सच को हजम कर पाना सबके वश की बात नहीं होती, लेकिन कई बार सच का दावा भी बदहजमी की तरफ ही बढ़ता नजर आता है - और यही वजह है कि 'वारिस पंजाब दे' के स्वयंभू लीडर अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) की करतूत के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (Bhagwant Mann) का बयान भी हजम करना मुश्किल हो रहा है.
पूरी दुनिया देख रही है कि पंजाब के अजनाला थाने पर हाथों में बंदूक, लाठियां और तलवारें लिये समर्थकों के साथ अमृतपाल धावा बोल देता है. अपनी मर्जी से जितना हो सकता है उत्पात करता है. वो और उसके सपोर्टर पुलिसवालों पर हमला बोल देते हैं - और तब तक नहीं रुकते जब तक कि पुलिस घुटने टेक कर उसके साथी को छोड़ने को राजी नहीं हो जाती.
एक पुलिस अफसर सहित आधार दर्जन पुलिसकर्मी जख्मी हो जाते हैं. जैसे उलटी गंगा बह रही हो. जैसे पुलिस निहत्थे लोगों पर सरेआम डंडे बरसाती है और वे जैसे तैसे बचने की कोशिश करते हैं, फिर भी पुलिस तरस नहीं खाती. पुलिस चालू रहती है. डंडे बरसाती रहती है - बाहर से नजारा देख कर तो ऐसा ही लगता है जैसे अमृतपाल और उसके साथी पुलिस पर वैसे ही टूट पड़े होते हैं.
जैसे पुलिस किसी को भी थाने लाकर जुर्म कबूल करवाने के लिए थर्ड डिग्री चालू कर देती है, ऐसा लगता है जैसे अमृतपाल और उसके साथी पुलिसवालों के साथ वैसे ही पेश आने का इरादा करके आये होते हैं - और पुलिस पर ये कबूल करने का दबाव बना रहे थे कि मान ले कि उनका साथी लवप्रीत सिंह बेकसूर है - और बाकी साथियों के खिलाफ भी केस रद्द कर दिये जायें.
और पुलिस की बुद्धि की बलिहारी देखिये. जब अपने पर पड़ती है तो बगैर सोचे समझे सब कुछ मान लेती है. थोड़ी देर पहले जो पुलिस की नजर में गुनहगार होता है, जब हमला होता है तो उसे ही बेगुनाह करार दिया जाता है, लेकिन पुलिस को ये अधिकार किसने दिया कि वो किसी को गुनहगार बताये या बेगुनाह करार दे - ये काम तो कोर्ट का होता है!
जो पुलिस पूरी ताकत से एक आरोपी को पकड़ कर लायी होती है, वही पुलिस डर के मारे उसकी रिहाई के लिए उसके पक्ष में दलील देने लगती...
सच को हजम कर पाना सबके वश की बात नहीं होती, लेकिन कई बार सच का दावा भी बदहजमी की तरफ ही बढ़ता नजर आता है - और यही वजह है कि 'वारिस पंजाब दे' के स्वयंभू लीडर अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) की करतूत के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (Bhagwant Mann) का बयान भी हजम करना मुश्किल हो रहा है.
पूरी दुनिया देख रही है कि पंजाब के अजनाला थाने पर हाथों में बंदूक, लाठियां और तलवारें लिये समर्थकों के साथ अमृतपाल धावा बोल देता है. अपनी मर्जी से जितना हो सकता है उत्पात करता है. वो और उसके सपोर्टर पुलिसवालों पर हमला बोल देते हैं - और तब तक नहीं रुकते जब तक कि पुलिस घुटने टेक कर उसके साथी को छोड़ने को राजी नहीं हो जाती.
