हमारे देश में आज जाति और धर्म के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है वो किसी से नहीं छुपा. आरक्षण पर ही जब लोग लड़ने-मरने पर उतारू हो जाते हैं तो लोगों को ये कहते भी सुना जाता है कि देश से जाति व्यवस्था ही खत्म हो. पर क्या ये आसान है?
उपनाम बहुत ही आसान तरीका होता है एक व्यक्ति की जात-पात को जानने का. खासतौर पर तब जब समाज जाति देखकर आपके प्रति अपना नजरिया बना लेता हो. जातिवाद को खत्म करने के लिए देश में कई बार कई अभियान चलाए गए हैं लेकिन देश फिरभी जातिवाद के दलदल से बाहर नहीं आ सका.
जातिवाद को खत्म करने के उद्देश्य से मुंबई में भी एक अभियान शुरू किया गया है. ये है 'प्राउड भारतीय' अभियान. और इसके तहत लोगों को जाति सूचक नाम या उपनाम त्यागकर 'भारतीय' लगाना है. इस अभियान का उद्देश्य तो अच्छा है क्योंकि इससे जातिवाद को खत्म किया जा सकता है. लेकिन जिस तरह से इस अभियान की शुरुआत की जा रही है क्या वो इतना कन्विंसिंग है? क्योंकि व्यक्ति को सिर्फ अपना उपनाम त्यागना नहीं है बल्कि 'भारतीय' जोड़ना भी है.
'भारतीय' का मतलब व्यक्ति के आधार कार्ड पर लिखे भारतीय होने से नहीं है. भारतीय यानी देश से प्रेम करने वाला. और देश के प्रति प्रेम आप किस तरह दिखाते हैं और किस तरह नहीं दिखा पाते ये आज हर कोई बहुत अच्छी तरह समझता है. जानिए इस अभियान की कुछ खास बातें जो शायद आपको चौंका दें.
- इस अभियान की शुरुआत मुंबई के एक पांच सितारा होटल में की गई है.
- शुरुआत करने वाले भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष मोहित कंबोज हैं. जिन्होंने शुरुआत अपने नाम को बदलकर की. वो अब मोहित कंबोज नहीं मोहित भारतीय हैं. फिरभी मोहित का कहना है कि प्राउड भारतीय फाउंडेशन पूरी तरह से गैर राजनीतिक...
हमारे देश में आज जाति और धर्म के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है वो किसी से नहीं छुपा. आरक्षण पर ही जब लोग लड़ने-मरने पर उतारू हो जाते हैं तो लोगों को ये कहते भी सुना जाता है कि देश से जाति व्यवस्था ही खत्म हो. पर क्या ये आसान है?
उपनाम बहुत ही आसान तरीका होता है एक व्यक्ति की जात-पात को जानने का. खासतौर पर तब जब समाज जाति देखकर आपके प्रति अपना नजरिया बना लेता हो. जातिवाद को खत्म करने के लिए देश में कई बार कई अभियान चलाए गए हैं लेकिन देश फिरभी जातिवाद के दलदल से बाहर नहीं आ सका.
जातिवाद को खत्म करने के उद्देश्य से मुंबई में भी एक अभियान शुरू किया गया है. ये है 'प्राउड भारतीय' अभियान. और इसके तहत लोगों को जाति सूचक नाम या उपनाम त्यागकर 'भारतीय' लगाना है. इस अभियान का उद्देश्य तो अच्छा है क्योंकि इससे जातिवाद को खत्म किया जा सकता है. लेकिन जिस तरह से इस अभियान की शुरुआत की जा रही है क्या वो इतना कन्विंसिंग है? क्योंकि व्यक्ति को सिर्फ अपना उपनाम त्यागना नहीं है बल्कि 'भारतीय' जोड़ना भी है.
'भारतीय' का मतलब व्यक्ति के आधार कार्ड पर लिखे भारतीय होने से नहीं है. भारतीय यानी देश से प्रेम करने वाला. और देश के प्रति प्रेम आप किस तरह दिखाते हैं और किस तरह नहीं दिखा पाते ये आज हर कोई बहुत अच्छी तरह समझता है. जानिए इस अभियान की कुछ खास बातें जो शायद आपको चौंका दें.
- इस अभियान की शुरुआत मुंबई के एक पांच सितारा होटल में की गई है.
