आपत्तिजनक दावों को लेकर जब प्रोफेसर रतन लाल के खिलाफ विद्वेष भड़काने का मामला दर्ज किया गया. तो, कोर्ट ने रतन लाल को इस आधार पर जमानत दे दी कि '130 करोड़ लोगों के भारत देश में किसी मामले पर 130 करोड़ से अलग विचार और धारणाएं हो सकती हैं. किसी एक शख्स की भावनाएं आहत होने को पूरे समुदाय या वर्ग का हिस्सा नहीं माना जा सकता है. क्योंकि, शिवलिंग की तस्वीर पब्लिक डोमेन में नहीं है, तो रतन लाल की टिप्पणी को अटकलबाजी माना जाएगा.' जबकि, होना ये चाहिए था कि माननीय कोर्ट मामले की गंभीरता को देखते हुए लोगों को कहती कि 'किसी की आस्था से जुड़े मामलों पर इस तरह की टिप्पणियों से बचें. और, ये बात सभी पक्षों पर लागू होंगी.'
खैर, कोर्ट का आदेश सबके सामने है. और, उसका परिणाम भी. यही हाल मोदी सरकार की ओर से भी देखने को मिला. ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के बाद उसे खारिज करने के लिए सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेटों में जिस स्तरहीनता के साथ शिवलिंग को लेकर बेहूदगी नजर आई. शायद इससे पहले कभी नजर नहीं आई होगी. अगर सरकार की ओर से पहले ही कुछ लोगों के खिलाफ कड़े कदम उठा लिये जाते, तो शायद ऐसी स्थिति बनती ही नहीं. लेकिन, मोदी सरकार ने इस मामले पर चुप्पी साधे रखी. सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट तक में मुस्लिम नेता और इस्लाम के आलिम चिल्ला-चिल्लाकर दावा कर रहे थे कि शिवलिंग एक फव्वारा है. लेकिन, सरकार की कान में जूं तक नहीं रेंगी. और, उसने इस मामले को लगातार बढ़ने ही दिया.
सह-अस्तित्व जैसी बातें कहां नजर आती हैं?
भारत जैसे विविधता भरे देश में धर्म, मजहब, पंथ, संप्रदाय के बीच सह-अस्तित्व की भावना को वर्षों से पोषित किया गया है. लेकिन, इस्लाम जैसा मजहब, जो अपने अलावा सभी धर्मों को ही नकारता हो. उसके साथ भारत में सह-अस्तित्व की बात किस आधार पर कही जाती है? बहुलतावादी इस देश में किसी की भी भावनाएं उसके देवी-देवताओं या पैगंबरों या सम्माननीय हस्तियों से आहत हो जाएंगी. हिंदू धर्म के लचीलेपन का फायदा उठाकर महुआ मोइत्रा जैसे कुछ हिंदू ही (प्रोफेसर रतन लाल ने भी कोर्ट में खुद को गर्वित हिंदू ही बताया था) लोगों की भावनाओं को आहत करने में जुट जाते हैं. जबकि, इसे गलत मानना चाहिए. खैर, इन लोगों की बातों को तो हिंदू होने की वजह से बर्दाश्त किया जा सकता है.
लेकिन, क्या किसी मुस्लिम शख्स द्वारा शिवलिंग को लेकर उड़ाए जा रहे मजाक को कोई बर्दाश्त करेगा. वो भी तब, जब वह अपने पैगंबर या इस्लाम धर्म के बारे में एक छोटी सी टिप्पणी पर भी भारत में हिंसक प्रदर्शन पर उतारू हो जाते हैं. बहुत साफ-सुथरी और सीधी सी बात है कि हर धर्म की आस्था में एक सर्वोच्च सीमा होती है. जिसे पार करने के बाद किसी का भी गुस्सा भड़क सकता है. क्या नूपुर शर्मा की टिप्पणी को जायज या नाजायज ठहराने से पहले एक पल रुककर ये सोचा गया कि उन्होंने आखिर ये बोला क्यों? नूपुर शर्मा ने जिस टीवी डिबेट के दौरान ये टिप्पणी की थी. क्या उसमें मुस्लिम नेता द्वारा शिवलिंग का मजाक नहीं उड़ाया गया था? जो मुस्लिम समुदाय अपने अल्लाह और पैगंबर के लिए इतना गंभीर है. वह हिंदू धर्म के देवी-देवताओं पर अपनी अक्ल कहां खो देता है.
कोर्ट ने भले कह दिया हो कि 130 करोड़ लोगों की भावनाएं और विचार अलग हो सकते हैं. लेकिन, इससे इनकार नही किया जा सकता है कि भारत के करीब 20 करोड़ मुससमानों का पैगंबर को लेकर एक ही विचार और धारणा है. इस स्थिति में क्या माननीय कोर्ट के फैसले को दुरुस्त कहा जा सकता है? जिस अभिव्यक्ति की आजादी का सहारा लेकर हिंदू देवी-देवताओं के बारे में बेहूदी और अश्लील बातें कही जाती हैं. शायद ही इस्लाम और पैगंबर को लेकर ऐसी बातें कही जा सकती हैं. जवाब बहुत आसान है नहीं. क्योंकि, चार्ली हैब्दों के पत्रकारों से लेकर सैमुएल पैटी तक को इसकी सजा दी जा चुकी है.
खैर, नूपुर शर्मा ने अपने माफीनामे में भी कहा कि 'मेरे सामने शिवलिंग को फव्वारा बताकर अपमान किया जा रहा था. जिसे बर्दाश्त नहीं कर पाई और रोष में आके कुछ चीजें कह दीं. अगर किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची हो, तो अपने शब्द वापिस लेती हूं. मेरी मंशा किसी को कष्ट पहुंचाने की कभी नहीं थी.' और, नूपुर शर्मा ने ये बात हवा में नहीं बाकायदा संदर्भ के साथ की थी. लेकिन, शिवलिंग का मजाक उड़ते देख सरकार और कोर्ट चुप न रहे होते, तो ये विवाद होता ही नहीं.
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