एक तरफ कश्मीर के ताजा हालात का मुआएना करने और आतंकवाद और आतंकवाद से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करने European nion के 28 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया है. जबकि दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के Pulwama जिले में आतंकवादियों ने एक स्कूल के बाहर CRPF और पुलिस पर हमला किया है. आतंकवादियों द्वारा की गई इस कायराना हरकत ने इस बात का एहसास करा दिया है कि कश्मीर के सन्दर्भ में सारे मसले, सारी बातचीत एक तरफ है और आतंकवाद और आतंकवादियों के कारनामे दूसरी तरफ हैं. घाटी से अनुच्छेद 370 और 35A ख़त्म करने के फ़ौरन बाद सरकार ने कश्मीर में इंटरनेट और संचार सुविधाओं पर अंकुश लगाया था. देश की सरकार के इस फैसले की खूब आलोचना हुई थी. बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग था जो कश्मीरियों की हिमायत के लिए सामने आया था. घाटी के लोगों के अधिकारों के लिए सामने आए इस वर्ग का मानना था कि जम्मू और कश्मीर में सेना भेजकर और इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन बैन कर सरकार आम कश्मीरियों और उनके अधिकारों का हनन कर रही है. आज जबकि पुनः कश्मीर के पुलवामा में हमला हुआ है साफ़ हो जाता है कि कश्मीर में दहशतगर्दों को किसी से मतलब नहीं है और उनकी ये हरकत उन बुद्धिजीवियों के मुंह पर एक करारा थप्पड़ है जो अब तक यही सोचते थे कि कश्मीर को पटरी पर लाने के लिए सेना की नहीं बल्कि बातचीत की जरूरत है.
हमारी कही बात भले ही लोगों की भावना आहात कर दे. या फिर ये भी हो सकता है कि इतना पढ़कर लोग हमें असंवेदनशील कहें. मगर सत्य यही है कि जब-जब बात कश्मीर के सन्दर्भ में आएगी सेना को वहां के लिए मज़बूरी नहीं जरूरत कहा जाएगा. ध्यान रहे कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा में CRPF की एक पेट्रोल पार्टी पर आतंकियों...
एक तरफ कश्मीर के ताजा हालात का मुआएना करने और आतंकवाद और आतंकवाद से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करने European nion के 28 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया है. जबकि दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के Pulwama जिले में आतंकवादियों ने एक स्कूल के बाहर CRPF और पुलिस पर हमला किया है. आतंकवादियों द्वारा की गई इस कायराना हरकत ने इस बात का एहसास करा दिया है कि कश्मीर के सन्दर्भ में सारे मसले, सारी बातचीत एक तरफ है और आतंकवाद और आतंकवादियों के कारनामे दूसरी तरफ हैं. घाटी से अनुच्छेद 370 और 35A ख़त्म करने के फ़ौरन बाद सरकार ने कश्मीर में इंटरनेट और संचार सुविधाओं पर अंकुश लगाया था. देश की सरकार के इस फैसले की खूब आलोचना हुई थी. बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग था जो कश्मीरियों की हिमायत के लिए सामने आया था. घाटी के लोगों के अधिकारों के लिए सामने आए इस वर्ग का मानना था कि जम्मू और कश्मीर में सेना भेजकर और इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन बैन कर सरकार आम कश्मीरियों और उनके अधिकारों का हनन कर रही है. आज जबकि पुनः कश्मीर के पुलवामा में हमला हुआ है साफ़ हो जाता है कि कश्मीर में दहशतगर्दों को किसी से मतलब नहीं है और उनकी ये हरकत उन बुद्धिजीवियों के मुंह पर एक करारा थप्पड़ है जो अब तक यही सोचते थे कि कश्मीर को पटरी पर लाने के लिए सेना की नहीं बल्कि बातचीत की जरूरत है.
हमारी कही बात भले ही लोगों की भावना आहात कर दे. या फिर ये भी हो सकता है कि इतना पढ़कर लोग हमें असंवेदनशील कहें. मगर सत्य यही है कि जब-जब बात कश्मीर के सन्दर्भ में आएगी सेना को वहां के लिए मज़बूरी नहीं जरूरत कहा जाएगा. ध्यान रहे कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा में CRPF की एक पेट्रोल पार्टी पर आतंकियों ने हमला कर दिया. हमला एक एग्जाम सेंटर के पास हुआ है जहां सेना और पुलिस पर आतंकियों ने फायरिंग की. मामले में राहत की बात ये है कि हमले में कोई घायल नहीं हुआ. बताया जा रहा है कि हमले की वजह से 5 स्टूडेंट्स फंस गए थे जिन्हें काफी मशक्कत के बाद निकाला गया.
कश्मीर में बोर्ड एग्जाम शुरू हुए हैं जिसके बहिष्कार की घोषणा आतंकी पहले ही कर चुके थे. माना जा रहा है कि इस हमले का उद्देश्य आम कश्मीरी छात्रों को डराना और उनके भविष्य को गर्त के अंधेरों में डालना है. हमले में भले ही जान और माल की कोई बड़ी हानि नहीं हुई है लेकिन इस हमले ने कश्मीरी कट्टरपंथियों और आतंकियों की नीयत को जरूर कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है.
सोचने वाली बात है कि जब सेना की इतनी बड़ी संख्या रहते हुए कश्मीर के हालात इतने बदतर हैं. अगर वहां से सेना हटा ली जाए तो फिर नजारा क्या होगा ? चाहे हालिया दिनों में जम्मू और कश्मीर में फल व्यापारियों और ट्रक वालों की हत्या हो या फिर हाल के दिनों में हुए अलग अलग हमले और पत्थरबाजी की घटनाएं. जैसे एक के बाद एक कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा अलग अलग वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है. वो ये बताने के लिए काफी है कि यदि कश्मीर से सेना को मुक्त कर दिया गया या फिर घाटी में रह रहे लोगों को छूट दे दी गई तो आने वाले वक़्त में स्थिति बाद से बदतर होगी.
कह सकते हैं कि इस घटना से उन तमाम लोगों को सबक जरूर मिला है जिन्हें इस बात की टीस थी कि सरकार कश्मीर को लेकर सख्त रवैया रखे हुए है. जिस तरह से कश्मीर में एक के बाद वारदातें हो रही हैं उन्होंने देश और देश की सरकार को साफ़ सन्देश दे दिया है कि उन्हें किसी भी वार्ता की कोई जरूरत नहीं है. वो आज भी उसी रास्ते को पकड़े हुए हैं जिस रास्ते पर चलकर उन्होंने अब तक कश्मीर को बर्बाद किया है.
बहरहाल अब जबकि ये हमला हो गया है. सरकार को बुद्धिजीवियों की बुद्धिजीविता को नजरंदाज करके इसके प्रति गंभीर हो जाना चाहिए. बाकी अगर घाटी के चरमपंथी शांति नहीं बल्कि पैलेट और बुलेट चाहते हैं. तो सरकार को भी उन्हें ये सब देने में बिलकुल भी कोताही नहीं करनी चाहिए. सरकार को घाटी के लोगों को बताना होगा कि अगर सुधार का रास्ता पैलेट से होकर गुजरता है फिर वही सही.
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