- शुरुआत करने वाले भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष मोहित कंबोज हैं. जिन्होंने शुरुआत अपने नाम को बदलकर की. वो अब मोहित कंबोज नहीं मोहित भारतीय हैं. फिरभी मोहित का कहना है कि प्राउड भारतीय फाउंडेशन पूरी तरह से गैर राजनीतिक मंच है और इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है.
- इस अभियान के प्रचार प्रसार के लिए एक सजी-धजी सुंदर सी वेबसाइट भी बनाई गई है.
- मोहित ने अपना नाम बदला इसके लिए उन्होंने अखबरों से लेकर शहर भर में होर्डिंग लगवाए हैं. गौरतलब है कि मोहित 2014 में महाराष्ट्र चुनावों के सबसे ज्यादा संपत्ति रखने वाले उम्मीदवार थे जिनकी संपत्ति 354 करोड़ थी.
सोशल मीडिया पर इस अभियान के लिए लोग क्या राय दे रहे हैं आप खुद ही देखिए-
लोगों ने जिस तरह से इस अभियान को चलाने वाले को अस्वीकार किया है, उससे इस अभियान का आने वाला समय उतना संतोषजनकक तो नहीं लगता. क्योंकि जिस उद्देश्य के साथ इतने बड़े अभियान की शुरुआत की गई है उसकी नींव में कहीं न कहीं कमजोर रह गई. लोगों को खुद से जोड़ने और इस अभियान को गंभीरता से लोनो को लिए मोहित को भी थोड़ा गंभीर होना चाहिए था.
इतिहास उठाकर देखिए उपनाम त्यागने के पीछे कई कारण रहे, लोगों ने उपनाम त्यागे जरूर लेकिन नाम के साथ या तो कोई उपनाम लगाया नहीं या फिर वो नाम लगाया जिससे किसी भी तरह की कोई विवाद न हो.
- 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य जातिवाद को समाप्त करना था. आज भी आर्य समाज हिन्दूओं से आह्वान करता है कि वो अपने जाति सूचक उपनाम त्याग दें. लोग मानते भी हैं.
- 1974 में पटना में जयप्रताश नारायण द्वारा ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का आह्वान किया गया था. जिसके तहत लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था. इस आंदोलन में मौजूद हजारों लोगों ने अपने जनेऊ तोड़ दिये थे. और नारा गूंजा था- 'जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो. समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो.' उस वक्त देश को बदलाव की जरूरत थी और इसी उद्देश्य के लिए ये सब किया गया था. जेपी आंदोलन के तहत हजारों लोगों ने अपने उपनाम त्याग दिए थे. खासकर अनुसूचित जाति के लोगों ने अपना उपनाम त्यागने में जरा भी देर नहीं की क्योंकि इस व्यवस्था से वही सबसे ज्यादा भुगतते थे. क्योंकि परीक्षा, इंटरव्यू या फिर समाजिक जगहों पर उनकी जाति को लेकर भेदभाव किया जाता था. धीरे धीरे अनुसूचित जाति के लोग आगे बढ़े और उन्होंने हैसियत बनाई. हाल ये हो गया कि सवर्ण उनके नीचे काम करने लगे. तब ऊंची जाति के लोगों ने भी अपने उपनाम त्याग दिए. तब 'कुमार' को उपनाम के रूप में लोगों ने अपने नाम के साथ जोड़ा.
एक कारण और था जब ऊंची जाति के लोगों ने अपने उपनाम त्यागे थे. एक दौर था जब सवर्ण किसानों की जमीनों पर नक्सलियों द्वारा अवैध कब्जा कर लिया जाता था और सवर्णों का सामुहिक नरसंहार कर दिया जाता था. उस डर से बचने के लिए भी जाति सूचक उपनामों को त्यागना जरूरी था.
'प्राउड भारतीय' अभियान ऐसे दौर में आया है जहां नेशनलिज्म पर बहस होती है. जहां देशवासी को देशद्रोही कहने में लोग मिनट नहीं लगाते. ऐसे में इस अभियान पर स्वीकारोक्ति कम सवाल ज्यादा खड़े हो रहे हैं.
ये भी पढ़ें-
बीजेपी का नहीं पता मगर मोहन भागवत के लिए संजीवनी साबित हुई है प्रणब की स्पीच
संघ के मुताबिक मोदी ने चुप्पी तोड़ी तो राम मंदिर पर ब्रेकिंग न्यूज ही देंगे
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.