पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बीच चल रही सियासी खींचतान के रोचक अंत के बाद के माना जा रहा था कि कांग्रेस अब अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly elections 2022) के लिए पूरी तरह से तैयार है. कांग्रेस आलाकमान ने अमरिंदर सिंह के विरोध को दरकिनार करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस (Congress) की कमान थमा दी थी. माना जा रहा था कि कम से कम विधानसभा चुनाव तक पंजाब कांग्रेस में अब कोई सिरफुटौव्वल की स्थिति नहीं बनेगी. लेकिन, पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने के बाद कुछ दिनों तक शांत रहे सिद्धू ने फिर से तेवर दिखाने शुरू किए और ट्विटर के सहारे ही कैप्टन को घेरने लगे. इस दौरान अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर नवजोत सिंह सिद्धू को 'संयम बरतने' की की हिदायत भी दिलवाई, लेकिन, इसका कोई फायदा अमरिंदर सिंह को मिलता नजर नहीं आया.
वहीं, अब पंजाब में कैप्टन के खिलाफ बगावत शुरू हो गई है. पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के 30 विधायकों ने अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग कर प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है. अमरिंदर सिंह के खिलाफ खड़े हुए विधायकों का कहना है कि कांग्रेस के चुनावी वायदों को पूरा करने में कैप्टन नाकामयाब रहे हैं. बेअदबी मामले से लेकर ड्रग्स सिंडीकेट तक किसी भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ आवाज उठाने वाले विधायकों में से अधिकतर नवजोत सिंह सिद्धू खेमे के नेता हैं. लेकिन, सिद्धू ने राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह इस बगावत से उचित दूरी बना रखी है. हालांकि, बगावत करने वाले विधायकों ने वही मुद्दे उठाए हैं, जिनके सहारे नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले प्रत्यक्ष रूप से और पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने के बाद अप्रत्यक्ष तौर पर अमरिंदर सिंह पर हमलावर रहे हैं. और, अब स्थिति ये आ गई है कि अमरिंदर सिंह के लिए मुख्यमंत्री पद की दावेदारी बचाना भी मुश्किल होता जा रहा है.
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बीच चल रही सियासी खींचतान के रोचक अंत के बाद के माना जा रहा था कि कांग्रेस अब अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly elections 2022) के लिए पूरी तरह से तैयार है. कांग्रेस आलाकमान ने अमरिंदर सिंह के विरोध को दरकिनार करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस (Congress) की कमान थमा दी थी. माना जा रहा था कि कम से कम विधानसभा चुनाव तक पंजाब कांग्रेस में अब कोई सिरफुटौव्वल की स्थिति नहीं बनेगी. लेकिन, पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने के बाद कुछ दिनों तक शांत रहे सिद्धू ने फिर से तेवर दिखाने शुरू किए और ट्विटर के सहारे ही कैप्टन को घेरने लगे. इस दौरान अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर नवजोत सिंह सिद्धू को 'संयम बरतने' की की हिदायत भी दिलवाई, लेकिन, इसका कोई फायदा अमरिंदर सिंह को मिलता नजर नहीं आया.
वहीं, अब पंजाब में कैप्टन के खिलाफ बगावत शुरू हो गई है. पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के 30 विधायकों ने अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग कर प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है. अमरिंदर सिंह के खिलाफ खड़े हुए विधायकों का कहना है कि कांग्रेस के चुनावी वायदों को पूरा करने में कैप्टन नाकामयाब रहे हैं. बेअदबी मामले से लेकर ड्रग्स सिंडीकेट तक किसी भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ आवाज उठाने वाले विधायकों में से अधिकतर नवजोत सिंह सिद्धू खेमे के नेता हैं. लेकिन, सिद्धू ने राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह इस बगावत से उचित दूरी बना रखी है. हालांकि, बगावत करने वाले विधायकों ने वही मुद्दे उठाए हैं, जिनके सहारे नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले प्रत्यक्ष रूप से और पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने के बाद अप्रत्यक्ष तौर पर अमरिंदर सिंह पर हमलावर रहे हैं. और, अब स्थिति ये आ गई है कि अमरिंदर सिंह के लिए मुख्यमंत्री पद की दावेदारी बचाना भी मुश्किल होता जा रहा है.
