ऑस्ट्रेलियाई सरजमीं पर हिंदुस्तान की प्रमुख भाषाओं में एक पंजाबी भाषा ने अपने बढ़ते प्रभाव का ऐसा डंका बजाया है जिससे उनकी हुकूमत को अपने स्कूली पाठ्यक्रमों में पहले से निर्धारित सब्जैक्टों में पंजाबी को भी शामिल करने पर मजबूर होना पड़ा. जनगणना-2011 के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में सिखों की आबादी 210,000 से अधिक थी जो अब डबल हो चुकी है. वैसे, मांग तो बहुत पहले से उठ रही थी. पर, देर आए, दुरूस्त आए, आखिकार ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हाल में लागू की अपनी नई शिक्षा नीति में अब पंजाबी भाषा को भी जोड़ लिया है. उनके इस निर्णय को भारत सरकार और प्रत्येक भारतीयों ने खुलेदिल से सराहा है. दरअसल, ये निर्णय उन देशों को भी संबल देगा जहां-जहां भारतीयों की आबादी हाल के दशकों में बेहताशा बढ़ी हैं. फिजी, मॉरीशस, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई मुल्क हैं जहां हिंदुस्तानी लोग हिंदी-पंजाबी बोलते हैं और उन्हें देखा-देख दूसरे लोगों ने भी बोलना शुरू कर दिया है. इस कतार में अन्य और भी कई ऐसे देश हैं जिनमें हिंदी-पंजाबी को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग जोरों से उठ रही है.
कहते हैं कि भाषा का बढ़ता प्रभाव, बहती हवाओं और उड़ते परिंदों सरीखा होता है. जिसे रोक पाना समाज क्या, सरकार के लिए भी मुश्किल होता है. नए निर्णय के तहत ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अपने सभी निजी व सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में पंजाबी को पढ़ाने का फैसला किया है जो प्री-प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रमों में अब से पढ़ाई जाया करेगी. ऑस्ट्रेलिया के तीन प्रांत जिनमे विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड ऐसे हैं जहां पंजाबियां की बहुतायत है. इसके अलावा समूचे देश में करीब दस फीसदी...
ऑस्ट्रेलियाई सरजमीं पर हिंदुस्तान की प्रमुख भाषाओं में एक पंजाबी भाषा ने अपने बढ़ते प्रभाव का ऐसा डंका बजाया है जिससे उनकी हुकूमत को अपने स्कूली पाठ्यक्रमों में पहले से निर्धारित सब्जैक्टों में पंजाबी को भी शामिल करने पर मजबूर होना पड़ा. जनगणना-2011 के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में सिखों की आबादी 210,000 से अधिक थी जो अब डबल हो चुकी है. वैसे, मांग तो बहुत पहले से उठ रही थी. पर, देर आए, दुरूस्त आए, आखिकार ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हाल में लागू की अपनी नई शिक्षा नीति में अब पंजाबी भाषा को भी जोड़ लिया है. उनके इस निर्णय को भारत सरकार और प्रत्येक भारतीयों ने खुलेदिल से सराहा है. दरअसल, ये निर्णय उन देशों को भी संबल देगा जहां-जहां भारतीयों की आबादी हाल के दशकों में बेहताशा बढ़ी हैं. फिजी, मॉरीशस, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई मुल्क हैं जहां हिंदुस्तानी लोग हिंदी-पंजाबी बोलते हैं और उन्हें देखा-देख दूसरे लोगों ने भी बोलना शुरू कर दिया है. इस कतार में अन्य और भी कई ऐसे देश हैं जिनमें हिंदी-पंजाबी को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग जोरों से उठ रही है.
कहते हैं कि भाषा का बढ़ता प्रभाव, बहती हवाओं और उड़ते परिंदों सरीखा होता है. जिसे रोक पाना समाज क्या, सरकार के लिए भी मुश्किल होता है. नए निर्णय के तहत ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अपने सभी निजी व सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में पंजाबी को पढ़ाने का फैसला किया है जो प्री-प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रमों में अब से पढ़ाई जाया करेगी. ऑस्ट्रेलिया के तीन प्रांत जिनमे विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड ऐसे हैं जहां पंजाबियां की बहुतायत है. इसके अलावा समूचे देश में करीब दस फीसदी आबादी इन्हीं से सुशोभित है.
ये समुदाय बीते कई वर्षों से वहां पंजाबी भाषा को स्कूली कक्षाओं में पढ़ाने की मांग सरकार से करता आया है. जिसपर सरकार ने पिछले साल अगस्त में आबादी के लिहास से जांच-पड़ताल कराई, एक कमेटी बनाई और पिछली जनगणना के आधार पर आंकलन भी करवाया, जिसमें पाया कि ये भाषा वास्तव में अन्य भाषाओं के मुकाबले तेजी से बढ़ी है. इसलिए इसे सरकारी मान्यता दी जानी चाहिए. कमेटी की फाइनल रिपार्ट जैसे ही सरकार के पास पहुंची, तुरंत निर्णय हुआ और जोड़ दिया अपने राष्टृय पाठ्यक्रमों की कक्षाओं में.