एक पुलिस अफसर सहित आधार दर्जन पुलिसकर्मी जख्मी हो जाते हैं. जैसे उलटी गंगा बह रही हो. जैसे पुलिस निहत्थे लोगों पर सरेआम डंडे बरसाती है और वे जैसे तैसे बचने की कोशिश करते हैं, फिर भी पुलिस तरस नहीं खाती. पुलिस चालू रहती है. डंडे बरसाती रहती है - बाहर से नजारा देख कर तो ऐसा ही लगता है जैसे अमृतपाल और उसके साथी पुलिस पर वैसे ही टूट पड़े होते हैं.
जैसे पुलिस किसी को भी थाने लाकर जुर्म कबूल करवाने के लिए थर्ड डिग्री चालू कर देती है, ऐसा लगता है जैसे अमृतपाल और उसके साथी पुलिसवालों के साथ वैसे ही पेश आने का इरादा करके आये होते हैं - और पुलिस पर ये कबूल करने का दबाव बना रहे थे कि मान ले कि उनका साथी लवप्रीत सिंह बेकसूर है - और बाकी साथियों के खिलाफ भी केस रद्द कर दिये जायें.
और पुलिस की बुद्धि की बलिहारी देखिये. जब अपने पर पड़ती है तो बगैर सोचे समझे सब कुछ मान लेती है. थोड़ी देर पहले जो पुलिस की नजर में गुनहगार होता है, जब हमला होता है तो उसे ही बेगुनाह करार दिया जाता है, लेकिन पुलिस को ये अधिकार किसने दिया कि वो किसी को गुनहगार बताये या बेगुनाह करार दे - ये काम तो कोर्ट का होता है!
जो पुलिस पूरी ताकत से एक आरोपी को पकड़ कर लायी होती है, वही पुलिस डर के मारे उसकी रिहाई के लिए उसके पक्ष में दलील देने लगती है - और खुद को सही ठहराने के लिए 'गुरु ग्रंथ साहिब' के सम्मान की दुहाई देने लगती है.
वो महज एक भीड़ थी. कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ था. अमृतपाल और उसके साथियों ने हमला भी अचानक नहीं बोला था. बाकायदा टाइम बता कर पहुंचे थे - जब यही सब करना था तो फूल माला लेकर खड़ा रहना चाहिये था, स्वागत भी तो किया जा सकता था!
पैरा मिलिट्री फोर्स न सही, एक वायरलेस मैसेज पर तो आस पास के थाने की पुलिस मौके पर पहुंच ही जाती है. आम लोगों की सूचना पर भले ही पुलिस देर से पहुंचती हो, लेकिन फर्जी एनकाउंटर के मामलों में भी देखा तो यही जाता रहा है कि पुलिस वाले बिलकुल भी देर नहीं लगाते.
हफ्ता भर पहले ही पंजाब में बेहतरीन कानून व्यवस्था का दावा करने वाले भगवंत मान को सब कुछ देखते हुए भी राजनीतिक बयान क्यों देना पड़ रहा है? मीडिया को ये क्यों बताना पड़ रहा है कि उसके पास सही जानकारी नहीं है? एक आंखों देखी घटना को लेकर पूरे देश को झुठलाने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
और सबसे बड़ा सवाल पंजाब पुलिस (Punjab Police) के हाथ पैर किसने बांध रखे हैं? क्या मुख्यमंत्री भगवंत मान अजनाला की घटना को किसी राजनीतिक मजबूरी में डाउनप्ले कर रहे हैं?
पंजाब पुलिस की सफाई पर सवालिया निशान
पंजाब के डीजीपी गौरव यादव के मुताबिक पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात जुगराज सिंह को 11 टांके लगे हैं. जुगराज सिंह अंतर्राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी रहे हैं - और ये भी बताते हैं कि कैसे पुलिस ने धैर्य और संयम का परिचय दिया है - पुलिस के संयम बरतने की वजह वो गुरु ग्रंथ साहिब की मर्यादा बचाये रखने का प्रयास बताते हैं.
और डीजीपी की मानें तो गुरु ग्रंथ साहब की मर्यादा बचाये रखने के लिए पुलिस वालों ने हमले के बावजूद अमृतपाल सिंह के आगे घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा - और उसके साथी लवप्रीत सिंह को रिहा करने का आश्नवासन देना पड़ा.