कांग्रेस आलाकमान ने पहले ही कैप्टन को लगा दिया था किनारे
सीएम अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के साथ ही तय हो गया था कि कांग्रेस आलाकमान का भरोसा कैप्टन से ज्यादा सिद्धू पर मजबूत है. अमरिंदर सिंह कोरोना वैक्सीनेशन समेत कई मामलों पर कांग्रेस आलाकमान के 'यस मैन' नहीं बने और इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. वहीं, नवजोत सिंह सिद्धू की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ करीबी का फायदा उन्हें किस हद तक मिला है, ये जगजाहिर है. सिद्धू को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने पर अमरिंदर सिंह के विरोध को नजरअंदाज कर कांग्रेस आलाकमान ने पहले ही संदेश दे दिया था कि अब प्रदेश में कैप्टन की हद तय कर दी गई है. पंजाब कांग्रेस पर अमरिंदर सिंह के एकछत्र राज्य को खत्म करते हुए कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू के तौर पर उनके सामने मुकाबले के लिए एक बड़ा चेहरा खड़ा कर दिया था.
सलाहकार के व्यक्तिगत हमलों पर सिद्धू की चुप्पी
अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत को नवजोत सिंह सिद्धू की 'मौन सहमति' मिली हुई है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिद्धू के सलाहकारों में से एक मालविंदर सिंह माली ने कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ व्यक्तिगत हमले शुरू कर दिए हैं. दरअसल, माली ने हाल ही में कश्मीर के मुद्दे पर विवादित बयान दिया था. इसके कुछ ही दिन बाद उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का एक विवादास्पद स्केच भी शेयर किया था. जिसे अमरिंदर सिंह ने देश विरोधी बताते हुए उन पर कार्रवाई की मांग की थी. कैप्टन ने कश्मीर और पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर सिद्धू के सलाहकार को चुप रहने की नसीहत भी दी थी. इस मामले पर बवाल होने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने सलाहकारों को तलब किया था. लेकिन, ऐसा लगता है कि सिद्धू ने उन्हें राष्ट्रीय मुद्दों पर शांत रहने की हिदायत की जगह अमरिंदर सिंह के खिलाफ जंग छेड़ने की छूट दे दी.
पंजाब कांग्रेस में दोफाड़ की स्थिति
कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रही इस अघोषित जंग से इस बात की संभावना कई गुना बढ़ गई है कि आगे चलकर कांग्रेस में दोफाड़ की स्थिति बन सकती है. बताया जा रहा है कि अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत करने वाले विधायकों ने सिद्धू से मुलाकात करने के बाद पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत से बात की है. तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखजिंदर रंधावा, सुख सरकारिया और चरनजीत सिंह चन्नी ने एक सुर में अमरिंदर सिंह के नेतृत्व को कमजोर बताया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की पंजाब में वापसी के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाया जाना जरूरी है. पंजाब कांग्रेस की अगुवाई पर इन नेताओं का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान जो भी फैसला करेगी, वो मंजूर होगा. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर शपथ लेने के समय नवजोत सिंह सिद्धू ने अमरिंदर सिंह को 50 से ज्यादा विधायकों के समर्थन पत्र के साथ न्योता दिया था. तब से ही इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि भविष्य में सिद्धू की ओर से ऐसा कोई दांव चला जा सकता है.
अगर ये कहा जाए कि कांग्रेस में जल्द ही दोफाड़ की स्थिति होने वाली है, तो ये राजनीतिक तौर पर सही नही लगता है. हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि नवजोत सिंह सिद्धू को बगावत वाली जो टेस्टिंग विधानसभा चुनाव के बाद करनी थी, वो उन्होंने पहले ही करने का फैसला ले लिया है. खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने के लिए बगावत वाली टेस्टिंग पर अगर कांग्रेस आलाकमान की मुहर लग जाती है, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए हालात और ज्यादा खराब हो जाएंगे. उम्र के इस पायदान पर वो नई पार्टी खड़ी नहीं कर सकते हैं. पाला बदल कर अकाली दल के साथ जाने पर नवजोत सिंह सिद्धू के बादल परिवार से सांठ-गांठ के आरोपों की पुष्टि हो जाएगी. भाजपा के साथ जाना 'राजनीतिक आत्महत्या' होगी. आम आदमी पार्टी के दरवाजे उनके लिए खुलना मुमकिन नजर नहीं आता है. कुल मिलाकर नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस में दोफाड़ का दोष भी अमरिंदर सिंह पर लगाने की तैयारी कर ली है.
कहा जा सकता है कि फिलहाल विधानसभा चुनाव तक ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जताने का हक मिल सकता है. लेकिन, विधानसभा चुनाव के बाद अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहते हैं, तो कांग्रेस आलाकमान एक बार फिर से अमरिंदर सिंह को दरकिनार कर नवजोत सिंह सिद्धू पर दांव खेलेगा. राहुल गांधी का वरदहस्त होने का सबसे बड़ा फायदा तो फिलहाल यही नजर आता है. वैसे, सत्ता में बने रहने के लिए विधायकों का पाला बदलना भारतीय राजनीति का एक अहम हिस्सा रहा है. इस स्थिति में कैप्टन खेमे के विधायक शायद ही सिद्धू खेमे में शामिल होने के लिए ज्यादा समय लेंगे.
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