बहरहाल, ‘ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो’ द्वारा प्रस्तुत जनगणना-2011 के मुताबिक, पंजाबी भाषा का प्रचलन सबसे तेजी से बढ़ना बताया, आंकड़ों की माने तो वहां 239,033 ऐसे घर हैं जिनमे हमेशा पंजाबी बोली जाती है. ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप की कुल आबादी का तकरीबन 10 प्रतिशत के साथ किसी भी ऑस्ट्रेलियाई राज्य या क्षेत्र का सबसे बड़ा भूमि क्षेत्र, विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स व क्वींसलैंड हैं जहां पंजाबियों की एक बड़ी आबादी रहती है.
ये आबादी राज्य की असाधारण जलवायु, प्रकृतिक संपदाएं, प्रसन्नचित्त अर्थव्यवस्था व सबसे जरूरी आरामदेह जीवन स्टाइल के चलते आकर्षित है. बीते एकाध दशकों में इस महादीप में भारतीयां का पहुंचना कुछ ज्यादा ही हुआ है. पिछले वर्ष संसद के शीत सत्र में देश छोड़ने वालों का आंकड़ा सरकार की ओर से जारी हुआ था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया जाने वालों का भी जिक्र हुआ था. यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया में पंजाबी जुबान तेजी से बढ़ी है. इसके अलावा हिंदी भी ऑस्ट्रेलियाई में बोली जाने वाली शीर्ष 10 भाषाओं में जगह बना चुकी है.
हालांकि, उसे अभी तक पाठ्यक्रमों में नहीं जोड़ा गया. हो सकता है देर-सबेर उन्हें भी जोड़ लिया लाए.गौरतलब है, ऑस्ट्रेलिया में जातीय-समुदायों के साथ भेदभाव कतई नहीं किया जाता, ये अच्छी बात है. जो भी मांगे होती हैं, उन्हें गंभीरता से लिया जाता है. पंजाबियों की एक और मांग उठी थी कि एक गुरुद्वारा बनाया जाए, तभी स्थानीय मेयर के प्रयासों से ‘न्यू साउथ वेल्स’ में एक विशाल गुरूद्वारे का निर्माण भी करवाया गया है.
मौजूदा वक्त में ऑस्ट्रेलिया के भीतर पांचवां सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता धार्मिक समूह गुरवाणी है. ऑस्ट्रेलिया में सबसे बड़ी सिख आबादी विक्टोरिया में पाई जाती है, इसके बाद न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड का स्थान आता है. शेपार्टन, विक्टोरिया में पहले से एक-एक गुरुद्वारा हैं. इतिहास के पन्नों को पलटे तो कभी वहां भारतीयों का रहना उतना आसान नहीं होता था. वहां ज्यादातर पहचान गिरमिटिया मजदूर के तौर पर हुआ करती थी.
धीरे-धीरे समय बदला, तो सन् 1925 व 1929 के बीच एशियाई देशों के अन्य मुल्कों की तुलना में भारतीयों को वहां कहीं अधिक अधिकार दिए गए. जबकि, एक वक्त ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों को सीमित संपत्ति अधिकारों की अनुमति हुआ करती थी. वोट करने का भी अधिकार नहीं था. लेकिन अब वोट भी देते हैं, नागरिकता भी हासिल है और पेंशन पाने का अधिकार भी प्राप्त है. ऑस्ट्रेलिया के सभी सरकारी विभागों में इस वक्त पंजाबियों की आमदगी है. नौकरियों के अलावा वह कृषि क्षेत्र में प्रमुखता से रमे हुए हैं.
ऑस्ट्रेलियाई जीडीपी में करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी खेतीबाड़ी की है. वहां गन्ने की खेती प्रमुखता से होती है जिसे तकरीबन पंजाबी ही करते हैं. बेशक, ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी एकीकृत है. पर, अब दूसरी भाषाएं भी मीठी बोली से अपनी जगह बनाती जा रही हैं. स्थानीय नागरिक भी बड़े चाव से पंजाबी बोलते हैं. घरों में बच्चों के लिए बकायदा टयूटर रखे हुए हैं. अब ये प्रचलन और बढ़ गया है जबसे पाठ्यक्रम में पंजाबी पाषा को जोड़ा गया है.
ऑस्ट्रेलिया में पंजाबियों का संर्घष भी बहुत बड़ा रहा. सन् 1930 के बाद जब सिखों ने अपने नए-नवेले अधिकारों का उपयोग करना आरंभ किया. शुरूआत में उनकी क्वींसलैंड के एथर्टन टेबललैंड क्षेत्र और न्यू साउथ वेल्स की उत्तरी नदियों, विशेष रूप से मैकलीन, हारवुड और क्लेरेंस में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज होने के बाद गन्ने के खेतों में काम करना शुरू किया, फिर ऐसा समा बंधा कि लाइफ तेजी से आगे बढ़ी.
कभी खेतों में सामान्य मजदूर के तौर पर काम करते थे, फिर उन्हीं खेतों को ठेके पर लेकर स्वंय की खेती शुरू की, इसके अलावा अन्य कामों में भी हाथ बंटाते रहे. पंजाबियों की जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, वैसे ही पंजाबी भाषा का भी विस्तार होता गया. विस्तार इस कदर हुआ कि आज पंजाबी भाषा ने अपनी मौजूदगी वहां के राष्टृय पाठ्यक्रमों में दर्ज करवा ली. पंजाबी जुबान अब सरकारी हो गई है. बच्चे अब किताबों में पढ़ेंगे.
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