पंजाब में कांग्रेस के घर का झगड़ा आने वाले विधानसभा चुनावों में भारी पड़ने वाला है. आशंका तो पहले से ही ऐसी लग रही थी, अब एक सर्वे में भी यही बात सामने आयी है - और अब तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत न मिलने की स्थिति में त्रिशंकु विधानसभा के आसार लगने लगे हैं.
और अगर कांग्रेस पंजाब में सत्ता गवां देती है तो नवजोत सिंह सिद्धू को ही इसका सबसे ज्यादा श्रेय मिलेगा - क्योंकि क्रेडिट के एक हिस्से पर राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का भी तो हक कायम रहेगा.
नवजोत सिंह सिद्धू भले ही बीते करीब साल भर धक्के खाये हों, लेकिन किस्मतवाले हैं कि वो भाई-बहन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की निजी पसंद बन गये, वरना मजाल नहीं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह किसी और को खड़े होने दिये होते - क्योंकि पंचायत चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में लाकर कैप्टन ने साबित कर दिया था कि किसान आंदोलन को वास्तव में वो अपने फायदे के हिसाब से मैनेज कर चुके हैं. जाहिर है किसानों का समर्थन हार जीत में महत्वपूर्ण रोल में तो होगा ही. कम से कम 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए तो ये बात पक्की है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथ से बाजी पूरी तरह तो नहीं फिसली है, लेकिन काफी आगे निकल चुकी है. अमरिंदर सिंह के साथ प्लस प्वाइंट है कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं और अगर टिकटों के बंटवारे में भी उनकी ही चलती है तो लगभग हारी हुई बाजी जीत लेने के चांस अब भी कुछ कुछ बचे हुए लगते हैं.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के मन में ऐसी आशंका रही कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के चक्कर में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को रोक लेने की कोशिश नहीं हुई तो वो आम आदमी पार्टी में जा सकते हैं. पंजाब में कांग्रेस का प्रधान बनाये जाने से पहले ट्विटर पर...
पंजाब में कांग्रेस के घर का झगड़ा आने वाले विधानसभा चुनावों में भारी पड़ने वाला है. आशंका तो पहले से ही ऐसी लग रही थी, अब एक सर्वे में भी यही बात सामने आयी है - और अब तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत न मिलने की स्थिति में त्रिशंकु विधानसभा के आसार लगने लगे हैं.
और अगर कांग्रेस पंजाब में सत्ता गवां देती है तो नवजोत सिंह सिद्धू को ही इसका सबसे ज्यादा श्रेय मिलेगा - क्योंकि क्रेडिट के एक हिस्से पर राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का भी तो हक कायम रहेगा.
नवजोत सिंह सिद्धू भले ही बीते करीब साल भर धक्के खाये हों, लेकिन किस्मतवाले हैं कि वो भाई-बहन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की निजी पसंद बन गये, वरना मजाल नहीं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह किसी और को खड़े होने दिये होते - क्योंकि पंचायत चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में लाकर कैप्टन ने साबित कर दिया था कि किसान आंदोलन को वास्तव में वो अपने फायदे के हिसाब से मैनेज कर चुके हैं. जाहिर है किसानों का समर्थन हार जीत में महत्वपूर्ण रोल में तो होगा ही. कम से कम 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए तो ये बात पक्की है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथ से बाजी पूरी तरह तो नहीं फिसली है, लेकिन काफी आगे निकल चुकी है. अमरिंदर सिंह के साथ प्लस प्वाइंट है कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं और अगर टिकटों के बंटवारे में भी उनकी ही चलती है तो लगभग हारी हुई बाजी जीत लेने के चांस अब भी कुछ कुछ बचे हुए लगते हैं.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के मन में ऐसी आशंका रही कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के चक्कर में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को रोक लेने की कोशिश नहीं हुई तो वो आम आदमी पार्टी में जा सकते हैं. पंजाब में कांग्रेस का प्रधान बनाये जाने से पहले ट्विटर पर सिद्धू ऐसे संकेत भी देने लगे थे - और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उसे हवा भी खूब दे रहे थे.
राहुल-प्रियंका तो बेहद खुश होंगे कि कैप्टन के कड़े विरोध को दरकिनार करते हुए सिद्धू को रोक ही लिया, लेकिन वही सिद्धू अब कांग्रेस में रहते हुए भी पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाने जा रहे हैं, भाई-बहन ने कल्पना भी नहीं की होगी.
