चुनाव आयोग (Election Commission) पर कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) की टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है - और उसकी वजह से चुनाव आयोग के कामकाज पर सवालिया निशान लग रहा है. हाई कोर्ट ने अपने जमाने के जाने माने मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन की मिसाल देकर चुनाव आयोग को सटीक नसीहत भी दे डाली है.
हाई कोर्ट की ये टिप्पणी चुनाव आयोग के देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के भरोसे को भी हिला देने वाली है - खास बात ये भी है कि चुनावों की तारीख आने के साथ ही जो सवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने उठाये थे, उन बातों में से कुछ ने कलकत्ता हाई कोर्ट का भी ध्यान खींचा है.
कलकत्ता हाई कोर्ट ने कोरोना वायरस से पैदा हुई खतरनाक स्थिति में भी पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में विधानसभा चुनाव कराये जाने को लेकर भी चुनाव आयोग को फटकार लगायी है. अदालत को लगता है कि चुनावी रैलियां कोविड 19 मामलों के लिए सुपर स्प्रेडर बन सकती हैं.
चुनाव आयोग के प्रयासों को नाकाफी मानते हुए हाई कोर्ट ने कोविड प्रोटोकॉल लागू करने को लेकर एक हलफनामे पर आयोग से कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है - देश में मजबूत लोकतंत्र कायम रहे इस हिसाब से चुनाव आयोग के कामकाज को लेकर अगर किसी भी तरह का मामूली संदेह भी होता है तो और भी सवाल खड़े हो सकते हैं!
चुनाव आयोग की साख पर सवाल!
कलकत्ता हाई कोर्ट ने कोविड 19 के बढ़ते प्रकोप के बीच पश्चिम बंगाल में जारी चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल-जबाव तो किये ही, पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का नाम लेकर जो नसीहत दी है - वो अदालत की टिप्पणी को ज्यादा अहम बना देता है. 90 के दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने आदर्श आचार संहिता को बेहद सख्ती से लागू किया था - ये पहला मौका रहा जब देश को मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे पद का महत्व समझ में आया. देखा जाये तो टीएन शेषन ने अलग से कुछ भी नहीं किया था और शायद करने को भी कुछ नहीं होगा या है, लेकिन जो भी शक्तियां चुनाव आयोग के पास हैं उसका बाकायदा...
चुनाव आयोग (Election Commission) पर कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) की टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है - और उसकी वजह से चुनाव आयोग के कामकाज पर सवालिया निशान लग रहा है. हाई कोर्ट ने अपने जमाने के जाने माने मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन की मिसाल देकर चुनाव आयोग को सटीक नसीहत भी दे डाली है.
हाई कोर्ट की ये टिप्पणी चुनाव आयोग के देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के भरोसे को भी हिला देने वाली है - खास बात ये भी है कि चुनावों की तारीख आने के साथ ही जो सवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने उठाये थे, उन बातों में से कुछ ने कलकत्ता हाई कोर्ट का भी ध्यान खींचा है.
कलकत्ता हाई कोर्ट ने कोरोना वायरस से पैदा हुई खतरनाक स्थिति में भी पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में विधानसभा चुनाव कराये जाने को लेकर भी चुनाव आयोग को फटकार लगायी है. अदालत को लगता है कि चुनावी रैलियां कोविड 19 मामलों के लिए सुपर स्प्रेडर बन सकती हैं.
चुनाव आयोग के प्रयासों को नाकाफी मानते हुए हाई कोर्ट ने कोविड प्रोटोकॉल लागू करने को लेकर एक हलफनामे पर आयोग से कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है - देश में मजबूत लोकतंत्र कायम रहे इस हिसाब से चुनाव आयोग के कामकाज को लेकर अगर किसी भी तरह का मामूली संदेह भी होता है तो और भी सवाल खड़े हो सकते हैं!
चुनाव आयोग की साख पर सवाल!
