सोमवार को कतर ने इस बात की घोषणा कर दी है कि वह ओपेक देशों से अलग होने जा रहा है. 1 जनवरी 2019 को वह ओपेक से अलग हो जाएगा. आपको बता दें कि ओपेक पेट्रोलियम निर्यातक देशों का समूह है. ओपेक से पूरी दुनिया में कुल 44 फीसदी कच्चे तेल की जरूरत पूरी होती है. जब से कतर ने ओपेक देशों के समूह से निकलने का फैसला किया है, तब से कई तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. ये भी कहा जा रहा है कि इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी. कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की आंशका सीधे डीजल-पेट्रोल से जोड़कर देखी जाती है. तो क्या वाकई कतर के ओपेक देश से बाहर जाने के कारण डीजल-पेट्रोल महंगा हो सकता है? चलिए जानते हैं-
डीजल-पेट्रोल महंगा होगा?
ओपेक संगठन 15 देशों का समूह है, जिसमें कतर 11वें नंबर पर है. अगर अक्टूबर के आंकड़ों को देखा जाए तो कतर की ओर से रोजाना 6.10 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होता है. सारे ओपेक देश मिलकर रोजाना करीब 3.33 करोड़ बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं. यानी महज 2 फीसदी कच्चा तेल ही कतर की ओर से आ रहा है. वहीं दूसरी ओर, ओपेक संगठन इस बात का भी फैसला करता है कि रोजाना कितने बैरल कच्चे तेल का उत्पादन किया जाएगा, ताकि कीमतों पर नियंत्रण रखा जा सके. 2014 में कच्चे तेल का बहुत अधिक उत्पादन होने की वजह से कच्चे तेल की कीमतें काफी गिरी थीं. अब अगर ओपेक को कतर की तरफ से कच्चा तेल नहीं भी मिलेगा, तो भी वह बाकी देशों से उत्पादन बढ़ाकर कीमत को नियंत्रण में रख सकता है. यानी ये तो साफ है कि कतर के बाहर जाने से न तो कच्चा तेल महंगा होगा, ना ही डीजल-पेट्रोल.
एलएनजी का सबसे बड़ा निर्यातक
भले ही कच्चे तेल के मामले में कतर बहुत बड़ा उत्पादक ना हो,...
सोमवार को कतर ने इस बात की घोषणा कर दी है कि वह ओपेक देशों से अलग होने जा रहा है. 1 जनवरी 2019 को वह ओपेक से अलग हो जाएगा. आपको बता दें कि ओपेक पेट्रोलियम निर्यातक देशों का समूह है. ओपेक से पूरी दुनिया में कुल 44 फीसदी कच्चे तेल की जरूरत पूरी होती है. जब से कतर ने ओपेक देशों के समूह से निकलने का फैसला किया है, तब से कई तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. ये भी कहा जा रहा है कि इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी. कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की आंशका सीधे डीजल-पेट्रोल से जोड़कर देखी जाती है. तो क्या वाकई कतर के ओपेक देश से बाहर जाने के कारण डीजल-पेट्रोल महंगा हो सकता है? चलिए जानते हैं-
डीजल-पेट्रोल महंगा होगा?
ओपेक संगठन 15 देशों का समूह है, जिसमें कतर 11वें नंबर पर है. अगर अक्टूबर के आंकड़ों को देखा जाए तो कतर की ओर से रोजाना 6.10 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होता है. सारे ओपेक देश मिलकर रोजाना करीब 3.33 करोड़ बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं. यानी महज 2 फीसदी कच्चा तेल ही कतर की ओर से आ रहा है. वहीं दूसरी ओर, ओपेक संगठन इस बात का भी फैसला करता है कि रोजाना कितने बैरल कच्चे तेल का उत्पादन किया जाएगा, ताकि कीमतों पर नियंत्रण रखा जा सके. 2014 में कच्चे तेल का बहुत अधिक उत्पादन होने की वजह से कच्चे तेल की कीमतें काफी गिरी थीं. अब अगर ओपेक को कतर की तरफ से कच्चा तेल नहीं भी मिलेगा, तो भी वह बाकी देशों से उत्पादन बढ़ाकर कीमत को नियंत्रण में रख सकता है. यानी ये तो साफ है कि कतर के बाहर जाने से न तो कच्चा तेल महंगा होगा, ना ही डीजल-पेट्रोल.
एलएनजी का सबसे बड़ा निर्यातक
भले ही कच्चे तेल के मामले में कतर बहुत बड़ा उत्पादक ना हो, लेकिन लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) के मामले में वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है. अपने कुल एलएनजी उत्पादक का 15 फीसदी तो कतर सिर्फ भारत को निर्यात करता है. इसको दूसरी तरह से देखें तो भारत में एलएनजी निर्यात की करीब 65 फीसदी जरूरत कतर से पूरी होती है. यानी अगर ओपेक और कतर के बीच में कोई विवाद की स्थिति हुई और भारत को दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ा तो इससे मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.
क्यों अलग हो रहा है कतर?
यूं तो इसकी सबसे बड़ी वजह सऊदी अरब के साथ तनाव है, लेकिन कतर का कहना है कि वह गैस पर फोकस करने के लिए अलग हो रहा है. ऊर्जा मंत्री साद अल-काबी ने इस बात की पुष्टि की है. हालांकि, ये जानना जरूरी है कि कतर का अपने पड़ोसी देशों सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और मिस्र जैसे देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बेहद खराब हो गया है. पिछले साल जून में इन देशों ने कतर पर आरोप लगाया था कि वह आतंकवाद का समर्थन कर रहा है. तब से ये देश न तो कतर आते-जाते हैं ना ही उसके साथ ट्रेड करते हैं. कतर ने साफ किया है कि वह गैस ऊर्जा पर फोकस करने के लिए अलग हो रहा है, जिसका वह सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन ये भी ध्यान देने की बात है कि ओपेक संगठन से बाहर होने के बाद उसके कच्चे तेल के उत्पादन पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा. यानी वह जितना चाहे उतना कच्चा तेल भी पैदा कर सकता है.
कतर के ओपेक से बाहर जाने के कारण भारत को कच्चा तेल तो महंगा नहीं मिलेगा, लेकिन किसी भी विवाद की स्थिति में नेचुरल गैस पर तलवार लटक सकती है. कतर से तो भारत के अच्छे संबंध हैं ही, साथ ही सऊदी अरब से भी अच्छे संबंध हैं. जबकि इन दोनों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है. ऐसे में भारत को डिप्लोमेटिक तरीके से दोनों से अपने संबंध बनाए रखने होंगे, वरना आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ सकता है. खैर, कतर के ओपेक से बाहर जाने के बाद वैश्विक स्तर पर क्या बदलाव आते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा.
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