देखा जाये तो जो बयान मुख्यमंत्री भगवंत मान को देना चाहिये था, अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की तरफ से आया है. सुखबीर बादल की नजर में अमृतपाल सिंह ने जो किया है, वो गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान है, 'गुरु ग्रंथ साहिब को थाने ले जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है... ये अपमानजनक है... छापेमारी में बरामद शराब, नशीले पदार्थ और ऐसी कई चीजें थाने में रखी जाती हैं.'
सुखबीर सिंह बादल ने जोरदार विरोध जताया है, 'हम निंदा करते हैं... कुछ लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल के रूप में इस्तेमाल किया.'
लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान की बातों से तो ऐसा लगता है जैसे पंजाब में कुछ हुआ ही न हो. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने मुंबई पहुंचे भगवंत मान से जब अजनाला की घटना पर सवाल पूछा जाता है तो कहते हैं, "देखिये आप लोगों के पास यहां गलत सूचनाएं हैं... लॉ एंड ऑर्डर पंजाब में कंट्रोल में है... पंजाब पुलिस सक्षम है...
और बड़े ही आराम से वो दार्शनिक अंदाज में शांति की बातें करने लगते हैं, 'पंजाब का जो सोशल बॉन्डिंग है उस पर गोलियां भी चलीं दस साल उस पर बम भी फूटे, लेकिन पंजाब का जो भाईचारा है... वो लोग मिल के रहना चाहते हैं... बहुत अमन शांति वाला हमारा स्टेट है.'
पीछे मुड़ कर देखें तो पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह काफी पहले से ऐसी चीजों को लेकर आगाह करते रहे हैं. सरहद से सटे होने के कारण पंजाब में ज्यादा अलर्ट रहने की जरूरत होती है - भगवंत मान, अपने नेता अरविंद केजरीवाल के साथ बैठ कर मीडिया के सामने जो भी दावा करें, लेकिन ऐसे सवालों को टालते नजर आते हैं कि क्या उनकी सरकार कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर फेल नहीं है?
कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब न तो डीजीपी की बातों से समझ में आता है, न ही मुख्यमंत्री के बयान से - मसलन, आखिर ये नौबत कैसे आयी की डंके की चोट पर पहले से ऐलान करके पहुंचे अमृतपाल सिंह और उसके समर्थक थाने पर कब्जा कर लेते हैं और बस बचाव के रास्ते तलाश रही होती है?
सवाल ये भी है कि किसी भी स्थिति से निबटने के लिए पुलिस ने एहतियाती इंतजाम क्यों नहीं किये - और ये भी क्या किसी ने ऐसा करने से रोकने की कोशिश की?
और ये भी सवाल उठता है कि क्या अफसरों और सरकार के राजनीतिक नेतृत्व के पास अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों की गतिविधियों को लेकर कोई भी खुफिया इनपुट नहीं था - अगर वास्तव में ऐसा है तो पंजाब के लिए ये सबसे बड़ी फिक्र वाली बात है.
पंजाब बेखबर है या लापरवाह?
पंजाब की स्थिति को लेकर जो मुश्किल समझ में आ रही है, उसकी एक झलक एमसीडी में हुई हाल की हिंसा में भी देखी जा सकती है - आरोप प्रत्यारोप की राजनीति को लेकर फिलहाल जो एमसीडी में हो रहा है, खालिस्तान के नाम पर पंजाब में भी वैसी ही गुत्थमगुत्थी सशंकित कर रही है - और वो दिल्ली से भी ज्यादा डरावनी तस्वीर दिखा रही है.