कलकत्ता हाई कोर्ट ने कोविड 19 के बढ़ते प्रकोप के बीच पश्चिम बंगाल में जारी चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल-जबाव तो किये ही, पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का नाम लेकर जो नसीहत दी है - वो अदालत की टिप्पणी को ज्यादा अहम बना देता है. 90 के दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने आदर्श आचार संहिता को बेहद सख्ती से लागू किया था - ये पहला मौका रहा जब देश को मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे पद का महत्व समझ में आया. देखा जाये तो टीएन शेषन ने अलग से कुछ भी नहीं किया था और शायद करने को भी कुछ नहीं होगा या है, लेकिन जो भी शक्तियां चुनाव आयोग के पास हैं उसका बाकायदा इस्तेमाल कर टीएन शेषन ने सभी राजनीतिक दलों को आयोग की अहमियत समझा दी थी - और वो आज भी मिसाल है.
हाई कोर्ट का मानना है कि टीएन शेषन ने जो किया है, चुनाव आयोग उसका दसवां हिस्सा भी नहीं कर रहा है. हाई कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि अगर चुनाव आयोग ने एक्शन नहीं लिया तो वो काम अदालत करेगी.
हाई कोर्ट का कहना रहा कि चुनाव आयोग के पास शक्तियां हैं, लेकिन वो कोविड के वक्त हो रहे पश्चिम बंगाल चुनाव के बारे में क्या कर रहा है? दरअसल, हाई कोर्ट को लगता है कि चुनाव आयोग महज सर्कुलकर जारी कर रहा है - और इसे लोगों पर छोड़ दे रहा है, जबकि चुनाव आयोग के पास ऐसी चीजों पर अमल कराने की भी शक्तियां हासिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार सीबीआई को लेकर बहुत ही गंभीर टिप्पणी की थी - 'पिंजरे का तोता' जैसा. जिस जांच एजेंसी पर पूरा देश आंख मूंद कर भरोसा करता हो, उसे लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत का ये आकलन इंसाफ की आस लगाये सभी लोगों को अंदर तक झकझोर दिया था - चुनाव आयोग को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट की टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट की सीबीआई पर टिप्पणी जैसा तो नहीं कह सकते, लेकिन अदालत ने जो भी कहा है आयोग के लिए चिंता की बात है.
चुनाव आयोग ने आखिरी चरण के मतदान को एक साथ कराने की मांग तो खारिज कर चुका है, लेकिन हाल फिलहाल आयोग ने दो सही काम जरूर किये हैं - एक, बिहार में पंचायत को चुनाव टाल दिया है और दो, पश्चिम बंगाल में फीजिकल कैंपेन पर रोक लगा दी है. तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ ब्रायन और कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर बचे हुए चुनावों को एक साथ कराये जाने की मांग की थी, लेकिन आयोग ने उनकी मांग ठुकरा दी.
द प्रिंट वेबसाइट ने अपने स्तर पर एक सर्वे कराया था और उसमें खास तौर से दो सवाल पूछे थे. एक, कोविड के मामले बढ़ने के चलते क्या सभी नेताओं और राजनीतिक दलों को अपने चुनाव अभियान पूरी तरह बंद कर देने चाहिये? दो, क्या चुनाव आयोग को आखिरी दौर के मतदान एक साथ कराने चाहिये?
सर्वे में करीब 60 फीसदी लोग आखिरी दौर की वोटिंग को एक साथ कराने के पक्ष में पाये गये. सर्वे में 1054 वोटर शामिल थे जिनमें 48 फीसदी पुरुष और 52 फीसदी महिलाएं थीं - और ये सर्वे पश्चिम बंगाल की 101 विधानसभा क्षेत्रों में कराया गया था. खास बात ये रही कि इसमें 85 फीसदी युवा थे जिनकी उम्र 30 साल से कम थी और 13 फीसदी ऐसे लोग रहे जो 30-60 साल के बीच के थे. दो फीसदी लोग ऐसे भी रहे जिनकी उम्र 60 से ऊपर रही.
चुनाव आयोग के नये आदेश पर भी विवाद
जैसे कोविड के बढ़ते खतरे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र सरकार की नींद खुली है, चुनाव आयोग भी कलकत्ता हाईकोर्ट की जलालत भरी टिप्पणियों के बाद नींद से जागने की कोशिश कर रहा है. फौरी फैसलों के हिसाब से देखें तो चुनाव आयोग अब भी नींद की खुमारी से उबरने की कोशिश कर रहा है - पूरी तरह जाग नहीं पाया है.
आयोग ने राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार पर जो पाबंदी लगायी है उससे तो नहीं, लेकिन ईद के दिन दो सीटों पर वोटिंग कराये जाने को लेकर बीजेपी को छोड़ कर सभी राजनीतिक दल भड़क गये हैं.