सी-वोटर के चुनाव पूर्व सर्वे (Pre Poll Survey) की रिपोर्ट एक साथ कई इशारे कर रही है - पहला तो कांग्रेस के सत्ता में वापसी की संभावना करीब करीब खत्म हो चली है. अकाली दल किसानों के नाम पर एनडीए से अलग होने के बावजूद कुछ खास करने की स्थिति में नजर नहीं आ रहा है - और बीजेपी तो जैसे अगली सरकार बन जाने के बाद ऑपरेशन लोटस के भरोसे बैठी हो.
लेकिन सर्वे की जो सबसे खास बात है, वो है - त्रिशंकु विधानसभा बनने की स्थिति में भी रेस में अभी अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी का सबसे आगे नजर आना. और इस बात का पूरा क्रेडिट भी नवजोत सिंह सिद्धू को ज्यादा और राहुल-प्रियंका को थोड़ा सा कम मिलना ही चाहिये.
क्या पंजाब में 'आप' की बारी है?
दिल्ली के बाद अगर आम आदमी पार्टी का देश भर में कहीं कोई सियासी सरमाया है तो वो बेशक पंजाब ही है - ये पंजाब ही है जिसने 2014 की मोदी लहर में चार चार सांसद दिये, जबकि आप नेता अरविंद केजरीवाल खुद चुनाव हार गये थे. 2014 में अरविंद केजरीवाल वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े थे.
अब भी लोक सभा में एकमात्र प्रतिनिधित्व पंजाब से ही है. संगरूर से भगवंत मान आम आदमी पार्टी के टिकट पर लगातार दूसरी बार लोक सभा पहुंचे हैं. विधानसभा भी में दिल्ली के बाद पंजाब में ही आम आदमी पार्टी के सबसे ज्यादा विधायक हैं और बहुत कुछ गंवाने के बावजूद आप ही सबसे बड़ा विपक्षी राजनीतिक दल है.
अरविंद केजरीवाल को 2017 में ही अकाली दल और बीजेपी गठबंधन को हरा कर सत्ता हासिल कर लेने की पूरी उम्मीद रही, लेकिन प्रशांत किशोर की मदद से कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की सरकार बना ली. कैप्टन ने इस बार भी प्रशांत किशोर को सलाहकार बनाया था, लेकिन वो अब काम छोड़ चुके हैं.
आम आदमी पार्टी वैसे तो इस बार पंजाब के साथ साथ यूपी और उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ने को लेकर तत्पर देखी जा सकती है, लेकिन पंजाब में मुफ्त बिजली को लेकर जो शिगूफा अरविंद केजरीवाल छोड़ आये हैं, सर्वे में उसका साफ असर देखने को मिल रहा है.
पंजाब के लोगों से अरविंद केजरीवाल काफी पहले ही 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा कर आये हैं जो दिल्ली के 200 से भी 100 यूनिट ज्यादा है. दिल्ली की सत्ता में वापसी में अरविंद केजरीवाल का ये बिजली-पानी वाला मैनिफेस्टो बेहद कारगर साबित हो चुका है. वैसे यूपी को लेकर अभी तक अरविंद केजरीवाल 200 यूनिट ही मुफ्त बिजली देने की बात कही है, लेकिन उत्तराखंड के लोगों पर भी पंजाब की तरह ही मेहरबान हैं. उत्तराखंड में तो 300 यूनिट मुफ्त बिजली की घोषणा कर अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी नेताओं की भी नींद उड़ा डाली है. आम आदमी पार्टी का ने दावा किया है कि उत्तराखंड में चलाये जा रहे बिजली गारंटी अभियान में एक महीने के भीतर ही 10 लाख से ज्यादा लोगों का समर्थन मिला है.
एबीपी न्यूज सी-वोटर के सर्वे से मालूम होता है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर भी अरविंद केजरीवाल ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को पीछे छोड़ दिया है. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, 22 फीसदी लोग जहां अरविंद केजरीवाल को पंजाब के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं, वहीं सर्वे में शामिल 18 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो कैप्टन अमरिंदर सिंह को ही फिर से सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं.
16 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो आम आदमी पार्टी सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहली पसंद बता रहे हैं. मुख्यमंत्री पद की रेस में नवजोत सिंह सिद्धू भी शामिल हैं जिनको 15 फीसदी लोग पंजाब के अगले सीएम के लायक मानते हैं, जबकि अकाली दल नेता सुखबीर बादल महज 10 फीसदी लोगों की नजर में ही मुख्यमंत्री बनने लायक लगते हैं.