हफ्ता भर पहले की ही तो बात है. अपने नेता अरविंद केजरीवाल को टैग करते हुए भगवंत मान ने एक ट्वीट किया था. लिखा था, एक साल से भी कम समय में पंजाब की कानून व्यवस्था पर जो हमने काम किया है उसके नतीजे सभी के सामने हैं... NCB की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में आपराधिक मामलों में सुधार देखने को मिला... पंजाबियों के लिए यह एक बहुत अच्छी ख़बर है... अब पंजाब में सिर्फ कानून का राज चलेगा.
19 फरवरी, 2023 के भगवंत मान के ट्वीट को 10 मिनट बाद रिट्वीट करते हुए अरविंद केजरीवाल ने लिखा था - रोज पंजाब से कानून व्यवस्था में सुधार की खबरें आ रहीं हैं... पंजाब में ईमानदार सरकार बनाने का फल अब पंजाबियों को मिलने लगा है.
और 23 फरवरी को अजनाला थाने की पुलिस पर हमला हो जाता है. भगवंत मान कहते हैं, पंजाब पुलिस पूरी तरह सक्षम है. स्थिति पूरी तरह काबू में है.
पुलिस को लेकर तो कोई शक नहीं है, लेकिन पुलिस सक्षम तभी रहती है, जब उसके हाथ पैर न बांध दिये जायें. हालांकि, पुलिस की पीठ ठोकने के भी साइड इफेक्ट नजर आते हैं - जब और जैसे मन करता है, जहां चाहती है, जिसे चाहती है पुलिस ठोक देती है. बंदूक चलाने का मन नहीं करता तो गाड़ी ही पलट देती है.
वारिस पंजाब दे पर नया नया काबिज अमृतपाल सिंह अपना आदर्श ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गये जनरैल सिंह भिंडरावाले को अपना आदर्श मानता है - और सबसे गंभीर बात ये है कि वो देश के गृह मंत्री अमित शाह का हाल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसा करने की धमकी दे चुका है. इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने गोलियां बरसा कर हत्या कर दी थी.
अमित शाह ने एक बार कहा था कि पंजाब में खालिस्तान समर्थकों पर सरकार की पूरी नजर है - और उसी बात पर रिएक्ट करते हुए, अमृतपाल सिंह का कहना रहा, "इंदिरा ने भी हमें दबाने की कोशिश की थी... क्या हश्र हुआ? अब अमित शाह अपनी इच्छा पूरी कर के देख लें!"
हालांकि बाद में अपनी बात से पलटते हुए सफाई भी दी थी. डर तो सबको लगता है. जितने भी बड़े क्रिमिनल या आतंकवादी हुए हैं, निजी तौर पर उनको बेहद असुरक्षित और डरपोक ही पाया गया है. बाद में अमृतपाल ने कहा था, मैंने गृह मंत्री को किसी तरह की धमकी नहीं दी... अमित शाह ने मुझे धमकी दी है... एजेंसियां मेरा कत्ल करवाना चाहती हैं.'
अजनाला की घटना पर भगवंत मान ने जो कहा है, अगर वो राजनीतिक बयान है तो ठीक है. अगर अंदर से भी वो बिलकुल वही महसूस करते हैं जो उनकी जबान से सुनने को मिला है तो तरस खाने के अलावा क्या भला कहा जा सकता है?
भगवंत मान का कैप्टन अमरिंदर सिंह से राजनीतिक विरोध अपनी जगह हो सकता है, लेकिन जो जिम्मेदारी उनको मिली है, जिस कुर्सी पर फिलहाल वो बैठे हैं - राजधर्म तो यही कहता है कि 'उड़ते पंजाब' के रूप बदनाम हो चुके सूबे को फिर से आतंकवाद की आगोश में जाने से बचायें.
अगर भगवंत मान को वास्तव में स्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं हो पा रहा है तो तो अपने नेता अरविंद केजरीवाल से सलाह लेने के बजाये - पिछली सरकारों में हालात को संभालने वाले अफसरों की मदद लेनी चाहिये. क्योंकि अरविंद केजरीवाल को और भी लड़ाइयां लड़नी हैं - और इस चक्कर में पंजाब को पीछे नहीं छूट जाने देना चाहिये.
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