चुनावों के समय राजनीतिक दलों पर जाति और धर्म के आधार पर चुनावों में टिकट देने के आरोप लगते आए हैं. पक्का सबूत ना होने के कारण पार्टियां हर बार बच भी जाती हैं. लेकिन इस बार हम आपके सामने पक्का सबूत लेकर आए हैं. मामला उस पार्टी से जुड़ा है, जिसने देश में 60 सालों तक शासन किया. लेकिन अब अस्तित्व का संकट झेल रही है.
जी हां, मैं कांग्रेस पार्टी की बात कर रहा हूं. मामला कुछ दिनों पहले का है. पंजाब कांग्रेस कमेटी ने पार्टी की मीडिया पैनलिस्ट की सूची जारी की. इस सूची में चौंकाने वाली बात यह थी कि पदाधिकारियों के नाम के आगे उनकी जाति/धर्म भी लिखा था. सूची में पैनलिस्टों के नाम, जाति और कॉन्टैक्ट नंबर का उल्लेख था. पैनल में एससी, जट्ट सिख, हिंदू, ओबीसी और अर्बन सिख को शामिल किया गया था. लिस्ट लगते ही लोगों का ध्यान इसपर पड़ा. मामला बढ़ता देख पंजाब कांग्रेस कमेटी तुरंत हरकत में आ गई. आनन-फानन में उन्होंने अपनी गलती को सुधारते हुए एक नई सूची जारी कर दी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ से जब इस विषय पर पूछा गया तो उनका कहना था कि पहली सूची अनजाने में जारी हो गई थी. सभी पदाधिकारियों को उनकी क़ाबलियत के आधार पर ही चुना गया था. खैर भले ही नेता जी इसे अनजाना भूल बता रहे हो. लेकिन इस भूल ने पार्टी की सच्चाई सबके सामने ला दी है. अब अपनी सफाई में ये कुछ भी कहें. लेकिन यह मामला साफ-साफ सबको खुश करने की सस्ती कोशिश की नज़र आती है.
बता दें कि इसी साल हुए चुनावों के बाद पंजाब में कांग्रेस की सालों बाद वापसी हुई है. यह बात समझ से परे है कि अभी से ही वहां कांग्रेसी नेताओं को खुश करने की क्या ज़रूरत पढ़ गई? यह समय तो क़ाबलियत का आधार पर लोगों को मौका देने का है. जिससे राज्य...
चुनावों के समय राजनीतिक दलों पर जाति और धर्म के आधार पर चुनावों में टिकट देने के आरोप लगते आए हैं. पक्का सबूत ना होने के कारण पार्टियां हर बार बच भी जाती हैं. लेकिन इस बार हम आपके सामने पक्का सबूत लेकर आए हैं. मामला उस पार्टी से जुड़ा है, जिसने देश में 60 सालों तक शासन किया. लेकिन अब अस्तित्व का संकट झेल रही है.
जी हां, मैं कांग्रेस पार्टी की बात कर रहा हूं. मामला कुछ दिनों पहले का है. पंजाब कांग्रेस कमेटी ने पार्टी की मीडिया पैनलिस्ट की सूची जारी की. इस सूची में चौंकाने वाली बात यह थी कि पदाधिकारियों के नाम के आगे उनकी जाति/धर्म भी लिखा था. सूची में पैनलिस्टों के नाम, जाति और कॉन्टैक्ट नंबर का उल्लेख था. पैनल में एससी, जट्ट सिख, हिंदू, ओबीसी और अर्बन सिख को शामिल किया गया था. लिस्ट लगते ही लोगों का ध्यान इसपर पड़ा. मामला बढ़ता देख पंजाब कांग्रेस कमेटी तुरंत हरकत में आ गई. आनन-फानन में उन्होंने अपनी गलती को सुधारते हुए एक नई सूची जारी कर दी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ से जब इस विषय पर पूछा गया तो उनका कहना था कि पहली सूची अनजाने में जारी हो गई थी. सभी पदाधिकारियों को उनकी क़ाबलियत के आधार पर ही चुना गया था. खैर भले ही नेता जी इसे अनजाना भूल बता रहे हो. लेकिन इस भूल ने पार्टी की सच्चाई सबके सामने ला दी है. अब अपनी सफाई में ये कुछ भी कहें. लेकिन यह मामला साफ-साफ सबको खुश करने की सस्ती कोशिश की नज़र आती है.
बता दें कि इसी साल हुए चुनावों के बाद पंजाब में कांग्रेस की सालों बाद वापसी हुई है. यह बात समझ से परे है कि अभी से ही वहां कांग्रेसी नेताओं को खुश करने की क्या ज़रूरत पढ़ गई? यह समय तो क़ाबलियत का आधार पर लोगों को मौका देने का है. जिससे राज्य में उनकी पकड़ बन सके. लेकिन लगता है कि चुनावों में मिले साथ के बदले पंजाब सरकार सबको पुरस्कार बांटने में लगी है. बड़ा सवाल तो यह है कि अगर अभी से पंजाब कांग्रेस जाति/धर्म की राजनीति में लग जाएगी तो ज़रूरतमंद की सेवा कैसे करेगी? सरकार बस जाति/धर्म का रसूख रखने वालों के ही काम निकलवाने में वयस्त रहेगी और विकास का एजेंडा धरा का धरा रह जाएगा.
कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व केंद्र सरकार पर जाति/धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाता रहा है. राहुल, सोनिया से लेकर पार्टी के तमाम बड़े नेता आरोप लगाते आए हैं कि केंद्र सरकार सिर्फ़ एक विशेष धर्म के लोगों की हितैशी है. और एक विशेष धर्म के लोगों की उपेक्षा करती है. हाल ही में एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया जा रहा था. इसके बाद विपक्ष ने सरकार को उस जाति का विरोधी करार दिया था.
अब राहुल, सोनिया को अपनी पंजाब इकाई की इस हरकत पर सफाई पेश करनी चाहिए. मामले को गंभीरता के साथ लेते हुए दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. मामले पर कांग्रेस की तरफ़ से कोई स्पष्टीकरण नहीं आता है, तो मतलब साफ है कि कांग्रेस पार्टी की कथनी और करनी में काफी अंतर है.
भारत की जनता काफ़ी जागरूक है. अब सिर्फ़ बड़ी-बड़ी बातें करके राजनीतिक दल उन्हे बेवकूफ़ नहीं बना सकते है. पहले से ही अस्तित्व का संकट झेल रही कांग्रेस पार्टी की पंजाब इकाई अपनी ग़लती नहीं मानती है और उनका राष्ट्रीय नेतृत्व भी चुप रहता है तो उनकी विश्वसनीयता और कम हो जाएगी. अब फ़ैसला कांग्रेस को करना है.
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