सर्वे की मानें तो आम आदमी पार्टी पंजाब में बहुमत के मुहाने पर पहुंचती नजर आ रही है. 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में बहुमत के लिए 59 विधायकों की जरूरत होती है - और सर्वे में आम आदमी पार्टी को 51-57 सीटें मिल पाने का अनुमान लगाया गया है.
बेशक अरविंद केजरीवाल की पार्टी को जितनी सीटें मिलने का अंदाजा लगाया जा रहा है, वो अपने बूते सरकार तो नहीं बना सकते कि लेकिन इस स्थिति में तो पहुंच ही जाएंगे कि किसी पार्टी का सपोर्ट लेकर सरकार बना सकें.
क्या कांग्रेस फिर से 'आप' के समर्थन के लिए तैयार है?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भले ही विपक्षी दलों की मीटिंग में अरविंद केजरीवाल को न्योता तक न भेजते हों और न ही कभी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन के लिए राजी होते हों, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो साफ साफ समझ में आ रहा था कि कांग्रेस पूरा मौका दे रही थी कि अरविंद केजरीवाल बीजेपी को हरा दें - ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी. राहुल गांधी भले ही खुद कोई चुनाव नहीं जीत पा रहे हों, लेकिन दिल्ली और बंगाल में तो उनके मनमाफिक ही नतीजे आये हैं.
पंजाब में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बीजेपी तो अकेले दम पर चुनाव मैदान में हैं, लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया हुआ है.
सर्वे में अकाली दल गठबंधन के हिस्से में 16-24 विधानसभा सीटें आने की संभावना जतायी गयी है - लेकिन सबसे ज्यादा हैरान बीजेपी को मिलने वाली सीटों की संख्या हैरान करने वाली है. उत्तर प्रदेश में जहां बीजेपी की बहुमत के साथ सत्ता में वापसी सर्वे में भविष्यवाणी हुई है, वहीं पंजाब में 0-1 सीट मिलने का ही अंदाजा है.
कांग्रेस के 38 सीटों पर सिमट जाने की बात सर्वे में बतायी जा रही है. कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 77 सीटें जीती थी, जबकि आम आदमी पार्टी 20 सीटों के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी थी. अपडेट ये भी है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जिस दिन आलाकमान से मीटिंग के लिए दिल्ली रवाना हो रहे थे शगुन के तौर पर आप के तीन विधायकों को कांग्रेस ज्वाइन करा दिया था.
पंजाब में बीजेपी के लिए अकाली दल का साथ छोड़ देना घाटे का सौदा तो रहा ही, लेकिन उससे भी ज्यादा नुकसान किसानों के गुस्से से लग रहा है. तीन कृषि कानूनों की मांग को लेकर किसान कई महीने से दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. गौर करने वाली बात ये है कि किसान आंदोलन पहले पंजाब में ही जोर पकड़ा था, लेकिन बड़ी चालाकी से पहले किसानों का सपोर्ट कर बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने धीरे धीरे सबको दिल्ली की सीमाओं पर भेज दिया.
तमाम दुश्वारियों के बावजूद बीजेपी पंजाब की 45 सीटों पर फोकस कर रही है. बीजेपी ने दलित मुख्यमंत्री का दांव तो पहले ही चल दिया था, अब ऐसी सीटों से चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही है जहां हिंदू आबादी 60 फीसदी या उससे ज्यादा है. ऐसी सीटों में ज्यादातर शहरी आबादी वाले इलाके ही हैं - मसलन, पटियाला (शहरी), बठिंडा (शहरी), रोपड़ और जलालाबाद. इनके अलावा मोहाली, खराड़ और डेरा बस्सी जैसे इलाके भी हैं जहां बीजेपी अपने संगठन को मजबूत मानती है.
दिल्ली में भी अपने पहले चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को चुनाव में हरा दिया था - और ताज्जुब की बात ये रही कि कांग्रेस के सपोर्ट से ही अपनी पहली सरकार बनाने में सफल हुए थे. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन बाद ही मुख्यमंत्री पद से राजनीतिक विरोधियों पर तोहमत जड़ते हुए इस्तीफा भी दे दिया था.
पंजाब में भी, अगर सर्वे के हिसाब से ही नतीजे भी आते हैं, एक बार लगभग वैसी ही स्थिति बनती लग रही है. हो सकता है बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस एक बार फिर आप का सपोर्ट कर दे.
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