चुनाव आयोग की तरफ से प्रचार के लिए अभी तक साइकिल, बाइक और दूसरे वाहनों के साथ रैली या रोड शो की जो अनुमति दी जाती रही, उसे वापस ले लिया गया है. चुनाव आयोग ने माना है कि कई राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपनी पब्लिक मीटिंग के दौरान सुरक्षा मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं. चुनाव आयोग ने नये आदेश में ये भी कहा ही कि एक जगह 500 से ज्यादा लोगों की जनसभा करने की अनुमति नहीं होगी और रैली के दौरान सोशल डिस्टैंसिंग और कोविड प्रोटोकॉल का अच्छी तरह पालन भी करना होगा - और इसके अलावा हर तरीके की फीजिकल कैंपेनिंग पर रोक लगा दी गयी है.
अमित शाह की मालदा रैली रद्द होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोरोना वायरस के खतरे के सिलसिले में उच्च स्तरीय बैठकों के चलते अपना पश्चिम बंगाल दौरा टाल दिया था - और फिर पश्चिम बंगाल बीजेपी की गुजारिश पर मोदी की वर्चुअल रैली हुई.
मोदी और शाह से पहले ही ममता बनर्जी ने भी अपनी कोलकाता रैली रद्द कर दी थी. ममता बनर्जी से पहले राहुल गांधी और सीपीएम ने भी अपनी चुनावी रैलियां रद्द करने का ऐलान कर दिया था. अब इतना सब होने के बाद चुनाव आयोग जग भी गया है तो उसके आदेशों से क्या फर्क पड़ने वाला है?
साथ ही, चुनाव आयोग ने मुर्शिदाबाद जिले की दो विधानसभा सीटों जंगीपुर और शमशेरगंज पर 13 मई को मतदान कराये जाने की घोषणा की है - जिस पर ममता बनर्जी सहित कई नेताओं ने आपत्ति जतायी है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की तरफ से भी चुनाव आयोग को पत्र लिख कर फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की गयी है.
असल में, शमशेरगंज में छठे चरण में वोटिंग होनी थी, लेकिन 15 अप्रैल को कांग्रेस उम्मीदवार रेजाउल हक की कोविड के चलते मौत हो गयी. जंगीपुर सीट पर भी उसी दिन मतदान होना था लेकिन 16 अप्रैल को वहां के संयुक्त मोर्चा उम्मीदवार प्रदीप नंदी भी कोरोना संक्रमण का शिकार होकर जान गंवा बैठे. अब दोनों सीटों पर चुनाव होने हैं.
ईद के दिन चुनाव कराये जाने की चुनाव आयोग की घोषणा पर तृणमूल कांग्रेस, लेफ्ट और कांग्रेस ने तो नाराजगी जतायी है - और पोल पैनल पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ पक्षपाती होने का इल्जाम भी लगाया है, लेकिन बीजेपी का तर्क है कि बीहू और चिथिरई के दिन भी मतदान तो हुए ही.
पश्चिम बंगाल में मस्जिद समिति की सबसे बड़ी संस्था बंगाल इमाम एसोसिएशन ने आयोग से दोनों सीटों पर चुनाव ईद के तीन दिन बाद कराने की अपील की है.
ईद की तारीख तो तय होती नहीं है, चांद देखने के बाद ही फैसला होता है कि ईद किस दिन मनायी जाएगी. ऐसे में जरूरी नहीं है कि 13 मई को ही ईद पड़े ही, लेकिन ये भी नहीं माना जा सकता कि उस दिन ईद होगी ही नहीं.
एसोसिएशन के प्रमुख मोहम्मद याहिया का कहना है कि 14 मई या उससे एक दिन पहले 13 मई को ईद मनायी जाएगी, लेकिन फैसला तो चांद के दीदार के बाद ही हो सकेगा - लिहाजा उनका सुझाव है कि ईद के तीन दिन बाद की तारीख रखी जाये क्योंकि जहां वोटिंग होनी है वो मुस्लिम बहुल इलाका है.
हाई कोर्ट की टिप्पणी से निर्वाचन आयोग पर सवालिया निशान तो चुनावों की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा करेगा - और ये किसी भी सूरत में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की अच्छी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.
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